बासमती दुनिया भर के प्रसिद्ध चावल किस्मों में से एक है। बता दें कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली (IARI) द्वारा विकसित की गई बासमती किस्म आज वैश्विक स्तर पर भारी डिमांड की वजह से अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। हाल ही में यह खबर आ रही है कि पूसा बासमती की तीन नई किस्में विकसित की जा चुकी है जो बेहद उन्नत तकनीक की हैं और बासमती की रोगमुक्त किस्में है। साथ ही ये किस्में ज्यादा उपज देने वाली भी है।
इससे जहां भारतीय किसानों के चावल की उपज में बढ़ोतरी होगी, वहीं भारतीय किसानों को अब पेस्टीसाइड्स के छिड़काव की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। फरवरी में आयोजित हुए आईएआरआई के एक समारोह में बताया गया कि भारत में बासमती धान की किस्मों की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है। पूसा बासमती 1121 किस्म ही अकेले भारत के 95 फीसदी क्षेत्र में चावल का उत्पादन करती है। इसके अलावा भारत में पूसा बासमती 1718 और 1509 की भी खेती की जाती है।
भारतीय किसानों के लिए बासमती किस्मों में रोग एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है। किसानों को इससे निपटने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करना पड़ता है जो किसानों के लिए खर्चीला हो जाता है। अगर पेस्टिसाइड न डालें तो धान की खेती रोगों से खराब हो जाती है और ये स्टैंडर्ड चावल नहीं रह जाते और इसका बड़ा असर चावल एक्सपोर्ट पर पड़ता है। किसान बासमती धान में जीवाणु झुलसा रोग को कंट्रोल करने के लिए स्ट्रेप्टोसाइकलिन और झोका रोग के लिए हेक्साकोनाजोल, प्रोपीकोनाजोल अथवा ट्राईसाइकलोजोल आदि रसायनों का इस्तेमाल करते हैं।
बासमती आयातक देशों, खासकर यूरोपीय यूनियन ने बासमती चावल में इन रसायनों के उपयोग को लेकर चिंता जताई है। कई बार इन देशों के आयातकों ने मानक के विपरीत बासमती चावल की खेपों को वापस लौटा दिया है। इसलिए, जरूरी है कि बासमती चावल की अन्य किस्मों का विकल्प तलाशा जाए। जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बासमती की बादशाहत बनाई रखी जा सके।
बासमती की बादशाहत बरकरार रखने के लिए ये तीन किस्में विकसित की गई जो इस प्रकार है :
आईआरआई पूसा ने बासमती की तीन नई किस्म विकसित की हैं - पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885, और पूसा बासमती 1886
इन किस्मों की उपज क्वालिटी शानदार है और इन तीन प्रजातियों को लेकर अब किसानों में भी काफी उत्सुकता देखने को मिल रही है, क्योकि बासमती धान से मिल रहे फायदे की वजह से ही हर साल बासमती का कृषि क्षेत्र लगभग 10 फीसदी दर से बढ़ रहा है।
बासमती धान की हाल ही में विकसित की गई तीन किस्मों में पहला है, पूसा बासमती 1847 (Pusa Basmati 1847)
यह किस्म रोगमुक्त है और इस किस्म में बैक्टीरियल ब्लाइट से लड़ने के लिए ब्रीडिंग के जरिए दो जीन डाले गए हैं। साथ ही ब्लास्ट रोग से लड़ने के लिए भी 2 जीन डाले गए हैं। यह जल्दी पक जाने वाली अर्ध-बौनी बासमती चावल की किस्म है जो लगभग 125 दिनों में पक कर तैयार होती है। इससे होने वाली उपज की बात करें तो इसकी औसत उपज 22 से 23 क्विंटल प्रति एकड़ है, वहीं पंजाब के किसानों ने इस किस्म से 31 क्विंटल प्रति एकड़ उपज भी प्राप्त किया है।
बासमती धान की विकसित दूसरी लेटेस्ट किस्म है, पूसा बासमती 1885 (Pusa Basmati 1885)
इस किस्म का चावल बेहद क्वालिटी वाला स्वादिष्ट है। इस किस्म में भी ब्रीडिंग के जरिए बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट रोग से लड़ने की जीन डाली गई है। यह मध्यम अवधि की बासमती चावल की किस्म है जो 135 दिनों में तैयार होती है। इसकी उपज क्षमता प्रति एकड़ 18.72 क्विंटल है। हालांकि पंजाब के किसानों ने इसकी पैदावार 22 क्विंटल प्रति एकड़ तक कर ली है।
बासमती धान की विकसित तीसरी लेटेस्ट किस्म है ,पूसा बासमती 1886 (Pusa Basmati 1886)
यह किस्म भी ऊपर बताई गई दोनों किस्मों की तरह रोगमुक्त है और यह 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। उपज की बात करें तो इसकी औसत उपज 18 क्विंटल प्रति एकड़ है।
अगर आप बासमती की ये तीन किस्मों के बीज प्राप्त करना चाहते हैं तो आप बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (BEDF) मेरठ और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान IARI दिल्ली के बीज केंद्र से ये बीज प्राप्त कर सकते हैं।
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