Madua Ki Kheti : देश में प्राचीन काल से ही किसानों द्वारा विभिन्न प्रकार की पारंपरिक फसलों की खेती की जा रही है। जलवायु विविधता के आधार पर देश के अलग-अलग स्थानों पर किसानों द्वारा कई पारंपरिक फसलों की खेती कर उनके उत्पादन से मुनाफा कमाया जाता है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण किसान गेहूं, चावल जैसी खाद्यान फसलों की खेती के स्थान पर मोटे अनाज (मिलेट) की खेती पर ध्यान दे रहे हैं। इन सब में केंद्र एवं राज्य की सरकारें भी अपने-अपने किसानों की मदद कर रही है। ऐसे में किसान कम लागत में मोटी कमाई के लिए मडुआ की खेती कर सकते हैं। भारत में इसकी खेती कई हजारों साल पुरानी है। यह सबसे ज्यादा सस्ती और आसान खेती है। इसके उत्पादन में प्रोटीन की अच्छी मात्रा होती है और यह बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। मडुआ बाजरे से काफी महंगा होता है और विपरीत परिस्थितियों और सीमित वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसे फिंगर बाजरा, रागी, लाल बाजरा, अफ्रीकन रागी या मडुआ आदि के नाम से जाना जाता है। ऐसे में मडुआ (Ragi) की खेती में किसानों को कम लागत, समय और मेहनत खर्च में अच्छा मुनाफा मिल जाता है। कुल मिलकार मडुआ की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है।
मडुआ को फिंगर मिलेट्स के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मोटे अनाज यानी मिलेट की फसल है। मडुआ की खेती से किसान मालामाल बन सकते हैं। इसकी खेती बहुत कम खर्चे वाली होती है। किसान इसे बंजर भूमि में भी आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत कम सिंचाई में बहुत कम दिनों में तैयार हो जाती है। इसे प्राकृतिक रूप से पैदा हुई रियल नकदी फसल भी कहते है। सोनभद्र और मिर्जापुर जनपद में मडुआ (रागी) की खेती किसान बड़े पैमाने में करते है और इसके उत्पादन से अच्छी कमाई भी करते हैं।
इसकी खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है। मडुआ गंभीर सूखे को सहन कर सकता है और इसकी खेती ऊंचाई वाले क्षेत्रों और बंजर भूमि पर भी आसानी से की जा सकती है। मडुआ या रागी सभी मिलेट फसलों में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली मिलेट फसल है। इसमें प्रोटीन, खनिज के अलावा लोह तत्वों की प्रचुर मात्रा भी पाई जाती है। यह शुष्क मौसम में उगाई जाने वाली फसल है और यह लगभग 3 महीने में तैयार हो जाती है। मडुआ की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार की बहुत अच्छी मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती से अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 4.5 से 7.5 के मध्य होता है को उपयुक्त माना गया है।
इस फसल में किसी प्रकार के उर्वरक-कीटनाशक के प्रयोग की जरूरत नहीं पड़ती है और इसकी फसल की अधिक सिंचाई भी नहीं करनी पड़ती है। यह प्राकृतिक रूप से उगता और तैयार होता है। किसान को इसके उत्पादन पर बहुत ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है और कम देखरेख में इसकी फसल तैयार हो जाती है। इसकी फसल तैयार होने पर इसके सिरों को पौधों से काटकर अलग कर लिया जाता है और फसल को अच्छे से सूख जाने पर मशीन की सहायता से गहाई के बाद इसके दाने (बीज) की ओसाई कर अलग कर लिया जाता है। दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर बोरों में भरकर सुरक्षित भण्डारित किया जाता है। इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से करें तो प्रति हेक्टेयर औसतन 25 क्विंटल तक पैदावर प्राप्त की जा सकती है । इसका बाजार भाव लगभग 2,500 रुपए से 2700 रूपए प्रति क्विंटल के आसपास किसानों को मिल जाता है, जिससे किसान को इसकी खेती से 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक की कमाई आसानी से मिल सकती है।
कुछ लोगों का मानना है कि चावल और गेहूं भी मोटे अनाज फसलों की लिस्ट में शामिल है, हालांकि ऐसा नहीं है। ज्वार, बाजरा, रागी, मडुआ, कंगनी, कोदो, कुटकी, चना मुख्य मोटे अनाज हैं, जो अपने पोषक गुणों व सीमित व्यवस्थाओं में उचित पैदावार देने के लिए जाने जाता है। किसान मोटे अनाज (मिलेट) की खेती करना चाहते है, तो अपने जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र या जिला कृषि कार्यालय से संपर्क कर जानकारी और सलाह ले सकते हैं। किसान मडुआ की खेती के लिए जीपीयू 45, चिलिका , जेएनआर 1008, आरएच 374, पीइएस 400, वीएल 149, जेएनआर 852, आदि किस्म का चयन अपने क्षेत्र के अनुसार कर सकते हैं।
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