नमस्कार दोस्तों आज हम ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट में आपको एक ऐसी फसल के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जिसकी एक बार की खेती से 20 से 30 वर्षों तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। वो भी कम लागत एवं समिति सिंचाई के माध्यम से। आज हम जिसके बारे में बात कर रहे है वह मेहंदी है, जिसे ’हिना’ नाम से भी जाना जाता है। मेहंदी का पौधा एक बहुवर्षीय सूखारोधी पौधा है, जिस वजह से यह गर्म व शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में सरलता से उगता है। मेहंदी शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में बहुवर्षीय फसल के रूप में टिकाऊ खेती के सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। मेहंदी की खेती पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है। बिना पानी एवं सीमित लागत में वर्षाधीन क्षेत्रों में मेहंदी की खेती लाभकारी साबित हो रही है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ राज्यों की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है। भारत में सबसे अधिक (90 फीसदी) क्षेत्रफल में मेहंदी की खेती राजस्थान के पाली जिले में की जाती है और यहाँ पर सर्वोतम गुणवत्ता की विश्व प्रसिद्ध ‘सोजत की मेहंदी’ का उत्पादन होता है। भारत से मेहंदी पूरी दुनियां को भेजी जाती है। मेहंदी भारत से निर्यात की जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल हैं। भारत में इसकी खेती मुख्यतः पत्तियों के लिए की जाती है, जिसमें ‘लासोंन’ नामक रंजक यौगिक होता है, जो बालों एवं शरीर को रंगने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके फूलों से निचोड़े गये तेल का उपयोग इत्र उद्योग में मेहंदी के ओटो के स्त्रोत के रूप में किया जाता है। सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री एवं औषधीय उत्पादों के निर्माण में मेंहदी की बढती मांग को देखते हुए इसकी खेती और व्यवसाय की अपार संभावनाएं हैं। किसान भाई कम लागत में इसकी खेती कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।
मेहंदी का वानस्पतिक नाम लॉसोनिया इनर्मिस है, जिसे हिना भी कहते है। यह लाइर्थिएसी कुल का सदस्य है। यह एक बहुशाखीय, बहुवर्षीय एवं व्यावसायिक फसल है। मेहंदी एक झाड़ीदार छोटा वृक्ष है। इसकी शाखाएं कांटेदार, नुकीले पर्ण अभिमुख क्रम में, लंबे, अग्र भाग की ओर कम चौड़े एवं सरल धार वाले होते हैं। इसके पुष्प हरिताभ श्वेत, गुच्छों में सुगंधित, शाखाग्र फल गोल व कई बीजों वाले होते हैं। एक बार लगाने के बाद कई वर्षों तक इसकी फसल ली जा सकती है। इसकी फसल सितंबर-अक्टूबर तक काट ली जाती है तथा फरवरी से पुनः पौधा स्फुटन करने लगता है। इसे हाथों, पैरों, बाजुओं आदि पर लगाया जाता है। 1990 के दशक से ये पश्चिमी देशों में भी चलन में आया है। मेहंदी का प्रचलन आज के इस नए युग में ही नहीं बल्कि काफी समय पहले से हो रहा है।
मेहंदी प्राकृतिक रंग का एक प्रमुख स्रोत है। मेहंदी की पत्तियों में ‘लासोन’ नामक रंजक योगिक होता है, जो बालों एवं शरीर को रंगने के लिए उपयोग किया जाता है। मेहंदी एक ऐसा कुदरती पौधा है, जिसके पत्तों, फूलों, बीजों एवं छालों में औषधीय गुण समाए होते हैं। उत्सव के अवसरों पर मेहंदी की पत्तियों को पीसकर सौन्दर्य के लिए हाथ एवं पैरों पर लगाते हैं, जो श्रृंगार, सुंदरता एवं सौम्यता का प्रतीक माना जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके रोग-निवारक गुणों की महिमा का वर्णन मिलता है। मेहंदी जहां हथेली और बालों की सुंदरता को निखारती है, वहीं स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत लाभदायक है। मेहंदी के पत्तों, छाल, फल और बीजों का उपयोग विभिन्न औषधियों के उत्पादन में किया जाता है। औषधीय रूप से मेहंदी कफ व पित्तनाशक, शोथहर तथा वर्णशोधक होती है। इसके फल निद्राजनक, शोथहर और ज्वरनाशक तथा बीज अतिसार एवं प्रवाहिका होते हैं। इसकी पत्तियों और फूलों से तैयार पेस्ट कुष्ठ रोगों में उपयोगी होता है। इसकी पत्तियों का रस, सिरदर्द और पीलिया के निवारण में प्रयोग किया जाता है। मेहंदी में लासोन 2-हाइड्रोक्सी, 1 से 4 नाप्थ विनोन, रेजिन, टेनिन गौलिक एसिड, ग्लूकोज, वसा, म्यूसीलेज व क्विनोन आदि तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। मेहंदी का उपयोग किसी भी दृष्टिकोंण से शरीर के लिए हानिकारक नहीं है। मेहंदीकी हेज घर, कार्यालय और उद्यानों में सुन्दरता के लिए लगाते हैं।
मेहंदी शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में बहुवर्षीय फसल के रूप में टिकाऊ खेती के सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। अनुपजाऊ बारानी (शुष्कभूमि) क्षेत्रों के किसानों के लिए मेंहदी किसी वरदान से कम नहीं है। भारत के पश्चिमी क्षेत्रों की गरम एवं शुष्क जलवायु में वर्षा आधारित खरीफ फसलें जैसे-बाजरा, ज्वार, तिल, मूंग एवं ग्वार इत्यादि प्रायः मानसून की अनिशिचत्ता से असफल हो जाती है। इन परिस्थितियों में मेहंदी की खेती किसानों को कुछ निश्चित आय देती है। इसकी सूखा सहने की क्षमता एवं गहरे जड़ तंत्र के कारण यह 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान एवं औसत से कम वर्षा में भी सक्रिय वृद्धि करती है। मेहंदी का पौधे एक बार स्थापित हो जाने पर 20 से 25 वर्षों तक टीके रहते है। किसानों द्वारा इसकी खेती ज्यादातर बिना उर्वरक/खाद प्रयोग एवं न्यूनतम प्रबंधन के साथ वर्षा आधारित फसल के रूप में की जाती है। मेंहदी एक बहुराष्ट्रीय झाड़ी होने के कारण लघु चक्रीय वानिकी रोपण के रूप में एक अच्छा विकल्प देती है। इसके साथ ही यह अपने पर्ण समूह/ अवशेषों से न केवल मृदा आवरण को निरंतर बनाएं रखती है बल्कि सीमान्त शुष्क क्षेत्रों में स्वच्छ पर्यावरण निर्माण में भी सहयोग करती है।
मेहंदी की खेती भारत में व्यवसायिक तौर पर निर्यात के लिए की जाती है। मेहंदी एक बहुशाखीय, बहुवर्षीय एवं व्यावसायिक फसल है। मेहंदी की खेती से प्रथम वर्ष मेहंदी की पैदावार क्षमता का केवल 5 से 10 प्रतिशत उत्पादन ही प्राप्त हो पाता है। मेहंदी की फसल रोपण के 3 से 4 साल बाद अपनी क्षमता का पूरा उत्पादन देना शुरू करती है, जो करीब 20 से 30 वर्षों तक बना रहता है। सामान्य स्थिति में फसल से प्रति वर्ष करीब 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियों का उत्पादन होता है। उन्नत कृषि विधियाँ अपनाकर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियों की उपज ली जा सकती है।
अधिकारिक तौर पर अभी तक मेहंदी की कोई उन्नत किस्म विकसित नहीं हुई है। इसलिए स्थानीय फसल से ही स्वस्थ, चौड़ी व घनी पत्तियों वाले एक जैसे देशी किस्म के पौधों के बीज से ही पौध तैयार कर फसल की रोपाई करें। मुरालिया छोटी पत्ती वाली व झाड़ीनुमा फैलने वाले पौधे नहीं लगायें। इनकी कटाई कांटे व मोटी टहनियों के कारण ज्यादा कठिन होती है तथा पत्ती: तना अनुपात कम होने से पैदावार कम होती है। अधिक पैदावार देने वाली एस 8, एस 22 खेडब्रहा व धन्धुका किस्मों का चयन किया गया है।
सामान्य तौर पर मेंहदी का पौधा शुष्क से उष्णकटिबंधीय और सामान्य गर्म जलवायु में अच्छे से वृद्धि करता है, लेकिन मेहंदी के पौधे को विभिन्न तरह की जलवायु में भी उगाया जा सकता है। मेहंदी की खेती कंकरीली, पथरीली, हल्की एवं भारी, लवणीय एवं क्षारीय सभी प्रकार की भूमियों में आसानी से की जा सकती है। उत्तम गुणवत्ता की पैदावार के लिए सामान्य बलुई दोमट मृदा उपयुक्त रहती है। मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8.5 उपयुक्त रहता है। इसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों से लेकर अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। फसल वृद्धिकाल के दौरान लगभग 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा अच्छी गुणवत्ता की पत्तियों की पैदावार के लिए गर्म, शुष्क एवं खुले मौसम की आवश्यकता होती है। इसकी खेती की विधि सरल है और सीमित संसाधनों पर निर्भर करती है।
मेहंदी की बुवाई फरवरी-मार्च में जब वातावरण का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस हो, तथा इसके तैयार पौध की रोपाई मानसून आगमन के पश्चात जुलाई-अगस्त में करना चाहिए। मेंहदी को सीधा बीज द्वारा या पौधशाला में पौध तैयार कर रोपण विधि से या कलम द्वारा लगाया जा सकता है, लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए पौध रोपण विधि ही सर्वोत्तम है। मेहंदी खेती के लिए पौध तैयार करने के लिए पौधशाला मार्च माह के प्रारम्भ में लगाएं। 10 मीटर लम्बी व 1.5 मीटर चौड़ी 8 से 10 क्यारियां तैयार करके गोबर का खाद मिला दें। मेहंदी के बीजों को क्यारी में बोने से पहले भिगोना जरूरी है। बीजों को बिना भिगोये नहीं बोना चाहिए। बोने से पहले जुट के बोरे में बीज को एक से दो दिन तक भिगोकर रखें व पानी बदलते रहें। केवल भिगोये नहीं, बहते पानी में बीज को धोयें भी। बहते पानी में विषैले तत्व बहकर नष्ट हो जाते है। एक बार भिगोने से कवक के संक्रमण से बीज की अंकुरण क्षमता प्रभावित होती है अतः पानी बदलते रहें। नमक के 3 प्रतिशत घोल में 24 घण्टे तक भिगोने से अंकुरण 5 दिन में हो जाता है। नामक के सांद्रता 3 प्रतिशत से अधिक न हो। नमक की सांद्रता अधिक होने से बीज का अंकुरण दुष्प्रभावित होता है। एक हैक्टेयर खेत के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज महीन बालू रेट से मिलाकर इन क्यारियों में बोयें। बीजों की बुवाई असमान न करें।
मेहंदी रोपण हेतु खेत की अच्छी प्रकार से जुताई कर समतल कर लिया जाता है। दीमक नियंत्रण हेतु खेत में 25 किग्रा क्लोरपाइरीफॉस डस्ट का छिडकाव करें। मानसून आगमन के पश्चात जुलाई-अगस्त माह में जब पौधा 40 सेमी या अधिक बड़ा हो जावे तब पौधशाला से पौधे उखाड़कर पौधों की जड़ो की तरफ से 7 से 8 सेन्टीमीटर जड़ छोड़कर कांट ले व ऊपर से तने व पत्तियों वाले हिस्से से थोड़ी-थोड़ी शाखाएँ काटकर पौध छोटी कर रोपना चाहिए। बिना इस प्रक्रिया को करे पौधा पनपने में समय अधिक लेता है। पौधरोपण हल द्वारा बनाई कुंडों में करें। खेत में कतार से कतार 50 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध 30 से.मी. की दूरी पर नुकीली खूटी हल की हलवानी की सहायता से 10 से 15 से.मी. गहरा छेद बनाये तथा एक छेद में एक पौधा रोपित करें, यदि पौधा कमजोर हैं तो एक छेद में 2 पौधे एक साथ रोपें, ध्यान रहें पौधों की रोपाई से पहले पौधों को क्लोरोपाइरिफास से उपचारित करना ना भूलें। रोपाई के बाद छेद उँगलियों से अच्छी तरह दबा देते है ताकि जड़ क्षेत्र में हवा नहीं रहे। पौध लगाते समय खेत की मिट्टी गीली होनी चाहिए। हलकी बारिश के समय रोपण अत्यंत लाभकारी होता है।
मेहंदी के पौध की रोपाई से पहले खेत की अंतिम जुताई के समय 5 से 8 टन सड़ी गोबर खाद प्रति हेक्टर की दर से भूमि में हैरो से एक समान मिलावे और 60 किलो ग्राम नत्रजन तथा 40 किलो ग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टर की दर से खड़ी फसल में प्रति वर्ष प्रयोग करें। फास्फोरस की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा पहली बरसात के बाद निराई-गुड़ाई के समय भूमि में मिलावें तथा शेष नत्रजन की मात्रा उसके 25 से 30 दिन बाद वर्षा होने पर दें। इसके बाद मेहंदी के स्थापित खेतों में प्रति वर्ष प्रथम निराई-गुड़ाई के समय 40 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों की कतारों के दोनों तरफ देनी चाहिए।
रसायनिक नियंत्रण बाविस्टिन (1.5 ग्राम/लीटर पानी) और मोनोक्रोटोफॉस (1 मि.ली./लीटर पानी) के घोल का छिड़काव कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए करें। कीट नियंत्रण में 40 प्रतिशत से 2.25 प्रतिशत तथा रोग नियंत्रण 43 प्रतिशत से 8.4 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई।
पाली जिले के सोजत में ट्राइकोडर्मा (1 कि.ग्रा.), वर्मीकम्पोस्ट (40 कि.ग्रा. ओर फोरेट 20 ग्राम/प्लांट) का उपचार करने पर मेहंदी की फसल उत्पादन में वृद्धि देखने को पाई गई है। अतः मृदा उपचार व पत्ती उपचार द्वारा मेहंदी की फसल का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
जैविक नियंत्रण जैव नियंत्रण द्वारा कीटों एवं रोगों की रोकथाम के लिए 1 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा कल्चर को 40 कि.ग्रा., वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर पौधे के चारों और डाल दें। दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपाइरीफास का अवश्य प्रयोग करें। क्लोरोपाइरीफास की निर्धारित मात्रा को पानी में घोल कर पौधों के आस-पास मिटटी में अच्छी तरह छिड़काव करें। फोरेट का उपचार करने से जड़गलन रोग एवं दीमक का प्रकोप नियंत्रित हो जाता है।
मेहंदी, राजस्थान की एक महत्वपूर्ण फसल है। राजस्थान के पाली जिले में मेहंदी का उत्पादन सबसे अधिक होता है। पाली जिले के अधिकतर किसान इसकी पत्तियों को सूखे पाउडर के रूप में पैकिंग कर निर्यात करते हैं। राजस्थान देश में मेहंदी पत्ती का सबसे प्रमुख उत्पादक प्रदेश है। इस प्रदेश के पाली जिलों विशेषकर सोजत और मारवाड़ में मेहंदी मुख्य फसल के रूप में ली जाती है। इसीलिए यह क्षेत्र इसके उत्पादन का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है। जिले की 40,000 हैक्टर क्षेत्रफल में फैली मेहंदी की व्यावसायिक खेती से किसानों, व्यापारियों और इससे जुड़े हुए उद्योगों को प्रतिवर्ष 40 करोड़ रुपये से अधिक की आमदनी होती है। इसी कारण सोजत पूरे विश्व में मेहंदी उत्पादन और विपणन की प्रमुख मंडी है। सोजत क्षेत्र में मेहंदी का पाउडर बनाने तथा मेहंदी की सफाई करने वाले लगभग 50-60 कारखाने लगे हुए हैं। इन कारखानों के मालिक अपना उत्पाद तैयार कर पूरे विश्व के साथ-साथ भारत के दूरदराज के गांवों, कस्बों और शहरों में भी आपूर्ति करते हैं।
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