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ग्वार की खेती : कम पानी वाली भूमि में करें ग्वार की खेती, होगी ज्यादा कमाई

ग्वार की खेती : कम पानी वाली भूमि में करें ग्वार की खेती, होगी ज्यादा कमाई
पोस्ट -26 मई 2022 शेयर पोस्ट

जानें, कैसे करें ग्वार की उन्नत खेती, ग्वार की बुवाई का सही समय

कई फसलें ऐसी होती हैं जो किसानों की तकदीर बदल सकती हैं। इन फसलों का व्यापारिक महत्व अधिक होने से इनके भाव अधिक होते हैं। इस श्रेणी की फसलों में ग्वार की फसल भी एक है। ग्वार असिंचित क्षेत्र में भी हो सकती है, इसे कम पानी चाहिए। यह सूखा प्रतिरोधी दलहनी फसल है। इसमें गहरी जड़ प्रणाली होने के कारण पानी सोखने की क्षमता ज्यादा होती है। बता दें कि ग्वार के गम से अनेक तरह के उत्पाद और पशु आहार बनते हैं जिससे इस फसल की बाजार में हर वक्त मांग बनी रहती है। ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट में आपको ग्वार की आधुनिक खेती की पूरी जानकारी दी जा रही है, इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें। 

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ग्वार की फसल के लिए खेत की तैयारी 

बता दें कि यदि आप ग्वार की खेती करने जा रहे हैं तो सबसे पहले आपको जमीन तैयार करनी होगी। इसके लिए अधिक खरपतवार वाली भूमि की गर्मी के मौसम में एक जुताई करें। वहीं वर्षा के साथ 1 से 2 जुताई कर खेत तैयार कर लें। यदि संभव हो सके तो एक हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 गाडी गोबर की खाद डालें। इससे अंकुरण अच्छा होगा और प्रति हेक्टेयर पैदावार बढ़ेगी। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए। इससे कम से कम  20 से 25 सेमी गहरी मिट्टी ढीली हो जाती है। इसके बाद एक या दो जुताई करके समतल खेत तैयार करना चाहिए। इसमें जल निकासी की सही व्यवस्था होगी। 

ग्वार के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त

यहां बता दें कि ग्वार की फसल यूं तो विभिन्न प्रकार की मिट्टी में हो सकती हैै लेकिन अच्छी फसल के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। यह भारी मिट्टी पीएच मान 7 से 8.5 तक में उगाया जा सकता है। ग्वार कम मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों की बारानी फसल है। इसे लवणीय और क्षारीय मिट्टी में नहीं उगाया जा सकता।

ग्वार की बुआई का सही समय 

आपको बता दें कि ग्वार की फसल की बुआई का सही समय जून का अंतिम सप्ताह या जुलाई का पहला पखवाड़ा रहता है। वहीं इसकी उन्नत किस्मों में आरजीसी-936, आरजीसी 1002, आरजीसी-1003, आरजीसी-1066, एचजी-365, जीसी-1, आरजीसी 1017, एचजीसी 563, आरजीएम 112,आरजीसी 1038 और आरजीसी 986 हैं।

बीजोपचार और रोग नियंत्रण कैसे करें? 

किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि ग्वार की फसल की बुआई से पहले बीजों को अच्छी तरह से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए 2.0 ग्राम बाविस्टीन से किलोग्राम बीज को उपचारित कर बोएं। आंगमारी रोग की रोकथाम के लिए बीज को स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 200 पीपीएम या एग्रोमाईसीन 250 पीपीएम के घोल में 3 घंटे में भिगोकर उपचारित कर बुआई करें। वहीं जड़ गलन रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेण्डाइजिम या थाओफोट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें। इस बीमारी के जैविक नियंत्रण के लिए टाइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें। 

बुआई का तरीका और बीज की मात्रा  

ग्वार की बुआई के लिए बीज की उचित मात्रा के साथ ही इसकी सही विधि अपनाना लाभदायक हो सकता है। वैसे ग्वार की बुआई ड्रिल द्वारा या दो पोरों से की जाती है। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। कम वर्षा और कम उपजाऊ वाले क्षेत्रों में बीज की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए। वैसे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 से 20 किलोग्राम बीज डालना चाहिए। 

ग्वार की फसल में उर्वरक का प्रयोग 

बता दें कि शुष्क और अर्धशुष्क वाले क्षेत्रों में जहां हल्की मिट्टी पाई जाती है वहां नत्रजन 20 किलोग्राम और फास्फोरस 40 किलोग्राम डालना चाहिए। ग्वार एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन और फास्फोरस दोनो की सारी मात्रा बुआई के समय ही डालें। 

निराई और गुड़ाई कब और कैसे करें? 

ग्वार की फसल में खरपतवार के नियंत्रण के लिए निराई और गुड़ाई करना जरूरी है। यह फसल के एक माह की अवस्था में संपन्न कर देनी चाहिए। इसके लिए इमेजाथाइपर 10 प्रतिशत एसएल दवा की 10 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति बीघा की दर से 100 से 125 लीटर पानी में डाल कर बुआई के 30-35 दिन बाद छिडक़ाव करना चाहिए। 

ग्वार की फसल में लगने वाले कीट और इनका नियंत्रण 

यहां किसान भाइयों को बता दें कि ग्वार की फसल में कई प्रकार के कीटों का प्रकोप होता है। इनमें तेला या जेसिड, सफेद मक्खी और चेपा मुख्य हैं। इनके नियंत्रण के लिए मिथाइल डिमेटोन 25 ईसी, 250 मिलीलीटर प्रति बीघा के हिसाब से छिडक़ाव करें। वहीं बैक्टीरियल ब्लाइट रोग के लिए पानी मे 30 ग्राम एग्रोमाईसीन का छिडक़ाव करें। झुलसा रोग के लिए गंधक पाउडर का छिडक़ाव करें। 

ग्वार की फसल में कब करें सिंचाई? 

ग्वार की फसल की बिजाई जुलाई के अंतिम पखवाड़े में होती है। यदि दो सप्ताह तक अच्छी बारिश नहीं हो तो सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद अगस्त या सितंबर के आखिरी सप्ताह में सिंचाई की जानी चाहिए। ग्वार की फसल नवंबर में पक कर तैयार हो जाती है। अमूमन एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल फसल होती है। 

राजस्थान और हरियाणा ग्वार उत्पादन में अग्रणी 

बता दें कि राजस्थान और हरियाणा में ग्वार की खेती सबसे ज्यादा एरिये में होती है। इन प्रदेशों में ग्वार का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक होता है। इनके अलावा गुजरात, पंजाब, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महराष्ट आदि प्रदेशों में भी ग्वार की फसल होती है। भारत में विश्व का 80 प्रतिशत ग्वार का उत्पादन होता है। 

ग्वार की फलियोंं का सेवन स्वास्थ्यवर्धक 

आपको बता दें कि अंग्रेजी में क्लस्टर बीन्स के नाम ग्वार की फलियोंं  को सब्जी के रूप में खाना स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। इनमें कैल्सियम, फाइबर, फास्फोरस पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूती प्रदान करते हैं। वहीं दिमाग को तेज करने के साथ ही हार्ट संबंधी परेशानियों को भी दूर करते हैं। ग्वार बढ़े हुए वजन को भी कम करता है। इसके अलावा डायबिटीज और कब्ज में भी ग्वार का सेवन लाभकारी रहता है। 

ग्वार गम इंडस्ट्री लगा कर कमाएं लाखों रुपये 

यहां बता दें कि ग्वार एक औद्योगिक फसल है। इससे गम या गोंद बनता है। इसके अनेक उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। पहले जिन उद्योगों में अरारोट या आलू और चावल के पदार्थों का प्रयोग किया जाता था अब उनमें ग्वार के गम का प्रयोग किया जाता है। यह सूती कपड़ो के निर्माण, कागज बनाने, सौंन्दर्य प्रसाधन, दवाइयों आदि के काम आता है। किसान या अन्य लोग ग्वार के गम का उद्योग लगा कर लाखों रुपये सालाना कमाई कर सकते हैं। अमेरिका सहित कई देशों में भारतीय देसी ग्वार की खासी मांग रहती है। यह स्टार्च से अधिक गाढ़ा घोल बनाने में सक्षम है। 

गम बनाने के लिए यह चाहिए कच्चा माल 

ग्वार का गम बनाने के लिए सबसे पहले आपको ग्वार का बीज चाहिए। इसके अलावा गंधक या तेजाब अथवा सल्फूरिक एसिड की जरूरत होती है। ग्वार गम मेकिंग प्रोसेस के अंतर्गत ग्वार को सामान्य रूप से छानने और कंकड़ और मिट्टी अलग करने के बाद इसका छिलका उतारा जाता है। इस काम को हाथों से ही किया जाता है। छिलका उतारने के बाद इसमें वसा तत्व को दूर करने का कार्य होता है। इसके बाद शुरू होता है गंधक तेजाब को निश्चित मात्रा में टैंक में रखे ग्वार में डालने का। इस तरह एक पूरा प्रोसेस है जिसके बाद ग्वार का गम तैयार होता है। 

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