भारत सरकार किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए कई योजनाएं लेकर आ रही है। सरकार इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को पारंपरिक फसलों की खेती के साथ अन्य नकदी कमर्शियल फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है, ताकि किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सके। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार काजू और कोको विकास निदेशालय के जरिये देशभर में एक बेहतरीन योजना के अंतर्गत कोको (चॉकलेट) की खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। चॉकलेट आज देशभर के हर क्षेत्र में पहुंच चुका है। आज चॉकलेट बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों की भी पसंद बना हुआ है। देश-विदेश में इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिस कारण चॉकलेट का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। चॉकलेट बनाने के लिए कोको की खेती की जाती है। कोको की खेती दुनियाभर में की जाती है। किसानों के लिए कोको की खेती कमाई का बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है। कोको एक नकदी और निर्यात फसल है। देश के कई राज्यों में कोको की खेती व्यापक रूप से होने लगी है। आईए, इस पोस्ट की मदद से कोको की खेती का पूरा गणित जानते हैं।
कोको एक नकदी फसल है। इसके फलों के बीज से कोको बनाया जाता है। कोको का फल पपीता की तरह दिखता है, जिसमें 30 से 60 तक बीज होता है। कोको फल के बीज के किण्वन से स्वादिष्ट कोको पाउडर प्राप्त होता है। यह भी चाय की तरह पेय पदार्थ है तथा इससे चॉकलेट भी बनाया जाता है। कोका का वृक्ष 4 मीटर से 7 मीटर तक लंबा होता है और इसके फल तनों पर लगते हैं। भारत में अभी कोको के क्षेत्र में 10 ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं, जो बीज, चोकोलेट, कोको बट्टर, कोको पाउडर सहित अन्य कोको प्रोडक्ट का निर्यात करती है। देशभर के बाजारों में कोको लगभग 200 रुपए प्रति किलोग्राम के रेट मिल जाता है। फर्मेंटेड कोको बीन्स और भी ज्यादा महंगे होते हैं। खास बात यह है कि इसकी खेती में इसकी फसल से पूरे साल 100 प्रतिशत पैदावार होती है। कॉफी, चाय और रबड़ की तरह कोको को भी देश में बागवानी फसल का दर्जा प्राप्त है। भारत में कोको खेती केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में की जाती है।
कोको उष्णकटिबंधीय भूमि प्रदेशों का पौधा है। कोको के पौधों को उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। कोको की खेती के लिए 18 डिग्री से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान को उचित माना गया है। इसकी खेती नारियल और सुपारी पाम के साथ की जा सकती है। इसके साथ ही इसकी यह भी क्षमता है कि इसे सदा बाहर खेतों में सूक्ष्म जलवायु स्थितियों में भी लगाया जा सकता है। जहां इसे अपने लिए अलग से जलवायु की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसकी खेती कई तरह की मिट्टी वाली भूमि पर की सकती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए इसकी खेती गहरी और समृद्ध मिट्टी वाली भूमि पर ही करें। यदि आप कोको की नियमित खेती करना चाहते हैं, तो इसकी खेती के लिए ऐसी मिट्टी वाली भूमि चुनें जिसमें नमी बनी रहे। कोको लगाने का सबसे उपयुक्त समय मानसून के शुरुआती समय को माना गया है।
कोको की खेती के लिए खेत को तैयार करने से पहले खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 गहरी जुताई करें। इसके बाद खेत में 150 से 200 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर कल्टीवेटर की मदद से खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करके खाद अच्छी तरह मिला दे। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। रोपण से 15 से 20 दिन पहले गड्ढे तैयार कर लें।
कोको की फसल को एकल फसल के रूप में लगाया जा सकता है। इसे इंटरक्रॉपिंग के रूप में भी लगाया जा सकता है। यानी कि इसे अन्य फसलों के साथ भी लगाया जा सकता है। इसे नारियल और सुपारी पाम के साथ लगाया जा सकता है। इसके किसी भी पाम के ऊंचे झुंड में, जहां 40 से 50 प्रतिशत सूर्य की रोशनी पहुंच पाती है वहां भी लगाया जा सकता है। कोको के अच्छे उत्पादन के लिए इसे सूर्य ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में मिलनी चाहिए। यदि कोको की खेती मुख्य रूप से लगाना चाहते है, तो एक एकड़ भूमि पर इसके 400 पौधे लगाए जा सकते हैं। दो सीडलिंग के बीच कम से कम चार मीटर की दूरी रखनी चाहिए। कोको की उन्नत खेती के लिए सूखी मिट्टी वाली भूमि का इस्तेमाल करें। हाइब्रिड सीडलिंग का इस्तेमाल करने का यह लाभ है कि हर फली से अधिक से अधिक फलियों प्राप्त हो सकती हैं। ऐसे में जिन किसान भाई ने नारियल या सुपारी पाम के बागान लगाये हुए हैं वे अतिरिक्त कमाई के लिए कोको की खेती भी कर सकते हैं।
कोको के लिए खाद और उर्वरक का इस्तेमाल अच्छा है, क्योंकि इसके पौधे बिना देखभाल के तीन साल के भीतर बेहतरीन पैदावार देने के लिए सक्षम है और कृषकों के अलावा, गृहिणियां भी चाहे तो छोटे स्तर पर 4 से 5 पेड़ों के जरिये से एक अच्छी आय हासिल कर सकती हैं, क्योंकि इसे रसोई के बेकार पानी का इस्तेमाल करके छोटे पैमाने पर आसानी से लगाया जा सकता है।
केन्द्रीय बागवानी फसल अनुसंधान केन्द्र और केरल कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को इसकी खेती के लिए कोको के बीज उपलब्ध करवाए जाते हैं। बता दें कि इन दोनों संस्थान ने मिलकर कोको की कई प्रजातियों पर शोध भी किया है। केरल कृषि विश्वविद्यालय ने एम-16.9, एम-13.12, जीआई-5.9 और बागवानी विभाग ने आई-56, आई-14, आईआईआई-105 और एनसी-42 नामक कोको प्रजाजियों को खेती के लिए संस्तुति किया है।
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