भारत की 'ताज नगरी' आगरा का पेठा पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। वैसे तो अपने देश में पेठे की मिठाई कई राज्यों में बनाई और बेची जाती है, लेकिन आगरा के पेठों का स्वाद कुछ अलग ही होता है। पेठा कद्दू की मिठाई बनाने के साथ-साथ सब्जी और कई प्रकार के व्यंजन बनाने के काम भी आता है। उत्तर प्रदेश में इसे भतुआ कोहड़ा, भूरा कद्दू, खबहा, कुष्मान या कुष्मांड फल आदि के नाम से भी जाना जाता है। पेठा की खेती कद्दू वर्गीय फसल के रूप में की जाती है। पेठा के पौधे लताओं के रूप में फैलते हैं। इसकी कुछ किस्में में फल 1 से 2 मीटर लंबे पाये जाते है तथा फलों पर हल्के सफ़ेद रंग के पाउडर की तरह की परत दिखाई देती है। पेठा के कच्चे फलों से सब्जी तथा पके हुए फलों का इस्तेमाल पेठा मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। पेठा (कद्दू) का मुख्य रूप से इस्तेमाल पेठा मिठाई बनाने के लिए ही करते हैं, सब्जी के लिए इसका इस्तेमाल बहुत ही कम होता है। ऐसे में किसान भाई पेठा की खेती करके अच्छा लाभ व मुनाफा कमा सकते हैं। किसान भाइयों, आज ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ पेठा की खेती से जुड़ी सभी जानकारियां साझा करेंगे।
भारत में पेठा की खेती मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसके अलावा पेठा की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार सहित लगभग भारत के सभी राज्यों में की जाती है।
पेठा (कद्दू) की खेती किसी भी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसकी खेती उचित जल निकासी वाले खेत में आसानी से की जा सकती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच का होना चाहिए।
पेठा (कद्दू) की खेती करने के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्मी और बारिश का मौसम इसकी खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है, लेकिन अधिक ठंडी जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। क्योंकि ठंडी के मौसम में इसके पौधे का विकास सही तरीके से नहीं होता है। पेठा कद्दू के पौधे की रोपाई के बाद सामान्य तापमान पर अच्छे से विकास करते हैं तथा 15 डिग्री तक के तापमान पर बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है। बीजों का अंकुरण होने के बाद पौधे के विकास के लिए 30 से 40 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। अधिक तापमान होने पर पेठा कद्दू का पौधा ठीक तरह से विकास नहीं कर पाता है।
पेठा कद्दू की खेती करने के लिए इच्छुक किसानों को अपने क्षेत्र की मिट्टी व जलवायु के अनुसार किस्म का चुनाव करना चाहिए। पेठा (कद्दू) की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार से हैं-
पेठा (कद्दू) की इस किस्म के पौधों को पछेती फसल के लिए उगाया जाता है। पेठा (कद्दू) के फलों से सब्जी और मिठाई दोनों ही बनाई जाती है। इसके पौधों में निकलने वाले फल का औसतन वजन 7 किलो से 8 किलो के आसपास का होता है तथा इस क़िस्म की खेती प्रति एकड़ 300 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।
पेठा कद्दू की यह क़िस्म बीज की रोपाई करने के 120 दिन बाद उत्पादन देना शुरु कर देती है। इस किस्म के पौधों को अधिकतर गर्मियों के मौसम में उगाया जाता है, इसमें से निकलने वाले फल का वजन 12 किलो तक का होता है। यह क़िस्म प्रति एकड़ के हिसाब से 500 से 600 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।
पेठा कद्दू की इस क़िस्म को तैयार होने में लगभग 120 दिन का समय लग जाता है। इसके एक फल का औसत वजन 7 से 10 किलो तक होता है। ये किस्म प्रति एकड़ 300 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।
पेठा कद्दू की इस क़िस्म का पौधा अधिक लंबा होता है। इस किस्म को तैयार होने में 115 दिन तक का समय लग जाता है। इसका एक फल 5 किलो तक का होता है। यह क़िस्म एक एकड़ में 250 से 300 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।
इसके अलावा भी पेठा कद्दू की कई उन्नत क़िस्मों को अलग-अलग जलवायु और अलग-अलग स्थान पर अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है, जो इस प्रकार है :- कोयम्बटूर 2, सी एम 14, संकर नरेन्द्र काशीफल, बी एस एस- 987 1, नरेन्द्र अग्रिम, , कल्यानपुर पम्पकिन- 1, पूसा हाइब्रिड, नरेन्द्र अमृत, आई आई पी के- 226, , बी एस एस- 988 आदि है।
पेठा (कद्दू) की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से 2 से 3 बार गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई करने के बाद खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें, इससे खेत की मिट्टी में सूरज की धूप अच्छी तरह से लग जाती है। खेत की पहली जुताई करने के बाद उसमें प्राकृतिक खाद के रूप में 12 से 15 टन पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद डाल दें। खाद को खेत में डालने के बाद दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जाता है। इसके बाद खेत में पानी लगा दें, जब खेत का पानी पूरी तरह से सूख जाता है, तो उसकी एक बार फिर से रोटावेटर की मदद से जुताई कर दी जाती है, जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है।
पेठा (कद्दू) की खेती करते समय यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको 80 किलो ग्राम डीएपी की मात्रा का प्रति एकड़ की दर से खेत की आखिरी जुताई करते समय खेत में डाल दें। इसके बाद 50 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा पौधे की सिंचाई करते समय देना होता है।
पेठा (कद्दू) के बीजों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है। बीज की रोपाई से पहले बीज को थीरम या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लें। एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 6 से 8 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। इन बीजों को खेत में तैयार क्यारियों में लगा दिया जाता है तथा बीजों की रोपाई एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी पर व 2 से 3 सेटीमीटर की गहराई में की जाती है।
पेठा (कद्दू) के बीजों की रोपाई के लिए गर्मी और बारिश का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। इसके अलावा बीजों को फरवरी से मार्च महीने के मध्य तक भी लगा सकते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में इसके बीज की रोपाई मार्च के बाद भी की जा सकती है।
पेठा (कद्दू) के पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है। यदि आपने इसकी फसल की रोपाई बारिश के मौसम में की है, तो शुरुआत में पौधे की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन समय पर बारिश न होने पर पौधों को पानी अवश्य दें। यदि आपने इसकी बीजों की रोपाई गर्मियों के मौसम में की है, तो इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में पौधों को सप्ताह में दो बार पानी अवश्य दें, इससे पौधों का विकास अच्छी तरह से होता है।
पेठा (कद्दू) की फसल में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है। इसके पौधे बेल के रूप में विकास करते हैं, इसलिए पौधों में कई तरह के रोग लगने का खतरा बना रहता है। रोग इसकी पैदावार को भी प्रभावित करते है। खरपतवार का नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से करने के लिए इसकी बुवाई से 20 से 25 दिन बाद निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। इसके पौधों को अधिकतम 3 से 4 निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
लालभृंग कीट ये चमकीले लाल रंग का कीट होता है, जो पौधे की पत्तियों को खाकर छलनी कर देता है, इस रोग के लगने से इसकी पत्तियां फट जाती हैं तथा पौधों का विकास भी सही ढंग से नहीं हो पाता है। इस कीट से अपनी फसल का बचाव करने के लिए फसल की बुवाई करते समय खेत से खरपतवारों को नष्ट कर दें और खेत की जुताई अच्छे से करें। मैलाथियान को 20 से 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दें और कार्बोरिल के घोल को इसके साथ खेतों में छिड़काव करें।
ये कीट पेठा (कद्दू) के उगने वाले छोटे पौधों के बीज तथा उसके शीर्ष को काट देता है, जिससे खेत में पौधों की संख्या में कमी आने लगती है। इसका नियत्रंण करने के लिए ग्रीष्म कालीन समय में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए तथा बीजों की बुवाई के समय कार्बोफ्यूरॉन का प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में मिलाना चाहिए।
ये आकर्षक चमकीले रंग तथा बड़े आकार का कीट होता है। इसके पंखों पर 3 काले व 3 पीले रंग की पट्टियां होती हैं। यह पेठा (कद्दू) में फूल देने वाली कलियों व फूलों को खाकर नष्ट कर देते हैं। इसका नियंत्रण करने के लिए खेत में इन कीट की संख्या कम होने पर इन्हें हाथ से पकड़कर नष्ट कर देते हैं। अगर आपकी फसल में इनका प्रकोप अधिक हो तो कार्बोरिल का छिड़काव अवश्य करें।
ये कीट पत्तियों के ऊपरी भाग पर टेढे-मेढ़े भूरे रंग का गड्ढा बना देते हैं। इन्हें नीम के बीजों के साथ ट्रायोफॉस के मिश्रण को 3 सप्ताह के अंतर पर खेत में छिड़काव करने से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
ये कद्दूवर्गीय सब्जी फसलों में फल पर आक्रमण करने वाला प्रमुख कीट है। ये कीट छोटे फलों में अधिक नुकसान करते हैं। इसके नियंत्रण हेतु रात के समय खेत में नर वयस्कों को फेरोमेन ट्रेप लगाकर नियंत्रित कर सकते हैं। इसके अलावा थायोडॉन को 6 मिली प्रति लीटर को 4 से 5 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करके भी आप इन कीटों से नियंत्रण पा सकते हैं।
पेठा (कद्दू) के फलों की तुड़ाई दो तरह के इस्तेमाल करने के लिए की जाती है। यदि आप इसके फलों को सब्जी बनाने के लिए तोड़ना चाहते हैं, तो आपको पेठा (कद्दू) के कच्चे होने पर इसको तोड़ सकते हैं तथा पके हुए फलों की तुड़ाई कई प्रकार की चीजों को बनाने के लिए की जाती है। फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है| एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 400 से 500 क्विंटल पेठा (कद्दू) का उत्पादन आसानी से प्राप्त हो जाता है। पेठा (कद्दू) का बाज़ार में भाव भी काफी अच्छा होता है, जिससे इसकी खेती करने वाले किसान भाई इसकी एक बार की फसल से 1 से 2 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
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