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रबर की खेती : दोहरे लाभ के लिए किसान करें रबर की खेती

रबर की खेती : दोहरे लाभ के लिए किसान करें रबर की खेती
पोस्ट -17 मई 2022 शेयर पोस्ट

जानें, रबर की खेती के फायदे और कैसे करें खेती की शुरुआत

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि प्राकृतिक रबर के बने सामानों की संख्या और उपयोगिता आज इतनी बढ़ गई है कि उसके अभाव में काम चलाना असंभव समझा जाता है। प्राचीनकाल से ही रबर का उपयोग शांति और युद्धकाल में, घरेलू और औद्योगिक कार्यों में समान रूप से होता है। संसार के समस्त रबर के उत्पादन का प्रायः 78 प्रतिशत उपयोग गाडि़यों के टायरों और ट्यूबों के बनाने में तथा शेष जूतों के तले और एडि़याँ, बिजली के तार, खिलौने, बरसाती कपड़े, चादरें, खेल के सामान, बोतलों और बरफ के थैलों, सरजरी के सामान इत्यादि, हजारों चीजों के बनाने में होता है। वर्तमान समय में अब तो सड़के भी रबर की बनने लगी हैं, जो पर्याप्त टिकाऊ सिद्ध हो रही है। रबर का व्यवसाय वर्तमान समय में दिनों-दिन बढ़ रहा है। थाईलैंड, इण्डोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन तथा श्रीलंका रबर के प्रमुख उत्पादक देश है। रबर के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है परन्तु घरेलु खपत अधिक होने के कारण यह रबर का आयात करता है। यही कारण है भारत सरकार ने रबर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत में रबर की खेती बड़े पैमाने पर करने की योजना चलायी जा रही है। आज हम आपको ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट से रबड़ की खेती के बारे में बताएंगे कि यदि आप इसकी खेती करना चाहते हैं तो कैसे कर सकते है।

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रबर बागान विकसित करने की योजना पर काम

उत्तर पूर्व के राज्यों में रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए दो लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर रबर बोर्ड रबर बागान विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है। रबड़ उत्पादन के लिए खेती को बढ़ावा की बागान योजना को विकसित करने से भारत के दक्षिणी राज्य केरल में स्थिति नर्सरी में जान आ गयी है, जो पहले मरणासन्न स्थिति में पहुंच गए थे। रबड़ बागान योजना के तहत देश के इन सात पूर्वोंत्तर राज्यों में रबड़ के बागान लगाने के लिए रबड़ के पौधे केरल से मंगाए जाएंगे। यही कारण है कि लगभग एक दशक बाद फिर से केरल में स्थित रबड़ नर्सरी में एक बार फिर से रौनक देखने को मिल रही है, क्योंकि अब इस योजना के तहत उनके पौधे की बिक्री बढ़ जाएगी। भारत में रबड़ की खेती केरल से ही शुरू हुई थी। जो कि वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक राज्य है। छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए रबड़ की खेती काफी फायदेमंद साबित होती है। 

रबड़ के पौधे के बारें में सामान्य जानकारी

रबड़ के वृक्ष भूमध्य रेखीय सदाबहार वनों में पाए जाते हैं, रबड़ का पेड़, जिसका वानस्पतिक नाम हैविया ब्राजीलिएन्सिस है। इसके दूध, जिसे लेटेक्स कहते हैं इसे रबड़ तैयार किया जाता हैं। सबसे पहले यह अमेजन बेसिन में जंगली रूप में उगता था, वहीं से यह इंग्लैण्ड निवासियों द्वारा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में ले जाया गया। कोलंबस ने सन 1493 ई. में वहाँ के आदिवासियों को रबर के बने गेदों से खेलते देखा था। जहां कोलंबस को ऐसा मालूम होता है कि दक्षिण पूर्व एशिया के आदिवासी भी रबर से परिचित थे और दक्षिण पूर्व एशिया के आदिवासी उससे टोकरियाँ, घड़े और इसी प्रकार की व्यवहार की अन्य चीजें तैयार करते थे। धीरे-धीरे रबर का प्रचार सारे संसार में हो गया और आज रबर आधुनिक सभ्यता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। 

रबड़ के पेड़ो से दोहरा लाभ

रबड़ की खेती मुख्यता दक्षिण भारत में की जाती हैं। करेल राज्य भारत का सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक है। रबड़ के उत्पादक में भारत विश्व में चौथा नंबर पर है। भारत में लगभग सात लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर रबड़ के बागान है। बेहतरीन उत्पादन वाले रबड़ के पेड़ों की उत्पादन क्षमता भी करीब 25 साल बाद कम होने लगती है। अंततः 25 साल बाद इन पेड़ो से लेटेक्स निकलना बंद हो जाता है। और अंततः वे गिर जाते हैं। उनके स्थान पर रबड़ के नये पेड़ों का रोपण किया जाता है। लेकिन, बड़े पैमाने पर नष्ट होने वाले इन रबड़ के पेड़ों की लकड़ी का उपयोग पैकिंग जैसे कुछेक कार्यों को छोड़कर अन्य किसी कार्यों में नहीं हो पाता। खराब गुणवत्ता के कारण इस लकड़ी से फर्नीचर नहीं बनाए जा सकते। लेकिन, वर्तमान समय में काष्ठ विज्ञान और इससे संबंधित प्रौद्योगिकी में हो रहे वैज्ञानिक सुधारों से फिंगर ज्वाइंटिंग तकनीक और संरक्षित अनुप्रयोग जैसी नयी तकनीकें विकसित हुई हैं, जिनकी मदद से रबड़ के पेड़ों के नये उपयोगों के बारे में पता चला है। रबड़वुड फर्नीचर का निर्माण इनमें से एक है। इन दिनों बाजार में खूबसूरत और कम कीमत वाले रबड़वुड फर्नीचर काफी प्रचलन में हैं। अब वैज्ञानिक सुधारों से रबड़ के पेड़ों में लेटेक्स उत्पादन क्षमता कम होने के बाद इन पेड़ों की लकड़ी का उपयोग अन्य कामों में जैसे रबड़वुड फर्नीचर निर्माण में होने लगा है। यही वजह है कि अब रबड़ के पेड़ों से दोहरा लाभ और आमदनी प्राप्त की जा सकती है।

रबड़ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, समय और मृदा

भारत में रबड़ का उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में, विशेषकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में होता है। रबड़ की खेती के लिए वार्षिक वर्षा न्यूनतम 200 सेंटीमीटर होनी चाहिए और 21 डिग्री सेंटीग्रेड से 35 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच तापमान के साथ उष्णार्द्र जलवायु होनी चाहिए। रबड़ की खेती के लिए सूर्य का प्रकाश और  4.5 से 6.0 अम्लीय पीएच उपलब्ध फॉस्फोरस की अत्यधिक कमी वाली गहरी दोमट, लाल एवं लेटेराइट मिट्टियां उपयुक्त मानी जाती हैं। रबड़ का रोपण सामान्यतः जून-जुलाई के महीने में होता है और इसके पौधे को समय-समय पर पर्याप्त मिश्रित उर्वरक की आवश्यकता होती है।

खेती के लिए रबड़ की उन्नत किस्में 

जैसा कि हम आपकों पहलें ही बता चुके हैं की भारत में रबड़ की खेती दक्षिणी भारत के केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में मुख्य रूप से होती है। रबड़ के उन्नत पौधें को दक्षिणी राज्य के केरल में स्थिति नर्सरी में विकसित किया जाता है। रबड़ की खेती के लिए भारत के अधिकांश भाग में इस नर्सरी द्वारा विकसित रबड़ के पौधों की किस्में का उपयोग किया जाता है। भारतीय रबड़ अनुसंधान संस्थान ने भारतीय हाइब्रिड रबड़ की कई उन्नत किस्में विकसित करने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। भारतीय रबड़ अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित रबड़ की उन्नत किस्में जैसे टीजीआईआर 1, आरआरआईआई 105, आरआरआईएम 600, पीबी 86, बीडी 5, बीडी 10, पीआर 17, जीटी 1, पीबी 28/59, पीबी 217, पीबी 235, आरआरआईएम 703, आरआरआईआई 5, पीसीके-1, 2 और पीबी 260 आदि रबड़ की उन्नत किस्में है जो अधिक रबड़ और लकड़ी उत्पादन करने के लिए विकसित की गई है।

रबड़ की खेती के लिए खेत की तैयारी एवं रोपाई कैसे करे?

रबड़ की खेती करने से पहले इसके पौधों की रोपाई के लिए उपयुक्त खेत की तैयारी करनी होती है। क्योंकि इसकी खेती के लिए इसके तैयार पौेधों की रोपाई गड्डो में की जाती है। इसलिए खेत में गड्डो को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी कर पाटा लगाकर खेत को समतल कर लिया जाता है। इसके बाद समतल खेत में 3 मीटर की दूरी रखते हुए एक फीट चौड़े और एक फीट गहरे गड्ढ़ों को तैयार कर लिया जाता है। यहां सभी गड्ढ़ों को कतारों में तैयार करे। इन गड्ढ़ों को तैयार करते समय उसमे रासायनिक और जैविक खाद को मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढ़ों में भर दिया जाता है। इसके साथ ही पौधरोपण के समय मिट्टी परिक्षण के अनुसार कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर जैविक खाद एवं रासायनिक उर्वरक जैसे पोटाश, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की उचित मात्रा का प्रयोग करें। इसके बाद पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई कर दे। बाद में भूमि में नमी बनाने हेतु समय-समय पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। रबड़ की खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए समय-समय पर खेत में पौधों के आसपास निराई-गुड़ाई करते रहें। 

रबड़ के पौधें से उत्पादन कैसे प्राप्त होता है?

रबड़ के पौधें रोपण के 5 वर्ष बाद रबड़ का पेड़ उत्पादन देना आरम्भ कर देता है। पॉच वर्ष के हो जाने पर पेड़ से रबरक्षीर (दूध जैसा) निकलना शुरू होता है। इसके लेटेक्स के नाम से जाना जाता है। यह रबरक्षीर रबड़ के पेड़ से लगभग 40 वर्षों तक निकलता रहता है। रबरक्षीर की पैदावार साल दर बढ़ती है, 14 साल बाद रबरक्षीर की मात्रा अत्याधिक सीमा पर पहुंच जाती है। एक एकड़ मेे लगभग 150 रबड़ के पेड़ लगाए जाते हैं। और उनसे 75 किलोग्राम से 300 किलोग्राम तक रबड़ प्राप्त किया जा सकता है। रबड़ के एक पेड़ से एक साल में 2.75 किलोग्राम तक रबर प्राप्त हो सकता है। 

लेटेक्स उत्पादन के लिए टेपिंग और प्रसंस्करण

रबड़ के पेड़ से प्राप्त रबरक्षीर को लेटेक्स कहते है यह दिखने में दूध की तरह तरल द्रव्य के रूप में होता है। रबरक्षीर (लेटेक्स) को रबड़ के पेड़ की छाल से टैपिंग द्वारा प्राप्त किया जाता है। लेटेक्स को प्राप्त करने के लिए रबड़ के पेड़ में चीरा लगाकर इसे प्राप्त करते हैं। लेटेक्स प्राप्त करने के लिए पेड़ की छाल को लेटेक्स के प्रवाह में वृद्धि करने के लिए कुंडलित रूप में काटा जाता है। पेड़ के नीचे एक जिंक या लोहे की एक टोंटी लगाई जाती है और टोंटी के नीचे लेटेक्स को एकत्रित करने के लिए एक नारियल का खपरा रखा जाता है। अधिकतम लेटेक्स प्राप्त करने के लिए टेपिंग को अधिक अंदर या गहरे तक लगाया जाता है। रबड़ पौधों से सुरक्षित लेटेक्स और लेटेक्स सांद्रण, शुष्क रिब्ड शीट रबड़, ड्राई क्रीप रबड़ तथा ड्राई सॉलिड-ब्लाक रबड़ प्राप्त की जाती है। दृव्य लेटेक्स के रूप में प्राप्त की गई फसल को इनमें से किसी रूप में संसाधित किया जा सकता है। लेकिन पेड़ लेस, शेल स्क्रेप तथा अर्थ स्क्रेप के रूप में प्राप्त की गई फसल को केबल क्रीप या सॉलिड ब्लॉक रबड़ में ही संसाधित किया जा सकता है। भारत में प्राकृतिक रबड़ के उत्पादन की मात्रा का शीट रूप में विपणन किया जाता है।

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