Capsicum Farming : किसान अपनी आय को दोगुना करने के लिए विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती अपना रहे हैं। बदलते वक्त के साथ-साथ किसानों ने पारंपरिक फसलों के स्थान पर सब्जी फसलों की खेती की ओर अपना रूख किया है। इसका मुख्य कारण यह है कि सब्जी फसल पारंपरिक फसल की तुलना में कम लागत और श्रम में तैयार हो जाती है और मुनाफा भी डबल होता है। खास बात यह है कि बाजार में सब्जियों की डिमांड हमेशा ऊंचे लेवल पर होती है, जिस कारण आज किसान सब्जियों की खेती में विभिन्न प्रकार की महंगी सब्जी फसल मुख्य रूप से उगा रहा है। इसमें शिमला मिर्च भी शामिल है। शिमला मिर्च एक प्रकार सब्जी फसल है, जिसे भारत के लगभग हर हिस्से में प्रमुख रूप से उगाई जाती है। इसमें कैरोटीनॉइड्स, फाइबर, विटामिन के, विटानिम सी, विटामिन ए, की मात्रा भरपूर रूप से पाई जाती है। शिमला मिर्च एंटी-ऑक्सीडेंट का अच्छा माध्यम है, जिस वजह से इसका सेवन मानव शरीर के लिए काफी लाभकारी साबित होता है। एंटी-ऑक्सीडेंट का अच्छा माध्यम होने की वजह से इसका उपयोग औषधीय रूप में भी होता है। आमतौर पर शिमला मिर्च उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग शादी और अन्य फंक्शन में कई तरह के व्यंजनों को टेस्टी बनाने में मुख्य रूप से किया जाता है, जिसके कारण शिमला मिर्च की डिमांड बाजार में हमेशा बन रहती है। खास बात यह है कि अन्य सब्जी फसलों की तुलना में शिमला मिर्च कम समय और कम मेहनत में तैयार हो जाती है, जिस वजह से किसान इसकी खेती करना पसंद करते हैं। आमतौर पर लोगों को सिर्फ हरी शिमला मिर्च के बारे में ही पता है, लेकिन यह लाल, पीली, बैंगनी, नारंगी और गुलाबी रंग की भी होती है, जिनका बाजार में काफी अच्छा भाव मिलता है। शिमला मिर्च का बाजार में औसतन भाव 45 से 50 रूपए किलो तक होता है। ऐसे में अगर आप शिमला मिर्च की खेती करते हैं, तो आप इसकी खेती से कम समय और कम मेहनत में अच्छी कमाई कर सकते हैं। ट्रैक्टरगुरू के इस लेख में हम किसान भाईयों को शिमला मिर्च की खेती करने की तकनीक और खेती से होने वाली पैदावार के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
भारत के मध्य प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य में शिमला मिर्च की खेती मुख्य से होती है। इन राज्यों के किसान लाल, पीली, बैंगनी, नारंगी, गुलाबी और हरे रंग की शिमला मिर्च की फसल लगाते हैं। ऐसे में अगर आप भी शिमला मिर्च की खेती करना चाहते हैं, तो आपको चिकनी दोमट मिट्टी वाली भूमि का चुनाव करना चाहिए। ध्यान रहे भूमि का पीएच मान 6.5 से 7 के बीच होना चाहिए। साथ ही अच्छी जल निकासी वाली भूमि होनी चाहिए। शिमला मिर्च की अच्छी फसल पैदावार के लिए इसकी खेती नर्म और आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में करनी चाहिए। शिमला मिर्च के पौधे अधिकतम 40 डिग्री एवं न्यूनतम 10 डिग्री तापमान सहन कर सकते हैं।
आमतौर पर लाल, पीली, बैंगनी, नारंगी, गुलाबी और हरे रंग की शिमला मिर्च की खेती समान रूप से एक ही प्रकार से की जाती है। खेतों में शिमला मिर्च के पौधों को लगाने के लिए सबसे पहले इसके पौधों को एक माह पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है। नर्सरी में तैयार पौधों की खेत में रोपाई करने लिए पहले खेत में 20 से 25 गाड़ी गोबर की खाद डालकर 2 से 3 बार अच्छी जुताई कर खाद को खेत की मिट्टी में मिला लेना चाहिए। गोबर की खाद के स्थान पर आप शिमला मिर्च के लिए कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा खेत की अंतिम जुताई के समय एन.पी.के. की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर भूमि में सल्फर की मात्रा का लेवल कम है, तो 60 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेतों में डालना चाहिए। शिमला मिर्च के तैयार पौधों की रोपाई मेड़ों पर करना अच्छा रहता है, इसके लिए खेत में पहले से 2 से 3 फीट की पर्याप्त दूरी रखते हुए मेड़ तैयार कर लें। तैयार मेड़ों पर 1-1 फीट की दूरी रखते हुए शिमला मिर्च के पौधे लगा दिए जाते हैं। शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई खेतों में जुलाई महीने में करनी चाहिए। वहीं, शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई जनवरी एवं सितंबर के महीने में भी की जाती सकती है। शिमला मिर्च के पौधों की अच्छी देखभाल पर लगभग 6 महीने तक लगातार पैदावार ले सकते हैं। अगर आप इसके पौधे तैयार नहीं करना चाहते हैं, तो आप इसके पौधे अपने क्षेत्र की किसी भी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद सकते हैं।
बाजार डिमांड के अनुसार किसान भाई शिमला मिर्च की विभिन्न वैरायटी की संरक्षित खेती पॉली हाउस / ग्रीन हाउस / शेडनेट हाउस संरचना में कर सकते हैं। खास बात यह है कि केंद्र एवं राज्य सरकार संरक्षित खेत संरचना के निर्माण पर राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत तय प्रावधानों के हिसाब से किसानों को लाखों रूपए की सब्सिडी भी उपलब्ध कराती है। पॉली हाउस/ग्रीन हाउस/शेडनेट हाउस संरचना में शिमला मिर्च की खेती पर मौसम की मार नहीं पड़ती। खराब मौसम, बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, आधी-तूफान, लू के गर्म थपेड़ों से भी इसकी खेती को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इस हिसाब से संरक्षित संरचना में शिमला मिर्च की खेती करना किसान भाईयों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
शिमला मिर्च की खेती से लगातार 5 से 6 महीनों तक कम मेहनत और लागत में लाखों रूपए का मुनाफा कमाया जा सकता है। इसकी खेती में हमेशा सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। शिमला मिर्च की खेती में पौधों की सिंचाई प्रत्येक दिन 10 से 15 मिनट तक करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए इसकी खेती में मल्चिंग तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। मल्चिंग तकनीक में खरपतवार न के बराबर पनपते हैं, जिस वहज से किसानों को निराई-गुडाई पर अतिरिक्त खर्च भी नहीं करना पड़ता है। इस तकनीक में पौधों की जड़ों को उर्वरक एवं अन्य पोषक तत्व की मात्रा पूर्ण रूप से प्राप्त होती है, जिस वहज से मिर्च के पौधों का विकास समान रूप से होता है। अगर आप इसकी खेती सामान्य विधि से कर रहे हैं, तो इसके खेतों को खरपतवार मुक्त रखने के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर 4 से 5 निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।
खेतों में शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई के 60 से 65 दिन पश्चात उपज देने के लिए तैयार हो जाते हैं। फलों का रंग आकर्षक होने पर इसके फलों की कटाई-तुड़ाई करनी चाहिए। उचित देखभाल करने पर इसके एकड़ खेत से किसान भाईयों को तकरीबन 150 से 200 क्विंटल की पैदावार मिल सकती है। शिमला मिर्च के पौधों में कीट और रोग लगने की समस्या न के बराबर होती है। इसके फसल में प्रायः एफिड्स, पेपर मोटल वायरस, पेपर माइल्ड मोटेल वायरस, थ्रिप्स और माइट्स जैसे प्रमुख रोग लगते हैं। इनके उपचार के लिए किसान भाईयों को समय- समय पर पौधों की जांचकर कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए। इन सब तकनीकों को अपनाकर किसान भाई शिमला मिर्च की खेती से लाखों रुपये का मुनाफा आसानी से कमा सकते हैंं।
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