खेती-किसानी में फसल की बुवाई से लेकर उत्पादन तक किसानों को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें कीट-रोग एवं आवारा पशु और जंगली जानवरों के आतंक जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। कई बार तो इन परेशानियों के कारण किसानों को फसलों में काफी नुकसान भी झेलना पड़ जाता है। पिछले कुल साल से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान से लेकर बुंदेलखंड और महाराष्ट्र जैसे कृषि प्रधान राज्य आवारा पशुओं और जंगली जानवरों के आतंक के कारण खेती में काफी नुकसान उठाना पड़ता रहा है। आवारा पशुओं और जंगली जानवरों के खेतों में घुसने और चरने के कारण किसानों को 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है। इनकी रोकथाम के लिए किसानों के द्वारा खेतों के चारों तरफ बाड़बंदी से लेकर कम वोल्टेज की बिजली वाला करेंट भी लगाया जाता है, लेकिन इसकी लागत इतनी ज्यादा होती है कि हर किसान के लिए यह करना संभव नही होता है। साथ ही यह उपाय किसानों को काफी महंगे पड़ते हैं, जिससे उनकी फसल उत्पादन लागत में वृद्धि हो जाती है। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है।
आवारा पशुओं और जंगली जानवरों की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए तमिलनाडु की एक स्टार्टअप कंपनी ने बायो-लिक्विड स्प्रे बनाई है। इसे पूरी तरह जैविक और प्राकृतिक चीजों से बनाया गया हैं। यानि यह पूरी तरह से जैविक बायो-स्प्रे है। इसका छिड़काव करने से आवारा पशु और जंगली जानवर खेतों के आस-पास भी नहीं भटकते। यह उत्पाद तमिलनाडु की MIVIPRO नामक स्टार्टअप कंपनी ने बनाया है, जिसे तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर (TNAU) से परीक्षण और मान्यता मिली है।
पिछले कुछ साल से पहले, उत्तर प्रदेश सहित राजस्थान हरियाणा और बुंदेलखंड से लेकर महाराष्ट्र तक आवारा पशुओं का आतंक फैला हुआ है। आवारा पशुओं और जंगली जानवरों के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ता था। लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा तमिलनाडु की एक स्टार्टअप कंपनी द्वारा पूरी तरह जैविक और प्राकृतिक उत्पादों से बायो-लिक्विड स्प्रे ईजाद किया हैं। और कोयंबटूर स्थित तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) द्वारा परीक्षण और प्रमाणित किया गया है। हर्बोलिव़ स्प्रे का इस्तेमाल करना शुरू किया है। यहां के किसानों का कहना हैं कि यह फसलों की खुशबू को कम कर देता है करता है और उन्हें बिना नुकसान पहुंचाए और फसल की गुणवत्ता और पर्यावरण को प्रभावित किए बिना जंगली और आवारा जानवरों से फसलों को बचाता है। यह फसलों को कीटों, कीड़ों और कवक रोगों से भी बचाता है, फसलों की जैविक प्रकृति को बनाए रखता है, और मिट्टी की उर्वरता और अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता और स्वाद में सुधार करता है।
रिपोर्ट्स की मानें तो उत्तर प्रदेश के स्थानिय किसानों का कहना है कि फसल प्रबंधन के लिये हर्बोलिव स्प्रे एक ऑल आउट की तरह काम करता है, जिससे फसलों से कीट-रोग और पशुओं की समस्या तो दूर होती ही है और फसल और मिट्टी को कई बेमिसाल फायदे भी मिलते हैं। हर्बोलिव स्प्रे का फसलों पर करीब 1 महीने तक लगातार छिड़काव किया जा सकता है। प्रति खेत में हर्बोलिव स्प्रे के छिड़काव के लिए करीब 14 लीटर मात्रा काफी रहती हैं। इसके बाद फसल और जोखिम के अनुसार हर 15 दिन में हर्बोलिव़ स्प्रे कर सकते हैं। एक फसल के लिए कम से कम चार स्प्रे की जरूरत होती है। स्प्रे केवल सुबह या शाम में करना चाहिए।
रिपोर्ट्स की मानें तो बायो-स्प्रे उत्पादक स्टार्ट-अप के पदाधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जो आवारा और जंगली जानवरों से गंभीर रूप से प्रभावित हैं और फिर उस संगठन की तलाश शुरू कर दी उस क्षेत्र के किसानों को जमीनी स्तर पर जो सीधे काम कर रहा है। रिपोर्ट्स की मानें तो उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में जंगली जानवर, छुट्टा और आवारा पशुओं की समस्या काफी ज्यादा है. कई इलाकों में नीलगाय, शाही, जंगली सूअर, मोर जैसे जानवर और पक्षी खेतों में घुंसकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे उत्पादन पर भी 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक बुरा असर पड़ता है। तमिलनाडु के स्टार्ट-अप MIVIPRO द्वारा विकसित और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर (TNAU) से परीक्षण और प्रमाणित हर्बोलिव़ बायो स्प्रे का छिड़काव उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में किया जा रहा है। किसानों के बीच इस शानदान दवा के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिये दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठन ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन काम कर रहा है। इस संस्था के साथ जुड़कर कई युवाओं ने किसानों को इसके छिड़काव और इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित किया है।
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