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अमरूद की खेती: किसानों को हर साल मिलेंगी 15 लाख तक की कमाई, जानें खेती का तरीका

अमरूद की खेती:  किसानों को हर साल मिलेंगी 15 लाख तक की कमाई, जानें खेती का तरीका
पोस्ट -29 जनवरी 2023 शेयर पोस्ट

अमरूद की खेती: कम लागत पर लाखों की कमाई और सरकार से सब्सिडी भी मिलेंगी

अमरुद भारत देश की एक व्यापारिक फल की फसल है। व्यापारिक फल फसलों की बागवानी में यह आम, केला एवं नीबू के बाद चौथे नंबर पर सबसे ज्यादा लगाई जाती  है। भारत में लोग इसे ’गरीबों का सेब’ भी कहते है। इसकी उत्पत्ति अमेरिका और वेस्ट इंडीज के उष्ण कटिबंधीय भागों में हुई है। भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा और तामिलनाडू के इलावा अमरूद की बागवानी पश्चिमी बंगाल और आंध्र प्रदेश में काफी बड़े स्तर पर की जाती है। अमरुद का स्वाद खाने में अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है। यह कई औषधीय गुण से भरपूर होता है। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस की मात्रा समृद्ध होती है, जिस वजह से इसका उपयोग दांतो से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में किया जाता है। इसके इस्तेमाल जूस, जैम, जेली और बर्फी बनाने में किया जाता है। आज भारत की जलवायु में उगाये गए अमरूदों की मांग विदेशो में काफी ज्यादा है, जिसके कारण देशभर में कई राज्य सरकारें अपने स्तर पर अमरूद की बागवानी को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की सरकार योजनाएं भी चला रही है। इन योजनाओं के तहत किसानों को अमरूद की बागवानी लगाने पर 60 प्रतिशत तक सब्सिडी भी दे रही है, जिस वजह से अमरूद की बागवानी व्यापारिक रूप से पूरे देश में होने लगी है। आईए, इस पोस्ट के माध्यम से इसकी व्यापारिक खेती का उचित तरीका जानते है। साथ ही इसकी खेती से होने वाली आय एवं सब्सिडी के बारे में भी जानते है। 

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अमरूद की खेती में लगने वाली लागत एवं कमाई

अगर आपने सही देख-रेख से अमरुद बागवानी करते है, तो लगभग 30 वर्ष तक उपज प्राप्त कर सकते है। एक हेक्टयेर के क्षेत्र में अमरूद की बागवानी से लगभग 25 लाख रुपए की सालाना आय कमाई जा सकती है, जिसमें से 10 लाख तक का लागत खर्च निकाल दिया जाए तो इसके एक हेक्टेयर खेत से 15 लाख रुपए सालाना की शुद्ध आय कमाई जा सकती है। इसकी खेती में पहले दो सालों के अंदर ज्यादा खर्च आता है। पहले दो सालों में इसकी खेती पर बुवाई से लेकर पौधे तैयार होने तक करीब 10 लाख तक का खर्च प्रति हेक्टेयर आ सकता है। इसके फल सीजन में करीब 20 से 50 रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में बिकते है। जिस हिसाब से दो सीजन में इसके फलों की तुड़ाई से 25 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक आय ले सकते है।  

सरकार देती है सब्सिडी 

देशभर में बागवानी को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना का संचालन किया जा रहा है, जिसके तहत किसानों को बागवानी में निर्धारित फल और सब्जियों की फसलों को लगाने पर तय प्रतिशत के अनुसार सब्सिडी दिया जाता है, जिनमें अमरूद फल की बागवानी भी शामिल है। रिपोर्ट्स की मानें तो देशभर की राज्य सरकारें अपने स्तर पर राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना को लागू कर अमरूद की बागवानी करने पर अपने किसानों को तय प्रतिशत के अनुसार सब्सिडी दे रही है, जिसमें बिहार सरकार द्वारा अपने राज्य में एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत बिहार कृषि विभाग, बागवानी निदेशालय की ओर से लागत का 60 प्रतिशत तक सब्सिडी यानि 60 हजार रुपए तक का अनुदान प्रति हेक्टेयर दे रही है। वहीं, अन्य राज्य अपने-अपने स्तर पर तय प्रावधानों के अनुसार उद्यान विभाग द्वारा सब्सिडी अमरुद की बागवानी पर दे रही है। अपने क्षेत्र में अमरूद की बागवानी पर सब्सिडी की जानकारी के लिए अपने राज्य एवं जिला के कृषि विभाग, बागवानी निदेशालय में संपर्क कर सकते है। 

अमरूद की खेती के उन्नत किस्में 

अगर आप अमरूद की बागवानी व्यापारिक स्तर पर करना चाहते है, तो इसके लिए आपको कृषि विशेषज्ञों की सलाह एवं अपने क्षेत्र की जलवायु एवं मिट्टी के आधार पर किस्में का चयन करना चाहिए। आज बाजार में अमरूद के कई उन्नत प्रजातियां मौजूद है, जिनमें वीएनआर बिही, अर्का अमुलिया, अर्का किरण, हिसार सफेदा, हिसार सुर्खा, पंत प्रभात, सफेद जैम, कोहिर सफेद, एप्पल रंग, चित्तीदार, ललित, श्वेता, अर्का मृदुला, सीडलेस, रेड फ्लैश, पंजाब पिंक, इलाहाबाद मृदुला, इलाहाबाद सफेदा, इलाहाबाद सुर्खा और लखनऊ-49 आदि उन्नत प्रजातियां शामिल है। अमरूद की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए किसान इन प्रजातियों में अपने क्षेत्र के अनुसार चयन कर सकते है। 

अमरूद की बागवानी के लिए जलवायु 

अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है। इसकी बागवानी के लिए शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु उपयुक्त है। भारत में अधिकत क्षेत्रों में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है। इसलिए भारत के अधिक क्षेत्रों में इसकी व्यापारिक खेती आसानी से सफलतापूर्वक की जा सकती है। अमरुद के पौधे सर्दियों में गिरने वाले पाला को सहन कर लेते है, लेकिन इसके छोटे पौधों के लिए यह हानिकारक होता है। अमरूद के पौधे अधिकतम 45 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है। 

अमरूद की बागवानी के लिए उपयुक्त भूमि 

अमरूद भारतीय जलवायु में इस कदर घुल मिल गया है कि इसकी बागवानी किसी भी प्रकार की मिट्टी सफलतापूर्वक आसानी से की जा सकती है। हांलाकि, अमरूद की व्यापारिक खेती के लिए बलुई दोमट और चिकनी मिट्टी को उपयुक्त माना गया है। इसकी व्यापारिक खेती करने के लिए भूमि का पी.एच मान 6 से 6.5 के मध्य होना चाहिए। अमरूद की खेती 100 से 200 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी खेती से अच्छी उपज लेने के लिए बलुई दोमट और चिकनी मिट्टी वाली भूमि का चयन करें। साथ ही क्षारीय मिट्टी में इसकी खेती करने से बचे, क्योंकि इस प्रकार की भूमि में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने का खतरा ज्यादा होता हैं।

बीजों की बुवाई का समय  

अमरूद के बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर के महीनें में की जाती है। अमरूद की बागवानी में खेत की रोपाई बीज एवं पौधों दोनों ही तरह से की जाती है। अमरूद की खेती से फलों की अच्छी उपज और गुणवत्ता के लिए इसकी खेती की रोपाई पौधों द्वारा ही करें। इसके खेत की पौधों द्वारा रोपाई 6 X 5 मीटर की दूरी रखते हुए करें। इसके पौधों की रोपाई 20 से 25 सेमी गहराई पर हीं करें। पौधों की शाखाओं को अच्छे से फैलने के लिए पौधों की रोपाई वर्गाकार तरीके से करें। अमरूद के एक एकड़ खेत में लगभग 120 से 132 पौध लगाए जा सकते हैं। 

अमरूद की खेती में खाद का प्रयोग 

अमरूद के पौध लगाने से पहले 5 से 6 मीटर की दूरी पर गड्डे तैयार किया जाता है।  इन तैयार गड्डों में पौध की रोपाई से पहले 300 ग्राम सड़ी गोबर या कंपोस्ट खाद के साथ नीम की खली का उपयोग कर सकते है। इसके अलावा, रासायनिक खाद के रूप में यूरिया एवं पोटाश की उचित मात्रा प्रति गड्डा इस्तेमाल करें। पौधा रोपाई के 1 से 2 वर्ष पश्चात इसमें 10 से 25 किलोग्राम देसी खाद, 155 से 200 ग्राम यूरिया, 500 से 1600 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट और 100 से 400 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से इस्तेमाल करें। 

अमरूद के पौधों की सिंचाई की व्यवस्था

अमरुद का पौधा को कम सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। इसकी पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें। इसके बाद दूसरी सिंचाई 2 से 4 दिन के पश्चात करें। इसके बाद मिट्टी में नमी के हिसाब से इसके पौधों की सिंचाई करें। मिट्टी में नमी बनाने के लिए ड्रिप इरिगेशन विधि से सिंचाई की व्यवस्था करें। इस विधि में बूंद-बूंद पानी की बचत होती है। और पौधों के जरूर के अनुसार पानी मिलता रहता है।

अमरूद की खेती में खरपतवार नियंत्रण 

खरपतवार नियंत्रण करने के लिए निराई - गुड़ाई विधि का उपयोग करें। अमरूद की पहली निराइ-गुड़ाई को रोपाई के 30 से 35 दिनों के पश्चात करें। इसके पश्चात जरुर के अनुसार 15 से 20 दिनों के अंतराल में खेत की गुड़ाई करें। यदि खेत में खरपतावार ज्यादा है, तो खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामोक्सोन 6 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। 

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