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कुट्टू की खेती: किसानों की होगी कुट्टू आटा से बम्पर कमाई, जानें उन्नत किस्म

कुट्टू की खेती: किसानों की होगी कुट्टू आटा से बम्पर कमाई, जानें उन्नत किस्म
पोस्ट -02 अप्रैल 2023 शेयर पोस्ट

किसानो को होगा कुट्टू की खेती पर मुनाफा, मिलेगा 150 रुपए प्रति किग्रा का लाभ 

कुट्टू की उन्नत खेती : कुट्टू एक बहुद्देशीय फसल है। यह नम और ठंडी जलवायु में पाया जाने वाला पोलीगोनेसी कुल का सदस्य है। कुट्टू को आम बोलचाल की भाषा में टाऊ, ओगला, ब्रेश, पदयात, बक व्हीट तथा पहाड़ी क्षेत्र में फाफड़ आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कुट्टू की खेती समुद्र तल से 500 मीटर ऊंचाई से लेकर हिमालय में 4200 मीटर ऊंची पहाड़ियों एवं घाटियों में की जाती है। इन इलाकों के लिए यह बेहद उपयोगी फसल है। धान, गेहूं और अन्य मोटे अनाज फसलों की तुलना में कुट्टू की फसल में पोषक तत्वों की मात्रा प्रचुर होती है। हालांकि, देश में कुट्टू की पैदावार ज्यादा नहीं है। कुट्टू का आटा, गेहूं के आटे मुकाबले दो-तीन गुना महंगा बिकता है। आज कुट्टू के आटे की कीमत बाजार में करीब 140 रुपए से लेकर 150 रुपए प्रति किग्रा हैं। इसीलिए कुट्टू की खेती में कमाई की काफी संभावनाएं मौजूद है। इसीलिए किसान भाई कुट्टू की उन्नत खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। ट्रैक्टरगुरू के इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कुट्टू की उन्नत खेती का वैज्ञानिक तरीका और खेती से होने वाली कमाई के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। अगर आप भी पहाड़ी क्षेत्रों के किसान हैं और इसकी खेती करने के लिए अपना मन बना रहे हैं, तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें। 

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कुट्टू बेहद उपयोगी फसल

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, कुट्टू बेहद उपयोगी फसल है। इस उपयोगी फसल के बीज से लेकर पत्तियां, फूल और तने का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तने का इस्तेमाल सब्जी के तौर पर किया जाता है और हरी पत्तियों और फूलों का इस्तेमाल दवाईयां बनाने में किया जाता है। इसके बीजों से आटा बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल कई तरह के व्यंजन और प्रोडक्ट्स बनाने में किया जाता है। इसके आटे से व्रत-उपवास में स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं। इसके आटे का उपयोग नूडल, सूप, चाय, ग्लूटिन फ्री-बीयर आदि के प्रोडक्ट्स बनाने में होता है। खास बात यह है कि कुट्टू में गेहूं और चावल एवं अन्य मोटे अनाजों से ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें  प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और फास्फोरस की मात्रा भरपूर पाई जाती है। 

सरकार और किसानों को भा गई कुट्टू की खेती 

कृषि बाजार के जानकारों के अनुसार, धान, गेहूं और अन्य मोटे अनाजों की तुलना में कुट्टू में पोषक तत्वों की मात्रा ज्यादा होती है। इसके कारण इसकी मांग देश विदेश में काफी ज्यादा होती है। कुट्टू की मांग जापान सहित दुनिया के अन्य विकसित देशों में काफी ज्यादा है। देश में इसकी खेती अभी तक छत्तीसगढ़, हिमाचल और उत्तराखंड में की जाती हैं। कुट्टू की खेती में कमाई की काफी सम्भावनाओं को देखते हुए देश की कई राज्य सरकारें इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों से कुट्टू की पैदावार को 40 रुपये किलो के भाव पर खरीद कर रही है। छत्तीसगढ़, हिमाचल और उत्तराखंड बाद अब मेघालय के किसान और सरकार को कुट्टू की खेती भा गई है। बता दें कि मेघालय में किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए राज्य सरकार ने कुट्टू की खेती पर ध्यान केंद्रित किया था। मेघालय में इसकी खेती वर्ष 2019 में शुरू की गई थी। मेघालय सरकार ने खेती के लिए इसके बीज उत्तराखंड के अल्मोड़ा से मंगवाए थे। 

कुट्टू की फसल की कटाई और उत्पादन

कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार यदि किसान भाई कुट्टू की खेती करते हैं, तो इसकी खेती से औसत उत्पादन 10 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ले सकते हैं। कुट्टू के पौधों का हर एक भाग बाजार में काफी अच्छे भाव में बिकता है, जिससे किसान भाई इसकी फसल के हर एक हिस्से को बाजार में बेचकर काफी बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं। बता दें कि कुट्टू की फसल एक साथ पककर तैयार नहीं होती है। इसीलिए कुट्टू की फसल को 70-80 प्रतिशत पकने पर काट लिया जाता हैं। कुट्टू की फसल में बीजों के झड़ने की समस्या ज्यादा होती है, जिस वजह से भी इसकी फसल को जल्दी काट लिया जाता हैं। इसकी फसल को कटाई के पश्चात सुखाने के लिए फसल का गट्ठर बनाकर सुरक्षित रख लिया जाता है। फसल सुखने के बाद फसल की गहाई कर उत्पादन का भण्डार किया जाता है। 

कुट्टू की उन्नत खेती कैसे की जाती है?

वैज्ञानिकों के अनुसार, इसकी खेती उस जमीन पर बेहतर पैदावार देती है, जिस जमीन पर काफी लंबे समय तक किसी प्रकार की कोई खेती नहीं की गई हो। कुट्टू की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। किंतु इसकी खेती के लिए ज्यादा लवणीय और सोडिक मिट्टी वाली भूमि अच्छी नहीं होती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। 

कुट्टू फसल की बुवाई का सही वक्त

कुट्टू की खेती रबी सीजन में की जाती है, जिसके लिए इसके फसल की बुवाई मध्य सितम्बर से लेकर मध्य अक्टूबर महीने में की जाती है। इसकी फसल की बुवाई छिड़काव विधि द्वारा की जाती है। कुट्टू के बीजों को बोने के बाद रोटावेटर की मदद से बीजों को मिट्टी में मिलाकर ढक देते हैं। कुट्टू के बीजों की बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी होनी चाहिए। फसल बुवाई के लिए इसके बीजों की मात्रा इसके किस्म पर निर्भर होती है। स्कूलेन्टम के लिए 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, टाटारीकम किस्म के लिए 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीजों की जरूरत पड़ेगी। कुट्टू की उन्नत किस्मों में हिमप्रिया, हिमगिरी और संगलाबी1 शामिल है। यह 100 से 108 दिन में तैयार होने वाली किस्म है। इन किस्मों की औसतन पैदावार 12 से 12.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।  

कुट्टू फसल की देखरेख करने का तरीका

कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार कुट्टू की फसल में 40ः20ः20 किलोग्रामी प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग करना चाहिए। फसल की अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बीजों की बुवाई के बाद पहली सिंचाई जरूरतों के अनुसार कर लेनी चाहिए। फसल की 4 से 5 बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। फसल में संकरी पत्ती के खपतवार नियंत्रण के लिए 3.3 लीटर पेन्डीमेथिलीन का 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बीजों की बुआई के 25-30 दिनों के पश्चात करना चाहिए। इसकी फसल में कीटों और बीमारियों का कोई प्रकोप नहीं होता है, जिससे कुट्टू की खेती में किसी प्रकार के कोई कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती है। बता दें कि कुट्टू फसल की बीजों की बुआई के समय फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष बची मात्रा का प्रयोग पौधों से बालियाँ निकलने पर करें।  
 

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