कपास देश की अर्थव्यवस्था में प्रमुख रूप से सहयोग करने वाली एक वाणिज्यिक फसल हैं। यह देश के लगभग 6.00 मिलियन किसानों को आजीविका प्रदान करती है। भारत कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और विश्व में कपास का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। संसार में कपास की 2 किस्म पाई जाती है। प्रथम को देशी कपास के नाम से जाना तथा दूसरे को अमेरिकन कपास के नाम से जाता है। कपास से रुई तैयार की जाती हैं, जिसे सफेद सोना कहा जाता हैं। यह एक प्रमुख रेशा फसल है। इसमें नैचुरल फाइबर पाया जाता है, जिसके सहारे कपड़े तैयार किया जाता है। कपास से निर्मित वस्त्र सूती वस्त्र कहलाते हैं। कपास की खेती किसानों के लिए फायदे की खेती के रूप में जानी जाती हैं। इसकी पैदावार नगद फसल के रूप में होती है, कपास की फसल को बाजार में बेचकर किसान अच्छी कमाई भी करते हैं। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आता है। देश के विभिन्न हिस्सों में कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी खेती देश के सिंचित और असिंचित क्षेत्र में की जा सकती है। अगर किसान भाई कपास की खेती करना चाहते हैं, तो बता दें कि कपास की बुवाई्र का वक्त आ गया हैं। देश के कई राज्यों में इसकी खेती की बुवाई की शुरूआत भी हो चुकी हैं। अगर आप भी कपास खेती शुरू करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई के लिए यह समय अनुकुल हैं। ट्रैक्टर गुरू की इस पोस्ट में आपको कपास की खेती से जुड़ी सभी जानकारी दी जा रही हैं। जिसके माध्यम से आप कपास की सफल खेती कर अच्छी पैदावार के साथ मोटा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।
भारत प्रति वर्ष लगभग 6.00 मिलियन टन कपास का उत्पादन करता है जो विश्व कपास का लगभग 23 प्रतिशत है। भारत प्रति वर्ष 6,188,000 टन उत्पादन मात्रा के साथ दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक है। चीन 6,178,318 टन वार्षिक उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर आता है। भारत की लगभग 9.4 मिलियन हेक्टेयर की भूमि पर कपास की खेती की जाती हैं। इसके प्रत्येक हेक्टेयर क्षेत्र में 2 मिलियन टन कपास के डंठल अपशिष्ट के रूप में विद्यमान रहते हैं। देश में कर्नाटक, गुजरात, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इत्यादि राज्य मिलकर देश के उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत कपास उत्पन्न करते हैं। देश की लगभग 60 प्रतिशत कपास का उत्पादन मात्रा तीन राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और आन्ध्रप्रदेश से होता हैं। देशभर में कपास की सबसे ज्यादा खेती महाराष्ट्र में ही होती है और पूरे सीजन के दौरान राज्य में 33 लाख हेक्टेयर से ज्यादा में कपास की फसल लगती हैं। कपास सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है और कुल वैश्विक रेशा उत्पादन का लगभग 25% है। तमिलनाडु और ओडिशा राज्यों में भी कपास उगाई जाती है।
औद्योगिक क्षेत्र में सफेद सोना के नाम से प्रसिद्ध कपास की खेती मेहनती खेती के रूप में जानी जाती है, कपास की खेती में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। परन्तु यह किसानों को अधिक मुनाफा देने वाली खेती भी हैं। किसान भाई अधिक मुनाफा कमाने के लिए इसकी बुवाई का कार्य शुरू कर सकते हैं। क्योंकि इसकी बुवाई का समय शुरू चुका हैं। देश के कई क्षेत्र के किसान भाईयों ने अपने खाली पड़े खेतों में इसकी बुवाई की तैयारी भी कर ली हैं। यदि पर्याप्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध हैं, तो कपास की फसल को मई माह में ही लगाया जा सकता है। सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून की उपयुक्त वर्षा होते ही कपास की फसल लगावें। कपास की बुवाई का उचित समय अप्रैल से मई के मध्य तक माना जाता है। इस समय में कपास की बुवाई से अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
आपकों बता दें कि इसकी खेती के लिए किसी खास जलवायु की आवश्यकता नहीं होती हैं, लेकिन इसकी खेती देश के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में विस्तारित रूप से की जाती हैं। इसकी खेती के लिए न्यूनतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस और अधिक तापमान 35 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता हैं। इसके बीजों अंकुरित होने के 16 से 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती हैं। इसके पौधों को विकास करने के लिए 30 से 35 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है। इसके पौधें अधिक तापमान पर अच्छे से वृद्धि कर सकते है। लेकिन इसे सर्दियों में गिरने वाले पाले से हानि होती है। इसके टिंडों को फटने के लिए तेज चमक वाली धूप की आवश्यकता होती हैं।
इसकी खेती को बलुई, क्षारीय, कंकड़युक्त किसी भी प्रकार की भूमि पर कर सकते हैं। लेकिन बलुई दोमट मिट्टी और गहरी काली मिट्टी इसकी खेती के उपयुक्त माना गया है। वहीं मिट्टी में जीवांश की पर्याप्त मात्रा तथा अच्छे जलनिकासी वाली होनी चाहिए। इसकी खेती के भूमि का पी.एच मान 5.5 से 6 के मध्य होना चाहिए। ऐसी मिट्टी में इसकी पैदावार अच्छी होती हैं।
उत्तरी क्षेत्र के लिए उन्नत किस्में : एफ-286, एल एस-886, एच-1117, एच एस-6, गंगानगर अगेती, आर एस-875, पूसा 8 व 6, आर जी-8, राज एच एच-116, धनलक्ष्मी, सी एस ए ए-2, डी एस-1, एल डी-230, एल डी-327, फतेह, एल डी एच-11
मध्य क्षेत्र हेतु उन्नत कस्में : कंडवा-3, के सी-94-2, माल्जरी,, जे के एच वाई 1, 2, पी के वी-081, एन एच - 36, रोहिणी, एच एच वी-12, एन एच एच -44, पी ए-183, ए के ए-4, गुजरात कॉटन-12, 14, 16, एल आर के- 516, एच-8, डी एच-7, 10, डी एच-5
दक्षिण क्षेत्र हेतु उन्नत किस्में : एल आर ए- 5166, एल ए- 920, कंचन, श्रीसाईंलम महानदी, एन ए- 1315, सविता, एच बी- 224 ,शारदा, जे के- 119, अबदीता, जी- 22, ए के- 235, डी सी एच- 32, डी एच बी- 105, डी डी एच- 2, डी डी एच- 11, एम सी यू- 5, एम सी यू- 7, एम सी यू- 9, सुरभि के- 10, के- 11, सविता, सूर्या, एच बी- 224, आर सी एच- 2, डी सी एच- 32
ध्यान देने योग्य : पिछले 10 से 12 वर्षों में बी टी कपास की कई किस्में भारत के सभी क्षेत्रों में उगाई जाने लगी हैं। जिनमें मुख्य किस्में इस प्रकार से हैं, जैसे- आर सी एच- 308, आर सी एच- 314, एम आर सी- 6301, एम आर सी- 6304, आर सी एच- 134, आर सी एच- 317 आदि हैं।
कपास के उन्नत प्रजातियों का बीज प्रति हेक्टेयर 2 से 3 किलोग्राम और संकर तथा बीटी कपास की किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम पर्याप्त होता हैं।
कपास के बीजों को खेत में रोपाई से पहले उन्हें शोधन कर लेना चाहिए। जिससे बीजों में लगने वाले कीट रोग का खतरा कम हो जाता है। बीज सुखाने के बाद कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. की दर से बीज शोधन करना चाहिए। फफूंदनाशक दवाई के उपचार से राइजोक्टोनिया जड़ गलन फ्यूजेरियम उकठा और अन्य भूमि जनित फफूंद से होने वाली व्याधियों को बचाया जा सकता है। कार्बेन्डाजिम अन्तप्रवाही (सिस्टेमिक) रसायन है। जिससे प्राथमिक अवस्था में रोगों के आक्रमण से बचाया जा सकता है।
कपास की बुवाई पंक्ति में की जाती हैं। देसी कपास की बुवाई ट्रैक्टर द्वारा करने पर कतार से कतार की दूरी 67.5 सेमी. व पौध से पौध की दूरी 30 सेमी. तथा हाइब्रिड एवं अमरीकन कपास की बुवाई देशी हल से करने पर कतारों के मध्य की दूरी 70 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. हो। भूमि में जहां जलस्तर ऊँचा हो या लवणीय मिट्टी/पानी हो या जलभराव की समस्या हो वहां मेड़ों पर बुवाई करना उपयोगी है। इसके लिए 20-25 सेमी. ऊंची मेड़े बनाकर नीचे से दो तिहाई भाग पर निश्चित दूरी पर खुर्पी द्वारा मेड़ों पर बुवाई करें। बुवाई हेतु प्रतिस्थान केवल 4 से 5 बीज ही प्रयोग करें।
अच्छी पैदावार के लिए कपास की बुवाई से 1 महीने पहले इसके खेत को तैयार करते समय 2.5 से किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा विरिडी को 150 से 200 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर खेत की जुताई के समय खेत में समान रूप से मिला दें। इसके बाद 75 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 35 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश संकर व बी टी किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर की नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फास्फोरस 75 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम एवं सल्फर 25 किलोग्राम पर्याप्त होता है. सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन की 15 फीसदी मात्रा बुवाई के समय तथा बाकी मात्रा ( तीन बराबर भागों में) 30, 60 तथा 90 दिन के अंतराल पर देना चाहिए. वहीं फास्फोरस एवं पोटाश की आधी मात्रा बुआई के समय तथा आधी मात्रा फूलों की कलियां बनते समय देवें।
कपास की बुवाई बारिश के मौसम में की गयी हैं, तो इसकी पहली सिंचाई नमी के आधार पर करें। वैसे तो कपास के खेत को बहुत ही कम सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। इसके खेत को बुवाई के बाद कुल 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। इसके खेत की सिंचाई उर्वरक देने के बाद एवं फल आते समय अवश्य करें। इसके खेत की पहली सिंचाई अंकुरण के बाद 20 से 30 दिन में करें। इसके बाद इसकी सिंचाई 25 से 30 दिन बाद करें। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि टिंडे बनते समय पानी की कमी न हो। इसके खेत की सिंचाई में टपक विधि प्रभावी पाई गई हैं। इसके पैदावार भी बढ़ी है और पानी की भी बचत होती हैं।
कपास के खेत की पहली निराई-गुडाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद प्रकृतिक विधि से करें। शेष निराई-गुड़ाई 2 से 3 बार फूल व टिंडे बनने के पहले ही समाप्त कर लेना आवश्यक है। इस बात का विशेष ध्यान दें कि कपास की फसल बढ़वार वाली अवस्थाओं में पूरी तरह खरपतवार रहित हो।
कपास में टिंडे पूरे खिल जायें तब उनकी चुनाई कर लीजिये। प्रथम चुनाई 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर शुरू करें और दूसरी शेष टिण्डों के खिलने पर करें।
उपरोक्त उन्नत विधि से खेती करने पर देशी कपास की 20 से 25, संकर कपास की 25 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार ली जा सकती है। किसानों को कपास की खेती से अच्छी आमदनी होती हैं। इसकी अलग-अलग किस्मों से अलग-अलग पैदावार मिलती हैं। कपास का बाजार भाव 5 हजार रूपए प्रति क्विंटल के आस पासा होता है। जिससे किसान भाई को एक हेक्टेयर खेत से लगभग 3 लाख रूपए से ज्यादा की कमाई हो सकती हैं ।
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