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सर्पगंधा की खेती से कमाएं लाखों का मुनाफा, जानें खेती की पूरी विधि

सर्पगंधा की खेती से कमाएं लाखों का मुनाफा, जानें खेती की पूरी विधि
पोस्ट -26 अक्टूबर 2022 शेयर पोस्ट

सर्पगंधा पौधें के बीज, जड़ और फूलों से होगी मोटी कमाई

पिछले कुछ वर्षों में खेती में किसानों के बीच मुनाफेदार पौधों की खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है। किसान बाजार मांग के अनुसार व्यवसायिक फसलों की खेती जैसे खाद्य तेल, फुल, सब्जियां, औषधियां जैसी व्यवसायिक फसलों की खेती कर अधिक मुनाफा हासिल कर रहा है। इन्ही फसलों में एक फसल सर्पगंधा भी है। इसकी खेती कर किसान भाई कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकता है। और यह फसल किसानों को एक एकड़ में लाखों रूपये तक का मुनाफा दे सकती है। औषधीय गुणों के दृष्टि से सर्पगंधा एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इससे कई तरह की दवाएं तैयार की जाती है। इसके फूल, बीज और जड़ बाजार में अच्छी कीमतों पर बिकते हैं। यही वजह है कि किसानों के बीच इसकी खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। सर्पगंधा अपने औषधीय गुणों के कारण बाजार में अच्छे दाम पर बिकता हैं, जिसकी वहज से इसकी खेती कम लागत में किसानों को अच्छा मुनाफा दिलावा सकती है। ट्रैक्टरगुरू के इस लेख में हम आपको सर्पगंधा की खेती का पूरा गणित बताएंगे। सभी जानकारी पाने के लिए इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़े। 

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सर्पगंधा का परिचय

भारत तथा चीन के पारंपरिक औषधियों में सर्पगन्धा एक प्रमुख औषधि है। यह एपोसाइनेसी परिवार का द्विबीजपत्री, बहुवर्षीय झाड़ीदार सपुष्पक और महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। भारत में तो इसके प्रयोग का इतिहास 3 हजार वर्ष पुराना है। सर्पगन्धा के पौधे की ऊँचाई लगभग 6 इंच से 2 फुट तक होती है। इसकी मूल जड़ प्रायः 20 से. मी. तक लम्बी होती है। इसकी पत्ती एक सरल पत्ती का उदाहरण है। सर्पगंधा का तना मोटी छाल से ढका होता है। इसके फूल गुलाबी या सफेद रंग के होते हैं। और ये गुच्छों में पाए जाते हैं। भारत में इसकी खेती  समतल एवं पर्वतीय प्रदेशों में होती है। भारत के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के लगभग सभी क्षेत्रों में सर्पगन्धा के पौधे स्वाभाविक रूप से उगते है।

सर्पगंधा में  छिपे औषधी गुण 

सर्पगंधा एक आयुर्वेदिक औषधी है, जिसमें कई प्राकृतिक औषधी गुण छिपे हुए हैं। सर्पगंधा की मदद से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के रोगों का इलाज संभव है। इसमें औषधीय गुण मुख्यतः पौधे की जड़ों में पाये जाते हैं। सर्पगंधा की जड़ में 55 से भी ज्यादा क्षार पाये जाते हैं। लगभग 80 प्रतिशत क्षार जड़ों की छाल में केन्द्रित होते हैं। सर्पगन्धा में रिसार्पिन तथा राउलफिन नामक उपक्षार पाया जाता है। सर्पगंधा की जड़ों में क्षारों के अतिरिक्त ओलियोरेसिन, स्टेराल (सर्पोस्टेराल), असंतृप्त एलकोहल्स, ओलिक एसिड, फ्यूमेरिक एसिड, ग्लूकोज, सुकरोज, आक्सीमीथाइलएन्थ्राक्यूनोन एवं खनिज लवण भी पाये जाते हैं। इन सब में ओलियोरेसिन कार्यिकी रुप से सक्रिय होता है तथा औषधी के निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है।

सर्पगंधा के औषधीय उपयोग

सर्पगंधा की जड़े तिक्त पौष्टिक, ज्वरहर, निद्राकर, शामक, गर्भाशय उत्तेजक तथा विषहर होती हैं। सर्पगंधा की जड़ों का उपयोग प्रभावी विषनाशक के रूप में सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार में होता है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में सर्पगंधा की जड़ों का उपयोग उच्च-रक्तचाप, ज्वर, वातातिसार, अतिसार, अनिद्रा, उदरशूल, हैजा आदि के उपचार में होता है। दो-तीन साल पुराने पौधे की जड़ को उखाड़ कर सूखे स्थान पर रखते है, इससे जो दवाएँ निर्मित होती हैं, उनका उपयोग उच्च रक्तचाप, गर्भाशय की दीवार में संकुचन के उपचार में करते हैं। अनिद्रा, हिस्टीरिया और मानसिक तनाव को दूर करने में सर्पगन्धा की जड़ का रस, काफी उपयोगी है। सर्पगंधा को आयुर्वेद में निद्राजनक कहा जाता है इसका प्रमुख तत्व रिसरपिन है, जो पूरे विश्व में एक औषधीय पौधा बन गया है।

एक एकड़ में 3-4 लाख रुपए की कमाई

विशेषज्ञों के अनुसार सर्पगंधा का पौधा 18 माह में उपज देना शुरू कर देता है। इससे आप लगातार 4 साल तक फूल और बीज हासिल कर सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बाजार में इसकी जड़े तकरीबन 150 रुपये प्रति किलो बिकती है। इसके अलावा बाजार में इसके बीज करीब 3 हजार रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं। कुल मिलाकर इसके फूलों और बीजों से महज 75 हजार रुपये खर्च कर डेढ़ साल में 3-4 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। सर्पगंधा के फल, तना, जड़ सभी चीजों का उपयोग होता है, इसलिए मुनाफा ज्यादा होता है। एक एकड़ में करीब 25-30 क्विंटल सर्पगंधा का उत्पादन होता है और प्रति किलो 70-80 रुपये में इसकी बिक्री होती है। 

सर्पगंधा की प्रजातियां 

सामान्य सर्पगंधा की कई प्रजातियां होती है, लेकिन सर्पगंधा की राववोल्फिया सरपेंटिना सिर्फ दो ही प्रजातियां प्रमुख है। राववोल्फिया टेट्राफाइलस दूसरी प्रजाति है, जिसे औषधीय पौधों के रूप में उगाया जाता है। 

सर्पगंधा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व तापमान

यह एक छाया पसंद पौधा है, इसलिए आम, लीची एवं साल पेड़ के आसपास प्राकृतिक रूप से उगाया जा सकता है। सर्पगंधा की खेती उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु में की जा सकती है। किन्तु इसकी अधिक उपज गर्म तथा अधिक आर्दता वाली परिस्थितियों में मिलती है। 10 डिग्री सेंटीग्रेड से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक इसकी खेती के लिए बेहतर तापमान है। जून से अगस्त तक इसकी खेती की जाती है। 1200-1800 मिलीमीटर तक वर्षा वाले इलाकों में सर्पगंधा की खेती आसानी से की जा सकती है। 

खेती के लिए भूमि की तैयारी

इसकी खेती करने के लिए मई माह में इसके खेत की तैयारी करें। मई माह में खेत की दो से तीन गहरी जुताई करके खेत को ऐसे ही छोड़ दे। उसके बाद वर्षा आरंभ होने के इसके खेत में सड़ी गोबर की खाद 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से देकर खेत की दोबारा जुताई कर गोबर की खाद मिट्टी में मिला दें। इसके बाद दो-तीन हल्की जुताईयाँ करके उसमें पाटा लगाकर खेती में सुविधानुसार सिंचाई की नालियाँ भी बना लेना चाहिए। इसके पौधों की रोपाई के समय 45 किलो नाइट्रोजन, 45 किलो फॉस्फोरस तथा 45 किलो पोटाश दें। नाइट्रोजन की यही मात्रा (45 किलो) दो बार अक्टूबर एवं मार्च में दें। कोड़ाई कर खरपतवार निकाल दें।

सर्पगंधा की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना 

सर्पगंधा की अच्छी उपज के लिए इसके पौधें अच्छे से तैयार करना बेहद जरूरी होता है। इसके पौधें बीज एवं कलम दोनों ही तरह से किए जा सकते है। जड़ से कलम तैयार करने के लिए इसके स्वस्थ और अच्छे पौधे का चुनाव करें हो सके तो  जिसमें एल्कलायड की मात्रा अधिक हो उनका ही चुनाव करें। पौध तैयार करने के लिए इसके पौध की जड़ में से पेंसिल मोटाई के 2.5 से 5 सेंटीमीटर लंबाई के छोटे छोटे कमल काटते लिया जाता है। तना से पौधा तैयार करने के लिए 15-20 सेंटीमीटर पेंसिल मोटाई के कलम बनाते हैं। हरेक कलम में 2-3 नोड (गांठ) रहना जरूरी है। 4-6 सप्ताह में रूटेड कटिंग को तैयार खेत में रोपाई करते हैं। जड़ों को करीब 5 से.मी. गहराई के नालियों में लगाकर अच्छी से ढ़क देते हैं। 

यदि बीज के द्वारा ही तैयार करना है तो बिल्कुल ताजे बीजों का प्रयोग करना चाहिए। नर्सरी में बीज की तैयारी हेतु गोबर की खाद याा वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करे। एक हेक्टेयर भूमि के लिए 20 से 30 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर के लिए 8-10 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बुआई के पहले बीज को पानी में 24 घंटे पानी में फुला लेने पर अंकुरण अच्छा होता है। बुवाई के तीन महीना के भीतर इसके पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते है। 

सर्पगंधा की खेती की देख-भाल 

सिंचाई- पहली सिंचाई तो रोपाई के तुरंत बाद करे। जनवरी माह से लेकर वर्षा काल आरंभ होने तक 30 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। वर्षा के दिनों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बाद जाड़े के दिनों में 45 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। ध्यार रहें इसकी सिंचाई नमी व आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर करें। 

निराई-गुड़ाई- खेत में खरपतवार काफी मात्रा में हो, तो पौधे की बढ़वार कम हो जाती है। यदि समय पर खर-पतवार नियंत्रित नहीं किए जाए तो इससे सर्पगंधा के पौधे को बढ़वार में नुकसान होता है। यहां तक की पौधे भी खराब हो सकते है। अतः लगाने के 20-25 दिन के बाद निराई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त कर लेना चाहिए। साल में दो-5 बार निराई गुड़ाई करना चाहिए। 

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