Sorghum Farming : ज्वार एक तरह की जंगली घास वाली मोटे अनाज की फसल है। इसकी खेती देश के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होती है। खरीफ फसलों में ज्वार को मीठी चरी के नाम से भी जाना जाता है। मोटे अनाज की इस जंगली फसल को किसान भाई पशुओं के हरे चारे के लिए बोते हैं। क्योंकि ज्वार (sorghum) का चारा मीठा और पौष्टिक होता, जिसे पशु इसे बड़े चाव से खाते हैं। लेकिन राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने अब इस मीठी चरी फसल के तने से मिलने वाले रस से मीठा शहद तैयार किया है, जो मधुमक्खी से बनने वाले मीठे शहद का विकल्प बन सकता है।
प्राचीन काल से ही ज्वार यानी मीठी चरी फसल की खेती देश के विभिन्न इलाकों में खरीफ और रबी दोनों सीजन के में बड़े पैमाने पर होती आ रही है। देश के राजस्थान, पंजाब, बंगाल, मद्रास और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में इसकी खेती होती है। लेकिन इन राज्यों में ज्वार की खेती पशुओं के चारे के रूप में की जाती है, क्योंकि ज्वार के सभी भागों (पत्ते, डंठल और सफेद दानें) का प्रयोग किसानों द्वारा पशु आहार के लिए किया जाता है। इस मोटे अनाज वाली महत्वपूर्ण फसल के दानों का इस्तेमाल उच्च गुणवत्ता वाला अल्कोहल और ईथेनॉल बनाने में भी किया जा रहा है। परंतु अब राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने ज्वार के डंठल (तने) से निकले रस से एक ऐसा मीठा शहद बनाया है, जो आने वाले समय में मधुमक्खी से बनने वाले शहद को रिप्लेस कर सकता है।
खास बात यह है कि ज्वार से तैयार इस मीठे शहद की गुणवत्ता मधुमक्खी शहद से कहीं अधिक है और इसमें औषधीय गुण भी उच्च मात्रा में है, जिससे यह मानव स्वस्थ्य के लिए बेहतर भी है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने इस शहद का पेटेंट भी करा लिया है। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में ज्वार से किसानों को अतिरिक्त आय भी प्राप्त हो सकती है, जिससे उनकी आय में भी वृद्धि हो सकती है। बता दें कि ज्वार से किसानों को दोहरा लाभ होता है। मानव आहार के साथ-साथ ज्वार फसल से किसानों को पशुओं के लिए मीठी कड़बी (चरी) भी मिल जाती है।
किसानों की बदल सकती है किस्मत
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन का कहना है कि ज्वार मोटे अनाज वाली महत्वपूर्ण फसल है। बारिश आधारित खेती के लिए ज्वार सबसे उपयुक्त खरीफ फसल है। इसकी फसल कम वर्षा (450-500) आधारित क्षेत्रों में भी अच्छी पैदावार दे सकती है। ज्वार 45 डिग्री सेल्सियस उच्च तापमान पर भी आसानी से विकसित हो सकती है। देश में ज्वार फसल के कुल 11 प्रभेद है, जिनमें से पांच प्रभेद ऐसे हैं जिनके तने से मीठा रस निकलता है। उन्होंने कहा कि इस दूरगामी शोध के परिणाम स्वरूप इसके तने से मिलने वाले इस मीठे रस को गाढ़ा करने पर शहद की भांति मीठा सिरप प्राप्त होता है जिसमें मिठास कम होती है। वहीं, मधुमक्खी से मिलने वाले शहद के मुकाबले इसमें कैलोरी कम और पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। आने वाले वक्त में ज्वार से उत्पादित होने वाला यह मीठा सिरप शहद के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है। ज्वार की वसुंधरा प्रभेद सबसे बेहतर साबित हुई है। इस प्रभेद की खेती प्रदेश के विभिन्न इलाकों में भी की जा सकती है।
ज्वार के रस से तैयार शहद में मिलने वाले पोषक तत्व
मुधमक्खी से बनने वाले शहद के मुकाबले, ज्वार से बनने वाले शहद में 45-48 प्रतिशत फ्रुक्टोज तथा 40-42 प्रतिशत ग्लूकोज की मात्रा पाई जाती है। वहीं इसके शहद का पीएच मान 4.3 है, जबकि इसमें घुलनशील सामग्री ब्रिक्स का मान 72 है। मधुमक्खी से मिलने वाले शहद की तुलना में ज्वार से प्राप्त सिरप में 296 कैलोरी प्रति 100 ग्राम पाई जाती है, जबकि मधुमक्खी से मिलने वाले मीठे शहद में 310 कैलोरी प्रति 100 ग्राम होती है। वहीं, इसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन की मात्रा भी मौजूद होती है। संस्थान के वरिष्ठ शोधार्थी श्रुति शुक्ला का कहना है कि ज्वार के एक लीटर रस से करीब 100 ग्राम तक मीठा सिरप बनाया जा सकता है। यानि 100 ग्राम तक मीठे शहद की प्राप्ति की जा सकती है।
ज्वार से तैयार शहद से शरीर को मिलते हैं कई लाभ
प्रोफेसर नरेंद्र मोहन का कहना है कि चीनी में 100 प्रतिशत सुक्रोज होता है, जो मधुमेह (शुगर) का लेबल बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है। चीनी के प्रति 100 ग्राम में 385 कैलोरी होती है। परंतु ज्वार से तैयार इस मीठे सिरप का सेवन करने से शरीर को कई लाभ भी मिलते हैं। इसके उपयोग से शरीर को कम कैलोरी के साथ कई औषधीय फायदे भी मिलते हैं। इसका उपयोग मधुमेह ग्रसित व्यक्ति के लिए भी सही है, क्योंकि इसमें कई औषधीय तत्व भी मिलते हैं।
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