हमारे देश के किसान आज-कल पारंपरिक खेती के साथ-साथ अपनी आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से मुनाफा कमाने वाली खेती की तरफ रुख कर चुके हैं। इसी कड़ी में जिरेनियम की खेती करके किसान भाई अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। जिरेनियम एक सुगंधित पौधा है और इसके फूल को गरीबों का गुलाब कहा जाता है। जिरेनियम के तेल की बाजार में काफी मांग है। इसका तेल औषधि बनाने के साथ ही और अन्य चीजों में इस्तेमाल होता है। इसके तेल में गुलाब जैसी खुशबू आती है। जिरेनियम के तेल उपयोग एरोमाथेरेपी, सौंदर्य प्रसाधन, इत्र और सुगंधित साबुन बनाने में किया जाता है। किसान भाईयों आज ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ जिरेनियम की खेती से जुड़ी जानकारी साझा करेंगे।
जिरेनियम के तेल का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की दवाई बनाने के रूप में भी किया जाता है। जिरेनियम के तेल का इस्तेमाल करने से अल्जाइमर, तंत्रिका विकृति और कई अन्य विकारों की समस्या को कम करता है। इसके साथ ही इसके तेल से बनी दवाईयों का इस्तेमाल मुंहासों, सूजन और एक्जिमा जैसी स्थिति में भी लाभकारी बताया जाता है। जिरेनियम बढ़ती उम्र के प्रभाव को भी कम करता है। इसके साथ ही मांसपेशिया और त्वचा, बाल और दांतों को होने वाले नुकसान में भी इसका प्रयोग लाभकारी माना गया है।
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में जिरेनियम की मांग प्रतिवर्ष 120-130 टन है और भारत में इसका उत्पादन सिर्फ 1-2 टन तक का होता है। इसलिए इसकी मांग को देखते हुए जिरेनियम की खेती उत्तर भारत के राज्यों में की जा सकती है। जिरेनियम की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। इससे किसानों की आय भी दुगुनी हो सकती है। बता दें कि जिरेनियम की खेती करने वाले किसानों को सरकार सब्सिडी का लाभ भी प्रदान करती है।
जिरेनियम की खेती करने के इच्छुक किसानों को इसकी खेती करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं वों बाते इस प्रकार से हैं-
जिरेनियम की खेती करने के लिए हर तरह की जलवायु अच्छी मानी जाती है। लेकिन कम नमी वाली हल्की जलवायु इसकी अच्छी पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। जिरेनियम की खेती उस क्षेत्र में की जानी चाहिए जहां वार्षिक जलवायु 100 से 150 सेंटीमीटर तक की हो। वहीं बात करें इसकी खेती करने के लिए मिट्टी की तो इसकी खेती के लिए बलुई दोमट और शुष्क मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच का होना चाहिए।
जिरेनियम की प्रमुख किस्में अल्जीरियन, बोरबन, इजिप्सियन और सिम-पवन हैं।
सबसे पहले ट्रैक्टर व कल्टीवेटर की सहायता से खेत की दो से तीन बार जुताई करने के बाद रोटावेटर से मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके अलावा खेत में जल निकासी के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए। बता दें कि जिरेनियम लंबे समय की खेती है। इसमें किसानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसकी पौध सही ढंग से तैयार करें ताकि इसके पौधे को कोई नुकसान की संभावना नहीं रहे।
जिरमेनियम का पौधा केंद्रीय औषधीय एवं पौधा संस्थान से आसानी से खरीदा जा सकता है। इसके अलावा आप अपने क्षेत्र के आस-पास जिरमेनियम की खेती करने वाले किसानों से भी पौधों की कटिंग ले सकते हैं। अगर आप बड़े क्षेत्र में इसकी खेती करना चाहते हैं तो आप लखनऊ या अपने आस-पास खेती करने वाले किसानों से पौधे लाकर पॉली हाउस में लगा कर इसकी खेती कर सकते हैं।
मार्च का महीना जरमेनियम की खेती करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। मार्च के महीने में पौधों को पॉली हाउस में लगा देना चाहिए। इसे छह महीने तक पॉली हाउस में ही लगाकर रखना चाहिए। पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। छह महीने बाद यह पौधे जब बड़े हो जाएं तो एक पौधे से 10 से 12 कटिंग काट सकते हैं। इस तरह से आपके पास पौधों की संख्या बढ़ जाती है। अब आप इसके पौधों को अपने खेत में लगा सकते हैं।
कटिंग के 45 से 60 दिनों के बाद तैयार खेत में एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 50 सेटीमीटर की होनी चाहिए। पौधे को खेत में लगाने से पहले उसे थीरम या बाविस्टिन से उपचारित कर लेना चाहिए ताकि पौधे को फफूंदी संबंधी बीमारियों से नुकसान ना हो।
जिरेनियम के पौधे के अच्छे विकास के लिए प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद डालना चाहिए। इसके अलावा नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में डालना चाहिए। खेत की अंतिम जुताई के समय फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा दे देनी चाहिए। जबकि नाइट्रोजन को 30 किलो के अनुपात में 15 से 20 दिनों के अंतर पर खेत में डालना चाहिए।
जिरेनियम के पौधे की पहली सिंचाई पौधों को लगाने के तुरंत बाद करनी चाहिए। इसके बाद मौसम और मिट्टी की प्रकृति के अनुसार 5 से 6 दिन के अंतराल पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। ध्यान रहे जिरेनियम कम पानी वाली फसल है इसलिए इसकी आवश्यकता से अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए। ऐसा होने पर इसके पौधे में पौधे में जड़ गलन रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
जब पौधे में पत्तियां परिपक्व हो जाए तब इसकी कटाई करना चाहिए। वैसे तीन से चार महीने बाद ही पौधे की पत्तियां कटाई के लिए उपयुक्त हो जाती है। जब पत्तियां परिपक्व हो जाए तो इसके बाद पत्तियों की पहली कटाई करना चाहिए। बता दें कि कटाई के समय पत्तियां पीली या अधिक रस वाली नहीं होना चाहिए।
जिरेनियम की खेती में प्रति एकड़ लगभग 80 हजार रुपये का खर्च आता है। वहीं इससे आय लगभग 2.5 से 3 लाख रुपये तक हो सकती है। इस तरह जिरेनियम की खेती करके एक एकड़ से 1.5 लाख से 2.5 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।
जिरेनियम की खेती ज्यादातर विदेश में होती है और जिरेनियम के पौधे से निकलने वाला तेल काफी महंगा होता है। भारत में इसकी कीमत प्रति लीटर करीब 12 हजार से लेकर 20 हजार रुपये तक होती है।
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