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अखरोट की खेती से होगा भारी मुनाफा, जानें खेती की सम्पूर्ण जानकारी 

अखरोट की खेती से होगा भारी मुनाफा, जानें खेती की सम्पूर्ण जानकारी 
पोस्ट -13 अगस्त 2022 शेयर पोस्ट

इस शानदार विधि से करें अखरोट की खेती, आय बढ़ाने में मददगार होगी साबित

केन्द्र और राज्य सरकारें कृषि क्षेत्र में अब बागवानी फसलों पर ध्यान दे रही है। बागवानी फसलों में खासतौर पर फलों की खेती पर ध्यान केन्द्रीत कर रही है। बागवानी फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय बागवानी मिशन को शुरू किया हुआ है। सरकार द्वारा किसानों को राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फलों एवं सब्जियों की खेती करने पर आर्थिक मदद देती है। वर्तमान समय में किसान बागवानी फसलों की खेती कर बढि़या मुनाफा कमा रहें है। भारत के कई हिस्सों में बागवानी फसलों के अंतर्गत डाईफ्रूट की खेती करके अच्छा-खासा मुनाफा भी अर्जित कर रहे। डाईफ्रूट की खेती में हम जिस फल की खेती के बारें में बात कर रहे है वह अखरोट है। अखरोट की खेती को बगवानी की श्रेणी में रखा गया है, जो कि किसानों की आय को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होती है। अखरोट की मांग भारतीय बजारों से लेकर अंतराष्ट्रीय बाजार में भी काफी बड़े पैमाने पर रहती है। हमारे देश में अखरोट का इस्तेमाल मिठाईयां बनाने से लेकर दवाईयां बनाने तक में किया जाता है। आयुर्वेद में इसे काफी महत्त्व दिया गया है। अखरोट की खेती मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। लेकिन अब इसकी खेती भारत के कई राज्यों में होने लगी है। यदि सही तरीके और उन्नत किस्मों का चयन कर इसकी खेती की जाए तो किसान भाईे लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं।  ट्रैक्टरगुरू के इस लेख में अखरोट की खेती करने से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी दी जा रही है, जिसमें अखरोट की बुवाई से लेकर उसकी देखभाल संबंधित सभी जानकारी सम्मलित है। 

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अखरोट के बारें में

अखरोट मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी हिमालय का फल है और इसके पौधे समुद्रतल से 1200 से 2150 मीटर की ऊंचाई तक उगते हैं। अखरोट का वानस्पतिक नाम जग्लान्स निग्रा है। इसे अंग्रेजी में (Walnut) कहते हैं। इसका पेड़ बहुत सुंदन और सुगंधित होता है। अखरोट की छाल का रंग काला होता है। अखरोट की खेती या बागवानी भारत देश में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। वर्तमान में अखरोट की खेती जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल और अरुणाचल प्रदेश में होती है। अखरोट का प्रमुख उत्पादन जम्मू और कश्मीर में मुख्य रूप से कि जाती है। 

अखरोट में पाए जाने वाले पोषक तत्व

अखरोट की खेती से मुनाफा कमाने के साथ-साथ यह हमारे स्वस्थ के लिए काफी लाभदायक है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स, फाईबर, कैलोरी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं। यह शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है। अखरोट की गिरी में 14.8 ग्राम प्रोटीन, 64 ग्राम वसा, 15.80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.1 ग्राम रेशा, 1.9 ग्राम राख, 99 मिलीग्राम कैल्शियम, 380 मिलीग्राम फासफोरस, 450 मिलीग्राम पोटैशियम प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। आधी मुट्ठी अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा होती हैं, 9 ग्राम प्रोटीन होता है, 39 ग्राम वसा होती है और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। इसमें विटामिन ई और बी 6, कैल्शियम और मिनरल भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं।  

अखरोट की खेती के बारें में विस्तार से जानकारी 

किसान अखरोट की खेती अकेले या अमरूद, आम व नींबू के पेड़ों के बीच खाली जगह पर भी कर सकते हैं। अखरोट लगाने के 4़ वर्ष बाद फल मिलने लगते हैं। कम समय, कम क्षेत्र, कम लागत में अधिक पैदावार व अधिक आय प्राप्त होने के कारण पिछले कुछ सालों में किसानों का रुझान अखरोट की खेती की तरफ बढ़ा है। 

अखरोट की खेती के लिए उचित जल निकास वाली जीवांश से भरपूर दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है। अखरोट खेती के लिए न ज्यादा गर्म न ज्यादा ठंडी दोनों ही जलवायु इसकी खेती के उपयोगी नहीं होते है। इसके अलावा संयमी जलवायु वाले प्रदेशो को अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसलिए इसकी खेती को सामान्य जलवायु वाले क्षेत्रों में करना चाहिए। इसकी खेती के लिए -2 से लेकर 4 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है। इसके लिए वार्षिक रूप से आवश्यक बारिश 800 मिमी है। अखरोट की पौध नर्सरी में रोपाई से लगभग एक साल पहले मई और जून माह में तैयार की जाती हैं। 

अखरोट के पौध रोपण का उचित समय दिसम्बर से मार्च तक है, परन्तु दिसम्बर महीना अधिक उपयुक्त है। अखरोट के पौधरोपण की दूरी गड्ढों का रेखांकन अखरोट की किस्मों के बढ़वार के स्वभाव के अनुसार 10 से 12 मीटर की दूरी पर करना चाहिए। पूसा अखरोट, पूसा खोड़, गोबिंद, काश्मीर बडिड, यूरेका, प्लेसैन्टिया, विलसन, फ्रेन्क्वेट, प्रताप, सोलडिंग सलैक्शन व कोटखाई सलैक्शन आदि मुख्य हैं। इनका किस्मों का उपयोग व्यवसायिक बागवानी केे लिए किया जाता है। वर्तमान में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में मोटे छिलके की बजाय कागजी अखरोट की खेती को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन ने एक योजना बनाई है जिसके तहत जिले में अखरोट के 4000 पौधे लगाए जाएंगे। कागजी अखरोट के पेड़ पांच वर्ष में फल देने लायक हो जाते हैं, साथ ही अखरोट की दूसरी किस्मों के बजाय ज्यादा फल देते हैं।

अखरोट की खेती में इसके पौधो की रोपाई के लिए पहले सर्दियों के दौरान दिसंबर से मार्च माह में दो पांच मीटर की दूरी पर दो फीट चौड़ा और एक से डेढ फीट गहरे गड्ढे खोदकर उनमें गोबर की खाद व मिट्टी की बराबर मात्रा मिलाकर भरें तथा सिंचाई करें ताकि मिट्टी बैठ जाए। फिर इन तैयार गड्ढे में पौधे लगाएं। 

रोपाई के लिए आप इसके पौधे स्वयं भी तैयार कर सकते है। अखरोट की पौध नर्सरी में रोपाई से करीब एक साल पहले मई और जून माह में तैयार की जाती हैं। नर्सरी में इसकी पौध तैयार करने के लिए ग्राफ्टिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है। ग्राफ्टिंग के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए पहले किसी भी अखरोट के मूल पौधे की 5 से 7 महीने पुरानी शाखा के सभी पत्ते ग्राफ्टिंग करने से 15 दिन पहले तोड़ दें। उसके बाद पत्ती रहित शाखा को पौधे से हटाकर उसे एक तरफ से तिरछा काटकर किसी दूसरे जंगली पौधे के साथ जोड़कर अच्छे से बाँध दे। इसके अलावा वी ग्राफ्टिंग विधि से भी इसकी पौध आसानी से तैयार की जा सकती है। इसके अलावा बीज से तैयार पौधे 20 से 25 साल बाद पैदावार देते हैं। जबकि ग्राफ्टिंग से तैयार पौधे कुछ साल बाद ही पैदावार देने लग जाते हैं। 

अखरोट के पौधों को खेत में रोपाई से पहले खेत तैयार किये गए गड्डो के बीच में एक छोटा सा गड्डा बना ले और पौधों को लगाने से पहले इन्हे अच्छे साफ कर उपचारित कर ले। इसके लिए बाविस्टीन या गोमूत्र से गड्डो को उपचारित कर लेना चाहिए, ताकि पौधों को आरम्भ में विकास करने में किसी तरह की समस्या न हो, जिससे पौधा अच्छे से विकास करेगा और पैदावार भी अच्छी देगा। पौधों को लेते समय यह जरूर ध्यान दे कि पौधा बिलकुल स्वस्थ होना चाहिए। 

अखरोट के पौधे की गर्मियों में हर सप्ताह तथा सर्दियों में 20-30 दिन बाद सिंचाई करते रहें। पौधों को पाला पडने की स्थिति से बचाने के लिए हल्का पानी दे। अखरोट के पौधे में पूर्ण विकसित होने के बाद साल भर में 7 से 8 सिंचाई की ही जरूरत होती है। 

अखरोट बाजार में करीब 400-700 रुपये किलो उपभोक्ताओं को मिलता है। इस हिसाब से किसानों को पपीते पर 350-600 रुपये किलो के हिसाब से दाम आराम से मिल जाएगा। अखरोट का एक पौधा सालाना औसतन 40 किलो फल की पैदावार देते है। इस हिसाब से किसानों को अखरोट की खेती एक बार में अच्छी कमाई हो सकती है। इसके अलवा किसान भाई इसके पेड़ो के बीच खाली पड़ी जमीन में कम समय की बागवानी फसल (पपीता), सब्जी, औषधी और मसाला फसलों को आसानी से उगा सकता हैं, जिससे किसान भाइयों को उनकी खेत से लगातार पैदावार भी मिलती रहती है।

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