भारत में धान, गेहूं, गन्ने जैसी पारंपरिक फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से किसान पारंपरिक फसलों की खेती के अलावा मुनाफेदार बागवानी फसलों की खेती में अपना हाथ आजमा रहे हैं। बागवानी में किसान दुर्लभ, महंगी और नकदी फसलों की खेती में रूची दिखा रहे हैं। वर्तमान समय में किसान बाजार की मांग के अनुसार नकदी फसलों की खेती कर जमकर पैसा कमा रहे हैं। क्योंकि बाजार में भी सबसे ज्यादा इन्हीं फसलों की मांग और कीमत होती है। ऐसी ही दुर्लभ और मुनाफेदार फसलों की खेती में काला अमरूद भी शामिल है, जो मौजूद औषधीय गुणों की वजह से मशहूर है। इसमें मौजूद जरूरी पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधी प्रणाली को मजबूत बनाते हैं। काले अमरूद में मौजूद औषधीय गुण सेहत के लिये लाभकारी तो हैं ही, साथ किसानों को भी कम समय में अच्छा मुनाफा दिलवा सकते हैं। औषधीय विशेषताओं के कारण पिछले वर्षों में किसानों के बीच इस किस्म के अमरूद की खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है। किसान चाहें तो कम लागत में काले अमरूद खेती करके अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। तो चलिए ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से काले अमरूद की खेती से संबंधित जानकारी के बारे में जानते हैं।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय में विकसित की गई अमरूद की इस अनूठी किस्म ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसके एंटी-एजिंग फैक्टर और रोग प्रतिरोधक क्षमता सामान्य फलों से ज्यादा होने की वजह से लोग इसे पसंद करेंगे। अमरूद की यह किस्म एंटीऑक्सीडेंट, मिनरल्स और विटामिन से भरपूर होती है। 100 ग्राम अमरूद में लगभग 250 मिलीग्राम विटामिन-सी, विटामिन-ए और बी, कैल्शियम और आयरन के अलावा अन्य मल्टीविटामिन और मिनरल्स होते हैं। कुछ मात्रा में प्रोटीन और दूसरे फायदेमंद तत्व भी शामिल हैं। इस फल से लोगों के ’एंटीएजिंग’ पर असर पड़ेगा। काले अमरूद में औषधीय गुण, जरूरी पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ाकर बीमारियों के खिलाफ एक ढाल का काम करते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये बुढ़ापे के लक्षणों को रोकने में मददगार है।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित काले अमरूद की किस्म की खेती देशभर के कुछ हिस्सों में किसानों ने शुरू कर दी। जिसमें हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के कोलर क्षेत्र में इसकी खेती शुरू हुई है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में इस अमरूद की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। उत्तर प्रदेश की सहारनपुर नर्सरी से पौधों को खरीदकर रोपाई का काम किया गया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार के कई किसान भी प्रयोग के तौर पर इसकी खेती कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार अमरूद औषधीय विशेषताओं के कारण मशहूर है। इसकी पत्तियां और अंदर गूदे का रंग भी गहरा लाल या महरूम होता है। काले अमरूद के फल का वजन लगभग 100 ग्राम तक होता है, ये दिखने में जितने ज्यादा आकर्षक होते हैं, इनकी खेती में भी उतना ही कम खर्च लगता है। इसकी खेती ठंड प्रदेशों में ही की जाती है और इसके फलों में कीट-रोगों की भी अधिक संभावना नहीं रहती। कुल मिलाकर सामान्य अमरूदों की तुलना में इसकी खेती में कम खर्च पर अच्छी कमाई की जा सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार काले अमरूद में कई गुना पोषण लाभ और वाणिज्यिक उत्पादन और निर्यात की बहुत संभावनाएं हैं। देशभर के बाजारों में अभी तक सिर्फ पीले अमरूद और हरे अमरूद का ही दबदबा रहा है, लेकिन काले अमरूद की व्यावसायिक खेती करके एक नया बाजार खड़ा कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यहां की जलवायु और मिट्टी इस अमरूद के लिए उपयुक्त है। उनका मानना है कि इस अमरूद के व्यवसायिक इस्तेमाल होने से मांग बढ़ेगी। उन्होंने संभावना जताते हुए कहा कि भविष्य में हरे अमरूद की तुलना में इसका व्यवसायिक मूल्य ज्यादा होगा, जिससे किसानों को कम मेहनत में अधिक फायदा मिल सकेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार काले अमरूद की खेती के लिये सर्द और शुष्क तापमान चाहिए। वहीं जल निकासी वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त रहती है। कृषि विशेषज्ञ की मानें तो इसकी खेती करने से पहले मिट्टी की जांच और विशेषज्ञ से सलाह अवश्य करें, ताकि फसल में जोखिमों की संभावना भी कम रहे। विशेषज्ञों के अनुसार इस अमरूद की खेती में मुनाफे की अति संभावना है। क्योंकि इसकी खेती के लिए लिए ठंड मौसम ज्यादा मुफीद माना जाता है। औषधीय गुणों की वजह से इसके फलों में कीट और रोग लगने की संभावनाएं भी काफी कम हो जाती है। किसानों को अमरूद की यह किस्म कम लागत पर बंपर मुनाफा दे सकती है।
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