देश की बड़ी आबादी अब भी खेती पर ही निर्भर है। खेती की मदद से करोड़ों किसानों का घर चलता है। किसान पारंपरिक खेती से हटकर आज अलग-अलग तरह की व्यावसायिक खेती कर रहे है। हालांकि, इसके बावजूद भी माना जाता है कि खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा नहीं है। लेकिन आज हम किसानों को एक ऐसी व्यावसायिक खेती के बारे में बताने जा रहे है जिसकी खेती कर किसान 40 वर्ष तक मुनाफा ले सकता है। जी हां हम बात कर रहे है बांस की व्यावसायिक खेती की, बांस की खेती किसानों को अधिक लागत नहीं लगानी पड़ती है। और बिना खाद और कीटनाशक से इसकी खेती की जा सकती है। केन्द्र सरकार बांस की खेती के लिए एम महत्वपूर्ण योजना ’राष्ट्रीय बांस मिशन’ चला रही है। इस योजना के तहत किसानों को बास की खेती पर सब्सिडी दी जाती है। किसानों को बांस की खेती के लिए सरकारी नर्सरी से बांस के पौधे निशुल्क दिए जाते है। जिससे किसान बांस की खेती कर ज्यादा मुनाफा कमा सकें। देश के कई राज्यों में अब किसान बड़े स्तर पर बांस की खेती कर रहे हैं। और बांस कि व्यावसायिक खेती से लाखों रूपए तक की आमदनी कर रहे है। बांस की खेती को लेकर केन्द्र सरकार की एक आधिकारिक वेबसाइट भी है, जिसपर किसानों को इससे जुड़ी हर जानकारी मिलती है। ट्रैक्टरगुरू की इस पोस्ट के माध्यम से केन्द्र सरकार की ओर से चलाई जाने वाली राष्ट्रीय बांस मिशन के बारे में विस्तार से जुड़ी जानकारी प्रदान करेगे। तो महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए इस पोस्ट को अंत तक ध्यान से जरूर पढ़े
बांस वैसे तो घास की श्रेणी में आता है, लेकिन इसके गुण और आकार कई समस्याओं के समाधान की ओर ले जाते है। बांस की करीब 136 प्रजातियां है, भारत में 13.96 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बांस मौजूद है। बांस जल्दी बढ़ने वाला पौध है, रोजना औसत 1 फुट तक बढ़ता है। भारत में अब इसकी खेती व्यावसायिक तौर पर कि जा रही है। भारत में व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल के लिए 10 किस्मों की खेती सबसे ज्यादा होती है। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही किसान बांस की खेती कर सकते हैं। इसकी सबसे खास बात है कि बांस की खेती करने लिए खाद और कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती है।
बांस का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है। मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल निर्माण कार्यों जैसे-फर्श, छत की डिजाइनिंग और मचान आदि में होता हैं। बांस से फर्नीचर भी बनते है, साथ ही कपडा, कागज, लुगदी, सजावटी सामान आदि में बांस का इस्तेमाल होता है। जब से केन्द्र सरकार ने बांस की खेती को लेकर नियमों को बदला है, तब से इसके उद्योग में काफी उछाल दर्ज किया गया है। बांस से टोकरी, डंडा भी बनाया जाता है, हाल के दिनों में बांस से बनने वाली बोतलों का भी चलन काफी तेजी से बढ़ा है। घटते वन्य क्षेत्र और लकड़ी के बढ़ते इस्तेमाल को कम करने में बांस काफी हद तक मददगार साबित हुआ है।
केन्द्र सरकार की मंशा किसानों को बांस के उत्पादन के लिए प्रेरित कर के इसके सामान और निर्यात को बढ़ावा देना है। दुनिया मे बांस उत्पादन में अग्रणी होने के बावजूद भारत का निर्यात ना के बराबर है। देश में बांस की खेती के प्रसार को देखते हुए मोदी सरकार ने 2014 से लगातार इस पर काम कर रही है। इसके लिए केन्द्र सरकार ने साल 2018 में भारतीय वन अधिनियम 1927 का संशोधन करके बांस को पेड़ों की श्रेणी से हटा दिया। इसी कारण अब कोई भी बांस की खेती और उसके उत्पादों की खरीद बिक्री कर सकता है। इसे बढ़ावा देने के लिए सितंबर 2020 में 9 राज्यों मध्यप्रदेश, असम, त्रिपुरा, ओडिशा, कर्नाटक, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, गुजरात और नगालैंड में 22 बांसस क्लस्टरों की शुरूआत की गई है।
केन्द्र सरकार की ओर से ’राष्ट्रीय बांस मिशन की शुरूआत की गई है, जिसके तहत बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रमोट किया जाता है। इस मिशन के तहत किसानो को अलग-अलग तरह से सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत एक आंकड़े के अुनसार 3 साल में प्रति पौधे की औसत लागत 240 रूपये होगी जिसके तहत सरकार द्वारा किसानों को सब्सिडी के रूप में 120 रूपये प्रति पौधा दिया जाएगा। उत्तर पूर्व के अलावा अन्य क्षेत्रों में बांस की खेती के लिए सरकार 50 प्रतिशत और किसान को 50 प्रतिश का भुगतान करना होगा। किसानों को 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी, जिसमें से 60 प्रतिशत सब्सिडी केन्द्र सरकार और 40 प्रतिशत सब्सिडी राज्य सरकार देगी। जबकि उत्तर पूर्व क्षेत्रों के लिए यह राशि 60 फीसदी सरकारी और 40 फीसदी किसान कि होगी। नॉर्थ ईस्ट के किसानों को मिलने वाली 60 फीसदी सब्सिडी में से 90 फीसदी सब्सिडी केंद्र सरकार और 10 फीसदी राज्य सरकार देगी। इस मिशन के तहत हर जिले में नोडल अधिकारी बनाया गया है। आप अपने नोडल अधिकारी से भी इस योजना से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
वर्तमान में किसानों के बीच बांस की खेती का चलन बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि इसकी खेती में सूखे एवं कीट बीमारियों का कोई प्रकोप नहीं होता है। और तो इसकी फसल पर अधिक वर्षा का भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इसके खेती में अन्य फसलों की तरह ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती है। इसकी फसल खेत में एक बार लगा दिया जाए तो 5 साल बाद यह उपज देने लगता है। बांस किसानों को 40 सालों तक उपज दे सकता है। इसके अलावा सरकार भी बांस की खेती करने वालों किसानों को आर्थिक मदद देती है।
बांस के लिए कोई खास किस्म मिट्टी वाली भूमि की जरूरत नहीं पड़ती है। इसे बंजर जमीन पर भी उगाया जा सकता है। बांस की खेती करने के लिए इसकी नर्सरी तैयार कर पौध तैयार कर सकते हैं। या सरकारी नर्सरी से तैयार पौधे खरीद सकते है। यदि आप इसके पौधे नर्सरी में तैयार करते है, तो नर्सरी ऐसी जगह पर बनानी चाहिए, जहां आसानी से आना जाना हो सके। साथ ही पानी की व्यवस्था भी हो। दोमट मिट्टी, जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 हो, उसे नर्सरी लगाने के लिए अच्छा माना जाता है।
अगर एक्सपर्ट्स की मानें तो एक हेक्टेयर में बांस के लगभग 2000 तक पौधे लगाए जा सकते है। हालांकि, इसका काफी ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप बांस लगा रहे हैं तो एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी कम से कम दो से ढाई मीटर होनी चाहिए। इतना ही नही, आप बीच में कोई और फसल लगा सकते हैं, जिन्हें कम धूप की जरूरत हो। एक हेक्टेयर में बांस की खेती कर किसाना 7 लाख रूपए तक की आमदनी कर सकते है। अगर ठीक ढंग से बांस की खेती की जाए तो किसानों की बंपर कमाई हो सकती है।
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