बिहार सरकार का कृषि विभाग एवं उद्यान निदेशालय राज्य के फल उत्पादक व्यक्तिगत किसान/ उद्यमी किसान/ किसान उत्पादक संगठन और एफपीसी संगठनों को राइपनिंग चैंबर लगाने के लिए बंपर सब्सिडी सुविधा भी दे रहा है। इसका लाभ उठाने के लिए आपको कृषि विभाग एवं उद्यान निदेशालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के उद्यान विभाग कार्यालय में सहायक निदेशक से संपर्क कर सकते हैं।
Bihar Government Subsidy Schemes : बिहार में केले, आम, अमरूद और पपीते जैसे अन्य फलों की बागवानी करने वाले किसानों के लिए बड़ी खबर है। प्रदेश में फलों की बागवानी करने वाले किसान अब अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। दरअसल, बिहार की नितीश सरकार किसानों की आय को बढ़ाने और प्रदेश में बागवानी के क्षेत्र विस्तार के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना चला रही है। जिसमें फलों और सब्जी फसलों की बागवानी खेती के लिए किसानों को काफी मोटी रकम सब्सिडी के रूप में दी जा रही है। वहीं, प्रदेश के कृषि क्षेत्र में एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करने और किसानों को उनकी उपज का उचित भाव दिलाने के लिए उन्हें एग्री सेक्टर से जुड़े कारोबार से भी जाेड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इसी बीच शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में दिन-प्रतिदिन फलों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार, कृषि विभाग एवं उद्यान निदेशालय (Government of Bihar, Department of Agriculture and Directorate of Horticulture) ’’एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना’’ ("Integrated Horticulture Development Mission Scheme") के तहत प्रदेश के किसानों / उद्यमी किसान / एफपीसी (FPC) और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) काे राइपनिंग चैंबर स्थापित करवाने के लिए इकाई लागत पर 50-75 प्रतिशत तक की बंपर सब्सिडी प्रदान कर रहा है। इच्छुक किसान सब्सिडी से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए बिहार सरकार, उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट horticulture-bihar-gov-in पर विजिट कर सकते हैं।
राइपनिंग चैंबर में पकाए गए फलों की ज्यादा डिमांड
दरअसल, शहरों और कस्बों के बाजारों में केमिकल से पकाए गए फल अधिक बिक रहे हैं। थोड़े से मुनाफे के लिए केले, आम, अमरूद, पपीते, सेब, चीकू और संतरा जैसे फलों को पकाने के लिए कोल्ड स्टोरेज और गोदामों में कार्बाइड और हानिकारक केमिकलों का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि कच्चे फलों को इस विधि से पकाने पर किसान और व्यापारियों को ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। लेकिन इस तरह से पकाए गए फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होते हैं और फलों की शेल्फ लाइफ भी बहुत ही कम हाेती है। जिससे पके हुए फलों का ट्रांसपोर्टेशन एवं भंडारण भी ज्यादा दिनों तक नहीं किया जा सकता है। इससे किसानों को भारी नुकसान होता है। देखा जाए तो अधिकृत फल उत्पादक किसान फलों की तुड़ाई कच्ची अवस्था में ही कर बाजार में बेचते हैं। जिसके कारण उन्हें उत्पादन का सही भाव भी नहीं मिल पाता है। लेकिन आज-कल शहर के बाजारों में राइपनिंग चैंबर में पकाए गए फल खूब बिकने के लिए आ रहे हैं। इस तकनीक से पकाए गए फल की डिमांड शहरों और कस्बों में ज्यादा है। इन्हीं सब को देखते हुए बिहार सरकार का कृषि विभाग और उद्यान निदेशालय किसानों को राइपनिंग चैंबर बनाने के लिए सब्सिडी की सुविधा दे रहा है।
राइपनिंग चैंबर स्थापित करने पर कितनी मिलती है सब्सिडी?
जानकारी के लिए बता दें कि बिहार सरकार, कृषि विभाग एवं उद्यान निदेशालय एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत व्यक्तिगत किसानों/उद्यमी किसानों को राइपनिंग चेंबर के लिए इकाई लागत पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान कर रहा है, तो एफपीओ/एफपीसी को इकाई लागत पर अधिकतम 75 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। अगर, इच्छुक लाभार्थी इस योजना के तहत 1 लाख रुपए की लागत से राइपनिंग चैंबर का निर्माण करवाता है, तो लाभार्थी को इकाई लागत की 50 प्रतिशत तक सब्सिडी विभाग की ओर दी जाएगी। यानी आपका राइपनिंग चैंबर मात्र 50 हजार रुपए में तैयार हो जाएगा। इसके अलावा एफपीओ/एफपीसी योजना के तहत समान लागत वाली राइपनिंग चैंबर स्थापित करते है, तो उन्हें 75 प्रतिशत के हिसाब से अधिकतम 75 हजार रुपए की सब्सिडी दी जाएगी। किसान इस योजना का लाभ लेकर राइपनिंग चैंबर स्थापित कर फल पकाने का खुद का कारोबार कर सकते हैं। उत्पादित फलों को सड़ने-गलने से बचा सकते हैं। पके फलों को अलग-अलग राज्यों और शहरों में अच्छी कीमतों पर बेचने के लिए ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण भी कर सकते हैं।
राइपनिंग चैंबर में एथिलीन गैस से धीरे-धीरे पकाए जाते हैं कच्चे फल
कृषि एक्सपर्ट द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, फलों के भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन के लिए फलों की तुड़ाई कच्ची अवस्था में की जाती है। इन कच्चे फलों को पकाने के लिए जिन चैंबर या गोदामों का इस्तेमाल किया जाता है। उन्हें राइपनिंग चैंबर कहते हैं। राइपनिंग चैंबर कच्चे फलों को पकाने की एक कृत्रिम तकनीक है। राइपनिंग चैंबर में ह्यूमिडी फायर के जरिए 90 से 95 प्रतिशत नमी मेंटेन की जाती है। एसी के सर्कुलेटिंग एयर फैन हवा सर्कुलेट कर चैंबर का तापमान 18 डिग्री तक मेंटेन रखते हैं। एथिलीन जनरेटर के जरिए राइपनिंग चैंबर में एथिलीन गैस इंजेक्ट की जाती है जो 100 से 150 पार्ट पर मिलियन होती है। इसमें सीओटू की मात्रा 1 प्रतिशत से भी कम होनी चाहिए। इस चैंबर में केले, आम, पपीते और अमरूद के कच्चे फलों को एथिलीन गैस की मदद से धीरे-धीरे पकाया जाता है। राइपनिंग चैंबर की एथिलीन गैस के जरिए फल 24 से 48 घंटे में ही पक जाते हैं और एथिलीन गैस से पके फल सेहत के लिए नुकसानदायक नहीं होते हैं। वहीं, पारंपरिक तौर पर बाजारों में कार्बाइड के जरिए यह फल पकाए जाते हैं।
राइपनिंग चौंबर स्थापित कर कमाई करने का अच्छा मौका
बिहार सरकार राज्य के फल उत्पादक किसानों को उत्पादित फलों से बेहतर लाभ कमाने और फल पकाने का व्यापार शुरू करने का मौका दे रही है। किसान एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना का लाभ उठाकर बंपर सब्सिडी पर राइपनिंग चैंबर लगाकर फल पकाने का खुद का बिजनेस खड़ा कर सकते हैं। क्योंकि राइपनिंग चैंबर आम, पपीता और केला सहित कई अन्य फलों को पकाने की कृत्रिम तकनीक है। चैंबर में एथिलीन गैस के जरिए फल चार या छह दिन की जगह 24 घंटे या 48 घंटे में पक जाते हैं। राइपनिंग चैंबर तकनीक से पके फलों काे लंबे समय तक स्टोर और ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। क्योंकि इस तकनीक से पके फल लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं। वहीं, ट्रांसपोर्टेशन के दौरान फल को खराब होने से बचाने के लिए रेफ्रिजरेटेड वाहन पर भी किसानों और व्यापारियों को सब्सिडी प्रदान की जा रही है। बिहार सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम व्यापारियों और किसानों के लिए लाभकारी भी साबित हो रहा है।
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