आज के इस आधुनिक दौर में किसान व्यापारिक खेती पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। जिसमें आम, केला, फूल, औषधीयां और भी कई अन्य व्यपारिक फसलों की खेती कर रहे है। कारण स्पस्ट हैं मेहनत और लागत कम तथा लाभ अधिक। बदलते समय के इस मंहगाई के दौर में किसान खेती के परंपरागत तरीकों के स्थान पर बाजार डिमांड के अनुसार नई तकनीकों के प्रयोग से मंहगी किस्मों की व्यापारिक फसलों की खेती कर कम लागत में अच्छा मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। ऐसी ही मुनाफेदार मंहगी किस्मों की खेती में वनीला भी शामिल है, जो वर्तमान समय में किसानों के लिए काफी मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। वनीला बाजार में 40 से 50 हजार रूपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है। गत वर्ष इसकी दर 28 हजार रुपए प्रति किलो थी। वनीला की दर में निरंतर बढ़ती जा रही है। जिससे किसान इसकी खेती से लाखों कमा सकते है। वनीला की कई देशों में काफी डिमांड है। इसकी डिमांड बाजार में हमेशा बनी रहती है। यह वजह है कि इस बढ़ती मंहगाई के दौर में किसान इसकी खेती की ओर अपना रूख कर रहे है। आज के इस दौर में वनीला की खेती अच्छी कमाई का स्त्रोत बन सकती है। तो चलिए ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से वनीला की खेती से संबंधित सभी जानकारी के बारे में जानते है।
वनीला एक सुगंधित पदार्थ है, जो वनीला वंश के ऑर्किड से व्युत्पन्न होता है, जिसका मूल स्थान मेक्सिको है। वनीला बीज की फलियों को उपजाने में लगने वाले गहन मेहनत के कारण केसर, के बाद वनीला दूसरा सबसे कीमती मसाला है। वनीला एक बेल (लता) के रूप में उगता है। इसे वन में (पेड़ों पर), बगीचे में (पेड़ या खम्भों पर) या किसी ’शेडर’ पर उगाया जा सकता है। इसके फूल कैप्सूल के आकार की तरह होते हैं और खूशबूदार भी होते हैं। फूलों के सूख जाने पर इसका पाउडर बनाया जाता हैं। वनीला कई एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरा हुआ होता है। इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण भी मौजूद होते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में काफी हद तक काम करते हैं। व्यय के बावजूद अपने सुगंध के कारण इसकी अधिक महत्ता हैं। इसके जटिल पुष्पीय सुगंध को ’विशिष्ट गुलदस्ता’ के रूप में वर्णित किया है। इसकी ऊंची कीमत के बावजूद वैनिला का प्रयोग व्यावसायिक तथा घरेलू दोनों तरह के बेकिंग, इत्र निर्माण एवं गंध-चिकित्सा (एरोमाथेरापी) में होता है। भारतीय मसाला बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में जितनी भी आइस्क्रीम बनती है, उसमें से 40ः वनीला फ्लेवर की होती हैं। सिर्फ आइस्क्रीम ही नहीं बल्कि केक, कोल्ड ड्रिंक, परफ्यूम और दूसरे ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी इसका काफी यूज होता है। वनीला की डिमांड भारत की तुलना में विदेशों में ज्यादा है। ऐसे में माल विदेश भेजने पर बड़ा मुनाफा होता है।
एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार वैनिला की बाजार में काफी मांग है। खास तौर पर भारत से कहीं ज्यादा विदेशों में इसकी मांग है, जहां लोग इसे महंगे दाम पर खरीदने के लिए तैयार हैं। भारत में 1 किलो वनीला खरीदने पर 40 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ सकता हैं। ब्रिटेन बाजार में 600 डॉलर प्रति किलो तक पहुंच गया है। बीते कुछ सालों में इसकी कीमतें तेजी से बढ़ी है। साल 2015 में इसकी बीन्स की कीमत 11500 रुपए प्रति किलो थी, तो वहीं साल 2016 में बढ़कर 14500 रु प्रति किलो और 2017 में 24 हजार रु तक पहुंच गई। पिछले साल इसकी दर 28 हजार रूपए थी। लेकिन वर्तमान समय में वनीला की कीमतें 40 हजार रु प्रति किलो तक आ गई हैं। इंडिया में इसकी कीमत ऊपर-नीचे होती रहती है।
भारतीय मसाला बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार अच्छे प्रकार का वैनिला केवल अच्छी लताओं (बेल) से ही निकलता है। उच्च गुणवत्ता की प्राप्ति के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है। वैनिला का व्यावसायिक उत्पादन खुले खेत तथा “ग्रीनहाउस” प्रक्रिया के अंतर्गत किया जा सकता है। इसके उत्पादन के लिए छाया की आवश्यकता,जैविक पदार्थों की मात्रा की आवश्यकता,वृद्धि के लिए वृक्ष या सांचे (बांस, नारियल या इरिथ्रिना लैंसीओलेटा) की आवश्यकता होती हैं।
वैसे तो इसकी खेती के लिए आर्द्रता, छाया और मध्यम तापमान की आवश्यकता होती है। इसके सर्वोत्तम उत्पादन के लिए गर्म आर्द्र जलवायु में समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई पर होता है। इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान 15 से 30 डिग्री होता है। शेड हाउस में 25 से 35 डिग्री के तापमान की आवश्यकता होती है और यह तापमान बनाए रखने के लिए इसका प्रबंधन कर सकता है।
इसकी खेती के लिए मिट्टी हल्की होनी चाहिए जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा उचति हो और दोमट मिट्टी को इसकी अच्छी उपज के लिए उपयुक्त माना है। मिट्टी का पीएच मान 5.3 से 7.5 तक होना चाहिए। लता के समुचित विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और मल्च (सड़ी-गली गोबर की खाद) की एक समुचित मात्रा लता के आधार में डाली जानी चाहिए।
वैनिला को काफी अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ की आवश्यकता होती है। इसके लिए कार्बनिक खाद में वर्मी कम्पोस्ट, आयल केक, पाल्ट्री खाद और लकड़ी राख, सड़ी गली घास-फूस और गोबर की खाद का प्रयोग कर सकते है। इसके अलावा आप इसकी खेती में नाइट्रोजन की 40 से 60 ग्राम प्रति लता, फास्फोरस पेंटाआक्साइड की 20 से 30 ग्राम की मात्रा और पोटैशियम आक्साइड की 60 से 100 ग्राम की मात्रा प्रति वर्ष प्रति लता के हिसाब से इस्तेमाल कर सकते है। वनीला के लिए फोलियर एप्लीकेशन भी अच्छा होता है इस लिए इसका 1 प्रतिशत घोल का छिड़काव लता पर प्रत्येक महीने में एक बार अवश्य करते रहना चाहिए।
वनीला का फैलाव बेल (लता) के रूप होता हैं। इसकी खेती की बुवाई के लिए पौध या बीज दोनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके पौध तनों की कटाई (स्टेम कटिंग) द्वारा या टिशू कल्चर द्वारा तैयार किया जा सकता है। तनों की कटाई के लिए, एक नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता है। इस नर्सरी को तैयार करने के लिए दिए 60 सेंटीमीटर चौडी, 45 सेंटीमीटर गहरी और 60 सेंटीमीटर जगह वाली नालियाँ की आवश्यक हैं। सभी पौधों को बाकी फसल के साथ-साथ 50 प्रतिशत छाया में उगाया जाना चाहिए। नारियल के रेशों से नालियों की मल्चिंग और सुक्ष्म सिंचाई (माइक्रो इरीगेशन) वानस्पतिक विकास के लिए आदर्श वातावरण/मौसम तैयार करता है। खेतों या ग्रीनहाउस में पौधे उगाने के लिए 60 और 120 सेंटीमीटर के बीच की कलमों को चुना जाना चाहिए।
वनीला के कलमों की रोपाई से पूर्व, उन पेड़ो को जो बेल या लता को सहारा देंगे, कलमों को बोने से कम से कम तीन महीने पूर्व रोपाई कर देना चाहिए। पेड़ से 30 से.मी. दूर 30x30x30 से.मी. आकार के गढ्ढे खोदे जाते हैं और उनको गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट), रेत तथा ऊपरी मिट्टी को अच्छी तरह मिलाकर भरा जाता है। वनीला के एक एकड़ खेत में 2400 से 2500 कलमों की औसत से रोपाई की जा सकती है। इसके कलमों की रोपाई का उचित समय सितंबर से नवंबर माह होता है। रोपाई के तुरंत बाद जैवखाद की अतिरिक्त खुराक के रूप में पत्तियों व घासफूंस की एक मोटी सतह से उन्हें ढंकना चाहिए। पौध को जड़ पकड़ने में 1 से 8 सप्ताह लगते हैं और शुरूआत में ऊपर की ओर एक पत्ती निकलती हुई दिखायी देती है। फूल और बाद में फली उत्पन्न करने के लिए कलमों के पर्याप्त रूप से बढ़ने हेतु तीन वर्ष आवश्यक हैं।
वनीला की फली तेजी से वृद्धि करती है। लेकिन फली को परिपक्त होने में करीब 8 से 10 महीने लग जाते हैं। वनीला की एक लता लगभग 12 से 14 महीनों के बीच उत्पादक देने लगती है। वैनिला की फलियों की कटाई में अत्यधिक श्रम लगता है, क्योंकि इसमें फूल का परागण करना पड़ता है। इसकी व्यावसायिक कीमत फली की लंबाई के आधार पर तय की जाती है। यदि फलियां 15 से.मी. से अधिक होती हैं तो इन्हें अव्वल गुणवत्ता का उत्पाद माना जाता है। प्रत्येक फली में पर्याप्त मात्रा में बीज होते हैं, जो एक गहरे लाल रंग के द्रव से लिपटे होते हैं, जिससे वैनिला का सत्त्व निकाला जाता है। 4 से 5 साल की एक वनीला लता से 1.5 से 3 किलाग्राम के बीच फलियों का उत्पादन दे सकती है। यह उत्पादन कुछ सालों के बाद 6 किलाग्राम तक पहुंच सकता है। कटाई की गई हरी फलियों को बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त करने के लिए व्यावसायीकरण किया जाता है। भारत में वनीला लगभग 40 से 50 हजार रुपए प्रति किलो तक बिकता है।
ट्रैक्टरगुरु आपको अपडेट रखने के लिए हर माह जॉन डीरे ट्रैक्टर व करतार ट्रैक्टर कंपनियों सहित अन्य ट्रैक्टर कंपनियों की मासिक सेल्स रिपोर्ट प्रकाशित करता है। ट्रैक्टर्स सेल्स रिपोर्ट में ट्रैक्टर की थोक व खुदरा बिक्री की राज्यवार, जिलेवार, एचपी के अनुसार जानकारी दी जाती है। साथ ही ट्रैक्टरगुरु आपको सेल्स रिपोर्ट की मासिक सदस्यता भी प्रदान करता है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।
Website - TractorGuru.in
Instagram - https://bit.ly/3wcqzqM
FaceBook - https://bit.ly/3KUyG0y