भारतीय अर्थव्यवस्था में किसानों का योगदान किसी से कम नहीं है। अकेले कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है। देश में किसान पारंपरिक फसलों की खेती प्राचीन काल से ही व्यापक स्पर पर करते आ रहे हैं। किंतु बीते कुछ सालों से हो रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए किसानों ने अपने पारंपरिक फसल चक्र में बदलाव किया हैं। किसान अब ज्वार, बाजरा, गेहूं, धान, सरसों और चना के स्थान पर कमर्शियल फसलों की खेती करना पंसद कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि कमर्शियल खेती में किसानों को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती और इन पर बदलती जलवायु का भी खास प्रभाव देखने को नहीं मिलता है। ऐसे में बदलती जलवायु और फसल में कीट-रोग जैसी परेशानी से बचने के लिए सुपारी की खेती विकल्प चुन सकते हैं। इसकी खेती में आपको बस एक बार की मेहनत करने की आवश्यकता है। इसके बाद यह आपको पूरे 70 सालों तक लाखों-करोड़ों रुपए की कमाई हो सकती है। यानी इसका एक पेड़ एक बार लगाने के बाद लगभग 70 सालों तक मुनाफा देता रहेगा, वो भी बिना किसी अतिरिक्ति मेहतन के। आईये, इस पोस्ट के माध्यम से सुपारी की खेती से लाखों से करोड़ की कमाई के पीछे का पूरा राज विस्तार से जानते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक सुपारी उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है। पूरे विश्व में करीब 925 हजार हेक्टेयर के क्षेत्र से 127 हजार टन सुपारी का उत्पादन होता है। इसमें भारत की तकरीबन 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। यानी पूरे विश्व के कुल उत्पादन में अकेले भारत से तकरीबन 50 प्रतिशत सुपारी का उत्पादन होता है। इसके अलावा, इंडोनेशिया 187 टन सुपारी का उत्पादन कर दूसरे स्थान पर आता है। वहीं, 135 टन सुपारी उत्पादन के साथ चीन तीसरे स्थान पर है तथा चौथे स्थान पर म्यांमार है, जो सुपारी उत्पादन में 122 टन सुपारी का उत्पादन करता है। इसके साथ 108 टन सुपारी उत्पादन के साथ बांग्लादेश पांचवे स्थान पर आता है।
सुपारी ’अरेका कटेचु’ नामक पेड़ के फल का बीज है, जिसकी पैदावार दक्षिणी एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा अफ्रीका के अनेक हिस्सो में होती है। सुपारी का इस्तेमाल आमतौर पर पान, गुटखा मसाला में होता है। किंतु भारतीय घरों में हिन्दू रिवाजों के अनुसार, इसका इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी होता है। इसके अलावा, सुपारी में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं, जो कई बीमारियों की रोकथाम एवं इलाज में मददगार हैं। सुपारी का सेवन पेट के लिए फायदेमंद होता है। सुपारी की 1 से 4 ग्राम मात्रा छाछ में मिलाकर खाने से आंत की कई बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। हरी सुपारी को धीमी आंच पर पकाकर खाने से दस्त की समस्या से छुटकारा मिल जाता है। सुपारी का चूरन दांतों का दर्द एवं दांत से जुड़ी अन्य बीमारियाें से राहत दिलाता है। उल्टी जैसी समस्या के लिए सुपारी वरदान है। सुपारी शरीर के घाव को कम समय में ही सूखाकर ठीक कर देता है। सुपारी के इस्तेमाल से आंखों को भी फायदा होता है।
सुपारी में मौजूद औषधीय गुणों के कारण इसकी बाजार में मांग अधिक है और यह बाजार में ऊंची कीमतों पर आसानी से बिक जाता है। सुपारी का पेड़ नारियल के पेड़ की भांति ही होता है। खास बात यह है कि इसका एक पेड़ एक बार लगाने के बाद तकरीबन 70 सालों तक लगातार पैदावार देता रहता है। यानी एक बार की सुपारी की खेती में मेहनत से पूरे 70 सालों तक की निश्चित कमाई का जरिया बन सकता है।
सुपारी का पूर्ण रूप से विकसित पौधा तकरीबन 5 से 8 सालों में पैदावार देना आरंभ कर देता है। सुपारी की तुड़ाई इसके फल की गिरियो के तीन-चौथाई हिस्से के पक जाने के पश्चात की जाती है। सुपारी का बाजार में भाव तकरीबन 400 से लेकर 600 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो सकता है। इस तरह किसान भाई इसके एक एकड़ के खेत से 8 साल बाद काफी बंपर कमाई कर सकते हैं। इसकी एक बार की खेती कर किसान भाईयों को लगातार 70 सालों तक अच्छी कमाई मिलती रहेगी। एक एकड़ में लगाये गए पेड़ों की संख्या के अनुसार सुपारी से कमाई लाखों से करोड़ो तक भी हो सकती है।
मंगला, सुमंगला, श्री मंगला, मोहित नगर और हिरेहल्ली बौना सुपारी की उन्नत प्रजातियां है। इसके अलावा, केंद्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थान और कासरगोड़ केरल ने सुपारी की दो संकर प्रजातियों को तैयार किया है, जिसकी खेती किसान देश के किसी भी हिस्से में कर पैदावार ले सकते हैं। सुपारी के इन संकर प्रजाति के आने से फसल में लगने वाले रोग से किसानों को छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि सुपारी की इस नई प्रजाति के पौधों की लंबाई कम होती है। बोनी प्रजाति होने के कारण इसके पौधों पर कीटनाशक एवं रोगनाशक दवाईयों का छिड़काव आसानी से किया जा सकता है। जिससे सुपारी की देखभाल भी ठीक से हो पाती है और इसमें लगने वाला प्रमुख रोग कोले से भी छुटकारा मिल जाता है। बता दें कि पिछले कुछ सालों में सुपारी में कोले रोग का प्रकोप अधिक देखने को मिला है। यह रोग सुपारी की पूरी की पूरी फसल को नष्ट कर देता है।
सुपारी को किसी भी प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है, लेकिन इसकी कमर्शियल खेती के लिए उपयुक्त जैविक तत्वों से युक्त दोमट चिकनी मिट्टी वाली भूमि को उपयुक्त माना गया है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान तकरीबन 7 से 8 के बीच होना चाहिए। इसकी खेती के लिए यदि भूमध्य रेखा के उत्तर क्षेत्रो में की जा रही है, तो 28 डिग्री का तापमान उपयुक्त होता है। वहीं, इसकी खेती अगर दक्षिणी क्षेत्रों में की जा रही है, तो इसकी खेती के लिए 28 डिग्री तापमान को अच्छा माना गया है। सुपारी की खेती मुख्य रूप से केरल, असम, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में की जाती है।
सुपारी लगाने से पहले खेत की हैरो की मदद से पहली जुताई कर अच्छे से साफ कर लें। इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर की मदद से खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर खेत को सूखने के लिए छोड़ दें। खेत सूखने के बाद रोटावेटर की मदद से खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें। मिट्टी को भुरभुरी बनाने के बाद इसमें सुपारी के पौधों की रोपाई के लिए 2.7 x 2.7 मीटर की दूरी रखते हुए पंक्तियों में गड्डे बना लें। इन सभी गड्डों का आकार 90 x 90 x 90 सेंमी होने चाहिए। साथ ही खेत में जल निकासी के लिए नालिया बना लेना चाहिए।
सुपारी की खेती में बिजाई बीज के स्थान पर पौधों द्वारा की जाती है। इसके लिए पहले सुपारी के पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है। नर्सरी में तैयार सुपारी के पौधे तकरीबन 12 से 18 महीने के होने चाहिए। इन तैयार पौधों की खेत में रोपाई करने से पहले तैयार गड्डो में गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को मिट्टी के साथ अच्छे से मिलाकर भरें। इसके बाद सुपारी के पौधों की रोपाई इन गड्डों में करें। सुपारी की पौधों की रोपाई करने का उयुक्त समय जून से जुलाई का महीना है। क्योंकि इस दौरान बारिश का मौसम होता है, जिसके कारण पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिल जाता है।
सुपारी के पौधों की सिंचाई की कोई खास आवश्यकता नहीं होती हैं। इसके पौधों की पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी होती है। इसके बाद सुपारी की सिंचाई नवंबर से फरवरी महीने के बीच तथा मार्च से मई महीने के पहले सप्ताह में कर लेनी चाहिए। सुपारी की खेती को खरपतवार मुक्त बनाने के लिए प्राकृतिक रूप से निराई-गुड़ाई करे। सुपारी की फसल को साल में तकरीबन 2 से 3 निराई-गुड़ाई कर खरपतवार मुक्त करें।
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