शलगम की खेती : सिर्फ 70 दिनों की खेती में कमाये लाखों रूपये, जानें कैसे होगी इसकी खेती

पोस्ट -25 जून 2022 शेयर पोस्ट

जानें शलजम की खेती की सम्पूर्ण जानकारी एवं शलगम के फायेद

देश में इस वक्त खेती का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। देश के अलग-अलग राज्यों के किसान खेती के क्षेत्र में काफी जागरूक हो रहे हैं। हाल के वर्षों में किसान पारंपरिक फसलों के बजाय नए - नए बागवानी फसलों की खेती कर अच्छी पैदावार के साथ अधिक कमाई भी कर रहे हैं। आज हम एक ऐसी ही फसल की बात करने जा रहे हैं जिसकी खेती कर किसान भाई लाखों की कमाई कर सकते हैं। जी हां आज हम बात करने जा रहे हैं शलगम की। शलगम को शलजम के नाम से भी जाना जाता है। शलगम एक ऐसी सब्जी है जो इसके जड़ से प्राप्त होती है। इसकी उचित पैदावार के लिए किसान को इसकी खेती ऐसी स्थिति में करनी चाहिए जहां खेत की मिट्टी बलुई और रेतीली हो। अगर आपके खेत की मिट्टी चिकनी और कड़क हुई तो शलगम की फसल अच्छी नहीं होगी। क्योंकि ये एक जड़ वाली फसल है यानि कि ये जमीन के अंदर होने वाली फसल है तो इसके लिए मिट्टी का नरम और रेतीला होना बहुत आवश्यक है। शलगम की खेती को इसकी जड़ों और पत्तों के लिए की जाती है। इसकी जड़ें विटामिन सी का उच्च स्त्रोत होती हैं, जबकि इसके पत्ते विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलिएट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत होते हैं। शलगम को सब्जी, सलाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, ये मैदानी भागों में सर्दियों के मौसम में आने वाली सब्जी है। शलजम को एंटी-ऑक्सीडेंट, मिनरल और फाइबर का बहुत अच्छा स्रोत माना जाता हैं। इसके सेवन को हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप और सूजन में बहुत लाभप्रद माना जाता हैं। शलजम में मौजूद विटामिन सी शरीर के लिए बहुत आवश्यक हैं। ये शरीर की इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करती हैं। इसके पत्ते ओषधिय गुणों से भरपूर होते हैं लेकिन स्वाद में कड़वे होते हैं इसलिए इन्हें उबाल कर खाने कि सलाह दी जाती है। शलगम की फसल जड़ और पत्तो को प्राप्त करने के लिए की जाती है। भारत में शलगम की खेती लगभग सभी क्षेत्रों में की जाती है। आज आपको ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट में शलगम की खेती कैसे करें और शलगम खाने के क्या फायदे हैं? के बारे में जानकारी दी जा रही हैं। 

शलगम क्या है और इसकी क्या विशेषता है? 

शलगम का वानस्पतिक नाम क्रुसीफेरी या ब्रेसीकेसी है। इसकी जड़ गांठनुमा होती है जिसकी सब्जी बनती है। आम भाषा में शलगम एक जड़ वाली सब्जी है, जो आमतौर पर समशीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों में उगाई जाती है। शलगम का सबसे सामान्य प्रकार ऊपरी 1 से 6 सेंटीमीटर के अलावा ज्यादातर हिस्सा सफेद छिलके वाला होता है, जहां सूरज की रोशनी पड़ती है वह बैंगनी, लाल या हरे रंग का होता है एवं आंतरिक मांस पूरी तरह सफेद होता है। शलगम की पूरी जड़ लगभग शक्काकार होता है जिसका व्यास लगभग 5 से 20 सेंटीमीटर का होता है, और साइड जड़ों की कमी होती है। शलगम की कुछ जड़े लंबी, कुछ गोलाकार, कुछ चिपटी और कुछ प्याले के आकार की होती है। कुछ किस्म के शलजम के गुद्दे सफेद और कुछ के पीले होते हैं। शलजम का वर्गीकरण इसकी जड़ के आकार पर, अथवा जड़ के ऊपरी भाग के रंग पर किया गया है। भारत में उपर्युक्त सभी प्रकार के शलगम उगाए जाते हैं।  

शलगम का उपयोग 

शलगम को सब्जी, सलाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसकी जड़ मोटी होती है, जिसको पकाकर खाते हैं और पत्तियाँ भी साग के रूप में खाई जाती है। पशुओं के लिए यह एक बहुमूल्य चारा है। इसकी खेती सब्जी एवं पशु चारा के रूप में दोनों कामों के लिए की जाती है। शलगम को औषधीय गुणों की खान माना जाता हैं। यह एक ऐसा कंद, (सब्जी) है जिसका सेवन शरीर में कई पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए किया जाता हैं। इस में विटामिन सी, विटामिन के, बीटा कैरोटिन और पोटैशियम जैसे गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को कई स्वास्थ्य समस्याओं जैसे वायरल इंफेक्शन सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, बदन दर्द आदि मौसमी संक्रमण से बचाने में मदद करता हैं। इसके अलावा डायबिटी, हड्डियों और मांसपेशियों, हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप और सूज से बचाने में भी मदद के साथ साथ एंटीऑक्सीडेंट इम्यूनिटी को मजबूत बनाने का काम करता है। शलगम को आप अपनी डाइट में जूस और सलाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। शलजम में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है, जो सेहत के साथ-साथ स्किन के लिए भी अच्छा माना जाता है। 

ऐसे करें शलगम/शलजम की खेती 

  • जलवायु एवं तापमान : शलगम को आमतौर पर समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह ठंडे मौसम की फसल है। शलजम की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती हैं। ठंडी जलवायु में इसकी उपज अच्छी मिलती हैं। इसके लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्शियस तक उपयुक्त रहता हैं। बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और तामिलनाडू आदि भारत के मुख्य शलगम उत्पादक राज्य हैं।

  • भूमि का चयन : इसे मिट्टी की कईं किस्मों में उगाया जा सकता है पर शलगम दोमट बलुई और रेतीली मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में हो, ऐसे प्रकार की मिट्टी में उगाया जाए तो यह अच्छे परिणाम देती है। अगर आपके खेत की मिट्टी चिकनी और कड़क हुई तो शलजम की फसल अच्छी नहीं होगी, क्योकि ये एक जड़ वाली फसल है। यानि कि ये जमीन के अंदर होने वाली फसल है। इसलिए भारी, घनी या हल्की मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें क्योंकि इससे विकृत जड़ों का उत्पादन होता है। अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी की पी.एच मान 5.5 से 6.8 होनी चाहिए।

  • खेत की तैयारी : शलगम की खेती में भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है, इसकी खेती के लिए खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके लिए पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। पहली गहरी जुताई करने के पश्चात खेत में 250 से 300 क्विंटल प्राकृतिक गोबर की सड़ी खाद या जैविक वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। इसके बाद 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला लें। इसके बाद 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए। आखिरी जुताई में फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में देनी चाहिए। पहली आधी जब पौधों के 4 से 5 पत्ती निकल आए तब और बची हुई मात्रा फलों के विकास के समय देनी चाहिए। 

  • उन्नत किस्में :  पूसा स्वेती, पूसा कंचन, लाल 4, सफेद 4, शलजम एल- 1, पंजाब सफेद 4, गोल्डन, पर्पिल टाइप व्हाईट ग्लोब, स्नोबल, पूसा चन्द्रमा, पूसा स्वर्णिम, आदि प्रमुख है।

  • पैदावार एवं समय : शलगम की इन किस्मों को तैयार होने में 45 से 70 दिन का समय लग जाता हैं। इन किस्मों की उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।

शलगम / शलजम बोने का सही समय एवं तरीका क्या है?

शलगम की बुवाई मैदानी क्षेत्र में सितम्बर से अक्टूबर सर्दियों के मौसम में की जाती हैं। और पहाड़ी इलाकों में जुलाई से अक्टूबर गर्मी के मौसम की जाती है। इसकी बुवाई के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं। अच्छी पैदावार व बढि़या गुणवता की शलगम प्राप्त करने के लिए इसके बीजों की बुवाई हल्की डोलियाँ पर ही करनी चाहिए। इसके बीजों की बुवाई के लिए खेत में तैयार पंक्ति में ही की जाती है। शलगम की बुवाई करते समय पंक्ति के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर का फासला रखना चाहिए तथा हर बीज के बीच 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी रखे। ध्यान रहे इसके बीजों की बुवाई करते समय बीजों को 2 से 3 सेटीमीटर की गहराई में ही लगाए। इन बीजों को खेत में लगाने से पहले 3 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान के घोल से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लें। बीजों को बिना उपचारित करें बोने से अंकुरण अच्छे नहीं होता एवं फसल में रोग लगने का खतरा भी रहता है। 

शलगम की फसल की देखभाल

  • सिंचाई : जैसा किसान भाई जानते हैं शलगम जमीन के अंदर वाली फसल है, एवं इनकी बुवाई मेड़ पर की जाती है। इसकी कारण शलगम को हल्की सिंचाई की जरूरत होती है। शलगम की सिंचाई में पानी की ज्यादा मात्रा न जाये बस इसकी मेड़ को सीलन मिल जाये उस हिसाब से ही सिंचाई करें। अगर किसान भाई ने मेड़ बनाकर बिजाई नहीं की है, तो भी इसमें हल्का पानी ही दें। शलगम को तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के बाद करें, यह अच्छे अंकुरण में मदद करती है। गर्मियों में 6 से 7 दिनों के अन्तराल में करें। सर्दियों में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर करें। अनावश्यक सिंचाई ना करें। इससे जड़ों का आकार विकृत होगा और इस पर बाल उग जाते हैं।

  • खरपतवार नियंत्रण : शलगम की बुवाई के 10 से 15 दिन बाद खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए निराई-गुडाई करें, क्योंकि इसकी फसल में खरपतवार पर विशेष ध्यान देना होता हैं। शलजम की फसल 2 से 3 गुड़ाई में तैयार हो जाती हैं। अगर खेत में ज्यादा खरपतवार हैं एवं इसकी खेती बड़े स्तर पर की गई है, तो निराई- गुड़ाई के अलावा पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के खेत में छिड़काव करें।

  • बीमारियां और रोकथाम : शलगम में मुख्य रूप से जड़ गलन रोग का प्रकोप देखने को मिलता है। इस रोग से बचाव के लिए, बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। बिजाई के बाद 7 से 15  दिन बाद नए पौधों के आस पास की मिट्टी में कप्तान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

  • कीट से बचाव के लिए : शलजम की फसल पर कीट रोग सुंडी, बालदार कीड़ा, मुंगी, माहू और मक्खी के रूप में आक्रमण करते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए 700 से 800 लीटर पानी में 1 लीटर मैलाथियान को डालकर उसका छिड़काव खेत में करें। इसके अलावा 1.5 लीटर एंडोसल्फान की मात्रा को उतने ही पानी मिलाकर उसका छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करें।

  • फसल की खुदाई : शलगम की खुदाई, किस्म के आधार पर और मंडी के आकार के हिसाब से करें। वैसे तो शलगम की फसल बुवाई के बाद 45 से 70 दिनों में तैयार हो जाते हैं। फसल की खुदाई समय पर करें। खुदाई में देरी होने के कारण इसकी फल रेशेदार हो जाती हैं। फसल की खुदाई के बाद शलगम की फसल को पानी से धोया जाता है। उन्हें टोकरी में भरा जाता है और मंडी में भेजा जाता है। इसके फलों को ठंडे और नमी वाले हालातों में  2 से 3 दिन के लिए  8 से 15 सप्ताह के लिए स्टोर करके रखना हो तो उन्हें रखा जाता है।

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