ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती-बाड़ी के साथ ही पशुपालन भी करते है। जिसमें से ग्रामीण लोग सबसे ज्यादा गाय-भैंस, बकरी, मछली, मुर्गी, बटेर और बत्तख पालन आदि करते है। और इन से लाखों की कमाई भी करते है। इनमें केंद्र और राज्य सरकारें भी मदद करती है। यहीं कारण है कि पिछले कुछ दशकों में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन व्यवसाय ने रफ्तार पकड़ी है। आज कल पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीण लोगों का रूझान मुर्गी पालन के अलावा बत्तख पालन की और ज्यादा है। लोग बड़े पैमाने पर इसकी तरफ रूख कर रहे है। कारण स्पष्ट है कि- बत्तख पालन व्यवसाय में मुर्गी पालन की अपेक्षा जोखिम काफी कम है और इस व्यवसाय की सबसे अहम बात यह है, कि बत्तख के अंडे और मांस दोनों में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक होती है। जिसके कारण बाजार में इसकी मांग काफी बड़े स्तर पर होती है। इन्हीं के कारण यह ग्रामीण बेरोजगार लोगो के लिए आय का एक अहम साधन बन गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसका पालन कर अच्छी खासी आय अर्जित कर रहे है। अगर आप इसका पालन करना चाहते है, तो ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपको बत्तख पालन से संबंधित कुछ विशेष जानकारी देगे। सभी जानकारी के लिए नीचे देखे।
ग्रीमीण क्षेत्र में बड़ी संख्या में बत्तख पाली जाती हैं। बत्तखों के अण्डे एवं मांस लोग बहुत पसंद करते हैं। अतः बत्तख पालन व्यवसाय में बड़ी संभावनाएँ हैं। बत्तख के अण्डे और मांस में मुर्गी के अंडे और मांस की अपेक्षा प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक होती हैं, जिसके कारण मार्केट में भी इसकी डिमांट ज्यादा होती है। ज्यादा डिमांड होने के वजह से इसकी कीमतों में दिन-प्रति-दिन इजाफा हो रहा है, जिससे इस व्यवसाय से लोगों की आय में भी अच्छा खासा इजाफा हो रहा है। कुल मिलाकर आप मुर्गी पालन की तर्ज पर बत्तख पालन कर अच्छी खासी आय हासिल कर सकते हैं। बता दें कि मार्केट में अंडों और मांड डिमांट पूरे साल बनी रहती है। आजकल डॉक्टर भी मरीजों को अच्छी सेहत के लिए अंडे खाने की सलाह देते हैं।
बता दें कि पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। ग्रामीण क्षत्रों में रहने वाले छोटे किसान, मजदूर जो कि पशुपालन जैसे कार्य करते है। पशुपालन ग्रामीण व छोटे किसानों की अर्थव्यवस्था का मुख्य जरिया बना हुआ है। केंद्र सरकार ने भी इसे बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन शुरू किया गया है। इस मिशन के तहत देश के विभिन्न राज्य सरकारें बैंकों और नाबार्ड के सहायोग से पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को लोन एवं इस लोन पर सब्सिडी देती है। पशुपालन फार्म शुरू करने के इच्छुक लोग इन बैंक से लोन प्राप्त कर पशुपालन फार्म शुरू कर सकते हैं। इन बैंकों से लोन लेने का लाभ यह भी मिलता है कि बैंकों से आकर्षक दरों पर लोन के साथ-साथ पशुओं का बीमा भी मिल जाता हैं, तो आप भी इस योजना के तहत बत्तख पालन पर लोन एवं सब्सिडी उठा सकते हैं। बत्तख फार्म खोलने के लिए सरकार की तरफ से 25 -35 प्रतिशत तक की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। जिसमें सामान्य वर्ग के किसानों को 25 प्रतिशत, तो वहीं एससी और एसटी वर्ग सम्बंधित व्यक्तियों के लिए सब्सिडी राशि 35 फीसदी निर्धारित की गयी है।
बत्तख पालन में मुर्गी पालन की अपेक्षा लागत काफी कम लगती है। इसे अपने घर के अन्दर या किसी छप्पर के नीचे बड़ी आसानी से पालन कर सकते है। वैसे तो बत्तख पालन पोखर या तालाब में पानी की समुचित व्यवस्था में किया जाता हैं। किन्तु इसे आप पानी की व्यवस्था बिना किए भी कर सकते है। यदि आप बत्तख पालन किस ऐसे स्थान पर कर रहे है, जहाँ पानी बिल्कुल भी नही है, तो ऐसी स्थित में बतखों द्वारा दिए गए अंडो में गर्भ धारण करनें की क्षमता विकसित नही होती है। इसलिए बत्तख पालन में पानी की व्यवस्था अनिवार्य रूप है। बत्तख पालन शुरू करने के लिए शांत स्थान बेहतर माना जाता है। इसके साथ ही तालाब के आसपास का स्थान इसके लिए बेहद उपयुक्त साबित होता है। यदि बत्तख पालन करने वाले स्थान पर तालाब नहीं है, तो आप अपनी जरूरत के मुताबिक तालाब की खुदाई करा सकते है। यदि आप तालाब नही खुदवाना चाहते है, तो टीनशेड के चारों ओर दो से तीन फुट गहरी व चौड़ी नाली बनवा सकते, जिसमें बतखें तैरकर अपना शारीरिक विकास कर सकें। इसके अलावा आप इसे बड़े स्तर पर करना चाहते है, तो इसके लिए आपको 3 हजार 3750 वर्ग फुट जगह की आवश्यकता होगी।
यदि आप बत्तख पालन अंडे के उत्पादन के लिए कर रहे है, तो आप भारतीय धावक बतख, व्हाइट और ग्रेनिश भारतीय धावक बतख और खाकी कैंपबेल बतख की उन्नत नस्ल का पालन कर सकते है। ये बत्तख की उन्नत नस्लें 300 से अधिक अंडे साल में देती है। हर अंडे का वजन तकरीबन 65 से 70 ग्राम के बीच होता है। अंडे का छिलका बहुत मोटा होता है, इसलिए टूटने का डर भी नहीं रहता है। बत्तख दूसरे एवं तीसरे साल में भी काफी अण्ड़े देती रहती है। अतः व्यवसायिक दृष्टि से बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है। मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है। मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों में कम बीमारियाँ होती हैं। बहता हुआ पानी बत्तखों के लिए काफी उपयुक्त होता है, किन्तु अन्य पानी के स्त्रोत वगैरह में भी बत्तख पालन अच्छी तरह किया जा सकता है। बत्तख अधिक रेशेदार आहार पचा सकती हैँ। साथ ही पानी में रहना पसंद होने से बहुत से जलचर जैसे-घोंघा वगैरह खाकर भी आहार की पूर्ति करते हैं। इसलिए बत्तखों के खान-पान पर अपेक्षाकृत कम खर्च करना पड़ता है।
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