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सेम की खेती : सेम की उन्नत खेती से किसानों को होगा लाखों का फायदा

सेम की खेती : सेम की उन्नत खेती से किसानों को होगा लाखों का फायदा
पोस्ट -13 मई 2022 शेयर पोस्ट

सेम की खेती के बारे में जानकारी, जानें कैसे होगी सेम की खेती

भारत सब्जी के उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है। विश्व में उगाई जाने वाली सब्जियों में भारत का अहम योगदान है। भारत में लगभग हर प्रकार की सब्जियों जैसे-शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्‍डी, अरबी, आलू, मटर, सेम, गाजर, बंदगोभी, राजमा आदि की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। भारत में सब्जियों के खेती नगदी फसलों के रूप में की जाती है। सब्जियों की खेती से किसान रोज आमदनी करते है। सब्जी की खेती से किसान को लगभग 2 से 3 महीने के लिए रोज की आमदनी होती है। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि भारत में हर प्रकार की सब्जियों की खेती की जाती है। लेकिन आज हम सेम की खेती के बारे में बात कर रहे है। भारत में सब्जियों की खेती में सेम एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि सेम की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाला सौदा है। सेम की खेती में 3 से 4 महीने का वक्त लगता है, लेकिन इसके बाद किसान सेम की खेती से आसानी से 2 से 3 महीने की नगद आमदनी हर रोज कमा सकते है। अगर आपको इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमाना है, तो ट्रैक्टर गुरु की आज की इस पोस्ट को ध्यान पूर्वक पढ़े। आज की इस पोस्ट में हम किसान भाईयों के लिए सरल भाषा में सेम की खेती करने का आसान और उन्नत तरीके की जानकारी को साझा करने जा रहे हैं। 

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सेम के पौधे के बारे में सामान्य जानकारी  

सेम को सब्जी की फसल मानी जाती है। सेम की खेती दलहन फसल के रूप में भी की जाती है। सेम के पौधा का वानस्पतिक नाम - डॉलीकस लबलब है। सेम का पौधा एक लता के रूप में होता है। इसमें फलियां लगती हैं जिसे सेम की फलियां कहते है। इन फलियों का उपयोग कच्ची अवस्था में सब्जी के रूप में किया जाता है। इसकी पत्तियां चारे के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं। सेम संसार के प्रायः सभी भागों में उगाई जाती हैं। सेम अनेक जातियाँ होती हैं और उसी के अनुसार फलियाँ भिन्न-भिन्न आकार की लंबी, चिपटी और कुछ टेढ़ी तथा सफेद, हरी, पीली आदि रंगों की होती है। सेम स्वादिष्ट और पुष्टकर होती हैं इसलिए यह उतनी सुपाच्य नहीं होती। आयुर्वेद में सेम को मधुर, शीतल, भारी, बलकारी, वातकारक, दाहजनक, दीपन तथा पित्त और कफ का नाश करने वाली औषधी कही गई हैं। इसके बीज दाल के रूप में खाए जाते हैं, क्योंकि इसके बीजों में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त रहती है। इसी कारण इसमें पौष्टिकता काफी मात्रा में रहती है। ललौसी नामक त्वचा रोग सेम की पत्ती को संक्रमित स्थान पर रगड़ने मात्र से ठीक हो जाता है। भारत में वर्तमान समय में सेम की खेती विभिन्न राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बड़े स्तर पर की जा रही है। गाँवों व शहरों में इसे लोग अपनी गृह वाटिका में लगाते हैं। 

सेम में पाएं जाने वाले पोषक तत्व

सेम एक हरी फली के रूप में जानी जाती है। यह फैबेसी/ लेगुमिनोजी जाति का एक पौधा है। स्वास्थ्य के लिए सेम एक बहुउपयोगी खाद्य पदार्थ है। समे में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जिस वजह से यह मानव शरीर के लिए अधिक लाभकारी होती है। इसमें सहजपाच्य प्रोटीन, विटामिन्स और कार्बोहाइड्रेटस की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है, जिससे यह कुपोषण को दूर करने में अधिक लाभकारी है। समे में 3.8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.7 प्रतिशत वसा, 6.7 प्रतिशत कार्बोहाइडेंट, 1.70 प्रतिशत आयरन, 40.00 प्रतिशत गंधक, 74.00 प्रतिशत पोटेशियम, 210.00 कैल्सियम, 1.08 प्रतिशत फाइबर तथा 34.00 प्रतिशत मैगनीशियम पाया जाता है।  सेम में विटामिन बी 6, थायमीन, पैंथोथेनिक एसिड और नियासिन पाया जाता है। इसके अलावा सेम में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो खून को साफ करने का काम करते हैं. खून साफ रहने से त्वचा संबंधी रोग होने की आशंका बहुत कम हो जाती है।

सेम की खेती के लिए सेमी की उन्नत किस्में  

जैसा की हम आपकों पहले ही ऊपर बता चुके है कि सेम संसार के प्रायः सभी भागों में उगाई जाती हैं। सेम की अनेक जातियाँ होती हैं और उसी के अनुसार फलियाँ भिन्न-भिन्न आकार की लंबी, चिपटी और कुछ टेढ़ी तथा सफेद, हरी, पीली आदि रंगों की होती है। वर्तमान समय में सेम की कई उन्नत किस्मों जैसे- सै प्रोलिफिक, एचडी- 1,18, डीबी-01,18, एचए- 3, रजनी, बी.आर.सेम-11, पूसा सेम- 2 (सिलेक्शन 12) , पूसा सेम- 3 (सिलेक्शन 15) , जवाहर सेम- 53, जेडीएल-053, 85, कल्याणपुर टाइप- 1, 2, जवाहर सेम- 37, 53, 79, 85, अर्का जय और अर्का विजय, पूसा अर्ली, काशी हरितमा, काशी खुशहाल (वी.आर.सेम- 3), जवाहर सेम- 79, कल्याणपुर-टाइप, रजनी, एचडी- 1, एचडी- 18 और प्रोलिफिक आदि किस्मों को अधिक पैदावार के लिए किसान भाई इनकी बुवाई कर सकते है।

सेम की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान की आवश्यकता

सेम की खेती दोमट और बलुई रेतीली मिट्टी वाली हल्‍की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है परन्‍तु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट व बलुई रेतीली मिट्टी इसकी खेती के लिए अधिक उपयुक्‍त माना गया है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 6.0 के मध्य होना चाहिए। सेम का पौधा समशीतोष्ण जलवायु वाला होता है। इसके पौधे ठंड में अच्छे से विकास करते है। इस लिए इसकी खेती ठंडी जलवायु में अच्छी होती है। सेम की खेती के लिए 15 से 22 डिग्री तापमान उपयुक्त माना गया है। तथा इस तापमान में इसका बीज अच्छे से अंकुरण करते है। ऐसे में ये कहना सही होगा कि पाला अधिक पड़ने वाले स्थानों को छोड़कर लगभग सभी ठंडी जलवायु वाले स्थानों में सेम सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।

सेम के बीजों की मात्रा एवं बीजोपचार

सेम के बीजों की रोपाई बीज के रूप में की जाती है। इसके लिए एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 10 से 15 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। बीज रोपाई हाथ या ड्रिल दोनों ही तरीको से की जा सकती है। बीजों को रोग रक्षा हेतु उन्हें कवकनाशी कार्बेन्डाजिम, थीरम या गोमूत्र से उपचारित कर ले।   

सेम की खेती के लिए खेत की तैयारी

सेम की खेती करने के लिए बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है। इसके लिए पहले खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषो को पूरी तरह से नष्ट करना होता है। इन अवशेषों को नष्ट करने के लिए खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है।  गहरी जुताई के बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर फिर से जुताई कर कर लें। इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जायेगी। खेत में खाद को मिलाने के बाद उसमे पानी लगाकर कर पलेव कर दिया जाता है। पलेव के कुछ दिन बाद खेत की नम भूमि में रोटावेटर लगाकर जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरी बना लेने के बाद मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लिया जाता है, इससे भूमि में जलभराव नहीं होता है।

सेम की बीजों की बुवाई के लिए क्यारियों का निर्माण, बुवाई का समय

तैयार खेत में सेम की बुवाई करने के लिए खेत में पहले लगभग 1.5 मीटर की चौड़ी क्यारियाँ बना लें। क्यारियों के दोनों किनारों पर करीब 1.5 से 2.0 फीट की दूरी व 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में 2 से 3 बीजों की बुवाई करें । इन तैयार क्यारियाँ के पास बीज की बुवाई के अनुसार बाँस की बल्लियों को गाड़ कर इन बल्लियों के सहारे एक जाल नुमा संरचना का निर्माण करे। इस संरचना से पौधे को जमीन से ऊपर रखा जा सकता है। अगर पौधे जमीन से ऊपर होगे तो इनमें रोग व कीटों का खतरा कम होगा और पौधा का विकास अच्छा होगा साथ ही फसल सड़ने से बचेगी। सेम के बीजो की रोपाई अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर करते है। इसमें उत्तर पूर्वी राज्यों में बीजो की रोपाई अक्टूबर से नवम्बर माह के मध्य तक की जानी चाहिए। जबकि उत्तर पश्चिम राज्यों में बीजो को सितम्बर माह के मध्य तक लगाया जाता है। इसके अलावा पहाड़ी इलाको में बीजो की रोपाई जून और जुलाई के महीने में की जाती है।

सेम के खेत के लिए सिंचाई एवं उर्वरक व खाद पोषक तत्व प्रबंधन

सेम के खेती के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी सिंचाई मृदा के प्रकारों व मृदा के जल धारण क्षमता पर निर्भर होती है। अगर सेम की बीजों की बुवाई दोमट मृदा में की गई है तो इसे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। जबकि बीजों की बुवाई बालुई व चिकनी मृदा में कि गई है तो अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। सेम की खेती की पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। इसके बाद खेत में बीज अंकुरण के समय नमी बनाये रखने के लिए 3 से 4 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए। सेम की फसल को मृदा के परीक्षण के आधार पर खाद व उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। सेम एक दलहनी फसल है और इस कारण इसकी जड़ ग्रंथियाँ नत्रजन का स्थिरीकरण कर लेती है। लेकिन आवश्यकता अनुसार मृदा परीक्षण रिपोर्ट कार्ड के अनुसार किसान बुवाई से पहले रासायनिक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 130 से 180 क्विंटन गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट का उपयोग करें। इसके बाद 60 किलोग्राम (फोस्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन ) की मात्रा खेत की आखरी जुताई के समय मिला दें। इसके बाद 15 से 20 किलोग्राम यूरिया की मात्रा का छिड़काव पौधें की सिंचाई के साथ करना आवश्यक है।

सेम की फसल की तुड़ाई 

सेम की तुड़ाई उसकी किस्म व बुवाई के समय के अनुसार निर्भर होती है। वैसे सेम की फसल की पैदावार के लिए 3 से 5 महीने का वक्त लगता है, लेकिन इसके बाद सेम के पौधों से 3 से 4 महीने तक फसल की रोज तुड़ाई कर सकते है। सेम की फलियों की तुड़ाई पूर्ण विकसित व कोमल अवस्था में कर लें। इन फलियों की तुड़ाई देर से करने पर ये कठोर हो जाती है व इनमें रेशे आ जाते है। जिसके कारण इन फलियों का उचित बाजार मूल्य नही मिल पाता है। इस लिए समय समय पर सेम की तुड़ाई करना ना भूले।

सेम की खेती पर खर्च, पैदावार और लाभ

एक हेक्टेयर भूमि पर सेम की खेती करने के लिए लगभग 20 से 25 हजार तक का खर्च आता है। जिसमें खेत तैयारी से लेकर खेत की बुवाई सिंचाई व खाद उर्वरक तक सभी खर्च सम्मिलित होते है। सेम की बुवाई के बाद लगभग 100 से 150 दिनों के बाद सेम के पौधे से उपज मिलना प्रारम्भ हो जाता है। सेम के एक हेक्टेयर खेत से तकरीबन 100 से 150 क्विंटल उत्पादन प्राप्त कर सकते है। फसल की यह उत्पादकता जलवायु, मिट्टी, किस्म, सिंचाई समेत सुरक्षा प्रबंधन आदि पर निर्भर करती है। सेम का बाजारी भाव करीब 25 से 30 रूपए प्रति किलो होता है। किसान सेम की एक बार की फसल  से दो से ढाई लाख रूपए तक की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है। 

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