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मिलेट क्रॉप फार्मिंग : बाजरे की उपज बढ़ाने का उन्नत तरीका होगा दोगुना उत्पादन

मिलेट क्रॉप फार्मिंग : बाजरे की उपज बढ़ाने का उन्नत तरीका होगा दोगुना उत्पादन
पोस्ट -11 फ़रवरी 2023 शेयर पोस्ट

मिलेट क्रॉप फार्मिंग - दो गुना तक बढ़ाई जा सकती है बाजरे की पैदावार, इन बातों का रखना होगा ध्यान

मिलेट क्रॉप फार्मिंग : मोटे अनाज (मिलेट) वाली फसलों में बाजरा एक प्रमुख फसल है। भारत में इसकी खेती लगभग 9.5 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल में होती है। जिससे कुल उत्पादन 9.8 मिलिटन टन तक होता है। वैश्विक बाजरे की खेती में भारत 42 प्रतिशत क्षेत्रफल की भागीदारी रखता है। भारत में बाजरे को मुख्य रूप से खरीफ सीजन में उगाया जाता है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं कर्नाटक आदि राज्यों में इसे प्रमुखता से उगाया जाता है। देश के कुल क्षेत्रफल में उगाये जा रहे बाजरे में लगभग 46 से 49 प्रतिशत हिस्सा  राजस्थान का होता है। राजस्थान में इसकी खेती लगभग 5.51 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल में होती है, जिससे करीब 6.11 मिलियन टन उपज होती है। राजस्थान में इसकी खेती से औसत उपज 18 से 18.50 क्विंटल प्रति हैक्टयर है। देश में बाजरा के उत्पादन और खपत को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में किसान भाई बाजरे की खेती में नीचे बताई गई बातों पर ध्यान रखते हुए, फसल की उपज को दोगुना तक बढ़़ा सकते हैं। इस पोस्ट में बाजरा की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है। 

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दाने एवं चारे के लिए होती है बाजरे की खेती  

विपरीत परिस्थितियों एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रों में बाजरे की खेती किसी वरदान से कम नहीं है। यह सूखा सहनशील एवं कम अवधि (मुख्यतः 2 से 3 महीने) की फसल है। इसे लगभग सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है। बाजरा उन क्षेत्रों के उपयुक्त रहता है, जहां 500 से 600 मि.मी. वर्षा प्रति वर्ष होती है। देश के शुष्क पश्चिम एवं उत्तरी क्षेत्रों में बाजरा बहुत कम उर्वरकों की मात्रा के साथ अन्य फसलों के उत्पादन के विपरीत बहुत अच्छी पैदावार देता है। ऐसे क्षेत्रों में ज्यादातर बाजरे की खेती दाने एवं चारे के लिए की जाती है। चारे के रूप में बाजरे के सभी भागों का उपयोग किया जाता है। है। भारत में अधिकतर किसान बाजरे की खेती दानों के लिए करते हैं। 

बाजरे की पैदावार बढ़ाने के लिए इन बातों का रखे ध्यान

उपयुक्त भूमि का चुनाव करें : बाजरे को शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में मुख्य रूप से उगाया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में इसकी फसल तेजी से बढ़ती है। इसमें सूखा सहन करने की अद्भुत शक्ति होती है। यह 45 डिग्री के तापमान को आसानी से सहन कर सकता है। इसे हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि का चुनाव करें। भूमि का पीएच मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए।  

बुवाई सही समय पर करें- बाजरा की फसल से अच्छी उपज प्राप्त हो सके, इसके लिए इसकी फसल बुवाई सही समय पर होनी चाहिए। बाजरा की बुवाई मुख्यतः मानसून पर आधारित होती है। इसलिए कभी इसकी बुवाई जून के प्रथम सप्ताह में तथा कभी अगस्त महीने के प्रथम सप्ताह तक की जाती है। लेकिन जुलाई का पहला सप्ताह इसकी बुवाई के लिए सही समय होता है। 10 से 15 जून के बाद 50 से 60 मि.मी. वर्षा होने पर भी बाजरा की बुवाई की जा सकती है। ध्यान रहे अगर इसकी बुवाई 15 से 20 जुलाई के बाद की जाती है, तो इसकी उपज प्रभावित होती है। ऐसी परिस्थितियों में नर्सरी विधि द्वारा भी इसकी बुवाई की जा सकती है, जिससे देरी से की गई बुवाई की तुलना काफी अच्छी पैदावर मिल सकती है। 

बाजरे की उन्नत किस्मों की करें बुवाई- अक्सर देखा गया है कि जल्दबाजी में किसान बाजरे की बुवाई में सामान्य बीजों का इस्तेमाल करता है, जिससे पैदावार पर प्रभाव पड़ता है। एक कारण यह भी है कि कई बार किसानों को प्रायः उच्च कोटि के प्रमाणित बीज समय पर नहीं मिल पाता। बाजरा फसल से अच्छी उपज के लिए वर्षा आधारित/बारानी क्षेत्रों में 60-75 दिनों में पकने वाली उन्नत और प्रमाणित संकुल प्रजातियों को ही बोना चाहिए। इसमें एचएचबी-67. एचएचबी-60, आरएचबी-30 आरएच बी-154 एवं राज.-171 आदि प्रमाणित संकुल किस्मों का बुवाई करें। 

सिंचित इलाकों के लिए एम.पी.एम.एच 17(एम.एच.1663), कवेरी सुपर वोस (एम.एच.1553), के.वी.एच. 108 (एम.एच. 1737), जी.वी.एच. 905 (एम.एच. 1055), 86 एम 89 (एम एच 1747), एच.एच.बी. 223(एम.एच. 1468), एम.वी.एच. 130, 86 एम. 86 (एम. एच. 1684), आदि किस्मों की बुवाई करें। 

बीजों की मात्रा का रखें ध्यान : बाजरा की फसल लगाने के लिए बीजों की मात्रा बीजों के अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका और समय पर निर्भर है। यदि इसकी खेती की बुवाई उचित समय और उचित तरीके की जा रही है, तो बाजरे की फसल के लिए 4 से 5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए। 

बिजाई से पहले बीजोपचार जरूर करें : बारानी अवस्था में 60-65 हजार पौधे प्रति एकड़ एवं 75-80 हजार पौधे सिंचित क्षेत्रों में प्राप्त हो सकें, इसके लिए बाजरे की बुवाई पंक्तियों में 45 से 50 सेमी. की दूरी पर व पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी. रखते हुए करें। फसल की बिजाई करने से पहले इसके बीजों को कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम अथवा एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार जरूर करें। इससे फसल पर रोग नहीं लगते और पैदावार भी बढ़ती है। 

अच्छे से तैयार करें खेत- बाजरा की बुवाई के लिए इसके खेत को अच्छे से तैयार करने के लिए ग्रीष्मकाल के दौरान पहले इसके खेत की 1 से 2 जुताई कर छोड़ दे। इसके बाद बुवाई से पहले खेत 10 से 12 टन गोबर की खाद डालकर 2 से 3 गहरी जुताई करें। इसके बाद पलेव कर के खेत को 3 से 4 दिन के लिए छोड़ दे। खेत जब सूखा दिखाई देने लगे तब सीड ड्रिल/सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल की मदद से बुवाई करें। 

फसल की सही समय पर करें सिंचाई - आमतौर पर बाजरा की फसल को सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। लेकिन फुटाव व फूल बनते समय एवं बीज की दूधिया अवस्था में सिंचाई करना आवश्यक होता है। इसकी फसल की आवश्यकता के अनुसार 3 से 4 सिंचाई अवश्य करें। जो क्षेत्र वर्षा आधारित हैं, वहां नमी के हिसाब से सिंचाई करें। अधिक दिनों तक वर्षा न होने पर नमी बनाएं रखने के लिए 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण - खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के 25 से 30 दिनों के पश्चात निराई-गुड़ाई करें। इससे भूमि में पौधों की जड़ों तक हवा का आवागमन सही प्रकार से होता है। वहीं, रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन (50 डब्ल्यूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें। 

फसल में रोगों एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीजों को उपचारित कर बुआई करें। इसके लिए बीजों को जीवाणु खाद (एजोस्पिरिलम व फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया) से बीजोपचार करें। बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद, जहां कम पौधे हैं, वहां खाली जगह भरनी चाहिए। जहां सघन पौध हैं, वहां विरलन करके प्रति एकड़ की दर से वांछित पौधों की संख्या रखनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग- बुवाई के वक्त आधी मात्रा नाइट्रोजन एवं पूरी मात्रा फॉस्फोरस (40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस बारानी क्षेत्रों तथा 125 कि.ग्रा. नाइट्रोजन,  60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस सिंचित क्षेत्रों के लिए) का इस्तेमाल करें। शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा दो भागों में बुवाई के 20 से 25 दिनों के बाद तथा 40 से  45 दिनों के बाद इस्तेमाल करें।

2500-3000 रुपये प्रति एकड़ अलग से लाभ 

बाजरे की फसल से औसत पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाती है। लेकिन इसकी खेती से अच्छी पैदावार के लिए बाजरा- गेहूं या जौ, बाजरा- सरसों या तारामीरा, बाजरा- चना, मटर या मसूर. एकवर्षीय फसल चक्रों को अपनाना चाहिए। बाजरे के साथ ग्वार, मूंग, उड़द एवं लोबिया को अंतरवर्तीय फसल के रूप में 2ः1 अथवा 6ः3 के अनुपात में बोकर किसान भाई 2500 से 3000 रुपए प्रति एकड़ अलग अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं। 

पैदावार - उचित तरीके से सिंचित अवस्था में बाजरा की फसल से 30 से 35 क्विंटल दाना, 70 से 100 क्विंटल/हेक्टेयर सूखी कड़वी प्राप्त होती है। बाजरा का बाजार भाव लगभग 2,350 से 2,500 रूपए प्रति क्विंटल तक प्राप्त हो जाता है। जिससे इसकी एक बार की फसल से 60 हजार रूपये प्रति एकड़ तक हो सकती है। इसके अलावा, पशुओं के लिए चारा भी मिल जाता है। 
 

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