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बैंगन की खेती : अधिक पैदावार के लिए इस तरह करें बैंगन की खेती

बैंगन की खेती : अधिक पैदावार के लिए इस तरह करें बैंगन की खेती
पोस्ट -18 मई 2022 शेयर पोस्ट

जानें, बैंगन की खेती कब और कैसे करें

भारत एक प्रमुख सब्जी उत्पादक राष्ट्र है जहाँ विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती की जाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक देश में सब्जियों के उत्पादन में लगभग 9 गुणा बढ़ोत्तरी हुई है और 162.19 मिलियन टन (2012-13) शाकीय उत्पादन कर भारत विश्व के सब्जी उत्पादक देशों में दूसरा स्थान रखता है। भारत में वर्तमान समय में लगभग सभी प्रकार की सब्जियों की खेती की जा रही है। लेकिन आज हम जिस सब्जी खेती के बारें में बात करने जा रहे है वह बैंगन की सब्जी है। देश में बैंगन आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी फसल है। विश्व में चीन के बाद भारत बैंगन की दूसरी सबसे अधिक पैदावार वाला देश है। बैंगन भारत का देशज है। प्राचीन काल से भारत में इसकी खेती होती आ रही है। बैंगन को ऊँचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में सफलता पूर्वक उगाया जाता है। बैंगन का प्रयोग सब्जी, भुर्ता, कलौंजी तथा व्यंजन आदि बनाने के लिये किया जाता है। देश में बैगन की मांग 12 महीने बनी रहती है। स्थानीय मांग के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों व प्रान्तों में बैंगन की अलग- अलग किस्में प्रयोग में लाई जाती है। कम लागत में अधिक उपज व आमदनी के लिये उन्नतशील किस्मों एवं वैज्ञानिक तरीकों से खेती करना आवश्यक है। यदि हम सही किस्म का चुनाव, उत्पादन की उन्नतशील तकनीकों, कीट-व्याधियों का उचित प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के अनुरूप बैंगन उत्पादन के अन्य पहलुओं का ध्यान रखकर खेती करें तो बैंगन उत्पादन वर्तमान स्तर की तुलना में दो गुना तक बढ़या जा सकता है। साथ ही कम लागत में अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। तो चालिएं आज हम आपकों ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट से बैंगन की उन्नत खेती के बारें में विस्तार से बताते है।

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बैंगन से संबंधित सामान्य जानकारी  

बैंगन (सोलेनम मैलोंजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। भारत के झारखण्ड राज्य में बैंगन की खेती सब्जी के कुल क्षेत्र के लगभग 10.1 प्रतिशत भाग में उगाई जाती है। बैंगन के पौधे दो से ढाई फीट लम्बे पाए जाते है, इसके पौधों में ढेर सारी शाखाएँ निकलती है, और इन्हीं शाखाओं में इसके फलो की उपज होती है। बैंगन के फल लम्बे, गोल, और अंडाकार आकार में होते है। बैंगन में कई तरह विटामिन, खनिज और पोषक तत्व मौजूद होते है। तथा इसकी पत्तियों में विटामिन ’सी’ की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसके अतिरिक्त बैंगन में विटामिन के, विटामिन बी 6, थायामिन, नियासिन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, कॉपर, फाइबर,पोटेशियम और मैंगनीज पाया जाता है। इसमें कोलेस्ट्रोल या संतृप्त वसा नहीं पाया जाता है। इसका सेवन करने से पेट संबंधित समस्याओ से छुटकारा मिलता है। वर्तमान समय में बैंगन के फल हरे, बैंगनी, पीले और सफेद रंगो में उगाये जाते है। इसकी खेती को पूरे वर्ष आसानी से किया जा सकता है।

बैंगन की उन्नत किस्में 

बैंगन में फलों के रंग तथा पौधों के आकार में बहुत विविधता पायी जाती है। बैंगन की कई उन्नत किस्मों को उनके आकार, रंग और पैदावार के हिसाब से उगाने के लिए तैयार किया गया है। 

स्वर्ण श्यामली : इस अगेती किस्म के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग के धारियां होती है। इसकी पत्तियां एवं फलवृंतों पर कांटे होते हैं। रोपाई के 35-40 दिन बाद फलों की तुड़ाई प्रारंभ हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्विंटल/हेक्टेयर तक होती है। 

काशी तरु : फल लम्बे, चमकीले गहरे बैगनी रंग के होतें है। रोपाई के 75-80 दिन उपरान्त तुड़ाई के लिये उपलब्ध होते है और उपज 700 -750 क्विंटल/ हेक्टेयर होती है। 

पूसा परपल लाँग : इसके पौधे 40-50 सें.मी. ऊचाई के, पत्तियां व तने हरे रंग के होते है। रोपण के लगभग 75 दिन बाद फलत मिलने लगती है। फल 20-25 सें.मी. लम्बे, बैगनी रंग के, चमकदार व मुलायम, औसत वजन 100-150 ग्राम, पैदावार 250-300 क्विंटल/हेक्टेयर। 

पूसा हाइब्रिड-6 : इस किस्म को लगाने का सही समय मध्य जून-जुलाई, नवम्बर - जनवरी, पौधा लगाने का समय- गर्मी के दिनों के लिये उपयुक्त है। पौधा लगाने के 60-65 दिनों के बाद पहली तुड़ाई की जा सकती है। फल गोल, चमकदार, बैंगनी, आकर्षक होता है। फल का ओसत वजन 200-250 ग्राम तक हो सकता है।

पंत सम्राट : पौधे 80-120 सें.मी. ऊँचाई के, फल लम्बे, मध्यम आकार के गहरे बैगनी रंग, रोपण के लगभग 70 दिनों बाद फल तुड़ाई योग्य हो जाते है। वर्षा ऋतु में बुआई के लिए यह किस्म उपयुक्त है। प्रति हैक्टेयर औसतन 300 कुन्टल पैदावार होती है। 

काशी संदेश : पौधों की लम्बाई 71 सें.मी. पत्तियों में हलका बैंगनी रंग, फल गहरे बैंगनी रंग के गोलाकार और चमकीले, फल का औसत वजन 225 ग्राम होता है। रोपाई के 75 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार, उपज 780-800 क्विंटल /हेक्टेयर हो सकती है। 

पंत ऋतुराज : पौधे के लम्बाई 60-70 से. मी. ऊँचे, तना सीधा खड़ा, थोडा झुकाव लिए हुए, फल मुलायम, आकर्षक, कम बीज वाले, गोलाकार, रोपण के 60 दिन बाद तुड़ाई योग्य तैयार हो जाती है। यह किस्म दोनों ऋतुओं (वर्षा व ग्रीष्म) में खेती योग्य है। इसकी औसत पैदावार 400 क्विंटल/हेक्टेयर होती है।

पंजाब सदाबहार : पौधें सीधे खड़े, 50-60 से.मी. ऊँचाई के, हरी शाखाओं और पत्तियों वाले होतें है। फल चमकदार, गहरे बैंगनी, लम्बाई 18 से 22 सें.मी., चौड़ाई 3.5 से 4.0 सें.मी. होती है। एक हैक्टेयर खेत से 300-400 क्विंटल पैदावार प्राप्त होती है।

बुवाई के लिए खेत की तैयारी 

बीजों की बुवाई एवं रोपाई के लिए सबसे पहले खेत को उचित सम्पूर्ण तरीके से तैयार करना होता है। बैंगन की अच्छी फसल के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए सबसे पहले खेत में गोबर की खाद 15 गाड़ी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अगर गोबर की खाद नही है तो उसके स्थान पर वर्मी कम्पोस्ट खाद देने के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर ले, रोटावेटर लगवा कर जुताई करे, इससे खेत की मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जाते है और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर कर लें। इससे खेत में जल निकासी अच्छी हो जाती है।

बीजों की बुवाई एवं रोपण के लिए क्योरियों का निर्माण

बैंगन के पौधों की रोपाई बीज के रूप में एवं पौध के रूप में दोनों तरीके से की जाती है। इसके लिए पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लेना चाहिए। पौधों ऐसे खरीदे जो बिलकुल स्वस्थ हो। इन पौधों की रोपाई को समतल और मेड दोनों पर ही कर सकते है। रोपाई के लिए तैयार खेत में 3 बाई 1 मीटर की 20 से 25 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियों का निर्माण करे। प्रत्येक क्यारी के सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था करें। एक हेक्टेयर के क्षेत्र में रोपाई के लिए ऐसी 20 से 25 क्योरियों का निर्माण करें। इन क्यारियों में प्रत्येक पौधों के बीच में 2 फीट की दूरी रखी जाती है। इसके अलावा यदि पौधों की रोपाई मेड़ पर करनी हो तो उसके लिए दो से ढाई फीट की दूरी रखते हुए मेड़ को तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद पौध रोपाई में प्रत्येक पौध के मध्य दो फीट तक दूरी अवश्य रखे। इन पौधों की जड़ो को 5 से 6 सेंटीमीटर की गहराई में ही लगाए, इससे पौधे अच्छे से विकास करते है। 

खाद एवं उर्वरक की मात्रा  

खेत तैयार करते समय खेत में अच्छी फसल के लिये 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दे। गोबर की खाद के स्थान पर आप वर्मी कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है। इसके साथ तत्व के रूप में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम पोटाश, व 50 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। नाइट्रोजन की एक तिहाई फॉस्फोरस व पोटाश की संपूर्ण मात्रा खेत की अंतिम जुताई के समय तथा नत्रजन को दो बराबर भागों में बांट कर 30 से 40 दिन बाद, खरपतवार नियंत्रण के पश्चात खड़ी फसल में छिड़काव करें।

बैंगन की खेती में सिंचाई का प्रबंधन कैसे करे?

बैंगन के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। बैंगन की खेती में अधिक पैदावार लेने के लिए सही समय पर पानी देना बहुत जरूरी है। गर्मी के मौसम में हर 3-4 दिन बाद पानी देना चाहिए और सर्दियों में 12 से 15 के अंतराल में पानी देना चाहिए। कोहरे वाले दिनों में फसल को बचाने के लिए मिट्टी में नमी बनाए रखें और लगातार पानी लगाएं।

बैंगन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण

बैंगन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल कर निराई-गुड़ाई करें। इसके पौधे भूमि की सतह से कम ऊंचाई पर होते है, जिससे पौधों को खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है। खरपतवार नियंत्रण नदीनों को रोकने, अच्छे विकास और उचित हवा के लिए दो से चार गोडाई करें। काले रंग की पॉलिथीन शीट से पौधों को ढक दें जिससे नदीनों का विकास कम हो जाता है और जमीन का तापमान भी बना रहता है। नदीनों को रोकने के लिए पौधे लगाने से पहले मिट्टी में फलूकलोरालिन 800-1000 मि. छिड़काव करें। इसकी पहली गुड़ाई को पौध रोपाई के 15 से 20 दिन बाद करना होता है। इसके बाद बाकी की गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में की जाती है। 

बैंगन की फलों की तुड़ाई एवं उपज 

बैंगर की किस्मों के आधार पर बैंगन के पौधे रोपाई के तकरीबन 50 से 70 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देते है। जब इसके पौधों में लगने वाले फलो का रंग आकर्षक दिखाई देने लगे तब उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिये। फलो की तुड़ाई शाम के समय करना उपयुक्त माना जाता है। इन फलों की तुड़ाई एक निश्चित अंतराल पर करते रहना चाहिए अन्यथा फल कड़े हो जाते हैं और बाजार भाव घट जाता है। यह ध्यान रखे कि जब फलों की पूरी बढ़वार हो जाए और उनका रंग चमकदार हो और उनमें बीज मुलायम हो तभी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। बैंगन की पैदावार उसकी किस्म, मिट्टी के प्रकार एवं मौसम के ऊपर निर्भर करती है। औसतन एक हेक्टेयर खेत में लगभग 400-600 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है। 

तुड़ाई के बाद भंडारण एवं मंडी सप्लाई

बैंगन की फल की तुड़ाई उचित आकार और रंग का होने पर करें। मंड़ी में अच्छा मुल्य प्राप्त करने के लिए बैंगन के फल को चिकना और आकर्षक चमकदार रंग एवं उनमें बीज मुलायम अवस्था में करें। तुड़ाई के बाद बैंगन को सामान्य तापमान में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इससे इसकी नमी खत्म हो जाती  है। बैंगन को 2 से 3 सप्ताह के लिए 10 से 11 डिग्री सैल्सियस तापमान पर एवं 92 प्रतिशत नमी में रखा जा सकता है। तुड़ाई के बाद मंड़ी में इसकी सप्लाई के लिए इसे सुपर, फैंसी और व्यापारिक आकार के हिसाब से छांटकर बोरियों में या टोकरियों में पैकिंग किया जाता है। उसके बाद इन्हें मंडी में सप्लाई कर दिया जाता है। बैंगन का बाजारी भाव 15 से 25 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई को बैंगन की एक बार की फसल से 1 से 1.5 लाख रूपए तक की कमाई हो सकती है।

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