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गाजर की खेती से लाखों कमाने का मौका, इन उन्नत किस्मों से होगी अधिक कमाई

गाजर की खेती से लाखों कमाने का मौका, इन उन्नत किस्मों से होगी अधिक कमाई
पोस्ट -20 जून 2022 शेयर पोस्ट

गाजर की भरपूर पैदावार के लिए अगस्त से नवंबर तक करें गाजर की बुवाई 

गाजर एक ऐसी सब्जी है जो इसके पौधे की मूल (जड़ों) से प्राप्त होती है। यह जड़ वाली सब्जियों में प्रमुख स्थान रखती है। यह लाल, काली, नारंगी सहित कई रंगों में मिलती है। इसे संपूर्ण भारत में उगाया जाता है। इसका उपयोग सलाद, अचार, हलुआ आदि बनाने में किया जाता है। गाजर में विटामिन ए’’ अधिक मात्रा में पाया जाता है। ऐसा कोई भी पोषक तत्व नहीं है जो गाजर में नहीं पाया जाता है। इसलिए गाजर को सर्दियों का सुपरफूड भी कहा जाता है। ये ना सिर्फ खाने में स्वादिष्ट बल्कि कई तरह के पोषक तत्वों से भी भरपूर होती है। आधे कप गाजर में 25 कैलोरी, 6 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2 ग्राम फाइबर, 3 ग्राम शुगर और 0.5 ग्राम प्रोटीन होता है। गाजर में विटामिन ए, के, सी, पोटेशियम, फाइबर, कैल्शियम और आयरन जैसे सभी जरूरी विटामिन और मिनरल्स होते हैं। गाजर में एक मजबूत एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है जो बहुत लाभदायक होता हैं। गाजर में बिटा-केरोटिन नामक तत्व मौजूद होता है, जो कैंसर नियंत्रण में अधिक लाभकारी होता हैं। गाजर की खेती मुख्य रूप से असम, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, यूपी, महराष्ट्र, बिहार में होती है। गाजर की बुवाई अगस्त से नवंबर तक होती है। इसकी कटाई बुवाई से 80 से 90 दिन बाद की जाती है। इसकी उपज 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर होती है। इसकी खेती से किसाना भाई सालाना लाखों की कमाई कर सकते हैं। ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट में हम आपके लिए गाजर की खेती की जानकारी को लेकर आए है। आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि कैसे गाजर की उन्नत खेती कर आप लाखों की कमाई कर सकते है, तो चलिए जानते है गाजर की खेती के बारे में। 

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गाजर बोने का सही समय क्या है?

गाजर की बुवाई रबी और खरीफ दोनों सीजन में की जाती है। गाजर की रबी सीजन के बुवाई के लिए मध्य अगस्त से नवम्बर तक का समय उपयुक्त रहता है एवं खरीफ सीजक की बुवाई जून से जूलाई तक का समय उपयुक्त रहता है। 

गाजर को कैसे बोया जाता है?

एक हेक्टेयर की भूमि पर गाजर की खेती करने के लिए 5 से 6 किलोग्राम की दर से बीज की आवश्यकता होगी। गाजर की बुवाई समतल क्यारियों में या डोलियों पर की जाती है। लेकिन गाजर की अच्छी पैदावार व बढि़या गुणवता की गाजर प्राप्त करने के लिए गाजर की बुवाई हल्की डोलियाँ पर ही करनी चाहिए। गाजर की बुवाई करते समय डोलियों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर का फासला रखना चाहिए। गाजर के एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच 6 से 8 सेंटीमीटर की दूरी रखे। हमेशा डोलियों की चोटी पर 2 से 3 सेंटीमीटर की गहरी नाली बनाकर ही गाजर के बीज को बोए।

खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु एवं तापमान

गाजर की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती हैं। लेकिन गाजर एक जड़ है जो मिट्टी में वृद्धि करती है। गाजर की उचित वृद्धि एवं अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सबसे बढिय़ा होती है। जिसका पी.एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। गाजर की खेती में सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। ठण्डी जलवायु में इसकी बुवाई की जाती है, उस दौरान तापमान 10 डिग्री तक होता है, जो बीजो के लिए काफी अच्छा माना जाता हैं। गाजर के पौधे 25 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास करते है, और गाजर के फलो का आकार और रंग काफी अच्छा बनता हैं। 

गाजर की किस्में, पैदावार एवं फसल तैयार होने का समय 

  • एशियन किस्में - पूसा मेघाली, गाजर नं- 29, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, चयन नं- 223, पूसा रुधिर, पूसा आंसिता और पूसा जमदग्नि प्रमुख हैं।

  • यूरोपियन किस्में - नैन्टीज, पूसा यमदागिनी और चौंटनी आदि प्रमुख हैं।

  • पूसा मेघाली - इसकी बुवाई अक्टूबर तक कर सकते हैं। फसल बोने के 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती हैं। इसकी पैदावार 250 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती हैं। 

  • चौंटनी - यह किस्म बोने के 75 से 90 दिनों बाद तैयार हो जाती हैं। इस किस्म का बीज मैदानी क्षेत्रों में तैयार किया जा सकता हैं। यह प्रति हेक्टेयर 110 से 150 क्विंटल तक पैदा हो सकती हैं। 

  • नैनटिस - इस किस्म के बीज बोने के 110 से 120 दिनों बाद तैयार हो जाती हैं। इसका बीज मैदानी भागों में तैयार नहीं किया जा सकता है यह प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार दे देती हैं।

  • गाजर नं 29 - यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म हैं। इसकी औसत पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।

  • पूसा केशर - यह एक अकेली देशी किस्म हैं। यह किस्म बीज रोपाई के 90 से 110 दिन पश्चात् तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 350 क्विंटल का उत्पादन दे देती हैं।

  • चयन नं 223 - यह एशियाई किस्म है किन्तु यह यूरोपियन किस्म नेन्टस के समान गुणों का प्रदर्शन करती हैं। यह फसल बोने के 90 दिन बाद तैयार हो जाती है। यह प्रति हेक्टेयर 200 से 300 क्विंटल तक पैदावार दे देती हैं।

  • पूसा जमदग्नि - इस किस्म की जड़ें देश के अलग-अलग भागों में 85 से 130 दिनों में तैयार हो जाती हैं। यह किस्म तेजी से बढ़ोत्तरी करती है तथा इसकी उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

  • पूसा रुधिर - इसकी बुवाई मध्य सितंबर से अक्तूबर तक होती है, और यह दिसम्बर से जनवरी के मध्य तैयार हो जाती हैं। इसकी उपज 280 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं।

  • पूसा आंसिता - यह लम्बी और काला रंग लिए होती हैं। इसकी सितंबर से अक्टूबर तक बुवाई होती है। यह किस्म बोने के 90 से 110 दिन बाद तैयार हो जाती हैं। इसकी उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हैं।

गाजर के खेत में उर्वरक की मात्रा का प्रयोग

गाजर की फसल की खेती करने से पहले खेत तैयार करना होता है। खेत को तैयार करने के लिए खेत की गहरी जुताई करें। गाजर की फसल के लिए खेत तैयार करते समय 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर की दर से जुताई करते समय डालनी चाहिए। इसके अलावा 30 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 25 किलोग्राम पोटाश की मात्रा बिजाई के समय प्रति हेक्टेयर खेत में डालनी चाहिए। 30 किलोग्राम नाइट्रोजन लगभग 3 से 4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ाते समय देनी चाहिए। इससे पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होगी।

गाजर के खेत की सिंचाई कब करें? 

गाजर की फसल की पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती हैं। इससे बीजों के अंकुरण में सहायता मिलती है। इसके बाद खेत में नमी बनाये रखने के लिए आरम्भ में सप्ताह में दो बार सिंचाई करें तथा जब बीज भूमि से बाहर निकल आये तब उन्हें सप्ताह में एक बार पानी दें। बाकि सिंचाई मिट्टी की किस्म ओर जलवायु के आधार पर करें। सर्दियों के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें एवं गर्मी के मौसम में 6 से 8 दिनों के पश्चात सिंचाई करें। एक महीने पश्चात् जब बीज पौधा बनने लगता है, उस दौरान पौधों को कम पानी देना होता हैं। इसके बाद जब पौधे की जड़े पूरी तरह से लम्बी हो जाये, तो पानी की मात्रा को बढ़ा देना होता हैं। 

गाजर के खेत को खरपतवार नियंत्रण कर मुक्त रखें 

गाजर की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी होता हैं। इसके लिए खेत की जुताई के समय ही खरपतवार नियंत्रण दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद भी जब खेत में खरपतवार दिखाई दे तो उन्हें निराई गुड़ाई कर खेत से निकाल दें। इस दौरान यदि पौधों की जड़े दिखाई देने लगे तो उन पर मिट्टी चढ़ा दी जाती हैं। खरतपवार के नियंत्रण के लिए समय समय पर खेत में निराई गुडाई करते रहें।

फसल के तैयार होने का समय, पैदावार एवं लाभ 

गाजर की बुवाई के बाद इसकी फसल को तैयार होने में 90 से 120 दिनों का समय लग जाता हैं। करीब 3 से 4 महीने बाद गाजर की फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है। फसल पूरी तरह से तैयार होने के बाद फसल की खुदाई करने के लिए खुदाई से पूर्व खेत में पानी लगा लें, इससे गाजर की खुदाई सरलता की जा जायेगी। गाजर खुदाई के पश्चात् उन्हें अच्छी तरह से पानी से से साफ कर बाजार में बेचने के लिए गाजरों की साइज के अनुसार छंटाई बिनाई करके उन्हें बोरियों या टोकरियों में भर कर भेज दिया जाता है।  

गाजर की खेती उचित एवं उन्नत तरीके से की जाये तो इससे अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त हो जाता हैं। किसान भाई इसकी खेती में उन्नत किस्मों के बीज का उपयोग कर इसकी खेती से 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार प्राप्त कर सकते है। गाजर का बाजारी भाव शुरूआत से ही काफी अच्छा होता है। जिससे किसान भाई प्रति हेक्टेयर इसकी खेती से करीब दो से तीन लाख रूपए तक की कमाई आसानी से कर सकते है। आज कल बाजारों में गाजर की कुछ ऐसी उन्नत किस्में मौजूद है जो कम समय में तैयार हो जाती है। लेकिन इन किस्मों से केवल 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उत्पादन हो जाता है। लेकिन यह उत्पादन काफी कम समय में प्राप्त होता हैं। कम समय में पैदावार प्राप्त होने कारण किसान इससे अच्छा लाभ भी कमा लेते हैं।

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