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मूंग की खेती : जाने मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक व प्रमुख किस्में

मूंग की खेती : जाने मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक व प्रमुख किस्में
पोस्ट -07 दिसम्बर 2022 शेयर पोस्ट

मूंग (बिगना रेडिएटा) की खेती : जानें मूंग उत्पादन का सही तरीका, ऐसे करें खेती

मूंग की खेती (Moong cultivation) : आज के दौर में किसान खेती से कम समय, लागत और हर प्रकार के मौसम में अच्छा मुनाफा प्राप्त करने के लिए विभिन्न फसलों की खेती कर रहा है। जिनमें मूंग भी एक ऐसी ही फसल है। इसे कम लागत, समय और हर प्रकार के मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है। भारत में मूंग की खेती खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में होती है। मूँग दालों में एक प्रमुख फसल है। इसका वानस्पतिक नाम बिगना रेडिएटा है। यह लेग्यूमिनेसी कुल का पौधा हैं तथा इसका जन्म स्थान भारत है। मूंग भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मूंग खेत की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है। क्योंकि इसकी जड़ में नाइट्रोजन की मात्रा पाई जाती है। मूंग जैसी दलहनी फसलों को बोने से खेत में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती हैं, जिससे दूसरी फसलों से भी बढि़या उत्पादन मिलता है। यह खेत में हरी खाद का काम करती है। जिससे की मृदा में उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। यदि इसकी खेती सही तकनीक और सही विधि से कि जाए तो इसकी खेती 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक लिया जा सकता है। जिससे अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है। ट्रैक्टरगुरु के इस लेख के माध्यम से हम आपको मूंग की खेती का सही तरीका एवं इसकी खेती से होने वाले लाभ के बारे में जानकारी देगे। इस जानकारी से आपको इसकी खेती करने में आसानी होगी।

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मूंग का विवरण

दलहनी फसलों में मूंग का अहम स्थान है। पोषक तत्वों के लिहाज से यह बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। इसमें प्रोटीन के साथ-साथ रेशे एवं लौह तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जिनमें 25 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहायड्रेट, 13 प्रतिशत फैट (वसा) तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी होता है। मूंग शक्ति-वर्द्धक होती है। इसके सेवन से बुखार/ज्वर और कब्ज के पीडि़तों को काफी लाभ होता है। मूंग दाल का उपयोग से शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों की कमी पूरी होती है। अंकुरित मूंग में केल्शियम, आयरन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन जैसे पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी हो जाती है। 

मूंग उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु

मूंग जल्दी पकने वाली एवं उच्च तापमान को सहन करने वाली फसल है। इसकी खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में सफलतापूर्वक कर सकते है। जिन क्षेत्रों में 60 से 75 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है, मूंग की खेती वहां के लिए उपयुक्त होती है। मूंग की बुवाई जुलाई महीने के अंत तक की जा सकती है। इसकी खेती के लिए 25 से 35 डिग्री का तापमान उपयुक्त होता हैं। यह इससे भी अधिक का तापमान आसानी से सहन कर सकती है। इसकी खेती के लिए दोमट, मटियार भूमि समुचित जल निकास वाली, जिसका पीएच मान 7 से 8 हो, ऐसी भूमि इसकी खेती के लिए उत्तम होती है। मूंग की फसल के लिए ज्यादा बारिश नुकसानदायक होती है।

मूंग की अधिक उत्पादन देने वाली प्रमुख किस्में

कृषि वैज्ञानिकों ने मूंग की अधिक पैदावार के लिए इसकी जल्दी पकने वाली एवं उच्च तापमान को सहन करने वाली कई प्रजातियों को विकसित किया है। आप अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार इन किस्मों का चयन कर सकते है, जो इस प्रकार है।  आर एम जी-62, आर एम जी-268, एस एम एल-668, पूसा वैसाखी, जवाहर 45, के-851, पूसा 105, पीडीएम-44, एमएल -131, जवाहर मूंग 721, पीएस -16, एचयूएम-1, किस्म टार्म 1, टीजेएम -3 आदि मूंग की अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में है। इसके इलावा आप मूंग की इन किस्मों की भी बुवाई कर सकते है। जैसे मोहिनी, पन्त मूंग 1, एमएल 1, वर्षा, सुनैना, कृष्ण 11, शक्तिवर्धकः विराट गोल्ड, अभय, एसव्हीएम 98, एसव्हीएम 88, एसव्हीएम 66, अमृत और पन्त मूंग 3 आदि। मूंग की ये किस्में पीला मोजैक वायरस रोग के प्रति सहनशील, उपज क्षमता 8 से 15 क्विंटल/हैक्टर और फसल अवधि 60 से 90 दिनों की है।

मूंग की बुआई के लिए भूमि की तैयारी

मूंग की खेती से अच्छी गुणवत्ता के साथ अधिक पैदावार के लिए इसके खेत की बुवाई के लिए पहले खेत को उपचारित तरीके से तैयार करना चाहिए। इसके लिए बुवाई से पहले खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दीमक से फसल की सुरक्षा के लिए क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालकर दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभरा बना लेना चहिए। आखिरी जुताई में लेवलर लगाकर खेत को समतल करना चाहिए।

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

अधिक पैदावार के लिए बुवाई से पहले बीज की मात्रा और बीजोपचार का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। और स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाले उन्नत बीजों की बुवाई करनी चाहिए। मूंग की खेती के लिए बीज की मात्रा 15 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर लगता है। जायद में बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब इस्तेमाल करें। एवं कार्बेन्डाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा, 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए और बुवाई कर देनी चाहिए।

मूंग की बुआई का तरीका

मूंग की बुवाई सीडड्रिल की सहायता से कतार विधि में ज्यादा उपयुक्त होती है। इसमें पौधे से पौधे की दूरी समान होती है। और अंकुरण भी अच्छा होता है। सीडड्रिल की सहायता से कतारों के बीच की दूरी 30 से 35 सेमी रखते हुए 3- 5 सेमी गहराई पर बीज बोना चाहिए। वहीं, पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेमी की दूरी को रखते हुए बुवाई करें। ध्यान रहे मूंग के बीज उत्पादन का प्रक्षेत्र किसी दूसरी प्रजाति के मूंग के प्रक्षेत्र से 3 मीटर दूर होना चाहिए।

मूंग की फसल की देख-भाल कैसे करें?

पोषक तत्व (उर्वरकों) का प्रबंधन- मूंग की फसल में 15 से 20 किलो नत्रजन प्रति हेक्टेयर, 40 से 60 किलो स्फुर प्रति हेक्टेयर की दर से बीज को बोते समय इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं, 20  से 30 किलो पोटाश एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। ध्यान रहे इन सभी उर्वरकों को बुआई के समय डालना चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन- मूंग की फसल को खाद एवं सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है।  लेकिन जायद मौसम में हल्की भूमि में 4 से 5 बार सिंचाई एवं भारी भूमि में 2 से 3 बार सिंचाई की जरूर पड़ती है। इसकी खेती में फव्वारा या रेनगन सिंचाई विधि का भी इस्तेमाल कर सकते है। शाखायें बनते समय तथा दाना भरते समय भूमि में नमी पर्याप्त रहे इसका विशेष ध्यान रखे।

निराई गुडाई- मूंग की फसल में पहली सिंचाई के पश्चात् हस्तचालित या हाथ से निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकालें। दूसरी निराई फसल में आवश्यकतानुसार की जा सकती है। इसके अलावा बुवाई के एक या दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प) 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। वहीं इमेंजीथाइपर 750 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर के दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव भी कर सकते है।

रोग प्रबंधन- मूंग में फफूंद जनित रोगों में चूर्णी कवक, मैक्रोफोमिना झुलसन, सरकोस्पोरा पर्ण दाग तथा एन्थ्रेक्नोज प्रमुख हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिये बुआई के 30 दिन बाद फसल पर कार्बेन्डाजिम दवा की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद छिड़काव दोबारा कर सकते हैं।

इसके अलावा सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिये इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली या डाइमिथिएट की 400 मिली प्रति हेक्टेयर मात्रा 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें और 12-15 दिन में छिड़काव दोहरायें। 
ऐसे करें कीट प्रबंधन।

मूंग की फसल में भेदक कीटों में पिस्सू भृंग, फली भेदक कीट तथा पत्ती मोड़क कीट प्रमुख हैं जिनके नियंत्रण के लिये प्रोफेनोफॉस की 1 लीटर या क्लोरेन्ट्रानिलिट्रोल की 500 मिली या स्पाइनोसैड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करें।

Faq 

Que 1. मूंग की फसल कितने दिन में तैयार होती है?

Ans. मूंग की फसल 60 से 90 दिन में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

Que 2. मूंग की खेती में कौन सा खाद डालें?

Ans. मूंग की बुवाई से पहले 15 से 20 किलो नत्रजन, 40  से 60 किलो स्फुर, 20  से 30 किलो पोटाश और 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें।

Que 3. मूंग की फसल में कितना पानी देना चाहिए?

Ans. मूंग की फसल को सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। हल्की भूमि में 4 से 5 बार एवं भारी भूमि में 2 से 3 बार सिंचाई की जरूर पड़ती है।

Que 4. मूंग की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?

Ans. मूंग की सबसे अच्छी किस्म एस एम एल 668 है।

Que 5. मूंग की खेती करने में कितनी लागत आती है?

Ans. मूंग की खेती करने में लगभग 20 से 25 हजार रुपए तका खर्च प्रति हेक्टेयर आ सकता है।

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