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सनफ्लावर की खेती : कुसुम की खेती से कमाएं लाखों रुपए

सनफ्लावर की खेती : कुसुम की खेती से कमाएं लाखों रुपए
पोस्ट -22 अक्टूबर 2022 शेयर पोस्ट

जानें, कुसुम की खेती कैसे करें व अन्य जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, हमारे देश में लगभग 70 प्रतिशत लोग खेती करके अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं। आज के आधुनिक युग में किसान पारंपरिक खेती करने के साथ-साथ अपनी आय बढ़ाने के लिए व्यावसायिक खेती की तरफ भी रुख कर रहे हैं। इसी कड़ी में किसान भाईयों आज हम बात करेंगे कुसुम की खेती (Safflower Cultivation) की।  सनफ्लावर (कुसुम) की खेती से आप अधिक मुनाफा कैसे कमा सकते हैं। कुसुम एक औषधीय गुणों वाली तिलहनी फसल है। कुसुम के फल के बीज से वनस्पति तेल निकालने के लिए इसकी खेती की जाती है। देश के उन क्षेत्रों में कुसुम की खेती बहुत उपयोगी है जहां सूखा पड़ने की संभावना ज़्यादा रहती है। कुसुम का पौधा अपनी गर्मी सहने की बेजोड़ क्षमता की वजह से इसकी खेती वहां भी आसानी से हो सकती है जहां सिंचाई के प्रर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है। किसान भाईयों आज हम ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट के माध्यम से आपको बताएंगे कुसुम की व्यावसायिक खेती कैसे करें।

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भारत में कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्य

भारत में कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और बिहार शामिल हैं। भारत कुसुम का सबसे बड़ा उत्पादक देश हैं। भारत में मुख्य रुप से कुसुम के फल की बीजों से निकले तेल का उपयोग खाना बनाने के लिए किया जाता हैं।

कुसुम फल के औषधीय गुण

कुसुम के फल में कई प्रकार के औषधीय गुण पाएं जाते हैं। कुसुम का बीज, छिलका, पत्ती, पंखुड़ियां, तेल, शरबत सभी का उपयोग औषधि के रूप में किया जा सकता है। कुसुम के तेल का उपयोग भोजन में करने पर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहती है एवं तेल से सिर दर्द में भी आराम मिलता है। कुसुम के फल खाने के फायदे निम्नलिखित है :-

  • कुसुम का फल डायबिटिक मरीजों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है।

  • कुसुम का फल खाने से गंजेपन की समस्या दूर होती हैं।

  • कुसुम का फल खाने से कान के दर्द में राहत मिलती हैं।

  • कुसुम का फल खाने से अल्सर ठीक हो जाता हैं।

  • कुसुम का फल खाने से जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता हैं।

  • कुसुम का फल खाने से चेहरे पर निखार आता है।

  • कुसुम का फल खाने से कैंसर ठीक करने में मदद मिलती हैं।

कुसुम की खेती करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

कुसुम की खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना पड़ता हैं। वो बातें निम्नलिखित हैं :-

कुसुम की खेती : जलवायु व उपयुक्त मिट्टी

कुसुम की खेती करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान तथा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान अच्छा होता है। कुसुम की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये कुसुम की फसल के लिये मध्यम काली भूमि से लेकर भारी काली भूमि उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 के बीच का होने चाहिए।

कुसुम की खेती : बुवाई का समय

कुसुम की बुवाई का उपयुक्त समय सितम्बर माह के अंतिम से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक का है। यदि खरीफ सीजन की फसल में सोयाबीन बोई है तो कुसुम फसल बोने का उपयुक्त समय अक्टूबर माह के अंत तक का है। अगर आपने खरीफ सीजन में कोई भी फसल नहीं लगाई हो तो सितम्बर माह के अंत से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक कुसुम फसल की बुवाई कर सकते हैं।

कुसुम की खेती : कुसुम की उन्नत किस्में

कुसुम की फसल की अच्छी पैदावार में उन्नत किस्मों का चयन  बहुत ही महत्वपूर्ण होता है| कुसुम की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है :-

के 65 - यह कुसुम की एक प्रजाति है, जो 180 से 190 दिन में पक जाती है। इसमें तेल की मात्रा 30 से 34 प्रतिशत तक होती है और इसकी औसत उपज 14 से 15 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर तक की है।

मालवीय कुसुम 305 - यह कुसुम की एक उन्नत किस्म है जो 155 से 160 दिन में पकती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 37 प्रतिशत तक की होती है।

ए 300 - यह किस्म 155 से 165 दिनों में पककर तैयार होती हैं। इसकी औसत पैदावार 8 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है। इस किस्म में फूल पीले रंग के होते हैं तथा बीज मध्यम आकार एवं सफेद रंग के होते हैं। बीजों में 31.7 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।

अक्षागिरी 59-2 - इस किस्म की औसत पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टर तक की होती है। ये किस्म 155 से 160 दिनों में पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फूल पीले रंग के और बीज सफेद रंग के होते हैं। इस किस्म के दानों में 31 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।

कुसुम की खेती : खेत की तैयारी

कुसुम की खेती में भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है, खेत को सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, इसके बाद दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर के माध्यम से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं। पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती हैं।

कुसुम की खेती : बुवाई

कुसुम की खेती करते समय 8 किलोग्राम कुसुम का बीज प्रति एकड़ के हिसाब बुवाई करना पर्याप्त होता है। बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेटीमीटर या डेढ़ फुट रखना आवश्यक होता है। पौधे से पौधे की दूरी 20 सेटीमीटर या 9 इंच अवश्य रखना चाहिये।

कुसुम की खेती : खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

जिन खेतों में सिंचाई के उचित साधन उपलब्ध ना हो वहां नाइट्रोजन 40 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर देना चाहिए। जिन खेतों में उपयुक्त सिंचाई के साधन हो वहां नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा खेत में 2 साल के अंतराल पर 4 से 5 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई से पहले देने से कुसुम में तेल की मात्रा में इज़ाफ़ा होता है। 

कुसुम की खेती : सिंचाई

कुसुम की एक फसल को 60 से 90 सेटीमीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है। कुसुम की खेती में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फसल अवधि में एक से दो बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के 50 से 55 दिनों पर और दूसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। कुसुम के पौधों में फूल निकलने की अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

कुसुम की खेती : निराई-गुड़ाई

कुसुम की फसल में एक बार डोरा अवश्य चलायें तथा खरपतवार होने की स्थिति में एक से दो बार आवश्यकतानुसार हाथ से निराई-गुड़ाई करें। निराई-गुड़ाई बीज के अंकुरण होने के 15 से 20 दिनों के बाद करना चाहिये।

कुसुम की खेती : फसल की कटाई व उत्पादन

कुसुम के पौधे में काटे होते हैं इसलिए इसकी कटाई हाथों में दस्ताने पहन कर सावधानी पूर्वक करना चाहिए। अब बात करें इसके उत्पादन की तो इसकी एक हेक्टेयर की खेती करने से किस्मों के अनुसार 5 से 15 क्विंटल तक की उपज प्राप्त हो सकती हैं। उत्पादन आपकी किस्म के अनुसार होता हैं। जिससे किसान लाखों रुपये आसानी से कमा सकते हैं।

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