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कालमेघ की खेती - कम लागत में होगी किसानों की लाखों कमाई

कालमेघ की खेती - कम लागत में होगी किसानों की लाखों कमाई
पोस्ट -27 जनवरी 2023 शेयर पोस्ट

कालमेघ की खेती - कम लागत में होगी ज्यादा कमाई, जानें उगाने का तरीक सही तरीका

कालमेघ की खेती : देश के किसानों के बीच आज औषधीय पौधों की खेती का चलन काफी तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। देश के कई हिस्सों में किसान पारंपरिक फसलों के बदले औषधीय पौधों की खेती करने में रुचि ले रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि देश-विदेश के बाजारों के अंदर इन औषधीय पौधों की मांग काफी बड़े स्तर पर है, जिससे किसानों को इन औषधीय उपज को बेचने के लिए इधर-उधर नहीं जाना पड़ता है। खास बात यह है कि आज के वक्त में कई आयुर्वेदिक औषधी बनाने वाली कंपनियां किसानों से औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी करवा रही है। ऐसे में किसान औषधीय पौधों की खेती कर बंपर मुनाफा प्राप्त कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना रहे हैं। बीते कुछ सालों से किसान औषधीय पौधों की खेती में विभिन्न किस्मों की खेती कर रहे हैं, जिनमें कालमेघ भी शामिल है। भारत में कालमेघ की खेती बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में व्यापक रूप से की जा रही है। इन राज्यों के किसान कालमेघ की व्यापारिक खेती कर कम लागत, समय और श्रम पर लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं। अगर आप भी औषधीय पौधे कालमेघ की खेती कर खेती से अच्छा मुनाफा लेने चाहते हैं, तो ट्रैक्टरगुरु के इस पोस्ट में आपको हम कालमेघ की कैसे करें, खेती का तरीका और इसका उपयोग किस-किस प्रकार से होता है इसकी जानकारी देने जा रहे हैं। संबंधित जानकारी के लिए इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़ें।

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कालमेघ के बारे में संक्षिप्त

कालमेघ एक बहुवर्षीय शाक जातीय आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है। इसके पौधे को कडू चिरायता या भुईनीम के नाम से भी पहचाना जाता है। कालमेघ की पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है, जिसका उपयोग औषधी बनाने में होता है। यह भारत एवं श्रीलंका देश का मूलनिवासी है। दक्षिण एशिया में कालमेघ की खेती व्यापक रूप से होती है। इसके पौधे की लंबाई 1 से 3 फीट तक होती है। तना बिल्कुल सीधा होता है और इसके प्रत्येक तने से चार शाखाएं निकलती है तथा प्रत्येक शाखाओं में फिर से चार शाखाएं फूटती है। इसकी पत्तियां साधारण हरी रंग की होती है, जिसमें गुलाबी रंग के फूल लगते हैं। इसके पौधे में छोटी-छोटी फलियों में बीज आते हैं। इन बीजों से इसके पौधे तैयार किए जाते हैं। पौधे तैयार करने के लिए इसके बीजों को मई-जून के महीने में नर्सरी में लगाया जाता है। कालमेघ का पौधा छायायुक्त स्थानों पर अच्छे से विकास करता है। कालमेघ के पौधे से बीज प्राप्त करने के लिए इसके पौधों की कटाई फरवरी-मार्च के महीने में करते हैं। इसके पौधों को काटकर व सुखाकर बाजार में बिक्री की जाती है। कालमेघ से औसतन 60 से 80 किलोग्राम सूखा शाकीय भाग प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है। 

कालमेघ के पौधों का उपयोग

आयुर्वेदिक चिकित्सा में कालमेघ एक दिव्य गुणकारी औषधीय पौधा है। भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में इससे हरा चिरायता, देशी चिरायता, बेलवेन, किरयित् के नामों से जाना जाता है। कालमेघ में एक प्रकार क्षारीय तत्व-एन्ड्रोग्राफोलाइडस, कालमेघिन पाया जाता है, जिसके कारण इसका स्वाद कड़वा होता है। इसकी पत्तियों का इस्तेमाल ज्वर नाशक, जांडिस, पेचिस, सिरदर्द कृमिनाशक, रक्तशोधक, विषनाशक और पेट संबंधित अन्य बीमारियों के लिए किया जाता है। इसके इस्तेमाल से यकृत संबंधी रोगों को दूर किया जा सकता है। इसकी जड़ का उपयोग पेट संबंधित बीमारियों के आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक औषधीयों के निर्माण में किया जाता है। यह लीवर यानी यकृत विकारों एवं मलेरिया रोग से निदान के लिए एक तरह से शक्तिवर्धक का कार्य करता है। इसका उपयोग एसिडिटी, वात रोग और चर्मरोग के निदान में किया जाता है। 

कालमेघ की खेत कैसे करें?

कालमेघ की खेती वर्षा शुरू होने के समय करना उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि वर्षा के मौसम में इसके बीजों को अंकुरण के लिए सही वातावरण मिल जाता है। वर्षा ऋतु के दौरान इसको सिंचाई की आवश्यकता  नहीं होती है। इसके पौधों की रोपाई मेड़ और समतल दोनों ही तरह से की जा सकती है। समतल भूमि पर इसके पौधों को 15 सेमी. की दूरी पर कतार में लगाया जाता है। वहीं, मेड़ पर पौधों को 40 X 20 सेमी की दूरी पर कतार में लगाते हैं। कालमेघ की खेती जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि में आसानी से की जा सकती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी. एच. मान सामान्य होना चाहिए। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से की जा सकती है। इसकी खेती 110 सेमी. वार्षिक बारिश वाले क्षेत्रों में आसानी से होती है। किन्तु ठंडे इलाकों में इसकी खेती करना हानिकारक है। इसके पौधे 20 से 45 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते हैं। 

कालमेघ के पौधों की सिंचाई 

कालमेघ के पौधों की रोपाई जून से जुलाई के महीने यानी बारिश के समय में की जाती है, जिसके कारण इसके पौधे को सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम होती है। इसके पौधों को पर्याप्त पानी बारिश से ही मिल जाता है। लेकिन समय पर वर्षा न होने पर इसके पौधों की एक से दो हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए। अगर इसकी खेती बहुवर्षीय तौर पर की गई है, तो आवश्यकता के हिसाब से इसके पौधों की सिंचाई करें। इसके पौधों को पूरे साल करीब 8 से 10 सिंचाई की आवश्यकता होती है। 

कालमेघ की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्र

कालमेघ की खेती के लिए रासायनिक खाद एवं उवर्रक का उपयोग नहीं किया जाता है। इसकी खेती में सिर्फ जैविक और प्राकृतिक खाद एवं उवर्रक का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती के लिए खेत तैयार करते समय जैविक खाद एवं उर्वरक के रूप में प्रति हेक्टेयर में 15 से 20 टन सड़ी गोबर की खाद और 2 से 3 क्विंटल कम्पोस्ट खाद का उपयोग किया कर सकते हैं। यदि आप इसकी खेती में रासायनिक खाद एवं उर्वरक  का इस्तेमाल करना है, तो कृषि विशेषज्ञों एवं मिट्टी जांच के अनुसार ही खाद एवं उर्वरक का उपयोग करें। वहीं, खेती को तैयार करते समय खेत की आखिरी जुताई में 150 किलो एन.पी.के. की मात्रा का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कर सकते हैं। 

कालमेघ के पौधों की कटाई 

कालमेघ एक दिव्य गुणकारी औषधीय पौधा है, जिसकी खेती बहुमूल्य औषधीय फसलों के रूप में की जाती है। इसका पौधा रोपाई के 100 से 120 दिनों पश्चात कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसके पौधों की कटाई साल में दो बार की जा सकती है, जिसमें पहली कटाई नवंबर से दिसंबर के महीने में और दूसरी वर्षा के बाद की जाती है। कालमेघ के पौधों की पत्तियां जब अपने आप गिरना शुरू हो जाये, तो कटाई की जा सकती है। वहीं, इस पर लगे फूल 50 प्रतिशत रह जाए तब कटाई शुरू कर देनी चाहिए। बहुवर्षीय तौर पर की गई इसकी खेती की स्थिति में इसके पौधों को जमीन से 5 से 10 सेमी की ऊंचाई से कटाई करनी चाहिए। ताकि पौधे पर दोबारा विकसित हो सकें।  कटाई के बाद उपज को छायादार जगह पर अच्छे से सुखा लें।

पैदावार और लाभ 

कालमेघ की खेती की अगर सही तरीके से जैविक खाद एवं उर्वरक के उपयोग से अच्छी देख-रेख के साथ की जाए तो इसकी खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसके प्रति हेक्टेयर के खेत से करीब 2 से 4 टन सूखी शाखाएं प्राप्त की जा सकती है। वहीं, इसकी फसल से करीबन 3 से 4 क्विंटल तक बीजों का उत्पादन लिया जा सकता है, जिनका बाजार भाव 15 से 50 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो सकता है। वहीं इसके सूखी शाखाओं का बाजार भाव 70 से 80 हजार प्रति टन तक हो सकता है। इस हिसाब से किसान भाई इसकी एक बार की खेती से लाखों रुपए की कमाई कम लागत खर्च पर आसानी से कर सकते हैं।

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