किसान भाई अपनी आय में बढ़ोतरी के लिए गेहूं, धान, मक्का आदि फसलों के साथ सब्जियों और फलों की खेती पर भी ध्यान दे सकते हैं। ऐसा करके वह पारंपरिक फसलों से मुनाफा तो पाएंगे ही साथ में वह सब्जियों और फलों की फसल से भी अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं। किसानों को सब्जियों और फलों की खेती पर सरकार द्वारा आर्थिक रूप से मदद भी दी जाती है। आज हम एक ऐसी सब्जी की फसल के बारे में बात कर रहे हैं, जिसकी खेती कर किसान भाई अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। क्योंकि इसकी खेती काफी ज्यादा आमदनी देने वाली होती है। इसकी कीमत एवं मांग बाजार में कभी कम नहीं होती है। साथ ही इसके लम्बे समय तक खराब होने का भी कोई ड़र नहीं होता है। किसान को हरी सब्जियों की भॉति इसे जल्दबाजी में बेचने की परेशानी भी नहीं होती है। यही कारण है कि किसानों के बीच इस सब्जी की खेती अधिक लोकप्रिय है। आज हम जिस सब्जी के बारे में चर्चा कर रहे है वह ओल (जिमीकंद) है। ओल खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इसके कई स्वास्थ्यवर्धक लाभ भी होते हैं। लोग इसका इस्तेमाल सब्जी के अलावा अचार, चटनी में भी करते हैं। इसके साथ-साथ ओल से कई प्रकार की औषधियों का भी निर्माण किया जाता है। ओल की खेती गर्मी के मौसम में की जाती है। ओल की खेती का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अब गर्मियों का मौसम चल रहा है। ओल की खेती के लिए यह सही समय हैं, अगर किसान भाई ओल की खेती करना चाहते हैं, तो वे अभी से इसकी बुवाई शुरू कर सकते हैं। ध्यान रहें किसानों के पास इसकी सिंचाई की अच्छी व्यवस्था खेत के आसपास होनी चाहिए।
ओल (जिमीकंद) एक बहुवर्षीय भूमिगत सब्जी है, जिसका वर्णन भारतीय धर्मग्रंथों में भी पाया जाता है। भारत के विभिन्न राज्यों में ओल (जिमीकंद) को ओल या सूरन आदि भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है। पहले ओल (जिमीकंद) को गृहवाटिका में या घरों के अगल-बगल की जमीन में ही उगाया जाता था। परन्तु अब किसान ओल (जिमीकंद) की व्यवसायिक खेती करने लगे हैं। ओल (जिमीकंद) एक सब्जी ही नहीं बल्कि यह एक बहुमूल्य जड़ीबूटी भी है, जो स्वस्थ एवं निरोग रखने में मदद करता है। भोज्य पदार्थों के संचन हेतु यह भूमिगत तना का रूपांतर है, जिसे घनकंद कहते हैं। यह परिवर्तित तना बहुत अधिक जैसा-तैसा फूला रहता है एवं इसकी सतह पर पर्व संधियाँ रहती हैं जिनपर शल्क-पत्र लगे रहते हैं। सतह पर जहाँ-तहाँ अपस्थानिक जड़ें लगी रहती हैं। अगले सिरे पर अग्रकलिका तथा शल्कपत्रों के अक्ष पर छोटी-छोटी कलिकाएँ होती हैं। ओल में पोषक तत्वों के साथ ही अनेक औषधीय गुण पाये जाते हैं जिनके कारण इसे आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है। इसे बवासीर, खुनी बवासीर, पेचिश, ट्यूमर, दमा, फेफड़े की सूजन, उदर पीड़ा, रक्त विकार में उपयोगी बताया गया है। इसकी खेती हल्के छायादार स्थानों में भी भली-भांति की जा सकती है, जो किसानों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ है।
ओल (जिमीकंद) की खेती अप्रैल मई के महीने में शुरू की जाती है। खेत में ओल (जिमीकंद) लगाने हेतु कंद का ही उपयोग की जाती है, ज्यादातर किसान छोटे कंद का उपयोग ओल (जिमीकंद) लगाने हेतु करते हैं। जिस वजह से ओल (जिमीकंद) छोटे एवं ज्यादा वजनी नहीं मिल पाता। यदि किसान को ओल (जिमीकंद) की व्यवसायिक खेती शुरू करनी है, तो ओल (जिमीकंद) कम से कम एक से डेढ़ किलो वजनी का ही उपयोग में लेना चाहिए। बड़े ओल (जिमीकंद) का उपयोग खेती में बीज के रूप में करने से सात से आठ महीना उपरांत हमें बड़े आकार का ओल (जिमीकंद) की उपज प्राप्त हो सकती है।
ओल (जिमीकंद) उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा हैं। भारत में ओल (जिमीकंद) की खेती बारिश के मौसम से पहले और बाद में की जाती है। इसके पौधे को अच्छे से विकास करने के लिए गर्मी की आवश्यकता होती है। किन्तु इसके कंद को विकास करने के लिए ठंड के मौसम की जरूरत होती है। ठण्ड के मौसम में इसका कंद अच्छे से विकास करता हैं। ओल (जिमीकंद) के पौधे बीज लगाने के लगभग 20 से 30 दिन बाद अंकुरित होते हैं। इस दौरान ओल (जिमीकंद) के पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है। अंकुरित होने के बाद पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। इसके पौधे अधिकतम 35 डिग्री तापमान पर भी अच्छे से विकास करते हैं।
व्यवसायिक तौर पर जिमीकंद की खेती के लिए उत्तम जल निकास वाली बलूई दोमट मिट्टी वाले खेत का ही चुनाव करें। इस तरह की मिट्टी में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। किन्तु अधिक जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को नहीं की जा सकती। क्योंकि जलभराव की स्थिति में इसके फलों का विकास अच्छे से नहीं हो पाता। इसकी खेती के लिए 6 से 7 पी.एच मान वाली भूमि उपयुक्त होती हैं। इसके अतिरिक्त जिमीकंद की खेती बारिश के मौसम में नहीं करनी चाहिए।
जिमीकंद की बुवाई अप्रैल से मई महीने के शुरू में की जाती है। जिमीकंद की बुवाई वानस्पतिक विधि द्वारा की जाती है। बुवाई के लिए बीज उसके फलों से ही बनते हैं। बीज के लिए इसके पूर्ण रूप से पक चुके फल का ही प्रयोग किया जाता है। इन पूर्ण तरीके से पक चुके फल को कई भागों में काटकर खेत में लगाया जाता है। बुआई हेतु 250 से 500 ग्राम का कंद का टुकड़ा उपयुक्त होता है। यदि जिमीकंद बुवाई के लिए उपरोक्त वजन के पूर्ण कंद के टुकड़े उपलब्ध हो, तो उनका ही उपयोग करें। ऐसा करने पर प्रस्फुटन अग्रिम होता है जिससे फसल पहले तैयार एवं अधिक उपज की प्राप्ति होती है। परन्तु कंद को काटते समय एक बात का ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम कालर (कलिका) का कुछ भाग अवश्य रहे।
इसके फल से बीजों को तैयार करते वक्त ध्यान रखें कि इसके बीजों का वजन 250 से 500 ग्राम होना चाहिए और प्रत्येक कटे हुए बीज में कम से कम दो आंखे होनी चाहिए। ताकि पौधे का अंकुरण अच्छे से हो पाए। कंद से बीज तैयार करने के बाद उन्हें खेत में लगाने से पहले बीजो के उपचारण के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या इमीसान की उचित मात्रा का घोल बनाकर उसमें आधे घंटे के लिए इन बीजों को डूबा देना चाहिए। इन बीजों को उपचारित करके ही खेत में लगाएं। क्योंकि जिमीकंद के बीज इसके फलो से ही तैयार होते हैं। इसके एक बीज का वजन तकरीबन 250 से 500 ग्राम के मध्य होता है, जिस वजह से प्रति हेक्टेयर के खेत में 50 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती हैं।
जिमीकंद के बीजों के तैयार टुकड़ों को उपचारित कर ही खेत में लगाएं। इसके तैयार उपचारित बीजों को खेत में पहले से तैयार की गई नालियों में लगाया जाता हैं। लेकिन कुछ किसान भाई जिमीकंद के बीजो की बुवाई गड्ढ़ों को तैयार कर उसमें भी लगाते हैं। अगर किसान इनकी बीजों की बुवाई गड्ढ़ों में करना चाहता है तो उसके लिए किसान भाई को उचित दूरी रखते हुए खेतों में नाली की जगह गड्ढ़ों को तैयार कर लेना चाहिए। बीज रोपाई के लिए नालियों या गड्ढ़ों को तैयार करते वक्त ध्यान रखे की प्रत्येक नालियों के बीच दो से ढाई फिट की दूरी होनी चाहिए। और इन नालियों या गड्ढ़ों के अंदर बीज को आपस में दो फिट की दूरी पर ही लगाना चाहिए। बीज को नालियों में लगाने के बाद उन्हें मिट्टी से अच्छे से ढक देते हैं।
बात दें कि वैसे तो इसके फल से बीजों को तैयार किया जाता हैं। इसके अलावा अगर किसानों के पास इसकी खेती के लिए बीज उपलब्ध नहीं हैं। तो किसान इन बीजों को आपने स्थानिय बाजार या कृषि विभाग से प्राप्त कर सकतें है। ओल (जिमीकंद) कुछ उन्नत किस्में का पैदावार और मौसम के अनुसार उपयोग कर सकतें है। ओल (जिमीकंद) की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मों को ही खेत में लगाना चाहिए। ओल (जिमीकंद) की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार हैं- गजेंन्द्र, संतरा गाची, एम-15, राजेन्द्र आदि। किसान भाई इन किस्मों का इस्तेमाल ओल की व्यावसायित खेती के लिए अपने खेत में लगाने के लिए कर सकते है। ओल की इन उन्नत किस्मों की औसत पैदावार 70 से 85 टन प्रति हेक्टेयर की दर से होती हैं।
ओल की अच्छी उपज हेतु खाद एवं उर्वरक की उचित मात्रा से ज्यादा जरूरत होती है। इसके लिए खेत की जुताई के समय 10 से 15 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, नेत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश 80 : 60 : 80 किग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुपात में प्रयोग करें। बुआई के पूर्व गोबर की सड़ी खाद को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें। फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा, नेत्रजन एवं पोटाश की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में तथा शेष बची नेत्रजन एवं पोटाश को दो बराबर भागों में बाँट कर कंदों के रोपाई के 50-60 तथा 80-90 दिनों बाद गुड़ाई एवं मिट्टी चढ़ाते समय प्रयोग करें।
ओल की फसल को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि पौधों को पानी की उचित मात्रा मिलती रहने पर इसका कंद अच्छे से तैयार होता है। इसकी पहली सिंचाई रोपाई के बाद तुरंत कर देनी चाहिए। बीजों को अंकुरित होने तक खेत में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए खेत की सप्ताह में दो बार सिंचाई करें। बीजों के अंकुरित होने के बाद बारिश से पहले गर्मियों के मौसम में पौधों को चार से पांच दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। सर्दियों के मौसम में इसके पौधे को पानी की सामान्य जरूरत होती है। इसलिए सर्दियों के मौसम में पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए।
झुलसा रोग : रोग का लक्षण आते ही बाविस्टीन अथवा इंडोफिल एम 45 का 2.5 मिली. प्रति ली. की दर से 2 से 3 छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें।
तना गलन : इसके रोकथाम हेतु उचित फसल चक्र अपनाएँ। जल निकास की उचित व्यवस्था रखें। कंद लगाने से पूर्व उसे बताई गयी विधि द्वारा उपचारित कर लें। कैप्टान दवा के 2 प्रतिशत के घोल से 15 दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार पौधे के आस-पास भूमि को भींगा दें।
जिमीकंद भृंग रोग : इस रोग से बचाव के लिए नीम के काढ़े का माइक्रो झाइम के साथ मिश्रित कर छिड़काव करें।
तम्बाकू की सुंडी रोग : इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मेन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव करें।
ओल (जिमीकंद) के पौधे रोपाई के बाद 6 से 8 महीने में पककर पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों की पत्तियां सूखकर गिरने लगे तब इसके फलों को खुदाई कर निकल लेना चाहिए। इसके बाद उन्हें साफ पानी से धो देना चाहिए। धोये हुए फलों को छायादार जगह में अच्छे से सूखा लेना चाहिए। इसके बाद इन्हे हवादार बोरों में भरकर बाजारों में बेचने के लिए भेज देना चाहिए। छटनी के बाद बाकी बची हुई छोटी कंदों का इस्तेमाल फिर से बुवाई के लिए बीजों के रूप में कर सकते हैं। जिमीकंद के एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 70 से 80 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है। जिमीकंद का बाजार भाव 2000 रूपए प्रति क्विंटल के आसपास होता है, जिस हिसाब से किसान भाई इसकी एक बार की फसल से लगभग 4 लाख तक की कमाई कर सकते हैं।
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