देश में पिछले कुछ सालों से अनाज फसल, फल, फूल और सब्जियों की क्वालिटी पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कारण स्पष्ट है कि आज के दौर में देश के साथ-साथ दुनिया की खाद्यान जरूरतों की आपूर्ति का जिम्मा भी देश के ऊपर है। ऐसी स्थिति को देखते हुए हमारें कृषि वैज्ञानिक बेहतर उत्पादन के लिए उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज एवं किस्म तैयार कर रहे है। साथ ही फसलों के बचाव एवं उनसे बेहतर उत्पादन के लिए नये-नये तरीके के बारे में भी किसानों को बता रहे है। इसी दिशा में एक कदम और आगे बढ़ते हुए हमारें कृषि वैज्ञानिकों ने मिर्च की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जो खाने के काम तो आएगी ही साथ ही इससे मिलने वाले सुर्ख रंग का इस्तेमाल सौंदर्य प्रोडक्ट्स बनाने में भी किया जाएगा। इसे उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित आईसीएआर-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। मिर्ची की अनोखी किस्म का नाम वीपीबीसी-535 है, इसे काशी सिंदूरी के नाम से भी जाना जाता है। काशी सिंदूरी (वीपीबीसी-535) मिर्च एकमात्र ऐसे किस्म है, जिसे उत्तर प्रदेश की जलवायु को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है। मिर्च की ये नई किस्म किसानों को काफी चर्चित है। और मिर्च के इस किस्म की खती को लेकर किसानों में भी उत्साह है। तो आइए ट्रैक्टरगुरुर के इस लेख में मिर्ची की इस अनोखी किस्म के बारें में जातने है।
वाराणसी स्थिति आईसीएआर-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों कहना है कि आईआईवीआर लंबे समय से मिर्च पर काम कर रहा है और इस अवधि में कई सारी किस्में भी किसानों को उपलब्ध कराई गई है। मिर्च काशी सिंदूरी (वीपीबीसी-535) यानि पैप्रिका प्रजाति की खेती पहली बार हो रही है। आईवीवीआर के निदेशक तुषार कांति बेहरा बताते हैं कि विदेशों में मिर्च से रंग बनाने की कई किस्मों पर काम हो रहा है। वो कहते है कि मिर्च काशी सिंदूरी (वीपीबीसी-535) में 15 प्रतिशत ओलेरोसिन होता है। यह किस्म सामान्य मिर्चों की अपेक्षा अधिक पैदावार देने में सक्षम है। मिर्च की इस किस्म में उर्वरकों का इस्तेमाल अधिक होता हैं।
वाराणसी स्थिति आईसीएआर-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के निदेशक तुषार कांति बताते है कि मिर्च की इस किस्म को यूपी ट्रॉपिकल के हिसाब से तैयार किया गया है। वो आगे कहते हैं, उत्तर प्रदेश के कुछ किसानों के अलावा कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के चुनिंदा किसानों को काशी सिंदूरी की किस्म वितरित की गई है। किसान को लगा कि काशी सिंदूरी मिर्च की खेती किसानों के लिए बहुत पैसा कमाने का रास्ता हो सकती है। सामान्य मिर्च 30 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकती है, लेकिन अधिक होने पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम तक गिर सकती है। दूसरी ओर काशी सिंदूरी 90 रुपये प्रति किलो तक बिक सकती है। किसानों के पास एक अनुबंध होना चाहिए जो उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि उनकी पूरी पैदावार बड़ी कंपनियों द्वारा खरीदी जाएं।
यूपी के वाराणसी जिला के जिला उद्यान निरीक्षक का कहना है कि अगर सरकार से आधिकारिक समर्थन और प्रोत्साहन मिलता है, तो काशी सिंदूरी की खेती को बहुत बढ़ावा मिल सकता है। सरकार को सब्जियों का समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए। यदि काशी सिंदूरी (वीपीबीसी-535) मिर्च की खेती होती है तो पूर्वांचल में मिर्च की खेती करने वाले लाखों किसानों मालामाल हो सकते हैं। सही मायने में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने के प्रयासों के लिए अच्छी साबित होगी। वे आगे बताते है कि काशी सिंदूरी की खेती हजारों किसानों के जीवन में बदलाव का सबब बन सकती है। इसके लिए सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियों को किसानों के संपर्क में लाया जाए। जिलें में मिर्च से रंग बनाने की इकाई लगाई जाए। इसके बाद फिर आय बढ़ाने के लिए पैप्रिका मिर्च की खेती के लिए किसानों को प्रत्साहित किया जाए।
आईसीएआर संस्थान के निदेशक तुषार कांति बताते है कि सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल बाजार 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कुल मूल्य के साथ दुनिया का आठवां सबसे बड़ा बाजार है। यह 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इस वृद्धि को बढ़ावा देने वाले सौंदर्य प्रसाधनों के साथ बाजार 2030 तक दोगुना होने की उम्मीद लगाई जा रही है। भारतीय उपभोक्ताओं के बीच हर्बल कॉस्मेटिक उत्पादों की बढ़ती मांग भी निर्माताओं के लिए व्यापक विकास अवसर पैदा कर रही है। जब यह मिर्च पक जाती है तो, इसका पूरा रंग लाल हो जाता है। इस मिर्च में एक औषधिय गुण होता है, जिसे ओलियोरेजिन कहते हैं। इस औषधिय गुण के कारण इसका उपयोग दवाईयों में किया जाता है। इसके लाल रंग के रूप में सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है। सिंदूरी काशी मिर्च रंग के पिग्मेंट को सब्जी, सौंदर्य प्रसाधन में लिपस्टिक और मेडिसिन में इस्तेमाल करने से प्राकृतिक कलर मार्केट में क्रांति आ जाएगी, सिंथेटिक रंग के हानिकारक प्रभावों से करोड़ों नागरिकों को आसानी से बचाया जा सकता है।
वाराणसी स्थिति आईसीएआर-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा मिर्च की संकर किस्म आईवीपीबीसी-535 (काशी सिंदूरी) हैं। इसमें गैर-तीखा और उच्च मात्रा में ओलेरोसिन (15 प्रतिशत) होता है। मिर्च की यह संकर किस्म प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल तक उपज दे सकती है। काशी सिंदूरी के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 400-500 ग्राम बीज की जरूरत होती है। आईवीपीबीसी-535 (काशी सिंदूरी) की खेती रबी और खरीफ दोनों मौसमों में की जा सकती है।
यदि कोई किसान वैज्ञानिक रूप से आईवीपीबीसी-535 (काशी सिंदूरी) की खेती करने की योजना बना रहे हैं, उन्हें जुलाई/अगस्त के महीनों में नर्सरी तैयार करनी चाहिए। आईवीपीबीसी-535 (काशी सिंदूरी) की खेती के लिए जब खेत तैयार किया जा रहा हो, तो खेत तैयार करते समय लगभग 20-30 टन प्रति हेक्टेयर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। आईवीपीबीसी-535 (काशी सिंदूरी) मिर्च को प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है। नर्सरी मे तैयार पौधों को बीज बुवाई के 30 दिनों के बाद, पौधे को 45 सेमी की दूरी पर रोपाई करना चाहिए। एवं प्रत्येक पंक्ति 60 सेमी की दूरी पर होनी चाहिए। क्योंकि आईवीपीबीसी-535 (काशी सिंदूरी) के पौधे फैले हुए होते हैं। मिर्च की यह किस्म एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रतिरोधी होती है। यह बुवाई के 95-100 दिन में मिर्च के फल पकने लगते हैं और इसके फल 10-12 सेमी लंबे और 1.1-1.3 सेमी मोटे होते हैं।
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