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हरा चारे की खेती: गाय-भैंसों से अच्छा दूध उत्पादन के लिए करें इन 5 पौष्टिक घास की खेती

हरा चारे की खेती: गाय-भैंसों से अच्छा दूध उत्पादन के लिए करें इन 5 पौष्टिक घास की खेती
पोस्ट -01 मई 2023 शेयर पोस्ट

पशुपालन : हरा चारे की खेती के लिए किसान करें ये 5 पौष्टिक घास की खेती

देश में पशुपालन का क्षेत्र काफी तेजी से बढ़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती के साथ पशुपालन में गाय-भैंसों का पालन बड़े स्तर पर करते हैं। देखा जाए, तो पशुपालन किसानों की आय का एक बेहतर विकल्प बना हुआ है।  पशुपालन करने वाले किसान गाय-भैंसों से दुग्ध उत्पादन कर आय को दोगुना करने के साथ अन्य लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं। लेकिन पशुपालन में गाय-भैंसों से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए उनके खान-पान का खास ध्यान रखना होता है। पशुओं को पर्याप्त पोषण के लिए उन्हें स्वादिष्ट व पौष्टिक हरा चारा खिलाते हैं, जिससे पशुओं को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कैरोटिन तथा कैल्शियम जैसे पोषक तत्व मिलते हैं। इससे पशुओं में दुग्ध उत्पादन की क्षमता बढ़ती है और उनकी सेहत को स्वस्थ रखना भी फायदेमंद होता है। लेकिन आज के दौर में पशुपालकों को पशुओं के लिए सालभर हरे चारे की आपूर्ति में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, बारिश के सीजन में दुधारू पशुओं के लिए हरा चारा खेतों की मेड़ अथवा खाली पड़े बंजर खेतों से आसानी से उपलब्ध हो जाता है। लेकिन सर्दी और गरमी के मौसम के दौरान में पशुओं के लिए हरे चारे की व्यवस्था करना एक अहम चिंता का विषय बन जाता है। इस दौरान पशुपालक अपने दुधारू पशुओं में गाय-भैंसों को चारे की आपूर्ति के लिए सूखा चारा, बाजरा कड़बी, गेहूं की तूड़ी और जई का इस्तेमाल करते हैं। इससे दुधारू पशुओं के भोजन की आपूर्ति तो हो जाती है, लेकिन पशुओं की सेहत के साथ-साथ दूध उत्पादन गिरता है। ऐसे में किसान हरे चारे के तौर पर मक्का, ज्वार, बाजार, ग्वार-जई जैसी अनेक फसलों की खेती करते हैं, लेकिन इन फसलों से केवल 4-5 माह ही हरा चारा मिल पाता है। पशुपालन करने वाले पशुपालकों की हरे चारे समस्या को दूर करने के लिए ट्रैक्टर गुरु के इस लेख में हम 5 ऐसी खास हरा चारा फसलों की जानकारी लेकर आए हैं, जो स्वादिष्ट व पौष्टिक होने के साथ सालभर तक दुधारू पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराती है। साथ ही दूध उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ यह पशुपालकों की आय को दोगुना भी करती है। 

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सालभर हरा चारा देने वाली टॉप 5 खास फसलें

दुधारू पालतू पशुओं को सूखा चारा के अलावा, हरा चारा भी खिलाना होता है। क्योंकि हरा चारा पशुओं के सेहत को सही रखता है, जिससे पशुओं की दुग्ध देने की क्षमता में वृद्धि होती है। पशुपालन करने वाले किसान लंबे समय तक पशुओं को हरा चारा मुहैया करने लिए बरसीम, रिजका, गिनी, पैरा घास और नेपियर घास जैसी कुछ खास फसलों की खेती कर सकते हैं। सेहतमंद खास की ये सभी फसलें किसान को बेहद कम पानी में सालभर तक उनके पशुओं के लिए हरा चारा उपलब्ध करवाती हैं।

बरसीम 

बरसीम घास पशुओं के भोजन में बहुत पॉपुलर हरे चारे की फसल है। यह बहुत ही पौष्टिक व स्वादिष्ट होती है, जिसके कारण पशुपालन करने वाले किसानों द्वारा इसे पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में प्रमुखता से उगाया जाता है। बरसीम घास पशुओं के लिए एक स्वादिष्ट व पौष्टिक चारा है। इसमें पाचनशीलता 75 फीसदी तक होती है। इसके चारे में रेशे की मात्रा कम व प्रोटीन की मात्रा 20 से 21 फीसदी तक होती है। बरसीम घास पशुओं को बिल्कुल स्वस्थ रखती है तथा उनके सेहत के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन की क्षमता को बनाए रखने में फायदेमंद है। बरसीम का पौधा मेथी के पौधे की तरह ही होता है। इसके पौधे की ऊंचाई 2 से 2.5 फीट तक होती है, जिसमे सफेद व पीले रंग के फूल खिलते हैं। बरसीम को अधिकतर किसान इससे आय प्राप्त करने के लिए भी उगाते हैं। बरसीम की बुवाई अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में की जाती है। बरसीम की हर चालीस दिन पर कटाई की जाती है। बरसीम से सालभर में लगभग एक हेक्टेयर खेत से 100-150 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है। 

नेपियर घास

गन्ने की तरह दिखने वाली नेपियर घास पशुपालन करने वाले किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। यह खास बुवाई के बाद मात्र  2 महीने ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके चारे में प्रोटीन और विटामिन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इस घास को पशुओं का उत्तम आहार का दर्जा प्राप्त है। दुधारु पशुओं को लगातार नेपियर घास खिलाने से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे वह तंदुरूस्त रहते हैं और अच्छा दूध उत्पादन करते हैं। नेपियर घास को हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है। नेपियर घास की खेती फरवरी-मार्च में लगाई जाती है। इसकी खेती अधिकतर बारिश या सूखे-बंजर इलाकों में भी की जा सकती है। किसान भाई नेपियर घास को अपने खेत की मेड़ों पर उगा सकते हैं। यह घास साल भर तक हरा चारा मुहैया करने वाली वहुवर्षीय हरा चारा फसल है। नेपियर घास एक बार उगकर लगातार 4 से 5 साल तक पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करता रहता है। नेपियर घास को बेहद कम खर्च में तैयार होने वाली घास। इससे खास देख-भाल एवं रासायनिक खाद व कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। एक एकड़ खेत में नेपियर घास से किसान 250 से 350 क्विंटल पैदावार ले सकते हैं।

पैरा घास

गर्मियों में पैरा घास पशुओं को भरपूर मात्रा में हरा चारा के रूप में मुहैया कराया जा सकता है। इस घास को उगाने में किसी तरह का कोई खास खर्च भी नहीं करना पड़ता है। पैरा घास या अंगोला (ब्रैकिएरिया म्यूटिका) एक बहुवर्षीय पौष्टिक चारा फसल है। इसे अधिक नमी वाली जगहों व दलदली जमीनों पर आसानी से उगाया जा सकता है। पैरा घास या अंगोला घास बाढ़ प्रभावित नहीं होती है, बल्कि यह घास धान की तरह बहुत तेजी से बढ़ती है। पशुपालक पैरा घास का इस्तेमाल हरे चारे के रूप में कर सकते हैं। इसके चारे में 6 से 7 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इस घास की तने की लंबाई 1.5 से 2 मीटर तक होती है तथा पत्तियां 25 से 30 सेंटीमीटर तक लंबी और 15 से 20 मिलीमीटर तक चौड़ी होती है। इसका तना मुलायम, चिकना और सैकड़ों गांठ युक्त होता है। पैरा घास की पहली कटाई रोपाई के 75 से 80 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके पश्चात बारिश के मौसम में 30 से 35 दिनों तथा गर्मी के मौसम में 35 से 40 दिनों के अंतर पर हरे चारे के लिए कटाई करनी चाहिए।

गिनी घास 

पशुओं के चारे के लिए गिनी खास किसी वरदान से कम नहीं है। पशुपालक इस घास को लगाकर पशुओं के लिए कई वर्षों तक हरा चारा की आपूर्ति कर सकते हैं। अगर पशुपालन करने वाले पशुपालकों के पास सिंचाई की उचित व्यवस्था है, तो गिनी घास काे एक बार लगाकर सालभर हरा चारा ले सकते हैं। वहीं, शुष्क और बारिश के दौरान भी इससे हरा चारा मिलता रहता है। गिनी घास को किसी भी क्षेत्र में लगाया जा सकता है। गिनी खास लगाने के लिए अच्छी जल निकासी वाली  दोमट मिट्टी भूमि अच्छी मानी गई है। गिरी घास की जड़ों की रोपाई खेत में की जाती है। इसके लिए इसकी जड़ों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है। तैयार जड़ों की रोपाई खेतों में जुलाई- अगस्त के महीने में की जाती है। 

रिजका घास

रिजका घास चारे की यह किस्म एक दलहनी फसल है, जो दुधारू पशुओं के लिए सबसे अच्छा हरा चारा फसल के रूप में लोकप्रिय है। यह उन क्षेत्रों में लिए एक अहम चारा फसल है, जहां औसतन से भी कम बारिश होती है। इस घास फसल को मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, और उत्तर प्रदेश जैसे कम पानी वाले राज्यों में उगाया जाता है। रिजका घास की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर महीने के मध्य में की जाती है, जो जून महीने तक हरा चारा देने के तैयार हो जाती है। अगर रिजका घास की फसल पहली बार लगाते हैं, रिजका कल्चर का प्रयोग करना चाहिए। अगर रिजका कल्चर उपलब्ध न हो, तो रिजका कल्चर उपलब्ध कराने के लिए जिस खेत में पहले रिजका लगाया गया है, उस खेत में से ऊपरी परत से 40 से 45 किलोग्राम मिट्टी निकालकर जिस खेत में रिजका लगाना है, उसमे मिला दें। रिजका घास बरसीम की अपेक्षा कम पानी में तैयार हो जाती है। रिजका घास की बुवाई 20 से 30 से.मी. के अंतर से कतारों में करनी चाहिए। इसकी खेती की बुवाई के लिए 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की आवश्यकता होती है। 

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