केंचुआ पालन बिजनेस (वर्मी कंपोस्ट फार्मिंग) : देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना का संचालन किया जा रहा है। इस योजना के तहत प्राकृतिक खेती का क्षेत्र बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए भारी सब्सिडी भी दी जा रही है। ऐसे में किसानों के लिए खेती-बाड़ी के साथ-साथ केंचुआ पालन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। केंचुआ पालन कर केंचुआ खाद का कारोबार कोई भी बड़ी आसानी से शुरू कर सकता है। इस कारोबार को शुरू करने के लिए कोई बड़े निवेश की आश्यकता नहीं होती है। खास बात यह है कि देश की राज्य सरकारें इसके लिए अपने अपने स्तर पर सब्सिडी से लेकर अन्य सुविधाएं भी देती हैं। यदि आपने केंचुआ खाद का बिजनेस अपनी बचत के पैसों से शुरू कर एक बार अच्छी मेहनत कर ली तो आप इस बिजनेस से हर महीने लाखों रुपए की कमाई आसानी से कर सकते हैं। इस बिजनेस पर सब्सिडी मिलने से यह वर्तमान समय में काफी तेजी से बढ़ रहा है। आज देश के कई राज्यों के किसान इस बिजनेस को शुरू कर अपने लिए एक निश्चित आय का अतिरिक्त साधन बना चुके हैं। यहां तक इस बिजनेस से मुनाफा कमाने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती से ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। इतना ही नहीं इससे अपने खेतों की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ा रहे हैं, जिसका लाभ उन्हें गेहूं, धान, सब्जियों जैसी अन्य पारंपरिक फसलों में मिल रहा है। इन सामान्य फसलों की पैदावार बढ़ने से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत बन रही है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सरकार कई प्रकार की योजना चलाकर किसानों को सब्सिडी के जरिए केंचुआ पालन के लिए प्रेरित कर रही है। देखते ही देखते आज केंचुआ खाद का बिजनेस काफी बड़ा हो चुका है और हजारों लाखों किसानों का खेती के साथ-साथ कमाई बढ़ाने का अतिरिक्त विकल्प बना चुका है। आईये, ट्रैक्टर गुरू के इस लेख के माध्यम से केंचुआ पालन (केंचुआ खाद) के बारे में विस्तार से जानते हैं।
दरअसल, केंचुआ प्राकृतिक चक्र को बनाए रखने में हमेशा से महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा है। ये रेंगने वाला जीव कूड़ा-कड़कट और गाय-भैंसों के अपशिष्ट को डिकंपोज कर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाकर पर्यावरण संरक्षण को बनाए रखने का काम करते हैं। कृषि के लिए तो केंचुआ हमेशा से अच्छा दोस्त रहा है। ये खेतों में मिट्टी को ऊपर से नीचे पलटकर उसमें कई असंख्यक छेद बनाता है, जिससे मिट्टी में पानी और हवा के आवागमन का बेहतर जरिया बनता है। केंचुआ मुफ्त में ही खेतों की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने का काम करता है। यह खेतों में कूड़ा-कड़कट, फसल अवशेष और पशुओं के गोबर को आहार बनाकर जैविक खाद तैयार करता है। इस कम्पोस्ट खाद में पोषक तत्वों की मात्रा बड़े स्तर पर पाई जाती है। केंचुआ द्वारा तैयार ’वर्मी कम्पोस्ट’ खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम और जिप्सम, पोटास जैसे पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा होती है, जिसके कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति प्राकृतिक तरीके से बढ़ती है। केंचुआ खाद के लगातार प्रयोग से मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है, जिससे खेती में पैदावार बढ़ती है।
केंचुआ खाद या वर्मी कंपोस्ट मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं के अनुपात को बेहतर बनाकर भौतिक गुणों में सुधार कर भूमि को अधिक नमी सोखने की क्षमता प्रदान करती है, जिससे फसलों की गुणवत्ता और पैदावार में वृद्धि होती है। मिट्टी और फसल दोनों के लिए ही बेहद उपयोगी होने के कारण केंचुआ खाद की डिमांड बाजारों में बड़े स्तर पर है, जिससे केंचुओं का व्यावसायिक रूप से पालन कर केंचुआ खाद उत्पादन से किसान अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। इसकी व्यावसायिक उत्पादन यूनिट लगाकर किसान जैविक अपशिष्टों का आसानी से निस्तारण कर अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं।
केंचुओं के जरिये तैयार जैविक खाद को केंचुआ खाद या ‘वर्मी कंपोस्ट’ कहते हैं। केंचुओं से तैयार ‘वर्मीकम्पोस्ट’ को क्वालिटी के आधार पर बाजार में 10 रुपए से लेकर 20-25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा सकता है। इतना ही नहीं इन केंचुओं को 500 से 550 रुपए प्रतिकिलोग्राम के भाव से किसानों को आसानी से बेचा जा सकता है। इस कारण केंचुआ पालन का व्यवसाय कमाई दोगुनी करने का बेहतर अतिरिक्त साधन माना जा रहा है।
बदलते समय में आज प्राकृतिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिसके चलते लोग अब रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती अपना रहे हैं। इससे कूड़ा-कड़कट और पशुओं के मल-मूत्र से तैयार जैविक खाद की मांग मार्केट में मांग बढ़ती जा रही है, जिसके चलते अब केंचुआ पालन बिजनेस एक लाभदायक बिजनेस में बदल चुका है। आप सरकारी सब्सिडी पर ‘वर्मी कंपोस्ट’ यूनिट लगाकर केंचुआ पालन कर केंचुआ खाद तैयार कर सकते हैं। इसके लिए आपको पहले डेट्रीटीव्होरस या जीओफेगस अच्छी प्रजाति के केंचुआ के साथ जैविक पदार्थ जैसे कूडा-कड़कट, पशुओं के मल-मूत्र, खेत से निकले फसलों के अवशेष, सूखी घास-फूस सहित वर्मी बैड और उचित पानी, वातावरण संसाधनों की जरूरत होगी।
देश की विभिन्न राज्यों की सरकार केंचुआ पालन के लिए कुल खर्च पर 40 प्रतिशत तक सब्सिडी के रूप में आर्थिक मदद दे रही है। इससे केंचुआ पालन व्यावसाय किसान और महिला समूहों के लिए वरदान साबित हो रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य में आज महिला समूह “वर्मी कंपोस्ट” उत्पादन से मोटी आय कर रही है। इन सब में प्रदेश सरकार भी उनका पूर्ण रूप से सहयोग कर रही है। प्रदेश सरकार महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा उत्पादित कम्पोस्ट खाद की खरीद और बेचान करने के लिए उचित बाजार की व्यवस्था प्रदान करती है। महिला स्व-सहायता समूहों को वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने और तैयार खाद के पैकेजिंग के लिए 4.92 रुपए प्रति किलोग्राम प्रोत्साहन राशि भी प्रदान करती है। पर्याप्त जानकारी के मुताबिक, छत्तीसगढ़ सरकार महिला समूहों द्वारा उत्पादित वर्मी कंपोस्ट में से बेचे गए तकरीबन 17.64 लाख क्विंटल खाद के एवज में महिला समूहों को 17.64 करोड़ एवं सहकारी समितियों को 1.76 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जा चुकी है।
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