वैसे तो किसान फसल चक्र के लिहाज से ही पारंपरिक फसलों की खेती करते आए हैं। पारंपरिक फसलों की खेती में किसान को हर साल अधिकतर दिन अपने खेतों में काम करना पड़ता है। इतनी मेहनत के बाद भी किसानों को खेती से औसत मुनाफा ही मिल पाता है, लेकिन कुछ फसलें ऐसी हैं, जिनकी एक बार रोपाई करके सारी जिंदगी कमाई की जा सकती है। आज हम जिस फसल के बारे में आपको बता रहे हैं, वह आंवले की फसल हैं, जिसके पेड़ बस एक बार लगाने होते हैं और फिर सारी जिंदगी उसके फलों से मुनाफा कमाया जा सकता है। आंवला का पेड़ 55 से 60 साल तक फल देता रहता है। यानी एक बार आंवले के पौधे लगाकर आप पूरी जिंदगी कमाई कर सकते हैं। वहीं इसके पेड़ों के बीच में खाली जगह में आप किसी अन्य फसल की खेती कर अतिरिक्त लाभ भी कमा सकते हैं। भारत में आंवले की खेती सबसे अधिक यूपी में होती है और उसके बाद नंबर आता है मध्य प्रदेश और तमिलनाडु का। आंवले के बहुत सारे हेल्थ बेनेफिट भी होते हैं, इसलिए इसकी मांग बाजारों में निरंतर ज्यादा रहती हैं। इसकी खेती करके किसान भाई हर साल काफी बढिय़ां कमाई कर सकते हैं। यदि आप भी आंवले की खेती करने का मन बना रहे है और आपके पास पर्याप्त जानकारी नहीं हैं, तो ट्रैक्टरगुरु की यह पोस्ट आपके लिए ही है। आज की इस पोस्ट में आंवला की खेती से संबंधित जानकारी के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।
आंवले का उपयोग अनेक प्रकार की चीजों को बनाकर खाने में किया जाता है, इससे मुरब्बा, आचार, जैम, सब्जी और जैली को बनाकर तैयार किया जाता है। आंवले को एक आयुर्वेदिक औषधीय फल के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए इसे खाने के अलावा औषधीय, शक्तिवर्धक तथा सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इसके अंदर उपस्थित पोषक तत्व मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होते हैं। आंवले में विटामिन सी की मात्रा भरपूर होती है और इसके सेवन से इंसान बहुत से रोगों से बचा रहता है। अक्सर लोग कहते हैं कि आंवला सौ मर्ज की एक दवा है। इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन ई समेत कई तरह के पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इसका स्वाद कसैला होता है। आंवले में कितने औषधीय गुण होते हैं, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आयुर्वेद में इस फल का खूब उल्लेख किया गया है। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है, भोजन पचाने में मददगार होता है, यह डायबिटीज को कंट्रोल में रखता है, खून का प्रवाह अच्छे से बनाए रखता है और सूजन संबंधी बीमारियों में फायदेमंद होता है।
आंवला एक आयुर्वेदिक औषधीय फल का पौधा है। जिस वजह से इसका उपयोग औषधीय, शक्तिवर्धक तथा सौन्दर्य प्रसाधन के निर्माण में होता है। इसी कारण इसकी बाजार में मांग भी खूब होती है। यदि आप एक हेक्टेयर में आंवले की खेती करते हैं तो आपकी औसतन लागत 25 से 30 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से लगेगी। आंवले की रोपाई के बाद उसका पौधा 4 से 5 साल में फल देने लगता है। आंवला का पूर्ण विकसित पौधा 8 से 9 साल के बाद हर साल औसतन 1 क्विंटल फल देता है। आंवला बाजार में 15 से 20 रुपये प्रति किलो में बिकता है। यानी हर साल एक पेड़ से किसान को 1500 से 2000 रुपये की कमाई होती है। एक हेक्टेयर में करीब 200 पौधे लग सकते हैं। इस तरह आप सालभर में एक हेक्टेयर से ही 3 से 4 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं। सही रख-रखाव के साथ आंवले का पेड़ 55 से 60 साल तक फल देता रहता है। वहीं अगर पेड़ों के बीच में खाली जगह (करीब 10’10 फुट) में आप किसी और चीज की खेती करते हैं तो अतिरिक्त कमाई होगी।
आंवले की खेती को करने के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। सामान्य तौर पर देखा जाये तो इसका पौधा सख्त एवं अधिक सहिष्णु होता है, जिस कारण इसको हर तरह की मिट्टी में बड़ी ही आसानी से उगाया जा सकता है, साथ ही यह ध्यान रखें कि खेत में जल भराव स्थिति नही पैदा होनी चाहिए, क्योंकि जल-भराव से पौधों के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है। आंवले की खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 8 के मध्य होना चाहिए।
अधिकतर आंवले की बागवानी उन क्षेत्रों में होती है, जहां की जलवायु में गर्मी और सर्दी के तापमान में कोई अधिक अंतर नहीं होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि समशीतोष्ण जलवायु को आंवले की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। शुरूआत में इसके पौधे को सामान्य तापमान की जरूरत होती है मगर पूर्ण विकसित होने के बाद इसके पौधे 0 से 45 डिग्री तक का तापमान सह सकता है। इसके पौधे अधिक गर्मी वाले तापमान में अच्छे से विकास करते है तथा गर्मियों के मौसम में ही इसके पौधों पर फल बनने लगते हैं। लेकिन सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए हानिकारक होता, किन्तु सामान्य ठण्ड में पौधे अच्छे से विकास करते हैं। पौधों के विकास के समय इन्हे सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, इसके अलावा आंवले के पौधों के लिए अधिक समय तक न्यूनतम तापमान हानिकारक होता है। आंवले की खेती समुद्रतल से तकरीबन 1800 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही की जाती है।
वर्तमान में स्थानीय बाजारों में विभिन्न प्रकार की आंवला की व्यापारिक किस्में मौजूद हैं। जिन्हें खासकर व्यापारिक खेती एवं अधिक और जल्दी पैदावार लेने के लिए विकसित किया गया है। इन व्यापारिक एवं उन्नत किस्म के आंवले को खेती के लिए सम्पूर्ण भारत में उगाया जाता हैं। आंवले की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में हम नीचे जिक्र करनें जा रहे हैं।
फ्रान्सिस : इस किस्म के फल देरी से पककर तैयार होते हैं। इस किस्म के वृक्ष की शाखाएं झुकी हुई होती हैं। इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फलों में 6 से 8 कलियां पाई जाती हैं। इसके फल मध्य नवम्बर के बाद पकना शुरू होते हैं। इसके फलों को अधिक समय तक भंडारित कर नहीं रखा जा सकता। इसके फलों का इस्तेमाल मुरब्बा बनाने में नही किया जा सकता।
एन ए-4 : इस किस्म के पेड़ों पर मादा फूलों की संख्या अधिक पाई जाती है। इस किस्म के फल सामान्य आकार के गोल, पीले होते हैं। जिनके अंदर गुदे की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसके पूर्ण विकसित एक पेड़ की औसतन पैदावार 110 किलो के आसपास पाई जाती है।
नरेन्द्र- 10 : इस किस्म के वृक्ष की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है। आंवले की इस किस्म के फल बड़े आकार वाले रेशे युक्त होते हैं। इसके फल बाहर से खुरदरे दिखाई देते हैं। इसके फलों का गुदा हरा और सफेद रंग का होता है। इसके एक पेड़ का औसतन उत्पादन 100 किलो के आसपास होता है। इसके फलों का इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है।
कृष्णा : आंवले की यह एक उन्नत किस्म है। इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं। इस किस्म के एक पौधे से औसतन पैदावार 120 किलो के आसपास पाई जाती है। इस किस्म के पेड़ों पर लगने वाले फल अधिक गूदेदार एवं हल्की लालिमा के साथ पीले रंग के दिखाई देते हैं। इस किस्म के पेड़ से प्राप्त फलों को कुछ समय तब भंडारित किया जा सकता है।
चकईया : इस किस्म के पौधे अधिक चौड़ाई में फैले होते हैं। आंवले की यह किस्म अधिक फलन के लिए जानी जाती है। इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फलों का भंडारण अधिक समय तक किया जा सकता है। इसके फलों का इस्तेमाल आचार और मुरब्बा बनाने में अधिक किया जाता है।
एन.ए. 9 : आंवला की ये भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे अक्टूबर माह से फल देना शुरू कर देते हैं। इसके फलों का आकार बड़ा और छिलका पतला व मुलायम होता हैं। इसका उपयोग जैम, जैली और कैंडी बनाने में किया जाता हैं। इसके पूर्ण विकसित एक पौधे से सालाना औसतन 115 किलो से ज्यादा फल प्राप्त होते हैं।
बनारसी : जल्दी पकने वाली सबसे पुरानी किस्म हैं। इसका पूर्ण विकसित पौधा सालाना 80 किलो के आसपास फल देता है। इसके फल अंडाकार और हल्के पीले रंग के चिकनी सतह वाले होते हैं। इसके पूर्ण विकसित एक पौधे की सालाना औसतन 80 किलोग्राम तक की पैदावार मिल सकती है।
आंवला के पौधों को शुरुआत में सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है। इसके पौधों को खेत में लगाने तुरंत बाद उनकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। इसके पौधों को गर्मी के मौसम में सप्ताह में एक बार और सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करें। बाद में जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाता है तब इसे सिंचाई की जरूरत ज्यादा नहीं होती है। इस दौरान इसके वृक्ष को महीने में एक बार सिंचाई कर लेना चाहिए। लेकिन पेड़ पर फूल खिलने से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। क्योंकि इस दौरान सिंचाई करने पर फूल गिरने लगते हैं जिससे इसके पेड़ पर फल कम लगते हैं।
आंवला के पेड़ों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है। पौधे के विकसित होने के बाद इसके मूल तने से दो से ढाई फिट की दूरी बनाते हुए एक दो फिट चौड़ा और एक से डेढ़ फिट गहरा घेरा बना लें। इस घेरे में लगभग 40 किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद, एक किलो नीम की खली, 100 ग्राम यूरिया, 120 ग्राम डी.ए.पी. और 100 ग्राम एम.ओ.पी. की मात्रा को भर दें। उसके बाद इसके पेड़ों की सिंचाई कर दें। आंवला के पूर्ण विकसित वृक्ष को उर्वरक की इन मात्रों का उपयोग मध्य मार्च से पहले करें। इससे पेड़ों में फलन अच्छे से होता है।
आंवला के पौधों में खरपतवार नियंत्रण निराई-गुड़ाई के माध्यम से करना चाहिए। निराई-गुड़ाई करने से खेत खरपतावार मुक्त होता है, जिससे पौधे की जड़ों में वायु का संचार अच्छे से होता है और पौधा अच्छे से विकास करता है। खेत की पहली निराई-गुड़ाई बीज और पौध रोपण के लगभग 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए। उसके बाद जब भी पौधों के पास अधिक खरपतवार नजर आयें तब उनकी फिर से गुड़ाई कर दें। आंवला के खेत की कुल 6 से 8 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इसके पेड़ों के बीच खाली बची जमीन पर अगर किसी भी तरह की फसल नही उगाई गई हो, तो खेत की जुताई कर दें। जिससे खेत में जन्म लेने वाली सभी तरह की खरपतवार नष्ट हो जाती है।
आंवला एक ऐसी खेती है जिसकी एक बार रोपाई करने पर जीवन भर उपज प्राप्त की जा सकती है। अगर इसकी देखभाल उचित एवं वैज्ञानिक तरीके से की जाये तो इसके एक पेड़ से लगभग 100 से 120 किलोग्राम फल सालाना प्राप्त हो सकते हैं। इसके एक पेड़ से यह मात्रा 60 से 70 सालों तक प्राप्त की जा सकती है। इसलिए इसके पेड़ की समय-समय पर उचित देखभाल करते रहें। आंवले के पौधों की उचित देखभाल करने पर पैदावार अधिक प्राप्त होती है और पौधे रोगमुक्त भी बने रहते हैं। इसके वृक्षों की देखभाल के दौरान इसके पेड़ों की कटाई-छंटाई उनकी सुसुप्त अवस्था से पहले मार्च के महीने में कर देनी चाहिए। आंवला के पेड़ों की देखभाल के दौरान इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद रोग ग्रस्त शाखाओं की कटाई कर देनी चाहिए। इसके अलावा इसके पेड़ों की कटाई छंटाई के दौरान पेड़ों पर नजर आने वाली सूखी हुई शाखाओं को भी काटकर हटा देना चाहिए।
काला धब्बा रोग - इस रोग के लगने पर आंवला के फलों पर काले गोल धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बोरेक्स की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए, या बोरेक्स की उचित मात्रा पौधों की जड़ों में देना चाहिए।
कुंगी रोग - कुंगी रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों और फलों पर देखने को मिलता है। इस रोग की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 का छिडकाव पेड़ों पर करना चाहिए।
फल फफूंदी - इस रोग के लगने पर फलों पर फफूंद दिखाई देने लगती है। जिससे फल सड़कर जल्द खराब हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एम 45, साफ और शोर जैसी कीटनाशी दवाइयों का छिडक़ाव करना चाहिए।
छालभक्षी कीट रोग - इस रोग के लगने पर पौधों का विकास रुक जाता है। जिससे पौधों पर फल काफी कम मात्रा में आते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की शाखाओं के जोड़ पर दिखाई देने वाले छिद्रों में डाइक्लोरवास की उचित मात्रा डालकर छेद को चिकनी मिट्टी से बंद कर दें।
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