भारतीय खेती में अब एक नया वैज्ञानिक मोड़ आने वाला है। पारंपरिक खेती के साथ अब किसान जीनोम एडिटिंग (फसलों या जीव के डीएनए में बदलाव) तकनीक से विकसित फसलें भी उगाएंगे। इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि फसलों की गुणवत्ता में भी जबरदस्त सुधार होगा। बदलते मौसम और रोग-कीट के प्रकोप से बचने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिक किस्मों पर रिसर्च तेज कर रहे हैं। जीनोम एडिटिंग से तैयार उन्नत किस्में किसानों को बेहतर मुनाफा देने में सक्षम होंगी, साथ ही खेती को टिकाऊ और आधुनिक भी बनाएंगी। इंदौर (मध्य प्रदेश) में सोयाबीन का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए आयोजित वृहद संवाद के मौके पर मीडिया से चर्चा में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि देश तेजी से आगे बढ़ रहा है।
मैकेनाइजेशन और रोग-प्रतिरोधी फसलों पर सरकार का फोकस (Government's focus on mechanization and disease-resistant crops)
भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। विकसित भारत के लिए विकसित कृषि और समृद्ध किसान जरूरी है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने, लागत घटाने, उपज के नुकसान की भरपाई करने, उत्पादन के ठीक दाम देने और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। उन्होंने का आने वाले समय में भारतीय खेती हाईटेक होने वाली है। सरकार खेती में जीनोम एडिटिंग फसलों को उगाने पर जोर दे रही है हमारे पास 16 हजार कृषि वैज्ञानिक हैं, जो इस पर तेजी से शोध कर रहे हैं। सरकार विकसित कृषि संकल्प अभियान चला रही है, जिससे खेती में मैकेनाइजेशन और रोग-प्रतिरोधी किस्मों पर फोकस बढ़ेगा।
किसान और वैज्ञानिक मिलकर बढ़ाएंगे उत्पादन (Farmers and scientists will work together to increase production)
इस संवाद कार्यक्रम के दौरान कृषि मंत्री ने भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों, किसानों, कृषि विश्वविद्यालयों के पदाधिकारियों, कृषि विज्ञान केंद्रों के विशेषज्ञों, प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्यों के अधिकारियों और सोया उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सोयाबीन की बेहतर पैदावार के लिए गहन चर्चा की। उन्होंने कहा, "हमारे पास 16,000 से ज्यादा वैज्ञानिक हैं, जिनमें टैलेंट, क्षमता और बुद्धि की कोई कमी नहीं है। लेकिन ये वैज्ञानिक लैब में बैठे हैं और किसान खेत में। खेत और प्रयोगशाला के बीच की ये दूरी अब मिटानी होगी।" कृषि मंत्री ने सुझाव दिया कि अब समय आ गया है कि 'लैब से लैंड' की कड़ी मजबूत हो। इसके लिए उन्होंने एक साझा टीम का विचार रखा, जिसमें किसान, कृषि वैज्ञानिक, राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारी और संबंधित हितधारक एक साथ मिलकर काम करें। अगर ये सभी एकजुट होकर कार्य करेंगे, तो खेती में निश्चित ही सकारात्मक बदलाव के साथ शानदार परिणाम देखने को मिलेंगे।
विकसित कृषि संकल्प अभियान : विभिन्न पहलुओं पर रिसर्च की जरूरत (Developed Agriculture Resolution Campaign: Research is needed on various aspects)
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने कहा, प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में देशभर में “विकसित कृषि संकल्प” अभियान चलाए गए। जिसमें 2170 टीमें गांव-गांव गईं, 1.35 करोड़ से ज्यादा किसानों से संवाद किया। इसमें कई चीजें निकलकर सामने आईं, जिन पर रिसर्ज (शोध) की जरूरत है। अभियान के दौरान गन्ना किसान ने कहा कि हमारे यहां लाल सड़न बीमारी लगती है, वहीं सोयाबीन की उत्पादकता स्थिर है। जीएम सीड हम इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे में उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है, लागत घटाने की जरूरत है और वैल्यू एडीशन की जरूरत है। चौहान ने कहा कि अब कृषि शोध की दिशा बदल रही है। पहले जहां शोध संस्थानों और वैज्ञानिकों द्वारा विषय तय होते थे, वहीं अब ये विषय किसान की ज़मीन पर तय किए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि किसान से बेहतर ज़मीनी जानकारी कोई नहीं दे सकता। देश के किसानों ने अब तक 300 से अधिक नवाचार किए हैं और वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी होगी कि इन इनोवेशन को और बेहतर बनाएं। चौहान ने बताया कि हाल ही में चले अभियान में किसानों ने अमानक बीज, कीटनाशकों और बीजों की उपलब्धता जैसी गंभीर समस्याएं सामने रखीं। इन्हें ध्यान में रखते हुए एक विस्तृत वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इसमें यह निर्णय लिया गया कि अब किसानों, कृषि विश्वविद्यालयों, नीति निर्धारकों और संबंधित स्टेकहोल्डर्स से मिलकर हर राज्य में प्रमुख फसलों के उत्पादन को ध्यान में रखकर एक नई और व्यवहारिक कृषि रणनीति बनाई जाएगी।
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अब रिसर्च किसान भाइयों के खेत से तय होगी, न कि दिल्ली से। फिलहाल, उन्नत बीज की समस्या, बीज की पहचान कैसे करें जैसी परेशानी किसानों के सामने है। इसलिए, अब किसानों की समस्या देखकर रिसर्च होगी, जो समस्या आई है, उनका समाधान वैज्ञानिक सुझाएंगे। अधिकारी उन समाधान को किसानों के बीच ले जाएंगे। वन नेशन-वन एग्रीकल्चर-वन टीम के मंत्र के साथ सरकार आगे काम करेगी। उन्होंने कहा कि बीज की वैरायटी की के लिए अब हम जीनोम एडिटिंग पद्धति का इस्तेमाल करेंगे।
शिवराज सिंह ने कहा कि हमारे यहां सोयाबीन का एरिया कुछ लोग बदलने की सोच रहे हैं। हम नीति ऐसी बनाएंगे कि उत्पादन भी बढ़े और ठीक दाम भी मिले, खरीदी के तरीके भी ऐसे होंगे, जिससे किसानों से ठीक से खरीद पाएं। हम दुनिया की पद्धतियों का अध्ययन भी करेंगे। सोयाबीन किसानों का भला हो, उसमें हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। रोडमैप तैयार करेंगे, जिसपर टारगेट सेट करके काम किया जाएगा। कृषि की दशा और किसानों की स्थिति सुधारने के लिए जल्द ही रोडमैप प्रस्तुत किया जाएगा। कृषि मंत्री ने कहा कि हमने किसान उत्पान संगठन (FPOs) को बुलाया, किसानों और एनजीओ को भी बुलाया है, इन सबसे संवाद करके सोयाबीन संबंधी समस्या का समाधान किया जाएगा। प्रति हेक्टेयर सोयाबीन बीज उत्पादकता कैसे बढ़े, इस पर और गहन रिसर्च होगी।
शिवराज सिंह ने कहा कि जीनोम एडिटिंग से हम उन्नत बीजों का निर्माण करें, सोयाबीन की जड़ें न सड़ें, इसके लिए नई तकनीक से सोयाबीन लगाएं, ऐसी कई चीजें हैं. उन्होंने कहा कि आजकल खेतिहर मजदूर नहीं मिलते हैं, इसके लिए मैकेनाइजेशन (यंत्रीकरण) को बढ़ावा देना पड़ेगा। बीमारियों से मुकाबला करने वाली उन्नत किस्मों पर रिसर्च, बीजों का उपचार और बीमारियों को समय पर पहचान लें, इस पर काम करना है। इस बार हम फसल पर नजर रखेंगे। बीमारियों पर हम नजर रखें। इसी साल हमारा सीड का प्लान बन जाना चाहिए, हमने सोयाबीन से इसकी शुरुआत की है, अगला लक्ष्य है कपास, इसके बाद गन्ना और दलहन फसल है।
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