भारत के करोड़ों किसान हर साल धान की खेती करते हैं। खरीफ सीजन में संपूर्ण भारत में धान की सबसे अधिक बुवाई की जाती है। अगर इसकी खेती में शुरू से ही कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो बेहतर पैदावार मिलती है और किसान अधिक मुनाफा हासिल कर सकते हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में धान की अलग-अलग किस्मों की बुवाई की जाती है। हर राज्य की जलवायु और मौसम भी अलग-अलग रहता है। ऐसे में किसानों को अपने राज्य के मौसम और राज्य के लिए अनुशंसित धान की किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। खरीफ धान की बुवाई का सीजन शुरू होने से पहले आईसीएआर के कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों के लिए सलाह जारी की है। अगर किसान कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह/सुझाव के अनुसार धान की खेती करते हैं तो उन्हें अधिक पैदावार प्राप्त हो सकती है। आइए, ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट से जानें कि धान की बुवाई से पहले किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
खरीफ सीजन में धान की फसल से बेहतर पैदावार के लिए मिट्टी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आईसीएआर (ICAR) के कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह के अनुसार धान की खेती के लिए मटियार और दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना गया है। इसके अलावा धान की खेती से ज्यादा पैदावार के लिए ज्यादा उतार-चढ़ाव वाली जलवायु नहीं होनी चाहिए। इसलिए, जिन इलाकों में एक समान मौसम रहता है, वहां धान की बंपर उपज मिलती है। धान की खेती में पौधों को बढ़वार के लिए 20 डिग्री से 37 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है।
धान की खेती में बीजों की बुवाई से पहले बीजोपचार वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए। अगर किसान बीजोपचार में विशेषज्ञों की सलाह का ध्यान रखते हैं तो पौधों का अंकुरण आसानी से होता है और पौधों को रोगों और कीटों से बचाया जा सकता है। सबसे पहले किसान को अच्छी किस्म के बीज का चयन करना चाहिए। इसके बाद बीज व भूमि का उपचार करना चाहिए। बीज आपके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार ही होना चाहिए। किसान अगर धान की सीधी बुवाई कर रहा है तो बीज की मात्रा 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। यदि किसान धान की रोपाई के लिए बीज से पौध तैयार करना चाहता है तो उसे 30 से 35 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आवश्यकता होगी। किसान को 25 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन तथा 75 ग्राम थीरम से बीज का उपचार करना चाहिए।
धान की नर्सरी लगाने के बाद 10 दिन के अंतर पर ट्राइकोडर्मा का एक छिड़काव पौध पर करना चाहिए। बुवाई के 10-15 दिन बाद पौध पर कीटनाशक और फफूंदीनाशक का छिड़काव करने की सलाह भी दी गई है। इससे पौध पर कीट और रोग लगने की संभावना कम से कम रहेगी। पौध वाले खेत में पानी जमाव नहीं होने देना चाहिए। अगर कड़ी धूप के मौसम में खेत में पानी भरा हुआ है तो इससे पौध में सड़न पैदा हो सकती है, ऐसी पौध रोपाई के योग्य नहीं होती है। इसलिए किसान को खेत से पानी तुरंत निकाल देना चाहिए। साथ ही किसानों को सलाह दी गई है कि धान के खेत में सिंचाई का समय दोपहर के बाद रखना चाहिए। इससे यह फायदा होता है कि रातभर में खेत पानी को सोख जाता है। सामान्यत 21 से 25 दिन में रोपाई के लिए धान की पौध तैयार हो जाती है। इसलिए समय सीमा को ध्यान में रखते हुए धान की पौध की रोपाई कर देनी चाहिए। खेत में निर्धारित सीमा से अधिक पौध की रोपाई नहीं करनी चाहिए। एक हेक्टेयर में तैयार धान की पौध को 15 हेक्टेयर के खेत में रोपा जा सकता है। यदि किसान अधिक रोपाई करते हैं तो इससे पौधों का सही तरीके से विकास नहीं होता है।
किसान समयावधि के अनुसार बासमती धान की प्रमुख किस्मों का चयन कर सकते हैं। 120 से 125 दिन के अंदर पैदावार देने के लिए बासमती धान की पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692 और पूसा बासमती 1847 किस्म काफी लोकप्रिय है। 140 दिन की अवधि में पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1718 और पूसा बासमती 1885 अधिक पैदावार देती है। 155 से 160 दिन के अंदर पकने वाली किस्मों में पूसा बासमती 1401, पूसा बासमती 1728, पूसा बासमती 1886 शामिल है। ये सभी किस्में सीधी बिजाई के लिए उपयुक्त पाई गई है।
नोट : किसानों को सलाह दी जाती है कि खरीफ सीजन में धान की बुवाई से पहले स्थानीय कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह अवश्य लें।
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