Stubble Management Machinery : पराली (धान फसल अवशेष) का निपटारा करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें कृषि विभागों की कई योजनाओं के तहत किसानों से फसल अवशेष (पराली/पुआला) निपटाने के लिए आवश्यक सीटू और एक्स सीटू फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनरी की खरीद के लिए अलग-अलग वित्तीय सहायता की पेशकश भी की जाती है। इसके लिए विभाग द्वारा ऑनलाइन पोर्टल पर किसानों से ऑनलाइन आवेदन भी आमंत्रित किए जाते हैं। साथ कई सहकारी संस्थाओं एवं जागरूक किसानों द्वारा पराली प्रबंधन का सही ढंग से निपटारा करने के लिए अन्य किसानों को जागरूक भी किया जा रहा है। इन प्रयासों के बावजूद भी हरियाणा-पंजाब समेत पूरे उत्तर भारत में पराली एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसको लेकर सरकार, किसान और प्रशासन हर कोई चिंतित है। लेकिन, अब जापानी तकनीक से बनी कट सॉइलर मशीन से पराली की समस्या से किसानों को जल्द ही छुटकारा मिल सकता है। यह मशीन अलग-अलग मिट्टी में पैदावार को बढ़ाने, अधिक लवण वाली भूमि पर फसल को उगाने और पैदावार को बढ़ाने के लिए उपयोगी है। इस मशीन की मदद से पराली भी डी-कंपोज होने लगा है। आइए, जापान में तैयार हुई इस मशीन की विशेषताएं एवं काम करने के तरीकों के बारे में जानते हैं।
पराली (फसल अवशेष) को निपटाने के लिए वैज्ञानिकों ने कट सॉइलर (Cut Soiler) मशीन बनाई है, जो जापानी तकनीक पर आधारित है। कट सॉइलर नाम की यह मशीन जापान में तैयार हुई है। इस मशीन की तकनीक को भारत लाया गया है, जिसका प्रयोग हरियाणा के करनाल के CSSRI में पिछले कई सालों से वैज्ञानिक कर रहे हैं। CSSRI में ये प्रयोग करीब 6 साल से चल रहा है, जिसका लाभ अब भारत के किसानों को मिलने वाला है।
जापानी तकनीक से तैयार हुई इस मशीन का पहले वहीं पर प्रयोग हुआ जहां जमीन में अधिक लवण है। ऐसी भूमि पर फसल कम होती है। मशीन में लगे ब्लेड मिट्टी को खोदते हैं और लवण की मात्रा कम हो जाती है तथा पानी के साथ वो लवण बह जाते हैं, जिससे मिट्टी में फसल की पैदावार अच्छी होती है।
कट सॉइलर मशीन (cut soiler machine) फिलहाल, जापान के पास है। जापान की कंपनी ही इसे बना रही है। वहां के कृषि संस्थान के सहयोग के माध्यम से भारत के करनाल के आईसीएआर- सीएसएसआरआई के वैज्ञानिक इसे भारत में लाकर प्रयोग कर रहे हैं, जिससे इस मशीन पर काम किया जा सके। इस मशीन का प्रयोग अलग-अलग जगहों के किसानों के खेतों में अलग-अलग मिट्टी में किया गया, जिसका फायदा देखने को मिला, साथ इसके जरिए फसल पैदावार भी बढ़ी। धान में 10-12 प्रतिशत प्रति एकड़, जबकि गेहूं में 15-16 प्रतिशत प्रति एकड़ की पैदावार इस मशीन के प्रयोग से बढ़ी।
जब यह कट सॉइलर मशीन जमीन खोदती है, तो जहां मिट्टी के रंग की परेशानी है, वहां पानी गहराई तक जाता है और फसल को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाता है। हालांकि जब वैज्ञानिक इस पर लगातार काम कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि फसल अवशेष (पराली) भी इसके माध्यम से जमीन में दब जाती है और मिट्टी में ही डी-कंपोज हो जाती है। इसके बाद उन्होंने उस प्रयोग पर काम किया और देखा कि पराली को इस कट सॉइलर मशीन के जरिए जमीन में डी कंपोज किया जा सकता है, जिसके बाद पराली अपने आप अंदर गल जाएगी। इससे किसानों को खेतों में पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही जब अगली फसल उगाई जाएगी तो पराली अपने आप अंदर गल जाएगी और जैविक खाद का काम करेगी।
अब भारत के कृषि विभाग के एक्सपर्ट और जापान के वैज्ञानिक, भारत के कृषि उपकरण निर्माताओं के साथ दिसंबर में मीटिंग करेंगे, जिससे इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा सके और सस्ती कीमत पर यह मशीन भारत में ही तैयार हो जाए। साथ ही किसानों के लिए आसानी से उपलब्ध हो सके। इस मशीन के प्रयोग से खेतों में पराली जलाने की समस्या खत्म होगी। साथ ही अधिक पैदावार, खाद का कम इस्तेमाल होगा। ज्यादा लवण और रंग वाली भूमि (लवण वाली मिट्टी) पर भी बढ़िया खेती हो सकती है। अब देखना ये होगा कि यह कट सॉइलर मशीन कब तक तैयार होती है और किसानों के लिए कितने दाम पर कैसे उपलब्ध होगी।
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