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नील की खेती: किसान कैसे कमाए नील की खेती से 35 हजार तक का मुनाफा

नील की खेती: किसान कैसे कमाए नील की खेती से 35 हजार तक का मुनाफा
पोस्ट -24 अप्रैल 2023 शेयर पोस्ट

 नील की खेती से किसान को होगा कम लागत में डबल मुनाफा 

Neel Farming : भारत में नील की खेती धीरे-धीरे किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहतर भाव मिलने से किसान उत्साहित है। कम लागत में डबल मुनाफा देने वाली नील की खेती को अपनाकर किसान समृद्ध हो रहे हैं। भारत में नील की खेती बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में रंजक (क्लमे) के रूप में की जा रही है। वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्राकृतिक नील की डिमांड बढ़ रही है। अब किसानों ने प्राकृतिक नीले रंग के सोर्स नील (इंडिगो) की खेती फिर से शुरू कर दी है। इस बीच  उत्तर प्रदेश सरकार राज्य के किसानों की आय में वृद्धि के लिए लगातार नील की खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। ऐसे में सरकार किसानों को इससे होने वाले मुनाफों के बारे में जागरूक कर नील के क्षेत्र का विस्तार करना चाहती है। आईये ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि नील की खेती किस प्रकार की जाती है और इसमें कितनी लागत एवं कितना मुनाफा किसान भाईयों को मिल सकता है?

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किसानों के लिए फायदे का सौदा नील

एक्सपर्ट बताते हैं कि आज नील की खेती बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड के क्षेत्रों में हो रही है। इन क्षेत्रों में नील की बुवाई फरवरी के पहले हफ्ते में की जाती है और अप्रैल महीने के अंत तक नील की पहली उपज प्राप्त कर लेते हैं। इसके अलावा, इसकी दूसरी उपज जून में प्राप्त की जाती है। इस प्रकार इन क्षेत्रों में किसान नील की खेती से 5 से 6 महीने के अंदर दो बार उपज प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे में किसान आज प्राकृतिक नील की खेती आधुनिक तकनीक से कर इससे प्राप्त उपज की स्वयं प्रोसेसिंग करके बाजारों में बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा लेते हैं। जिसके कारण नील की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित होती जा रही है। खास बात यह है कि बाकि 6 महीनों में किसान अपने खेतों में पारंपरिक फसलों गेहूं, सरसों, मक्का और धान जैसी फसलों की खेती कर अपनी आय बढ़ा सकता है। देखा जाए तो नील की फसल कम लागत में डबल मुनाफा देने वाली व्यापारिक फसल है।  

भूमि को बनाता है अधिक उपजाऊ 

एक्सपर्ट बताते हैं कि नील पौधा भूमि को अधिक उपजाऊ बनाता है, क्योंकि इसकी खेती बिल्कुल प्राकृतिक रूप से होती है। इसकी खेती में सिर्फ जैविक खाद का ही इस्तेमाल किया जाता है, जिससे भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ने के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है। इससे किसान को अगली अन्य फसलों से काफी अच्छी उपज प्राप्त होती है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। एक्सपर्ट्स की मानें तो इसकी खेती एक एकड़ भूमि पर करने में लगभग 8 से 10 हजार रुपए लागत खर्च आता है। इस खर्च में दो बार नील की खेती कर किसान भाई इससे लगभग 35 हजार से 40 हजार रुपए तक की आय हासिल कर सकते हैं। 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में नील की बढ़ रही है डिमांड

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आज के समय में बाजारों में प्राकृतिक नील की डिमांड बढ़ रही है, जिसके कारण किसानों ने नील की खेती करना पुनः शुरू कर दिया है। नील यानि इंडिगो की इंडिगोफेरा टिनक्टरिया और इंडिगो हेटेरंथा जैसे सबसे आम किस्मों का उत्पादन किसान मुख्य रूप से कर रहे हैं। नील से प्राप्त उपज की प्रोसेसिंग कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में नील की कीमत लगभग 38 डॉलर प्रति किलोग्राम है। आज देश के तमिलनाडु व छत्तीसगढ़ राज्य में किसान नील की खेती में बहुत आगे है। यहां किसान कई हजारों एकड़ भूमि पर नील खेती कर हजारों- लाखों रुपए का मुनाफा नियमित रूप से प्राप्त कर रहे हैं। 

नील की खेती कैसे करे?

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, नील यानि इंडिगो की खेती अधिक बारिश और जलभराव क्षेत्र में करने से बचाना चाहिए। इसकी खेती उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी भूमि पर आसानी से की जा सकती है। नील की खेती से अच्छी फसल लेने के लिए गर्म और नरम जलवायु वाले सीजन में ही इसकी खेती लगाना उचित है। नील के पौधे 1 से 2 मीटर ऊंचे होते हैं। इसके पौधों में आने वाले फूलो का रंग गुलाबी एवं बैंगनी होता है। जलवायु के आधार पर इसके पौधे लगभग 2 वर्ष तक पैदावार दे सकते हैं। इसकी खेती बारिश के सीजन में करना सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि इस सीजन में पौधों को विकास करने के लिए अनुकूल वातावरण और पानी मिल जाता है। नील की खेती के लिए अधिक गर्म एवं ठंडी जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार के मौसम से इसकी उपज प्रभावित होती है।

नील की खेती लगाने का तरीका

नील की खेती में बीजों की बुवाई ड्रिल विधि के माध्यम से की जाती है। सिंचित क्षेत्रों में नील की बुवाई अप्रैल महीने में और असिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई मानसून के मौसन जून-जुलाई के महीने में की जाती है। नील के बीजों की बुवाई से पहले खेत को 2 से 3 गहरी जुताई कर 1 से 1.5 फीट की दूरी पर क्यारियों में विभाजित किया जाता है। इन क्यारियों में बीज से बीज के बीच लगभग आधा से एक फीट की दूरी रखते हुए बुवाई की जाती है। नील की खेती को अधिक सिंचाई की आवश्कता नहीं होती है। 2 से 3 सिंचाई के अंदर इसकी फसल तैयार हो जाती है। बारिश के मौसम में इसकी बुवाई करने पर इसके पौधों को लगभग 2 सिंचाई की जरूरत पड़ती है। नील के पौधों में प्राकृतिक तरीके से निराई-गुड़ाई करके खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। नील की फसल को कुल 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है।

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