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फसल विविधीकरण से किसानों की आय वृद्धि जानें, कैसे बढ़ेगी उत्पादन क्षमता

फसल विविधीकरण से किसानों की आय वृद्धि जानें, कैसे बढ़ेगी उत्पादन क्षमता
पोस्ट -06 जनवरी 2023 शेयर पोस्ट

फसल विविधीकरण योजना : छोटे किसानों की कैसे बढ़ेगी आय जानें, पूरी जानकारी

कृषि विविधिकरण: कृषि सेक्टर में हुए शोध ने एक क्रांति ला दी थी। इस क्रांति को हरित क्रांति का नाम दिया गया। इस क्रांति से पूरे विश्व सहित भारत में कृषि पैदावार में वृद्धि हुई। जिसके परिणामस्वरूप देश कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर बना। लेकिन हरित क्रांति में उच्च उत्पादक क्षमता वाले उन्नत बीज, आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल, कृषि सिंचाई की प्रबंधता, कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों के इस्तेमाल से कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि तो हुई, लेकिन कृषि सेक्टर में जैव विविधता में कमी भी हुई। हालांकि इसमें कोई दोहराय नहीं है कि हरित क्रांति ने लाखों लोगो की भुखमरी से रक्षा की। हरित क्रांति से देश में फसलों की उत्पादन क्षमता बढ़ी है। कृषि में पारंपरिक तरीकों से गन्ना, मक्का, चावल, गेहूं, आलू, सोयाबीन सहित कई अन्य पारंपरिक फसलों को ही लगाया जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप जैव विविधता को क्षति पहुंचा रहा है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है। कृषि क्षेत्र में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने एवं जैव विविधता का मेलजोल बनाए रखने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार द्वारा बीते कुछ दशकों से कृषि सेक्टर में कैमिकल मुक्त फसल उत्पादन हेतु किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए कई प्रकार की योजना भी चला रही है। जिनके माध्यम से किसानों को कृषि विविधिकरण के प्रेरित भी किया जा रहा है।। ऐसे में किसान कृषि क्षेत्र में पारंपरिक तरीकों से पारंपरिक फसलों की खेती को छोड़कर अब फसल विविधिकरण (Crop Diversification) पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कृषि विविधिकरण में अलग-अलग फसलों की खेती कर जल, श्रम और पैसों की बचत के साथ खेत में अलग-अलग फसलों का उत्पादन हासिल कर रहे है। इस विधि से खेती करने पर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहती है। इसमें मिट्टी जलवायु और वातावरण के आधार पर ही फसलों का चयन किया जाता है। आइए ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से फसल विविधिकरण क्या है इसकी आवश्यकता क्यों है और इसके क्या लाभ है के बारे में जानते है। 

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फसल विविधिकरण क्या हैं?

फसल विविधिकरण एक ऐसी विधि है, जिसमें पारंपरिक फसलों के साथ नई फसलों या अन्य फसल प्रणालियों से फसल उत्पादन को जोड़ा जाता है। इसमें एक विशेष कृषि क्षेत्र में एक ही समय पर अलग-अलग कृषि उत्पादन के पूरक विपणन अवसरों के साथ मूल्यवर्दि्धत फसलों से विभिन्न तरीकों से लाभ लिया जाता है। इस फसल विधि से कृषि क्षेत्र में एक ही समय में विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन जैव विविधता को बनाये रखते हुए लिया जा सकता है। सामान्य शब्दों में फसल विविधीकरण से किसान एक ही खेत एक विभिन्न प्रकार की फसलों का कृषि उत्पादन ले सकते है। देश के कई राज्यों में इस विधि से किसान एक ही खेत में अलग-अलग फसलों की खेती से कम पानी, श्रम और पैसों में फसलों का उत्पादन भी ले रहे है।  

फसल विविधिरण की आवश्यकता क्यों हैं? 

वर्तमान समय के इस दौर में किसान कृषि सेक्टर में बेहतर उत्पादन लेने के लिए पारंपरिक फसलों में अत्यधिक मात्रा में उच्च उत्पादक क्षमता वाले प्रसंसाधित बीजों का इस्तेमाल, कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों और खरपतवारनाशक व फफूंदनाशी का प्रयोग कर रहे है। इससे कीट और खरपतवार में धीरे- धीरे उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है। इससे फसलों के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा कृत्रिम उर्वरकों से मृदा की उपजाऊ शक्ति, कृषि पैदावार, जल एवं वातावरण को दूषित करते है। इससे किसानों की कृषि लागत भी बढ़ रही है। और फसल उत्पादन भी प्रभावित हो रही और किसानों की आय भी घट रही है। ऐसे में इस अवस्था के निवारण के लिए फसल विविधिरण की आवश्यकता है। किसानों द्वारा उनके खेतों में एक साथ कई नई फसलों को फसल चक्रण बनाकर फसलों का उत्पादन करना है। फसल विविधिकरण के माध्यम से इन सारी समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। और साथ में किसानों को समिति संसाधन से एक ही खेत से अतिरिक्त आय भी प्राप्त होती है।

फसल विविधिकरण विधि के प्रकार

फसल विविधिकरण विधि के अंतर्गत भारत में मुख्य फसल प्रणाली में क्रमिक फसल, एकल फसली व्यवस्था (Mono Cropping), अंतर फसली (Intercropping), रिले क्रॉपिंग ( Relay cropping), मिश्रित अंतर फसली (Mixed intercropping), अवनालिका फसल (Alley cropping) प्रणाली प्रचलित है। अधिकतर किसान आजीविका और आय के साधनों को बढ़ाने के हेतु मिश्रित फसल प्रणाली के साथ पशुधन प्रणाली का भी इस्तेमाल करते हैं।

छोटे किसानों की बढ़ेगी आय

देश में कई राज्यों की सरकारें अपने स्तर पर अपने-अपने राज्य में फसल विविधिकरण पर ध्यान इस लिए दे रही है। ताकि किसान पारंपरिक फसलों की खेती को छोड़ अन्य नई फसलों को उगाए, जिससे पानी, श्रम और लागत में किसानों की इनकम बढ़ें। सरकार 2 हेक्टेयर से कम भूमि या इससे अधिक भूमि वाले किसानों को वैकल्पिक फसलों या फसल विविधिकरण करने की सलाह दे रही है, जिसमें किसान अपने खेत में अन्य नई नई प्रकार की अलग-अलग फसलों को एक साथ लगाकर अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते है। इसके लिए किसान को मौजूदा फसल के प्रणाली में उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे कि मक्का, दाल, के साथ कई अन्य नई फसलों का विविधीकरण करना चाहिए।

मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने में कारगर

फसल विविधीकरण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कायम रखने के लिए कारगर है। इसमें एक ही खेत में एक से अधिक फसल लगाने से कम लागत में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ेगी और खेत बंजर होने से बचते है। क्योंकि खेत में नियमित पारंपरिक फसलों की बुवाई करने से धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है, जिससे फसल का उत्पादन भी कम हो जाता है। इससे किसानों का मुनाफा भी घटता है।

फसल विविधीकरण के लाभ

  • फसल विविधिकरण से कृषि क्षेत्र में कीड़े, बीमारियां, खरपतवार और मौसम संबंधी जोखिमों की संभावना कम होती है। और खेती में खरपतवारनाशी व कीटनाशी की  कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
  • फसल विविधीकरण से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी होता है। और पर्यावरण में भी सुधार होता है। फसल विविधीकरण में चावल-गेहूं की फसलों के साथ फलियां लगाना चाहिए । यह फलियां मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने के साथ वायुमंडलीय नाइट्रोजन की मात्रा भी नियतन करती है।  
  • दलहनी फसलें मिट्टी में जैव विविधिताओं को बढ़ाती है, जिससे मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता बढ़ती तथा संरचना अच्छी बनती है।
  • फसल विविधीकरण में मिश्रित मौसमी सब्जियों की खेती छोटे किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है।
  • फसल विविधिकरण में किसान कृषि रासायनों के एक बार के खर्च में एक से अधिक फसल ले सकता है। और अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकता है।
  • फसल विविधीकरण से खेत में जैव विविधता बढ़ जाती है, जो किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतर स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • फसल विविधीकरण जलवायु परिवर्तन व मौसम सम्बंधी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने में मदद करता है। 
  • फसल विविधिकरण में पशुपालन या पशुकृषि विज्ञान की शाखा भी शामिल है, जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं से प्राकृतिक खाद, भोजन, पशुधन को बढ़ाने और इनके चयनात्मक प्रजनन, पशु प्रबंधन तथा देखभाल और लाभ के लिए पशुओं के आनुवंशिक गुणों एवं व्यवहारों को विकसित किया जाता है। और इनसे अतिरिक्त लाभ कमाने में मदद मिलती है। 

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