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हरा सोना बांस की खेती : एक बार की मेहनत से होगी बंपर कमाई, आधा खर्चा सरकार से मिलेगा

हरा सोना बांस की खेती : एक बार की मेहनत से होगी बंपर कमाई, आधा खर्चा सरकार से मिलेगा
पोस्ट -23 अगस्त 2022 शेयर पोस्ट

बांस के उत्पादन को बढ़ावा देगी सरकार, खेती पर करने पर मिलेगा 50 प्रतिशत का अनुदान 

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसदी से ज्यादा है और देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं। यह संख्या देश के कुल परिवारों का 48 फीसदी है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में धान, गेहूं, गन्ने जैसी पारंपरिक फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से किसान पारंपरिक फसलों की खेती के अलावा मुनाफेदार पौधों की खेती की ओर अपना रूख कर रहे है। अब वो जमाना गया, जब खेती को कमाई का सबसे खराब जरिया माना जाता था। खेती भी अगर सोच समझकर की जाए तो इंसान को कुछ ही सालों में अमीर बना देती है। वर्तमान समय में कई तरह की खेती से लोग जमकर पैसा कमा रहे हैं। ऐसी ही मुनाफेदार पौधों की खेती में बांस भी शामिल है, जिसे किसानों के लिए हरा सोना भी कहा जाता है। जिसकी खेती का ट्रेंड पिछले कुछ वर्षों में किसानों के बीच तेजी से बढ़ा है। धीरे-धीरे किसानों के बीच बांस की खेती लोकप्रिय होती जा रही है। इसी बीच मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार बांस की खेती में अपार संभावना को देखते हुए अपने सूबे के किसानों को इसके लिए प्रेरित कर ही है। इसके लिए शिवराज सरकार राज्य में बांस मिशन को शुरू किया है। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार किसानों को बांस की खेती के लिए 50 प्रतिशत तक सब्सिडी भी दे रही है। मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने बांस मिशन द्वारा बांस के एक पौधे की खरीदी से लेकर बांस लगाई एवं उसके बड़े होने तक सुरक्षा सहित 240 रुपये की लागत का अनुमान लगाया है। ट्रैक्टरगुरू की इस लेख में बांस की खेती पर मिलने वाली सब्सिडी और बांस होने वाली कमाई के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

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एक हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में कटंग बांस का रोपण

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार का मानना है कि बांस किसानों के लिए हरा सोना हैं। बांस की खेती के लिए प्रदेश सरकार किसानों को प्रेरित कर रही है। शिवराज सरकार द्वारा “एक जिला-एक उत्पाद” योजना के तहत देवास जिले में किसानों को प्रेरित कर एक हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में कटंग बांस का रोपण किया गया है। देवास जिले में विकास खंड देवास, सोनकच्छ, बागली, टोंकखुर्द, कन्नौद और खातेगांव के 448 किसानों ने 541 हेक्टेयर भूमि पर 2,16,281 बांस के पौधों का रोपण किया है। मनरेगा से वन क्षेत्रों में बांस पौधों का रोपण कर 46 महिला स्व-सहायता समूहों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। 

बांस खेती से होगी बंपर कमाई 

कई बड़े किसानों और कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बांस की खेती अन्य फसलों से काफी सुरक्षित भी है। इसकी खेती में अगर थोड़ी मेहनत कर ली जाए तो इससे काफी अच्छी कमाई भी की जा सकती है। इसका एक कारण ये भी है कि देश में काफी कम लोग बांस की खेती करते हैं। लेकिन डिमांड काफी रहती है। इसके अलावा इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि बांस किसी भी मौसम में खराब नहीं होता है। बांस की फसल को अन्य फसलों की तरह ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती है। बांस की फसल को एक बार लगाकर 40 साल तक इससे उपज लिया जा सकता है। बांस की खेती में खर्च कम तो है ही, साथ ही इसकी खेती में मेहनत भी कम लगती है और कमाई भी बंपर होती है। बांस के एक पौधे पर तीन साल में करीब 240 रूपये की लागत आती है। एक हेक्टेयर के खेत में बांस के करीब 625 पौधे लगाए जा सकते हैं। इन पौधों को किसी भी सरकारी या प्राईवेट नर्सरी से खरीद जा सकता है। कुछ ही हेक्टेयर जमीन पर बांस की खेती से पांच साल बाद लाखों की कमाई की जा सकती है। बांस की खेती करने की प्रकिया किसानों के बीच बढ़ सके इसके लिए कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं। इसके अलावा सरकार भी बांस की खेती करने वालों किसानों को आर्थिक मदद देती है। 

बांस की खेती पर किसानों को मिलने वाली सब्सिडी

बांस रोपण के लिए किसानों को प्रेरित करने एवं स्व-सहायता समूह के लिए अनुदान की योजना भी लाई गई है, जिससे अधिक से अधिक किसान कम लागत में इससे जुड़ सके और अपनी आय बढ़ा सकें। मध्य प्रदेश राज्य बांस मिशन द्वारा बांस के एक पौधे की खरीदी से लेकर बांस लगाई एवं उसके तैयार होने तक लगभग 240 रुपये की लागत का अनुमान लगाया है। किसानों द्वारा अपनी निजी भूमि पर बांस रोपण करने पर कुल लागत का 50 प्रतिशत यानि 120 रुपये प्रति पौधा किसानों को सब्सिडी के रूप में दिया जाएगा।

अन्य पेड़ों की तुलना में दस गुना अधिक उत्पादों का निर्माण 

बांस का मुख्य रूप से निर्माण कार्यों जैसे-फर्श, छत की डिजाइनिंग और मचान आदि में इस्तेमाल किया जाता है। बांस से फर्नीचर भी बनते है। साथ ही कपडा, कागज, लुगदी, सजावटी सामान आदि में बांस का इस्तेमाल होता है। बांस उद्योग में इन दिनों काफी उछाल दर्ज किया गया है। हाल के दिनों में बांस से बनने वाली बोतलों का भी चलन काफी तेजी से बढ़ा है। बांस से अन्य पेड़ों की तुलना में दस गुना अधिक उत्पाद बनाये जा सकते हैं, जिससे अन्य पेड़ों पर निर्भरता कम होती है। घटते वन्य क्षेत्र और लकड़ी के बढ़ते इस्तेमाल को कम करने में बांस काफी हद तक मददगार साबित हुआ है। 

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करता है 

बांस वैसे तो घास की श्रेणी में आता है, लेकिन इसके गुण और आकार कई समस्याओं के समाधान की ओर ले जाते है। विशेषज्ञों के मुताबिक बांस में प्रकाशीय श्वसन तेजी से होता है। निकली हुई कार्बन डाई-ऑक्साइड का फिर उपयोग कर लिया जाता है। बांस में 5 गुना अधिक कार्बन डाई-ऑक्साइड के अवशोषण की क्षमता होती है। वही बांस का एक हेक्टेयर जंगल एक वर्ष में एक हजार टन का अवशोषण कर लेता है। बांस की इस खासियत की वजह से ही इससे ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कम होता है। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही किसान बांस की खेती कर सकते हैं। इसकी सबसे खास बात है कि बांस की खेती करने लिए खाद और कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती है। 

बांस उत्पादन को बढ़ावा दे रही सरकार 

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार की मंशा किसानों को बांस के उत्पादन के लिए प्रेरित कर के इसके सामान और निर्यात को बढ़ावा देना है। इकसे लिए प्रदेश सरकार ने जिलो के वन क्षेत्र में स्व-सहायता समूह की मदद से मनरेगा योजना में बांस रोपण कराया गया है। योजना में 19 स्थानों पर 325 हेक्टेयर भूमि पर 203125 बांस के पौधे रोपे गए हैं। पौध-रोपण एवं उसकी सुरक्षा पर होने वाला पूरा व्यय मनरेगा योजना में वहन किया जाएगा। पांच साल बाद बांस के कटाई से होने वाली आय को उस क्षेत्र की ग्राम वन समिति एवं संबंधित स्व-सहायता समूह के मध्य 20ः80 के अनुपात में साझा किया जाएगा। 

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