New improved variety of oat : जलवायु परिर्वतन के चलते हर साल किसी ना किसी राज्य में सूखे की स्थिति पैदा हो रही है, जिसके कारण कृषि से सूखे व हरे चारे की आपूर्ति करने में किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर भारत के उत्तरी राज्यों के किसानों को अपने पशुओं के लिए हरे चारे की आपूर्ति करना इन दिनों चिंता का विषय बना हुआ है। अपने डेयरी पशुओं के लिए 12 महीने चारे की आपूर्ति के लिए हरियाणा, राजस्थान राज्य के किसान अपने दूसरे पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है। खासतौर पर गर्मी के दिनों में क्षेत्र के किसानों को मवेशियों के लिए हरे चारे की व्यवस्था करने की समस्या काफी गंभीर हो जाती है तथा जैसे-जैसे प्रचंड गर्मी बढ़ने लगती है पशुओं को हरा चारा तो दूर सूखा चारा भी मिलना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अब पशुपालकों को गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए हरा चारा की आपूर्ति करने में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि हिसार के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा, (एचएयू) ने हरे चारे की नई उन्नत किस्म विकसित की है, जो प्रोटीन और पोष्टीक तत्वों की मात्रा से भरपूर है। एचएयू द्वारा विकसित चारे की यह नई किस्म पशुपालाकों की चारा समस्या को दूर कर गर्मियों के मौसम में उनके पशुओं के लिए हरा चारा की आपूर्ति करने में मदद करेगा। अगर किसान अपने पशुओं को यह चारा खिताते है, तो इससे उनके पशुओं की दूध की क्षमता बढाने में लाभदायक होगी।
पशुओं के लिए सालभर हरे चारे की आपूर्ति करने की किसानों की समस्याओं को देखते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू), हिसार के चारा अनुभाग ने जई की नई उन्नत किस्म एचएफओ 906 विकसित की है। देश के उत्तर पश्चिमी राज्यों के किसानों व पशुपालकों को जई की इस नई उन्नत किस्म से बहुत लाभ होगा। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने बताया कि इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा व पाचनशीलता अधिक होने के कारण ये पशुओं के लिए बहुत उत्तम चारा हैं। देश में 11.24 प्रतिशत हरे व 23.4 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है जिसके कारण पशुओं की उत्पादकता प्रभावित हो रही है। जई की नई किस्म विकसित होने से पशुपालकों को लाभ होगा और पशुओं की दूध उत्पादकता क्षमता भी बढ़ेगी।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया कि चारे की अधिक गुणवत्तापूर्ण और ज्यादा पैदावार देने वाली जई की नई किस्में विकसित होने से पशुपालकों को बड़ा लाभ होगा और पशुओं की उत्पादकता भी बढ़ेगी। साथ ही एचएफओ 906 किस्म राष्ट्रीय स्तर की चैक किस्म कैंट और ओएस 6 से भी 14 प्रतशित तक अधिक हरे चारे की पैदावार देती है। जई की एचएफओ 906 एक कटाई वाली किस्म है। उन्होंने बतया कि भारत सरकार के राजपत्र में केन्द्रीय बीज समिति की सिफारिश पर जई की एचएफओ 906 किस्म को देश के उत्तर-पश्चिमी जोन (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व उत्तराखंड) के लिए समय पर बिजाई के लिए अनुमोदित की गई हैं। कुलपति का कहना है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) द्वारा विकसित की गई फसलों की किस्मों का न केवल हरियाणा अपितु देश के अन्य राज्यों के किसानों को भी लाभ हो रहा है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने कहा कि इस किस्म को विकसित करने में चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. डीएस फोगाट, डॉ. सत्यवान आर्य, डॉ. रवीश पंचटा, डॉ. एसके पाहुजा, डॉ. सतपाल, डॉ. नीरज खरोड़ का योगदान रहा है। इसकेलिए चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों को बधाई दी और भविष्य में भी अपने प्रयास जारी रखने का आह्वान किया।
एचएयू हिसार के अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके पाहुजा ने जई की नई किस्म की विशेषता पर टिप्पणी करते हुए बताया कि हरे चारे की नई किस्म एचएफओ 906 की औसत पैदावार 655.1 क्विंटल और सूखे चारे की औसत पैदावार 124.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसकी बीज की औसत पैदावार 27.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा क्रूड प्रोटीन की पैदावार 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। एचएफओ 906 किस्म के चारे में प्रोटीन की मात्रा 10 फीसदी है, जिसके कारण इसके चारे की गुणवत्ता पशुओं के लिए अधिक लाभदायक है।
दरअसल, गर्मी के मौसम की शुरूआत होते-होते देश के अधिकांश राज्यों में हरे चारे की किल्लत आ जाती है। इसके पीछे का मुख्य कारण तापमान का बढ़ाना है। इन दिनों तेज लपट के साथ झुलसा देने वाली गर्मी से खेत खलिहान व खाली मैदानों में हरियाली खत्म हो जाती है तथा रबी सीजन की गेहूं फसल की 90 प्रतिशत कटाई हाथ के बजाए कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से की जाती है, जिससे मैनुअल कटाई की तुलना में कंबाइन से कटाई में 30 प्रतिशत भूखा कम निकलता है। इससे गर्मियों का मौसम आते ही पशओं के सूखे और हरे चारे की समस्या आ जाता है। साथ ही खरीफ सीजन की अधिकतर फसलों से पशुओं के लिए चारा नहीं हो पाता हैं। हालांकि अब कई राज्यों में किसान खरीफ सीजन की धान पराली को चारे के विकल्प के रूप में उपयोग कर रहे है। किसान स्ट्रॉ रीपर मशीन में पराली की थ्रेशिंग कर भूसा तैयार करते हैं और इसमें मक्की, हरा चारा मिलाकर उसे चारे के रूप में संग्रहित करके रखते हैं।
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