सोयाबीन की खेती: सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए जुलाई के पहले सप्ताह तक करें बुवाई

पोस्ट -15 जून 2023 शेयर पोस्ट

जानें, सोयाबीन की उन्नत किस्में, मुख्य विशेषताएं और बुआई से पहले खेत कैसे करें तैयार

सोयाबीन सबसे ज्यादा मुनाफे वाली व्यापारिक फसल है, जो किसानों को मालामाल कर सकती है। इसका उपयोग खाद्यान्न के रूप में पौष्टिकता के लिए किया जाता है। वहीं सोयाबीन से खाद्य तेल, रिफाइंड, मिल्क आदि उत्पादों की बाजार में जबर्दस्त मांग रहती है।  भारत के अनेक राज्यों में सोयाबीन की व्यापक क्षेत्र में खेती की जाती है। इनमें मध्यप्रदेश का नाम सबसे पहले आता है। इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, असम, पश्चिमी बंगाल, झारखंड सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में सोयाबीन की खेती की जाती है। सोयाबीन की खेती के लिए बुआई का समय शुरू हो गया है, जून से जुलाई के बीच सोयाबीन की बुआई का पीक सीजन है। अगर कृषि कलेंडर के अनुसार देखें तो 15 जून से 5 जुलाई तक सोयाबीन की बुआई का काम किसानों को पूरा कर लेना चाहिए। इस बीच की गई बुआई से ही किसान सोयाबीन की बंपर पैदावार ले सकते हैं। इसके अलावा सोयाबीन की खेती करने से पहले किसानों को कुछ महत्वपूर्ण कार्य निपटाने होते हैं। यदि इन कार्यों को समय रहते पूरा कर लिया जाए तो सोयाबीन की फसल का उत्पादन कई गुना बढ़ सकता है। सोयाबीन की खेती के लिए जमीन कैसी हो, उस जमीन की मिट्‌टी सोयाबीन के लिए उपयुक्त है या नहीं, बुआई से पहले खेत को कितनी बार कल्टीवेट करें, अधिक उपज वाले उन्नत बीजों का चयन, बीज उपचार,  जमीन में खाद मिलाना आदि ऐसी छोटे-छोटे काम हैं जिन्हे पूरा करने पर ही किसान भाई सोयाबीन का हाई प्रोडक्शन ले सकते हैं। यहां ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट में आपको सोयाबीन की सही समय पर बुआई करने की सलाह के साथ ही अन्य उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है।

सोयाबीन की बुआई से पहले खेत कैसे करें तैयार?

सोयाबीन की बुआई करने से पहले किसानों को सबसे पहला काम खेत को तैयार करना होता है। जिस खेत में इसकी फसल बोई जानी है उसे कल्टीवेटर से समतल कर लेना चाहिए। वहीं कल्टीवेटर चलाते समय एक हेक्टेयर जमीन में 5 से 10 टन गोबर की खाद या ढाई टन मुर्गी कंपोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा जो किसान लगातार सोयाबीन की खेती करते आ रहे हैं उन्हे चाहिए कि खेती की गहरी जुताई करें।  इससे अधिक उपजाऊ मिट्‌टी ऊपर आ जाएगी। इसमें बीज ज्यादा जल्दी अंकुरित होंगे और पैदावार भी बढ़ेगी। सोयाबीन के लिए रेतीली दोमट मिट्‌टी उपयुक्त रहती है। इसमें कार्बन की मात्रा ज्यादा होती है जो सोयाबीन की पैदावार बढ़ाने में सहायक है।

सोयाबीन की उन्नत किस्में

सोयाबीन की कई उन्नत किस्में आती हैं। कुछ अलग-अलग प्रदेशों की मिट्‌टी के हिसाब से वहां के किसानों को इस्तेमाल करनी चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर भारत में सोयाबीन की पूसा 12, एनआरसी 130 ये दो किस्में उत्तम रहती हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश और आसपास के क्षेत्रों में जेएस 2034, जेएस 116, जेएस 335, एनआरसी 128 जैसी किस्मों की जरूरत होती है। ध्यान रहे बीजों का अंकुरण 70 प्रतिशत से कम नहीं हो।

बीजों को करें उपचारित

भले ही आप अच्छी किस्म के बीज खरीद कर लाएं हो लेकिन बुआई से पहले इनको उपचारित कर लेना बेहतर रहता है। इन बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। इसके बाद रिज या बड़ी क्यारियों पर कतारबद्ध तरीके से 35-45 cm, पौधों से पौधों की दूरी 4-5 cm होनी जरूरी है। बीज को 3-4 cm तक की गहराई में ही बोना चाहिए। बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 65 से 75 kg होनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 56 kg यूरिया, 450- 625 kg सुपर फॉस्फेट, 34-84 kg  म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल किया जाता है।

बुआई का सही समय 5 जुलाई तक

सोयाबीन की बुआई का सीजन शुरू हो गया है। 15 जून से 5 जुलाई तक जो  किसान सोयाबीन की बुआई करते हैं वे सोयाबीन की अच्छी पैदावार लेने में सफल होंगे। यह फसल मानसून पर ज्यादा निर्भर है लेकिन ज्यादा दिनों तक बारिश नहीं होती है तो किसान सिंचाई करके भी इसकी बुआई कर सकते हैं। इसके बाद पौधा उग आने पर उसमें फूल आने पर सिंचाई करें।

इस नई किस्म पर नहीं होगा कीटों का कोई असर

सोयाबीन की खेती करने वाले किसान भाइयों के लिए एक और खुशखबर यह है कि हाल ही कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी सोयाबीन की किस्म विकसित की है जिसका नाम है- M A C S  1407 है। इस पर कीटनाशक दवा का खर्च बचेगा। इस किस्म पर कीटों का कोई असर नहीं होता। इसके साथ ही फसल उत्पादन भी ज्यादा होगा। इस नवीन किस्म को विकसित किया है आघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट पुणे के वैज्ञानिकों ने।  इनका कहना है कि नई किस्म असम, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के लिए विकसित की है।

क्या है इस किस्म की मुख्य विशेषताएं ?

सोयाबीन की फसल की कई विशेषताएं हैं जो इस प्रकार हैं-:

  • यह किस्म सोयाबीन की फसल पर लगने वाले गर्डल, बीटल, लीफ माइनर, रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिडस, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे कीटों की प्रतिरोधी किस्म है। इनका इस पर कोई असर नहीं होता।
  • सोयाबीन की यह किस्म महज 104 दिनों में तैयार हो जाती है।
  • इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर करीब 39 क्विंटल होता है।
  • इसका तना ज्यादा मोटाई वाला होता है, फलियां बिखरती नहीं हैं वहीं इसकी फसल की मशीन से अच्छी तरह से कटाई हो सकती है। 

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