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जीरे की खेती : मसाला फसल जीरे की खेती से कमाएं लाखों रुपए

जीरे की खेती : मसाला फसल जीरे की खेती से कमाएं लाखों रुपए
पोस्ट -07 जून 2022 शेयर पोस्ट

जीरे की उन्नत फसल के बारे में पूरी जानकारी

जीरा एक मसाला फसल है। इसकी खेती मसाले के तौर पर ही की जाती है। यह दिखने में सोंफ की तरह ही होता है, लेकिन इसका रंग थोड़ा मटमैला किस्म का होता है। जीरे का इस्तेमाल कई रूपों में होता है। इसे कई तरह के व्यंजनों में खुशबू उत्पन्न करने के लिए काम लेते हैं। इसके अलावा जीरा अगर सब्जी या अन्य वेज-नॉनवेज डिश में नहीं डाला जाए तो उसका स्वाद कम हो जाता है। यही नहीं, जीरे का खाने में कई तरह से उपयोग करते हैं। इसे भूनकर छाछ, दही, लस्सी आदि में मिलाकर उपयोग में लाते हैं। इससे इनका स्वाद  बढ़ जाता है। यही नहीं जीरे के सेवन से पेट संबंधित कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। जीरा स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी माना गया है। यह एक ऐसी मसाला फसल है जिसकी देश-विदेश में मांग सदैव उच्च स्तर पर बनी रहती है। मांग के लिहाज से जीरा किसानों के लिए काफी लाभ देने वाली फसल है। अगर किसान जीरे की खेती उन्नत किस्मों एवं वैज्ञानिक विधि द्वारा करें तो किसान इसकी खेती से लाखों की कमाई कर सकते हैं। यदि आप भी जीरे की खेती करना चाहते है तो ट्रैक्टरगुरु की इस पोस्ट को ध्यानपूर्वक पूरा अवश्य पढ़े।  

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जीरा है गुणों की खान 

जीरे का उपयोग मसालों के रूप में किया  जाता है। जीरा न सिर्फ स्वाद बढ़ाने का काम करते हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बेजोड़ होते हैं। जीरे में कई तरह के औषधीय गुण छुपे हुए हैं। इनसे आपकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जीरा शरीर के सभी अंगों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की मानें तो जीरे  में कुछ ऐसे पोषक तत्व मौजूद होते है जिनके कारण दिल से संबंधित बीमारियों का खतरा कम होता है एवं प्रेग्नेंसी के बाद इसे पीने से कई फायदे होते हैं। जीरे में पर्याप्त मात्रा में मौजूद पोषक तत्व और खनिज इसकी गुणवत्ता को  बढ़ाने में सहायक हैं। जीरा ऊर्जा, विटामिन ए, सी, ई और बी 6, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन ए और खनिज जैसे लोहा, मैंगनीज, तांबा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम का अच्छा स्रोत है। यह प्रोटीन और अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, आहार फाइबर और वसा और फैटी एसिड की उचित मात्रा में भी समृद्ध है।

भारत में जीरे की खेती के प्रमुख प्रदेश 

भारत में जीरे की खेती सबसे अधिक राजस्थान और गुजरात में की जाती है।  यहाँ पर पूरे देश का कुल 80 प्रतिशत जीरा उत्पादित किया जाता है। इसमें 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन अकेले राजस्थान राज्य में होता है। इसके पश्चिमी क्षेत्र में राज्य का  80 प्रतिशत जीरा उत्पादन होता है। वही पड़ोसी राज्य गुजरात में राजस्थान की अपेक्षा अधिक पैदावार होती है। वर्तमान समय में जीरे की उन्नत किस्में उगाकर उत्पादन क्षमता को  25 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। 

जानें, जीरे के पौधे के बारे में 

जीरा का वानस्पतिक  नाम: क्यूमिनम सायमिनम है। यह एँपियेशी परिवार का एक पुष्पीय पौधा है। यह पूर्वी भूमध्य सागर से लेकर भारत के पठारी प्रदेशों में उगाया जा सकता है। इसके प्रत्येक फल में स्थित बीजों को सुखाकर बहुत से खानपान व्यंजनों में साबुत या पिसा हुआ मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका पौधा 30 से 50 से. मी. (0.98 से 1.64 फीट) की ऊचाई तक का होता है। इसके फलों को हाथ से ही तोड़ा जाता है। यह वार्षिक फसल वाला मुलायम एवं चिकनी त्वचा वाला हर्बेशियस पौधा है। इसके तने में कई शाखाएं होती हैं। सभी शाखाएं समान ऊंचाई लेती हैं जिनसे ये छतरीनुमा आकार ले लेता है। इसका तना गहरे हरे रंग का सलेटी आभा लिये हुए होता है। इन पर 5 से 10 सेंमी का धागे जैसे आकार  की मुलायम पत्तियां होती हैं। इनके आगे श्वेत  या हल्के गुलाबी वर्ण के  छोटे-छोटे पुष्प अम्बेल आकार के होते हैं। प्रत्येक अम्बेल में 5 से 7 अम्ब्लेट होती हैं। 

जीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

जीरे की खेती के लिए शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। बीज पकने की अवस्था पर अपेक्षाकृत गर्म एवं शुष्क मौसम जीरे की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक होता है। जीरे की अच्छी पैदावार के  लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए।  भूमि का पीएच मान भी सामान्य होना चाहिए। जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते हैं।   जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 25 से 30 डिग्री उपयुक्त माना गया है। वहीं  पौधों की  वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान उचित होता है। जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक व 10 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर जीरे के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

जीरे की उत्तम किस्में 

व्यावसायिक तौर पर जीरे की खेती के लिए जीरे की कई  उन्नत किस्में जैसे आर जेड-19, आरजेड-209, जीसी-4, आरजेड-223 इत्यादि हैं। कृषि अनुसंधान विभाग द्वारा जीरे की कई  उन्नत किस्में  तैयार की गई हैं जिन्हें आप अपने क्षेत्र के अनुसार इसका खेती के लिए चयन कर सकते हैं। जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार लेने के लिए उगा सकते हैं। जीरे की इन किस्मों के पकने की अवधि  110 से 120 दिन तक की होती है। इन किस्मों की औसतन उपज 7 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 

जीरे की बुआई का उचित समय 

जीरे की बुवाई 15 से 20 नवंबर के बीच करना उपयुक्त माना जाता है। जीरे की बुवाई के लिए एक  हेक्टेयर खेत में 12 से 15 किलोग्राम की  दर से बीजों की आवश्यकता होती हैं। बीजों की बुवाई से पहले जीरे के बीज को उपचारित करना बहुत जरूरी है। इसके बीजों के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकजोडरमाबेडी भी मिला सकते हैं। जीरे की बुवाई अधिकतर किसान छिडक़ाव विधि से की जाती है। 

जीरे की बुआई का तरीका 

जीरे के बीजों की बुवाई बीज के रूप में की जाती है। इसके लिए छिडक़ाव और ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है। जीरे की बुआई करने से पहले खेतों में क्यारी बना लें फिर उसमें बीज का छिडक़ाव कर दें। बीज छिडक़ने के बाद लोहे दंताली या हाथ से बीजों को मिट्टी में एक से डेढ़ सेमी नीचे दब दें, ताकि बीजों पर मिट्टी की हल्की परत चढ़ जाए। ध्यान रखें कि बीज जमीन में अधिक गहरे नहीं जा पाएं। इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको  खेत में क्यारियों को तैयार कर लेना होता है।  प्रत्येक क्यारी के मध्य एक फीट की दूरी रखी जाती है। पंक्तियों में बीजो की  बुवाई 10 से 15 सेमी. की दूरी पर की जाती है। बुवाई के वक्त यह ध्यान रखें कि  बीज मिट्टी से ठीक ढग़ से ढंक जाए। 

जीरे की खेती में कब करें खाद व उर्वरक का प्रयोग ? 

जीरे की खेती में खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि परीक्षण के आधार पर दें। खेत को बुवाई के लिए तैयार करने से पहले मिट्टी परीक्षण जरूर करा लेना चाहिए। इससे भूमि पोषक तत्वों की कमी या अधिकता का पता चल जाता है। मिट्टी परीक्षण रिर्पोट कार्ड के अनुसार किसान इसकी खेती में खाद उर्वरकों की मात्रा का उचित प्रयोग कर अच्छी पैदावार ले सकते है। सामान्य परिस्थितियों में किसान भाई जीरे की खेती के लिए पहले 5 से 10 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद ड़ाल कर अच्छे से अन्तिम जुताई के साथ खेत में मिला दें। इसके बाद बुवाई के समय 65 किलोग्राम डी.ए.पी, 9 किलोग्राम यूरिया मिलाकर खेत में दें। पहली सिंचाई के समय 33 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिडक़ाव कर देना उचित हैं। 

सिंचाई की आवश्यकता कब-कब होती है 

जीरे के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है। जीरे की फसल में पहली सिंचाई बीजों की बुवाई के तुरंत बाद कर दी जाती है। सिंचाई धीमे बहाव से हल्की मात्रा में करनी चाहिए। इसके बाद खेत की दूसरी सिंचाई बुवाई से 10 से 15 दिनों के अन्तराल में एवं तीसरी सिंचाई 20 से 25 दिन पर करनी चाहिए। जीरे के खेत को कुल 5 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जीरे के खेत की सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें की पानी का बहाव तेज न हो। तेज पानी के बहाव से पौधे उखडऩे का खतरा होता है। 

जीरे के पौधों की देखभाल

  • खरपतवार नियंत्रण : जीरे के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीके से खेत की बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन के बाद निराई गुड़ाई करें एवं खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर 15 से 20 दिन के अंतराल में निराई गुड़ाई करते रहें। जीरे के खेत को अधिकतम दो से चार गुड़ाई की आवश्यकता होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक प्रयोग के लिए आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लें। इसे जीरे की बुवाई के बाद खेत में छिडक़ाव कर दें।

  • रोग और इनकी रोकथाम :  जीरे के पौधों में दीमक नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के समय पर क्लोरोपाइरीफॉस या क्योनालफॉस की 20 -25 कि.ग्रा.मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से भुरकाव कर देनी चाहिए। इसके बाद भी दीमक का प्रकोप देखने को मिले तो क्लोरोपाइरीफॉस कि 2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से सिंचाई के साथ दें।

  • उखटा रोग : इसकी रोकथाम के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा की 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचरित करके बोना चाहिए। इसके बाद अगर फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2.50 कि.ग्रा.ट्राइकोडर्मा कि 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिडक़ाव कर हल्की सिंचाई कर लें।

  • चेंपा नियंत्रण : जीरे में चेंपा नियंत्रण के लिए एमिडाक्लोप्रिड की 0.5 लीटर या मैलाथियान 50 ई.सी. की एक लीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से 500  लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कर देना चहिए। 

  • झुलसा रोग : इसके  नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर छिडक़ाव कर दें। 

  • छाछया रोग : इस रोग के नियंत्रण हेतु गन्धक का चूर्ण 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से भुरकाव करें या एक लीटर कैराथेन प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कर लें। 

जीरे की खेती से पैदावार एवं कमाई का अनुमान

जीरे की उन्नत विधियों के साथ उन्नत किस्में के उपयोग से खेती करने पर उपयोग करने पर जीरे की औसत उपज 7-8 क्विंटल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती है। जीरे फसल उन्नत किस्म के बीज बुवाई के लगभग 115 से 120 दिनों पश्चात पककर तैयार हो जाती है। जब जीरे के पौधों में लगे बीजों का रंग हल्का भूरा दिखाई देने लगे तो उस दौरान फसल को काट लिया जाता है। फसल काटने के बाद इसे खेत में ही सुखा लिया जाता है। फसल सुखाने के बाद मशीन के द्वारा इसके बीज को फसल से अलग कर लिया जाता है। जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हजार रुपये प्रति हेक्टयर का खर्च आता है।  जीरे के दाने का 100 रुपये प्रति किलो भाव रहने पर 40 से 45 हजार रुपए  प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है। अगर किसान इसकी खेती पांच  एकड़ की भूमि पर करें तो उसे दो से सवा दो लाख रुपये  की शुद्ध कमाई हो सकती है। 

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