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सफेद मूसली की खेती कैसे करें, जानें कैसे कमाएं लाखों का मुनाफा

सफेद मूसली की खेती कैसे करें, जानें कैसे कमाएं लाखों का मुनाफा
पोस्ट -30 दिसम्बर 2022 शेयर पोस्ट

सफेद मूसली की खेती (Cultivation of White Musli) से होगी लाखों की कमाई, जानें खेती का उन्नत तरीका

सफेद मूसली (क्लोरोफाइटम बोरीविलियेनम): भारत में प्राचिन काल से आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में महारथ हासिल है। प्राचिन काल से ही हमारे पूर्वजों ने आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से कई ना ईलाज रोगों की दवाईयां बनाई है। हमारे देश को आयुर्वेदिक के लिए विश्व गुरु भी माना जाता है। क्योंकि हमारा देश विभिन्नताओं से भरा हुआ है। इसके हर हिस्सें में कई प्रकार की जलवायु मिलती है। जलवायु विभिन्नता के कारण देश के लगभग हर हिस्सें में विभिन्न प्रकार की कई औषधीय जड़ी बूटी भी पाई जाती है। जिनमें सफेद मूसली एक ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है, जो कुदरती तौर पर जंगलों में पाई जाती है। भारत में यह बरसात के मौसम में उष्ण कटिबंधीय जंगलों में उगता है। जड़ी-बूटी के जानकार जंगलों से पहचान कर सफेद मूसली को लाकर विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाते रहे है। औषधीय क्षमता के कारण सफेद मूसली की पूरी दुनिया में मांग बड़ी तेजी से बढ़ रही है जिस वजह से अब इसकी व्यवसायिक खेती होने लगी है। भारत में राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल में सफेद मूसली की कारोबारी खेती की जाती है। सफेद मूसली की खेती के लिए सरकार अनुदान देती है, जिसके बारे में आप अपने राज्य के जिला उद्यान कार्यालय से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सफेद मूसली की खेती करने वाले राज्य के किसान बताते हैं कि एक एकड़ में सफेद मूसली की खेती से लगभग 5 लाख रुपए तक की आय मिल सकती है। इसकी खेती कर किसान भाई कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकता है। और यह किसानों को काफी कम समय में लखपति बना सकती हैं। आइए ट्रैक्टरगुरु के इस लेख के माध्यम से सफेद मूसली की खेती का तरीका और इसका इस्तेमाल किन किन आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में किया जाता है के बारे में जानते है।   

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सफेद मूसली (white muesli) 

सफेद मूसली औषधीय गुणों से भरपूर होता है। कुदरती तौर पर सफेद मूसली  बरसात के मौसम में जंगलों में अपने आप उगता रहा है। सफेद मूसली का वैज्ञानिक नाम (क्लोरोफाइटम बोरीविलियेनम) है। इसका पौधा लगभग 1.5 फुट तक लम्बा होता है। यह एक सालाना पौधा है, जिसकी जमीन में घुसी मांसल जड़ों की लंबाई 8-10 सेंटीमीटर तक होती है। यह दो प्रकार की होती है पहली सफेद मूसली और दूसरी काली मूसली। जड़ी-बूटी के जानकार ने सफेद मूसल को ज्यादा उपयोगी बताया है। इसकी तैयार जड़ें भूरे रंग की होती है। 

सफेद मूसली (white muesli) में मौजूद औषधी गुण 

औषधीय गुणों के दृष्टि से सफेद मूसली (white muesli) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। औषधीय क्षमता के कारण दुनिया भर में दवाई निर्माता कंपनी इसकी खरीद करते हैं। और इससे कई प्रकार की आयुर्वेदिक औषधीयों को बनाते है। इसमें सेपोनिन और सेपोजिनिन जैसे खास तरह के तत्त्व पाए जाता है, जिस कारण सफेद मूसली का इस्तेमाल औषधीय में होता है। सफेद मूसली की तैयार जड़ों से यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनती हैं। सफेद मूसली का मुख्य रूप से प्रयोग यौन क्षमता और शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका सेवन मानसिक अवसाद को दूर करने के साथ साथ मष्तिष्क की कार्य प्रणाली बेहतर बनाता है। इसी कारण इसकी मांग काफी ज्यादा है। हालांकि मांग के मुकाबले उत्पादन नहीं होने से दिक्कतों को सामना भी करना पड़ता है। भारत के कई राज्यों में किसान अब सफेद मूसली की खेती करने लगे हैं। एक एकड़ में लाखों रूपये तक का मुनाफा दे सकती है।  

एक एकड़ में सफेद मूसली की खेती से 4 से 5 लाख रुपए तक की कमाई

जड़ी-बूटी के जानकार के अनुसार सफेद मूसली बहुमूल्य औषधीय फसल है, जो लगभग 150 दिनों यानि पांच महीने में तैयार हो जाती है। सफेद मूसली के एक एकड़ खेत से 4 से 5 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है। सफेद मूसली का औसत बाजार भाव 1 हजार से 1500 रुपए प्रति किलो होता है। इस हिसाब से इस उपज की कीमत लगभग चार से 5 लाख रुपए तक हो सकती है। इसमें लगभग 30 हजार रुपए तक की लागत भी शामिल है। इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती किसानों के लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकती है। 

सफेद मूसली को कैसे उगाएं?

किसान एवं उद्यानिकी विभाग के जानकारों के अनुसार सफेद मूसली के लिए जून माह का प्रथम या द्वितीय सप्ताह बुवाई के लिए उपयुक्त होता है। बारिश से पहले यानि मई माह में जमीन को एक-दो बार जोतकर सिंचाई के दौरान जमीन में नमी तैयार कर सफेद मूसली के बीज को रोपा जाता है। सफेद मूसली के बीजों की रोपाई में 4 से 5 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगता है, बीजों की रोपाई हाथ द्वारा या सीड ड्रिल मशीन की मदद से बुवाई कर सकते है। सफेद मूसली की बुआई के लिए पूर्व की फसल से निकाली गई कंदों का प्रयोग किया जाता है। यदि अगर एक पौधे में 20 फिंगर्स हैं, तो उससे 20 बीज बनाए जा सकते हैं। इसके छोटे कंदों को बीज के रुप में कर सकते है। एक एकड़ में सफेद मूसली के लगभग 80 हजार पौधे लगाए जाते हैं।

सफेद मूसली की प्रजातियां 

सामान्य सफेद मूसली की कई प्रजातियां होती है, लेकिन सफेद मूसली की एमसीबी -405, एमसीबी - 412, एमसीटी -405, एमडीबी13 और 14 की प्रजातियों को ही प्रमुख माना जाता है। इसमें जड़ों की मोटाई भी एक समान होती है, जिससे इसकी बाजार में अच्छी कीमत भी मिलती है। इसके अलावा क्लोरोफाइटम टयूवरोजम, क्लोरोफाइटम एटेनुएटम, क्लोरोफाइटम बोरिमिलियनम और क्लोरोफाइटम वोरिविलिएनम भी सफेद मूसली की मुख्य प्रजातियां है।

सफेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

सफेद मूसली की खेती के लिए गरम और आर्द्र जलवायु वाले इलाके, जहां औसत सालाना बारिश 60 से 115 सेंटीमीटर तक होती है। ऐसे इलाकों को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। सफेद मूसली के लिए दोमट, रेतीली दोमट, लाल दोमट और कपास वाली लाल मिट्टी जिस में जीवाश्म काफी मात्रा में हों, अच्छी मानी जाती है। खेती के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक होना चाहिए। ज्यादा पीएच मान वाले भूमि में इसकी खेती करने से बचे। 

सफेद मूसली की खेती के लिए भूमि की तैयारी

सफेद मूसली की खेती जुलाई माह में की जाती है। इसके लिए इसके खेत को मई-जून माह में तैयार करें। खेत की दो से तीन गहरी जुताई करके खेत को ऐसे ही छोड़ दे। वर्षा आरंभ होने पर खेत में सड़ी गोबर की खाद 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से देकर खेत की दोबारा जुताई कर गोबर की खाद मिट्टी में मिला दें। इसके बाद दो-तीन हल्की जुताईयाँ करके उसमें पाटा लगाकर खेती में सुविधानुसार क्यारियों बना लेना चाहिए। क्यारियों के बीच 30-40 से.मी की दूरी रखी जाती है। इस विधि मे बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है। दो पौधो के बीच की दूरी 13 से.मी. रखते हुये बीजों की बुवाई इस प्रकार की जानी चाहिए कि प्रत्येक स्थान में 3-4 बीज की बुवाई हो। इसके पौधों की रोपाई के समय 50 किलो नाइट्रोजन, 100 किलो फॉस्फोरस तथा 50 किलो पोटाश दें। 

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निराई-गुड़ाई- खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए विशेष ध्यान दे। यदि खेत में ज्यादा खरपतवार दिखाई दे, तो समय-समय पर निराई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त कर लेना चाहिए। सफेद मूसली के पौधों में कवक और फफूंद जैसे कीट रोग दिखाई देते है। इसके लिए बायोपैकूनील या बायोधन दवाई को उचित मात्रा में छिड़काव या ट्राईकोडर्मा की तीन किलो की मात्रा को गोबर की खाद में मिलाकर खेत में छिड़काव करें।

सिंचाई- पहली सिंचाई तो रोपाई के तुरंत बाद करे। इसके बाद नमी के हिसाब से 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। वर्षा के दिनों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी सिंचाई नमी व आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर करें। खेत में नमी बनाये रखने के लिए ड्रिप सिचाई की व्यवस्था करनी चाहिए। 

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