मार्च और अप्रैल में रबी फसलों की कटाई के पश्चात किसान अपने खेतों को खाली छोड़ देते हैं। वहीं, देश के कुछ राज्यों में किसान खेत खाली छोड़ने के स्थान पर इनमें जायद सीजन की फसल की बुवाई कर पैसा कमाते हैं। औसतन देखा जाए तो अधिकतर किसान अगली फसल की खेती करने के बजाए खेतों को खाली छोड़ना ज्यादा पंसद करते हैं, लेकिन किसानों को ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। रबी फसलों की कटाई के बाद खाली खेतों में जायद फसलों की खेती करनी चाहिए। अगर किसान खेत खाली छोड़ना चाहते हैं, तो बिना गहरी जुताई के ऐसा नहीं करना चाहिए। बिना जुताई के खेत खाली छोड़ने से खेतों की मिट्टी ठोस और बंजर होती है। अगर आप रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करते हैं, तो खेत में नमी रहने के कारण जुताई आसानी से हो जाती है। इसके अलावा जुताई के दौरान मिट्टी के बड़े- बड़े ढेले बनते हैं, जिससे भूमि में वायु संचार बढ़ता है। साथ ही मिट्टी के ऊपर-नीचे होने से पुरानी फसल अवशेष और खरपतवार मिट्टी में दब जाते हैं , जो धीरे-धीरे सड़कर खाद में तब्दील हो जाते हैं। मिट्टी में मौजूद कीटों औेर लार्वा जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं वे भी नष्ट हो जाते हैं। इसका लाभ अगली फसल की पैदावार पर दिखाई देता है। अगली फसलों से बेहतर पैदावार मिलती है। आइए, इस ट्रैक्टर गुरु की पोस्ट की माध्यम से गर्मियों के मौसम में खेतों की गहरी जुताई कर छोड़ने के लाभ के बारे में जानते हैं।
गर्मी के मौसम में किसानों को मिट्टी पलटने वाले हल, कल्टीवेटर, डिस्क हैरो, एमबी प्लॉउ, प्लॉउ, सब्स्वॉयलर हल और डक फुट कल्टीवेटर की मदद से अपने खेतों में 15 सेमी. तक गहरी ग्रीष्मकालीन जुताई करनी चाहिए। ये सभी कृषि उपकरण खेत की मिट्टी को गहराई से बड़े- बड़े ढेले के रूप में ऊपर-नीचे पलटते हैं। गर्मी के मौसम में इस प्रकार की जुताई से जो ढेले बनते हैं वे धीरे-धीरे हवा और बारिश से टूटते रहते हैं, जिससे मिट्टी में वायु संचार और जल सोखने की क्षमता में वृद्धि होती है। इस प्रकार की जुताई करने से जमीन की सतह पर पड़ी पुरानी फसल अवशेष, फसलों की जड़ें और खरपतवार आदि मिट्टी के नीचे दब जाते हैं, जो सड़ने के बाद मिट्टी में जीवाश्म और कार्बनिक पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि करते हैं। इससे जमीन की उर्वरक शक्ति बढ़ती है। साथ ही मिट्टी की भौतिक संरचना में भी सुधार होता है।
गर्मी के मौसम में खेतों की जुताई कर खाली छोड़ने से मिट्टी को अंदर तक वायु और सूर्य का प्रकाश सुचारू रूप से मिलता है, जिससे मिट्टी में खनिज पदार्थो की मात्र बढ़ती है। इसके अतिरिक्त इस क्रिया से मिट्ठी की संरचना दानेदार होती है, जिससे भूमि में वायु संचार और जल धारण क्षमता बढ जाती है। इसके अलावा, जुताई के दौरान मिट्टी पलटने से खेत में पनप रहे कीट, लार्वा और कीड़े-मकोड़े ऊपरी सतह पर आने से पड़ने वाली तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं। इसका फायदा अगली फसलों में मिलता है। फसल रोग गस्त न होकर अच्छी पैदावार देती है। खास कर किसान द्वारा उन खेतों की ग्रीष्मकालीन जुताई जरूर करनी चाहिए, जिनमें गेहूं और जौ फसल की बुवाई की गई थी। क्योंकि गेहूं और जौ की फसल में निमेटोड रोग का प्रकोप होता है और यह फसल की गांठों में होता है। यह गांठें भूमि के अंदर होती है, जो जुताई के दौरान ऊपर आकर तेज धूप के संपर्क में आकर सूखकर खत्म हो जाती है।
खेतों की जुताई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जुताई के दौरान मिट्टी के ढेले बड़े आकार में ही रहे। मिट्टी भुरभुरी न होने पाए, क्योंकि गर्मियों में चलने वाली तेज हवा से मृदा अपरदन हो सकता है। बलुई और रेतीली भूमि में ग्रीष्मकालीन जुताई नहीं करनी चाहिए।
बारानी क्षेत्रों में किसानों को गर्मी में मिट्टी पलटने वाले हल से ढलान के विपरीत दिशा में ढलान को काटते हुए जुताई करनी चाहिए। ऐसा करने से बारिश के साथ मिट्टी के बहने की संभावना कम हो जाती है। क्योंकि इस प्रकार की जुताई से बारिश का पानी मिट्टी सोख लेती है और पोषक तत्व भी बहकर खेत से बाहर नहीं जाएंगे।
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