भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां रबी और खरीफ इन दो सीजन में मुख्यत: किसान फसलों का उत्पादन करते हैं। इस समय खेतों में रबी की फसल की कटाई हो चुकी है, ज्यादातर खेत खाली पड़े हुए हैं। किसानों को खरीफ फसल बुआई का इंतजार है। खरीफ सीजन में बाजरा, मक्का, ज्चार, ग्वार, तिलहन, मूंग, उड़द, चौला, सोयाबीन, धान आदि की फसलें उगाई जाती हैं। धान की फसल में पानी की बहुत अधिक जरूरत होती है, इसमें खेत में पानी भरा होना चाहिए। ऐसे में किसान धान के साथ मछली पालन भी कर सकते हैं। धान की रोपाई करते समय ही मछली का बीज भी धान की फसल के बीच में डाल दें, इससे आपको धान के अलावा मछली उत्पादन का लाभ भी मिलेगा। भारत में बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, हरियाणा, राजस्थान सहित कई राज्यों में धान (Rice) धान की खेती व्यापक रूप से की जाती है। किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि वे धान के साथ ही मछली पालन भी अपने खेतों में शुरू कर दें। यह महंगाई का युग है और आजकल खेती के साथ-साथ दूसरा ऐसा कृषि आधारित व्यवसाय भी करना चाहिए जो आपको कम लागत में ज्यादा कमाई दे सके। मछली पालन भी ऐसा ही एक्स्ट्रा कमाई का जरिया है जो धान की खेती में आसानी से किया सकता है। यहां ट्रैक्टर गुरू पर इस पोस्ट में आपको धान की खेती और मछली पालन को लेकर पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। इसे लाइक और शेयर करें।
बता दें कि धान की फसल में बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है। लगभग दो महीने तक धान के खेतों में पानी जमा रहना आवश्यक है, इसके बाद ही धान की रोपाई सही ढंग से हो सकती है। इस पानी में आप यदि मछली के उन्नत बीज डाल देंगे तो कुछ दिन बाद ही ये बीज छोटी मछलियों के रूप में विकसित होने लगेंगे। मछली उत्पादन के लिए आपको अलग से कोई विशेष व्यय नहीं करना पड़ता। इसके अलावा लागत भी इसमें कम आएगी। वहीं मेहनत भी कम होगी। जब धान की फसल पक कर तैयार हो जाएगी तब तक मछलियों का आकार भी बढ़ जाएगा। अब धान की फसल से पहले आप मछलियों का उत्पादन ले सकते हैं।
यदि अलग से मछली पालन व्यवसाय करना होता है तो उसके लिए तालाब का निर्माण करना जरूरी है, लेकिन धान की खेती में मछलियों को नेचुरल पौष्टिक भोजन मिलेगा। मछलियां धान के खेत में कीड़े-मकौड़े खाकर ही अपना पेट भर लेती हैं। किसानों को मछलियों के लिए दाने या अन्य प्रकार के भोजन के लिए अलग से कोई पैसा नहीं खर्च करना पड़ेगा। इससे किसानों का पैसा बचेगा। मछलियों द्वारा धान के खेत में भरे पानी में पैदा होने वाले कीट-पतंगों को खाने से किसानों के लिए फसल को कीटों से बचाने के लिए दवा के छिड़काव की जरूरत नहीं होगी।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि धान की फसल के बीच में मछली पालन करना किसानों के लिए दोहरे लाभ का सौदा होता है। इससे मछलियां जो अपशिष्ट पदार्थ छोड़ती हैं उससे धान की फसलों की जड़ों को खाद मिलती है और धान की फसल का उत्पादन बढ़ता है। इस तरह खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी। किसानों को खाद डालने की जरूरत नहीं होगी।
धान की खेती के साथ मछली पालन भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी खूब किया जाता है। यह एक ट्रेडिशनल खेती का नया तरीका है। बांग्लादेश, चीन, कोरिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और फिलीपींस में भी धान की खेती करने की परंपरा है। अब बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में किसान धान की खेती के साथ मछली पालन कर रहे हैं।
जिस तरह से धान के खेत के पानी में किसान मछली पालन कर रहे हैं उसी प्रकार आजकल मछली पालन व्यवसाय के लिए बायो ब्लाक तैयार कर इनमें मत्स्य पालन किया जा सकता है। इस विधि में बहुत कम जगह में बायोब्लाक तैयार करना होता है। इसमें फिश फॉर्मिंग करें। इसमें सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि लागत कम होगी और आमदनी कई गुना ज्यादा। बायो ब्लाक बनाने के बाद करीब 10 साल इसमें मछलियां पाली जा सकती हैं। मछलियों का बीज बायो ब्लाक में छोड़ने के बाद करीब 5-6 महीने में मछलियों का अच्छा उत्पादन होता है।
बायोब्लाक विधि से मछली पालन करने पर एक बार में 1 लाख रुपये की कमाई होती है। साल में दो बार मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। 2 घन मीटर गहराई वाले बायोब्लाक में 400-500 मछलियां तैयार हो जाती हैं। इनका वजन 1 से डेढ़ किलो तक होता है। बाजार में इनकी कीमत 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक होती है।
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