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काली मिर्च की खेती - जानें कौन-सी किस्मों से मिलेगी अच्छी पैदावार और होगा भारी मुनाफा

काली मिर्च की खेती -  जानें कौन-सी किस्मों से मिलेगी अच्छी पैदावार और होगा भारी मुनाफा
पोस्ट -05 जुलाई 2022 शेयर पोस्ट

जानें, आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर काली मिर्च की खेती कैसे होती हैं। 

यह तो हम सभी लोग जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां 70 प्रतिशत लोगों की आजीविका आज भी कृषि पर आधारित है। भारत दुनिया में कृषि उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत से लगभग सभी तरह के कृषि उत्पादों का निर्यात विश्व भर में किया जा रहा है। भारत मसाला उत्पादों के मामले में दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। देश में मसालों का वार्षिक उत्पादन 4.14 मिलियन टन है। भारत दुनिया में कई तरह के मसालों को उगाता है जैसे इलायची, लौंग, काली मिर्च, लाल मिर्च जैसे बहुत से मसाले हैं। सभी मसालों को एक साथ उगाने वाला सबसे बड़ा राज्य अगर देखें तो वो है आंध्र प्रदेश, उसके बाद केरल है। 

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भारत काली मिर्च, मिर्च, अदरक, इलायची, हल्दी आदि जैसे मसालों की प्रचुर किस्मों का उत्पादन करता है। भारत में सदियों से मसालों की खेती होती आ रही है। देश के अधिकतर किसान मसालों की खेती से भारी मुनाफा भी कमा रहे हैं। भारतीय मसालों में कुछ ऐसे मसाले हैं, जिनकी खेती खास क्षेत्रों में ही हो सकती है, लेकिन वैज्ञानिकों की मेहनत और रिसर्च का नतीजा है कि आज ऐसी किस्मों को विकसित किया गया है, जिनकी खेती अब देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रही है। इसकी तरह की एक मसाला फसल है काली मिर्च। भारतीय मसालों में काली मिर्च एक प्रमुख स्थान रखने वाली मसाला फसल है। कालीमिर्च की ज्यादातर खेती दक्षिण के राज्यों में होती है, लेकिन अब इसका क्षेत्र बढ़ गया है। जिन लोगों को कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफा हासिल करने के लिए कोई सरल खेती करने की इच्छा है, तो वह सदाबहार लता यानी काली मिर्च की खेती का विकल्प चुन सकते हैं और भारी मुनाफा कमा सकते हैं। यदि इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो काफी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट से आपको काली मिर्च की खेती से जुड़े कुछ वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी दी जा रही है। जिससे आपको काली मिर्च की खेती करने में लाभ मिलेगा।  

काली मिर्च का उत्पादन

भारतीय मसालों का स्वाद दुनियाभर में मशहूर है एवं भारतीय मसाले आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर माने जाते हैं।  भारत विश्व में काली मिर्च का उत्पादक, उपभोक्ता एवं निर्यातक देशों में प्रमुख है। भारत से प्रतिवर्ष 20 करोड़ रूपए की कालीमिर्च का निर्यात विदेशों को किया जाता है। विश्व में सबसे ज्यादा काली मिर्च का उत्पादन भारत में होता है और भारत में सर्वाधिक काली मिर्च का उत्पादक राज्य केरल है। मुख्य रूप से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में काली मिर्च की खेती जमकर की जाती है। महाराष्ट्र, कुर्ग, मलावर, कोचीन, त्रावणकोर, और असम के पहाड़ी इलाकों में भी काली मिर्च की खेती की जा रही है। आजकल छत्तीसगढ़ भी काली मिर्च की खेती के लिए हॉटस्पॉट बना हुआ है। काली मिर्च की खेती केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी चर्चित है। 

काली मिर्च के पाये जाने वाले गुण एवं उपयो

आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर काली मिर्च एक ऐसा मसाला है, जो न केवल खाने के स्वाद को बढ़ाने बल्कि शरीर को कई लाभ पहुंचाने में मददगार है। काली मिर्च का वैज्ञानिक नाम पाइपर निग्राम है। आयुर्वेद में काली मिर्च को औषधी के रूप में खूब इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कालीमिर्च की तासीर गर्म होती है। काली मिर्च में विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन सी और विटामिन बी6, थायमीन, नियासिन, सोडियम, पोटैशियम जैसे गुण पाए जाते हैं। काली मिर्च को इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। काली मिर्च में पाए जाने वाले पोषक तत्व सर्दी-खांसी और वायरल फ्लू जैसी समस्याओं से बचाने में मदद कर सकते हैं। काली मिर्च को इंफ्केशन के लिए भी गुणकारी माना जाता हैं। भारतीय भोजन में मसाले के रूप में इसका न्यानाधिक उपयोग सर्वत्र होता है। पाश्चात्य देशों में इसका विशिष्ट उपयोग विविध प्रकार के मांसों  में डिब्बाबंदी में, खाद्य पदार्थो के परीक्षण के लिए और मसाले के रूप में भी किया जाता है।

काली मिर्च की खेती से संबंधित जानकारी

काली मिर्च की तासीर गर्म होती है इसलिए ये सर्दियों के दिनों में सेहत के लिए काफी लाभकारी है। आयुर्वेदिक गुणों से युक्त काली मिर्च की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। काली मिर्ची की खेती झाड़ के रूप में विकसित की जाती है। काली मिर्च की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं। किसान भाई ट्रेनिंग लेने के बाद नर्सरी से लिए गए पौधों का रोपण कर आसानी से उत्पादन ले सकते हैं। बागवानी से जुड़े किसान भाई तो इसकी खेती से दोहरा मुनाफा कमा सकते हैं। क्योंकि इसके पौधे पेड़ के सहारे बढ़ते हैं। पौधा जब फसल देने के लिए तैयार हो जाता है, तो एक पेड़ से करीब 10 से 15 हजार  रूपए का मुनाफा लिया जा सकता है। कभी कभी ज्यादा बाजार भाव किसान भाईयों को और अधिक मुनाफा दे जाते हैं। काली मिर्च की खेती की खास बात यह है कि बिना किसी मेहनत के इसका उत्पादन बहुत ही अच्छा होता है। जो भी किसान काली मिर्च की खेती करने का मन बना रहे हैं उन्हें यह जानकर खुशी होगी कि भारत से हर साल बड़ी मात्रा में काली मिर्च का निर्यात किया जाता है। सही तरीके से खेती करने पर काली मिर्च का उत्पादन काफी अच्छा होता है। घाटे की गुंजाइश बिल्कुल ना के बराबर रहती है। 

काली मिर्च की खेती योग्य जलवायु एवं मिट्टी

काली मिर्च की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती के लिए लाल लैटेराइट मिट्टी और लाल मिट्टी दोनों ही सबसे उपयुक्त मिट्टी हैं। क्योंकि इस प्रकार की मिट्टी में ज्यादा पानी भरने पर पौधों की जड़ें गलने या खराब होने की संभावनाएं काफी कम होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की पी.एच. का मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए। काली मिर्च की खेती पर्याप्त वर्षा तथा आर्द्रता वाले आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। गरम और आर्द्र जलवायु इसकी खेती के लिए उत्तम है। इसकी खेती 20 डिग्री उत्तर और दक्षिण अक्षांश के दरमियान समुंद्र तट से 1500 मीटर तक की ऊंचाई पर सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसकी फसल न्यूनतम 10.0 डि़ग्री  सेल्सियस तथा उच्चतम 40.0 डि़ग्री सेल्सियस तापमान को सहन कर सकती है। जबकि इसकी खेती के लिए 23-32 डि़ग्री सेल्सियस के बीच औसत तापमान 28 डि़ग्री सेल्सियस तापमान अधिक उपयुक्त है। 

काली मिर्च की उन्नत प्रजातियां

भारत में काली मिर्च की कई उन्नत किस्में प्रचलन में हैं। भारत में काली मिर्च के 75 से अधिक प्रजातियों की खेती की जा रही है। जिनमें दक्षिण केरल की कोट्टनाडन, मध्य केरल की नरायकोडी, केरल की कारीमुंडा सबसे बढि़या किस्में हैं। इनके अलावा नीलमुंडी, बालनकोट्टा और कुतिरवल्ली किस्में भी बड़ी मात्रा में उगाई जाती हैं। ये सभी किस्में पुरानी परंपरागत किस्मों के रूप में  जानी जाती है। गुणवत्ता के आधार पर दक्षिण केरल की कोट्टनाडन सबसे अच्छी किस्म है। इस किस्म की काली मिर्च के अंदर अनिवार्य तेल की मात्रा 17.8 प्रतिशत तक पाई जाती है। इसके बाद काली मिर्च की एम्पियरियन किस्म के अंदर अनिवार्य तेल की मात्रा 15.7 प्रतिशत पायी जाती है। इनके अलावा काली मिर्च की अब कई नई किस्मों को संकरण के माध्यम से सतह उन्नत किस्मों को खेती के लिए विकसित किया गया है। जिनमें कई किस्में शामिल है। पन्न्युर -1, पन्न्युर-3 और पन्न्युर-8, पन्न्युर अनुसन्धान केन्द्र (केरल कृषि विश्वविधयालय) द्वारा विकसित संकर प्रजातियां हैं। जबकि आईआईएसआर-गिरिमुंडा तथा आईआईएसआर-मलबार एक्सल, भा.कृ.अनु.प.- भारतीय मसाला फसल अनुसन्धान संस्थान, कोषिक्कोड (केरल) द्वारा विकसित दो संकर प्रजातियां हैं।

काली मिर्च की रोपाई का सही समय

काली मिर्च को कब लगा सकते हैं, किस महीने में इसकी फसल लगाएं तो अच्छा होगा तो इसके लिए वैज्ञानिक पद्धति के हिसाब से आप सितंबर माह के बीच में लगाएं तो काफी अच्छा होगा। काली मिर्च को लगाते समय थोड़ी बहुत सिंचाई भी करें जिससे इसके फसल को अंकुरण होने में मदद मिलती है। काली मिर्च को कलम विधि से काटकर भी लगा सकते हैं या रोपित कर सकते हैं।  

रोपण के लिए पौधा तैयार करना

काली मिर्च के बीज को सीधा खेत में नही लगा सकते, क्योंकि इसके बीजों को खेत में अंकुरित होने में काफी समय लगता हैं। इसके बीज अंकुरण होने के लिए एक से डेढ़ महीने का भी टाइम लग जाता हैं। इसलिए इसके खेत की रोपाई बीजों द्वारा न करके पहले पौध तैयार किए जाते हैं। जिसके बाद इन पौधों खेतों में लगाया जाता हैं। इसके पौधे तैयार करने के लिए कई विधि उपयोग में ली जाती हैं। साधारण विधि (स्कोरेफिकेशन), परम्परागत विधि, संशोधन प्रवर्धन विधि, ट्रेंच विधि, सर्पेन्टाइन विधि, मृदा रहित पोंटिग मिश्रण आदि विधि के माध्यम से आप इसके पौधे तैयार कर सकते है। इसके अलावा आप इसके तैयार पौधें सरकारी नर्सरी से खरीद कर भी खेत में रोपाई कर सकते हैं। इससे आपका पैसा और समय दोनों ही बचेगा।

रोपण

काली मिर्च के तैयार पौधों की खेत में रोपाई सितंबर माह में करना उचित माना जाता हैं। काली मिर्च की पौध शुरुआती समय में ज्यादा धूप को सहन नहीं कर सकते हैं। पौधे को खेत में लगाने के बाद इन्हें दो साल तक धूप से बचाकर रखना होता है। ऐसे में पौधों को धूप से बचाने के लिए आप किसी बड़े तिरपाल का उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा आप इसे मानसून के शुरु होने के साथ भी लगा सकते हैं। उस समय इसे सहायक पौधों के पास उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। काली मिर्च के पौधों का रोपण करते समय यह ध्यान रखें कि हर पौधे के बीच 3 मीटर से ज्यादा की दूरी अवश्य रखनी चाहिए और इसी के साथ इसके पौधे का रोपाण ढलान वाली भूमि पर लगाने के लिए चयन करें। बांस के अलावा इसका रोपण हम सहायक पौधा लगाकर भी कर सकते हैं। काली मिर्च का पौधा बेल के रूप में बढ़ता है। इस कारण इसकी रुपाई से पहले सहायक पौधों को तीन तीन मीटर की दूरी पर लगा दें और जब सहायक पौधा बड़ा होने लगे तब काली मिर्च के पौधे को सहायक पौधे के पास लगा दें। मानसून शुरू होते ही सहायक वृक्ष के सहारे उत्तर दिशा में 50 से.मी. गहरे गढ्डे खोद लेते हैं। इन गढ्डों की आपस में दूरी 30 से.मी. होनी चाहिए। इन गढ़डों में मिट्टी तथा खाद को 5 कि.ग्राम प्रति गढ्डे की दर से भरना चाहिए। रोपण के समय नीम केक (1 कि. ग्राम), ट्राईकोडरमा हरजियानम (50 ग्राम) तथा 150 रोक फासफेट प्रति गढ्डा की दर से डालना चाहिए। वर्षा होते ही 2-3 काली मिर्च के पौधे को गड्ढ़े में अलग-अलग स्थान पर रोपण करते हैं। 

खाद और उर्वरक

काली मिर्च के पौधे की अच्छी वृद्धि एवं अच्छी पैदावार के लिए खाद और उर्वरक को पर्याप्त मात्रा डालना चाहिए। जैविक खाद के रूप में गोबर या कम्पोस्ट को 10 किलोग्राम प्रति पौधा तथा नीम केक को 1 कि. ग्राम पौधा की दर से मई माह में डालना चाहिए। अधिक अम्लीय मृदा में एक वर्ष के अंतराल पर 500 ग्राम प्रति पौधा की दर से चुना या डोलामाइट का उपयोग अप्रैल-मई महीने में कर सकते हैं। तीन वर्ष अथवा उसके उपरांत उर्वरक की संस्तुत मात्रा एन.पी.के. 50ः50ः150 ग्राम प्रति पौधा प्रति वर्ष सामान्य तौर पर कर सकते हैं। उपरोक्त मात्रा का एक तिहाई भाग प्रथम वर्ष तथा दो तिहाई भाग द्वितीय वर्ष में डालना चाहिए। तीन वर्ष तथा उसके उपरांत उपरोक्त मात्रा का दो बार, प्रथम मई-जून माह में तथा दूसरी बार अगस्त-सितंबर में करना चाहिए। मृदा में उर्वरकता की आवश्यकतानुसार उर्वरकों की मात्रा संस्तुत की गयी है। उर्वरकों को पौधे के 30 से.मी. की दूरी पर डालकर उसको मिट्टी द्वारा ढक देते हैं।काली मिर्च के पौधों की जड़ों को उर्वरकों से दूर रखना चाहिए। जब जैव उर्वरकों जैसे, अजोस्पिरिल्लस (50 ग्राम/पौधा) का उपयोग करते हैं, तब नाइट्रोजन को संस्तुत मात्रा से आधी डालना चाहिये। मृदा में जिंक या मैग्नेशियम की कमी होने पर क्रमशः जिंक सल्फेट (0.25प्रतिशत) वर्ष में दो बार मई से जून तथा सितम्बर से अक्टूबर माह में पत्तों पर छिड़काव तथा मैग्नीशियम सल्फेट को 200 ग्राम प्रति पौधा की दर से मृदा उपचारित करना चाहिए। 

ग्रीष्म काल सिंचाई

काली मिर्च के पौधों की रोपाई सितंबर माह में की जाती है, इस समय मौसम नम होता है तथा बारिश का भी होता है। इस समय खेत की नमी के हिसाब से इसकी सिंचाई करें। इसकी पहली सिंचाई पौधे के रोपण के साथ ही कर देनी चाहिए। जिसके बाद इसे लगातार पानी देते रहना चाहिए। जिससे पौधे में नमी बनी रहे। अगर पौधे को कम पानी देते हैं तो पौधे के पत्ते पीले पड़कर झड़ने लग जाते हैं। ग्रीष्म काल में 15 दिन के अन्तराल पर काली मिर्च के पौधों की सिंचाई करने से असिंचित पौधों की तुलना में 90 से 100 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ-साथ स्पाईक की लम्बाई भी सिंचाई वाले पौधों में असिंचित पौधों की तुलना में अधिक होती है।

काली मिर्च के पौधों को हानि पहुंचाने वाले रोग एवं प्रबंधन

फाइटोफथोरा रोग : इस रोग को पौधे के पत्तों, तना तथा जड़ों में देखा जा सकता है। इस रोग से बचाव के लिए बोर्डियों मिश्रण (1 प्रतिशत) का छिड़काव करें।

एन्थ्राकनोज रोग : यह रोग एक कवक द्वारा होता है। इस संक्रमण में पत्तों पर भूरे-पीले तथा काले-भूरे रंग की अनियमित चित्तियाँ पड़ जाती हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए 1 प्रतिशत बोर्डियों मिश्रण या कारबेन्डाजिम (0.1प्रतिशत) का छिड़काव करें।

काली मिर्च के पौधों में दो प्रमुख सूत्रकृमि जड़ गाँठ सूत्र कृमि तथा बरोयंग सूत्रकृमि हानि पहुंचाते हैं। यह सूत्रकृमि मुख्यतः जड़ों को हानि पहुंचाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए पोटिंग मिश्रण को सौरिकरण करके उसमे पोकोनिया क्लैडोस्पोरिया या ट्राईकोडरमा हरजियानम 1 से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से डालना चाहिए। पौलिथिन बैग में पौधों के तीन ओर 2-3 से.मी गहरे गढ़डे् करके उसमें फोरेट (10जी)’ से ग्राम/पौधा अथवा कारवोफयुरान (3 जी)’ से 3 ग्राम प्रति पौधे की दर से उपचारित करना चाहिए। यह अतिआवश्यक है कि सूत्रकृमि नाशक से उपचारित करने के बाद मृदा में आवश्यक आद्रता बनाये रखने के लिए इसकी इसकी संचाई करना आवश्यक है। अगर पौधशाला में पौधों को लम्बे समय तक रखते हैं, तब 45 दिनों के अन्तराल पर उपरोक्त निमेटीसाईड (सूत्रकृमिनाशक) का उपयोग करना चाहिए।

तुड़ाई एवं पैदावार

काली मिर्च से ही सफेद मिर्च बनाई जाती है। इस कारण इसकी तुड़ाई टाइम पर करनी चाहिए। काली मिर्च के पौधे पर फूल आने के बाद इनको पूरी तरह से तैयार होने में 6 से 8 महीने का टाइम लगता हैं। सफेद और काली दोनों ही मिर्च एक पौधे पर लगती हैं। लेकिन इन्हें तोड़ने के बाद काला और सफेद रूप दिया जाता हैं। सफेद मिर्च बनाने के लिए इसके फल को पानी में डालकर इनका उपरी छिलका उतार लिया जाता है। फिर उसे धूप में तीन से चार दिन तक सुखाया जाता है। जिससे इनका रंग सफेद दिखाई देने लगता है। काली मिर्च के लिए इसके फल को पूरी तरह से पकने दिया जाता हैं। जब फल का रंग हरे रंग से बदलकर चमकीला नारंगी हो जाता है तो फल पूरी तरह से पक जाता है। जिसके बाद उसे पौधे से अलग कर लिया जाता है। काली मिर्च के फल गुच्छों में पायें जाते हैं, जिन्हें बाद में तोड़कर अलग अलग किया जाता है। अलग किया हुए फलों को गर्म पानी में एक मिनट तक डालकर रखा जाता है. जिसके बाद उसे सूखने के लिए धूप में डाल दिया जाता है। काली मिर्च के प्रत्येक पौधे से साल में 4 से 6 किलोग्राम तक पैदावार प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती में एक हेक्टेयर में 1100 से ज्यादा पौधे लगाये जा सकते हैं। ऐसे में एक हेक्टेयर से किसान भाइयों को 40 से 60 किवंटल तक पैदावार हो सकती हैं। 

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