बीते कुछ सालों से भारत के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में पैदावार प्रभावित हुई है, जिसके पीछे की मुख्य वजह गिरता भूजल स्तर और क्लाईमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) है। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के संस्थानों द्वारा धान की खेती के लिए जलवायु अनुकूल नई-नई किस्मों को तैयार किया जा रहा है। किसान अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार, इन उन्नत किस्मों से (Improved Varieties) कम पानी और समय में अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं। इसी कड़ी में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए “भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद” (आईसीएआर) ने धान की दो जीनोम-संपादित किस्में विकसित की हैं। इन किस्मों में डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 शामिल हैं। धान की ये किस्में 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन देने में सक्षम हैं और 20 दिन पहले तैयार हो जाती हैं। इससे न केवल धान का उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को भी कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही ये भारतीय कृषि को सतत विकास की ओर अग्रसर करने और किसानों को समृद्ध बनाने में मील का पत्थर सिद्ध होंगी।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नई दिल्ली स्थित एनएएससी कॉम्प्लेक्स में इन दोनों जीनोम-संपादित (Genome-edited) किस्में राष्ट्र को समर्पित की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारत विश्व का पहला देश है, जिसने जीनोम-संपादित धान की किस्में विकसित की हैं। धान की नई किस्में किसानों की आय बढ़ाने, लागत घटाने, पानी की बचत और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में मददगार होंगी। ये किस्में किसानों के लिए वरदान साबित होंगी और दूसरी हरित क्रांति का मार्ग प्रशस्त करेंगी। इनमें डीआरआर धान 100 ( कमला) अधिक उपज और कम समय में तैयार होने वाली वैराइटी है, जबकि पूसा डीएसटी राइस 1 सूखे और अधिक लवणता का सामना करने में सक्षम हैं।
आईसीएआर के हैदराबाद स्थित भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) ने बारीक दाने वाली धान की 'सांबा महसूरी' किस्म में जीनोम-संपादित कर नई किस्म डीआरआर धान 100 (कमला) विकसित किया है। इसमें साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज1 (एसडीएन1) जीनोम तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इससे बाली में दानों की संख्या में वृद्धि हुई, जिससे पैदावार लगभग 19 प्रतिशत बढ़ गई। यह लगभग 20 दिन पहले (130 दिन) में पककर तैयार हो जाती है और अनुकूल परिस्थितियों में 9 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज की क्षमता रखती है। कम अवधि के कारण पानी और लागत की बचत होती है। यह नई किस्म चावल की गुणवत्ता में मूल किस्म यानी सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) जैसी ही है।
दूसरी किस्म पूसा डीएसटी राइस 1 है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (IARI) ने धान की 'एमटीयू 1010' किस्म में जीनोम एडिटिंग कर विकसित किया है। यह सूखे का सामना करने और लवणीय व क्षारीय मिट्टी में भी बेहतर उपज देने में सक्षम है। यह नई किस्म सूखा प्रभावित व क्षारीय मिट्टी वाले इलाकों के लिए उपयुक्त है। इसका दाना लंबा और बारीक होगा और अपनी मूल किस्म एमटीयू 1010 की तुलना में 20 फीसदी अधिक उपज देने में सक्षम है।
इन किस्मों को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र की कृषि परिस्थितियों के अनुरूप विकसित किया गया है। माना जा रहा है कि इन राज्यों में 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इन किस्मों की खेती से लगभग 45 लाख टन अधिक धान का उत्पादन होगा। ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत यानी 3,200 टन की कमी आएगी। फसल तैयार होने में 20 दिन कम लगने से लगभग तीन सिंचाई कम लगेगी। जिससे करीब 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बचाया जा सकेगा। जल्दी पकने से अगली फसल की बुआई समय से हो सकेगी।
आईसीआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. एमएल जाट ने बताया कि इन दोनों जीन एडिटेड किस्मों के ऑल इंडिया कॉर्डिनेटेड ट्रायल हो चुके हैं। जल्द ही इनके ब्रीडर सीड, फाउंडेशन सीड और सर्टिफाइड सीड का चरण पूरा कर ये किस्में किसानों को उपलब्ध करा दिया जाएगा। इन दो किस्मों को विकसित कर भारत ने जीनोम एडिटेड (संपादित) किस्मों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। आईसीएआर ने 2018 से दोनों किस्मों को विकसित करने के लिए अनुसंधान शुरू कर दिया था। केंद्र सरकार ने बजट 2023-24 में कृषि फसलों में जीनोम एडिटेड के लिए 500 करोड़ रुपए आवंटित करके इस तकनीक के महत्व को स्वीकार किया है।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और आईएआरआई के पूर्व निदेशक डॉ. एके सिंह ने कहा कि नई किस्मों को जीनोम संपादन की (क्रिस्पर-कैस) तकनीक से विकसित किया गया है, जिससे पौधों के मूल जीन में सूक्ष्म बदलाव किए जाते हैं, लेकिन कोई बाहरी जीन नहीं जोड़ा जाता है। जीनोम एडिटिंग की दो विधियों SDN1 और SDN2 से विकसित सामान्य फसलों को भारत सरकार के जैव सुरक्षा नियमों से मुक्त रखा गया है। भारत सरकार ने एसडीएन1 और एसडीएन2 प्रक्रिया से जीन एडिटेड फसलों को सुरक्षित मानते हुए इन्हें बॉयोसेफ्टी गाइडलाइन से छूट दी थी। बॉयोसेफ्टी गाइडलाइन से छूट मिलने से ही जीनोम-संपादित नई किस्मों को विकसित करने का रास्ता खुला है। यह तकनीक देश की खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। आईसीएआर द्वारा खाद्यान्न, तिलहन व दलहनों सहित कई फसलों में जीनोम एडिटिंग अनुसंधान आरंभ किए जा चुके हैं।
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