मूली की खेती : कृषि में बागवानी फसलों का चलन बढ़ता जा रहा है। पारंपरिक फसलों के साथ अब किसान सब्जी, फल, औषधी, मसालों की भी अंतरवर्ती खेती कर अतिरिक्त आमदनी कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में सब्जियों के बुवाई क्षेत्र में विस्तार भी देखने को मिला है। किसानों द्वारा बागवानी में विभिन्न प्रकार की सब्जी किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा भी कमाया जा रहा है। इन्हीं बागवानी सब्जी फसलों में मूली भी शामिल है। वैसे तो मूली सर्दियों के मौसम की सब्जी है, जिसकी खेती मुख्य रूप से रबी के सीजन में की जाती है। लेकिन बाजार मांग को देखते हुए अब किसान इसकी अलग-अलग किस्मों की खेती 12 महीने कर सकते हैं। मूली की खेती से अभी भी बहुत ही कम लागत खर्च में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। आईए, मूली की खेती करने का सही तरीका और इसकी खेती से होने वाली इनकम के बारे में विस्तार से जानते हैं।
किसान भाई अभी मूली की अलग-अलग विभिन्न किस्मों की अगेती खेती करके अच्छी आमदनी ले सकते हैं। मूली की अलग-अलग किस्मों की अगेती खेती के लिए सबसे पहले किसान भाई ऐसी भूमि का चयन करें जिसमें जीवाश्म की मात्रा अच्छी हो और जल भराव नहीं हो तथा भूमि ऊंचाई पर हो। इस प्रकार की भूमि का चयन किसान भाई मूली की खेती के लिए कर लें। मूली एक मूल (जड़) वर्गीय सब्जी है, जो जड़ वाली सब्जियों में प्रमुख स्थान रखती है। यह सफेद रंग में मिलती है। इसकी खेती वैसे तो संपूर्ण भारत में होती है। लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम और पंजाब जैसे राज्यों में मूली को व्यापारिक तौर पर मुख्य रुप से उगाया जाता है। यह कम लागत में जल्दी तैयार होने वाली फसल है। बुवाई के 50 से 55 दिनों के भीतर मूली की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। अगर मूली की खेती वैज्ञानिक तरीके से सही प्रकार की जाए तो इसकी खेती से अधिक पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
आमतौर पर मूली की खेती सब्जी के रूप में की जाती है, लेकिन इसकी मूल (जड़) का उपयोग घरों, होटलों, रेस्टोरेंट और ढाबों में कच्चे सलाद, सब्जी और अचार बनाने के लिए किया जाता है। इसमें विटामिन बी 6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीशियम और रिबोफलेविन की मात्रा भरपूर पाया जाता है। साथ ही मूली में एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटैशियम की मात्रा भी अधिक पाई जाती है। इसके सेवन से कब्ज, गैस और पथरी जैसी बीमारी में काफी राहत मिलती है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्पूर्ण मानी जाती है, जिसकी वजह से बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
आमतौर पर मूली की खेती ठंड के मौसम में की जाती है, लेकिन इसकी कई उन्नतशील किस्में विकसित होने से अब पूरे साल इसकी खेती की जा सकती है। मूली की खेती में मूली की बुवाई सितंबर से जनवरी महीने के बीच करते हैं। वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों में मूली की बुवाई अगस्त महीने तक की जाती है। इसकी खेती सामान्य तापमान में आसानी से की जा सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए इसकी खेती को ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी फसल के लिए 10 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। यदि मूली की खेती अधिक तापमान में की जाती है तो इसकी जड़े (मूल) ज्यादा कड़वी हो जाती है। हालांकि, अब किसान पूरे साल मूली की खेती करते हैं।
आमतौर पर मूली की खेती सभी प्रकार की भूमि पर आसानी से की जा सकती है, लेकिन इसकी खेती से अच्छा उत्पादन लेने के लिए रेतीली दोमट मिट्टी वाली भूमि का ही चयन करें। इस प्रकार की भूमि में जीवाश्म की मात्रा अधिक होनी चाहिए तथा भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 के आसपास होना चाहिए। मूली के खेती के लिए गहरी जुताई की जरूरत होती है। इसलिए पहले मिट्टी पलटने वाले प्लाउ से खेत की जुताई करें। इसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से 2 से 3 बार खेत की गहरी जुताई करें। इसके बाद खेत में 25 से 30 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर डालकर खेत से जुताई करते हुए भूमि को समतल बना लें। साथ ही 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 से 20 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 से 25 किलोग्राम पोटाश की मात्रा भी भूमि तैयार करते समय खेत में दें। वहीं, नाइट्रोजन शेष मात्रा का उपयोग लगभग 2 से 3 सप्ताह बाद मूली पर मिट्टी चढ़ाते समय करें।
मूली की अगेती खेती के लिए मूली की किस्मों का चयन करते हुए किसान भाईयों का कई सावधानियों का बरतनी चाहिए, जिसमें जलवायु, भूमि और जल में उपस्थित पोषक तत्वों का ध्यान रखते हुए किस्मों का चयन करना चाहिए। आमतौर पर अब बाजार में मूली की कई उन्नतशील किस्में मौजूद है, जो इस प्रकार है- पूसा हिमानी (40 से 70 दिन पैदावार अवधि), पंजाब पसंद (45-50 दिन) पूसा चेतकी, (45-50 दिन), पंजाब सफेद मूली -2,जापानी व्हाइट (55-60 दिन) मूली की किस्म का चयन कर सकते है। इसके अलावा, किसान भाई जापानी व्हाइट, हिसार मूली-1, कल्याणपुर-1, पूसा रेशमी, पूसा देसी, गणेश सिंथेटिक, काशी हंस और काशी श्वेता है। काशी श्वेता 30 से 35 दिनों में तैयार होती है और 450 क्विंटल प्रति एकड़ इसकी उत्पादन क्षमता है।
मूली की खेती में 4 से 5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीजों की आवश्यकता होती है। इसके बीजों को खेत में बाने से पहले 5 से 10 मि.ली. तरल कॉन्सोर्टिया प्रति किलो की दर से उपचारित करें। मूली के बीजों की बुवाई समतल क्यारियों में या डोलियों पर की जाती है। मेड़ों पर मूली के बीजों की बुवाई 30 से 45 सें.मी की दूरी रखते हुए करें। वहीं बीजों को 1 से 1.5 सें.मी गहराई में बोये। इसके अलावा, मूली के एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच 6 से 7.5 सें.मी की दूरी रखें। ध्यान रहे कि मेड़ों पर बीजों की बुवाई करते समय पहले मेड़ों की चोटी पर 3 सें.मी की गहरी नाली जरुर बना लें।
मूली के खेत की सिंचाई - मूली की पहली सिंचाई बीज बोने के तुरंत बाद कर दी जाती हैं। इसके बाद खेत में नमी बनाये रखने के लिए सप्ताह में 1 से 2 बार सिंचाई करें। इसके अलावा, जब इसके बीज भूमि से बाहर निकल आये तब खेत की सप्ताह में एक बार सिंचाई जरूर करें। सर्दियों के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें। वहीं, गर्मी में 5 से 6 दिनों के बाद सिंचाई करें। इसके बाद जब पौधे की जड़े पूरी तरह से लंबी हो जाये, तो सिंचाई की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए।
मूली की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगने का खतरा अधिक होता है। मूली में अधिकतर व्हाईट रस्ट, सरकोस्पोरा कैरोटी, पीला रोग, अल्टरनेरिया पर्ण, अंगमारी जैसे रोग लगते हैं। इनके रोग से मूली फसल को उपचारित करने के लिए फफूंद नाशक दवा डाईथेन एम 45 व जेड 78 का 0.2 प्रतिशत का घोल से खड़ी फसलों पर छिड़काव करें। वहीं, इसके खेत को खरपतवार मुक्त रखें। खरपतवार पर नियंत्रण के लिए खेत की जुताई के समय ही खरपतवार नियंत्रण दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है।
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